‘या तो मुझे मार दो या अब ये रोक दो.’ चांद बीबी की दर्द से कराहती चीखें सुनाई देती हैं. गांव के तमाम पुरुषों के तमाशबीन बने खड़े रहने के बीच दो आदमियों ने उसे जमीन पर पटक दिया था, और इसमें एक उसका भाई था. फिर, एक काली पगड़ी वाला मौलवी यंत्रवत तरीके से उसके शरीर पर चाबुक बरसाने लगा था. 2009 की शुरुआत में पाकिस्तान ने तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) के जिहादियों के साथ एक शांति समझौते पर हस्ताक्षर किए थे, जिसके साथ ही स्वात घाटी की न्याय व्यवस्था पर उनका नियंत्रण हो गया था. व्यापक तौर पर सर्कुलेट हो रहा यह वीडियो शरियत कानून के साये में लोगों के जीवन की झलक दिखाता था.
टीटीपी का एक प्रवक्ता कहता है, ‘वह अपने घर से एक अन्य मर्द के साथ निकली थी, जो उसका पति नहीं था. इसलिए हमारे लिए उसे दंडित करना जरूरी है. कुछ सीमाएं हैं जिन्हें आप पार नहीं कर सकते.’
सैन्य जेल में मौत की सजा का इंतजार कर रहे उसी प्रवक्ता-जिहादी कमांडर मुस्लिम खान को पिछले महीने गोपनीय तरीके बाहर लाकर काबुल में अफगान तालिबान की हिरासत में सौंप दिया गया. यह रिहाई कई जटिल कदम उठाकर टीटीपी के साथ किए गए एक समझौते के तहत हुई है. करार की अगुआई लेफ्टिनेंट-जनरल फैज हमीद ने की जो इंटर-सर्विसेज इंटेलिजेंस के प्रमुख रहे हैं और अब पेशावर में मुख्यालय वाली 11वी कोर के कमांडिंग ऑफिसर हैं.
भले ही टीटीपी और पाकिस्तानी सेना के बीच दिखावटी तौर पर संघर्ष विराम लागू हो लेकिन जिहादी हमले लगातार जारी हैं. इस हफ्ते ही उत्तरी वजीरिस्तान में एक सैन्य चौकी पर हमले में एक सैनिक मारा गया और पिछले महीने अफगान सीमा के पास हमले में आठ अन्य सैनिक मारे गए थे. स्कॉलर अमीरा जादून और अब्दुल सईद के मुताबिक, काबुल में अपने तालिबानी आकाओं के सत्ता में आने के बाद से टीटीपी ने हिंसक हमले तेज कर दिए थे और इसी ने इस्लामाबाद को इस करार के लिए बाध्य किया है.
फिर भी, चांद बीबी को सजा देने वाला वीडियो और हिंसक गतिविधियों में वो तेजी—जिसकी यह एक बानगी भर था—ये याद दिलाने के लिए काफी है कि जिहादियों के साथ शांति समझौते का नतीजा किसी खूनी जंग से कम भयावह नहीं साबित होता.
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