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Thursday, 25 April, 2024
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पाकिस्तान का शांति प्रस्ताव बिल्कुल स्पष्ट था लेकिन आशावादी भारतीय इसे पढ़ने में असफल रहे

जब पाकिस्तान की आर्थिक समन्वय समिति (ईसीसी) ने, ज़मीन और समुद्र के रास्ते भारत से चीनी, कपास, और कपास के धागों के आयात को मंज़ूरी दी, तो हमने ये मान लिया कि भारत-पाकिस्तान मिलनसारी के पुराने अच्छे दिन लौट आए हैं.

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भारतीय लोग लाइलाज आशावादी हैं.जब पाकिस्तान के सेना प्रमुख जनरल क़मर जावेद बाजवा ने कहा, ‘कल को भूल जाइए और आगे बढ़िए’ तो हम ख़ुशी से इतने भर उठे, कि हमने उनके उस बयान को छिपा दिया, कि ‘कश्मीर मसला इस मुद्दे के केंद्र में है’. आपसी तनाव में स्थायी कमी की उम्मीदें, फरवरी में पहले ही जग गईं थीं, जब भारत और पाकिस्तान की सेनाओं ने, नियंत्रण रेखा पर सीज़फायर लागू करने का फैसला किया.

उसी तरह, जब पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान ख़ान ने, पाकिस्तान दिवस पर पीएम नरेंद्र मोदी के बधाई संदेश का जवाब देते हुए कहा, कि ‘पाकिस्तान की अवाम भी भारत समेत सभी पड़ोसी मुल्कों के साथ, शांति और सहयोग के रिश्तों की इच्छुक है’, तो हमने उनकी इस चेतावनी पर ध्यान नहीं दिया, कि ‘दक्षिण एशिया में स्थाई शांति और स्थिरता इस बात पर निर्भर है, कि भारत और पाकिस्तान के बीच सभी बाक़ाया मुद्दे, ख़ासकर जम्मू-कश्मीर विवाद, सुलझा लिए जाएं’.

इसलिए, जब पाकिस्तान की आर्थिक समन्वय समिति (ईसीसी) ने, ज़मीन और समुद्र के रास्ते भारत से चीनी, कपास, और कपास के धागों के आयात को मंज़ूरी दी, तो हमने ये मान लिया कि भारत-पाकिस्तान मिलनसारी के पुराने अच्छे दिन लौट आए हैं. बल्कि, बहुत से लोगों ने तो यहां तक कहा, कि इस्लामाबाद का भूतपूर्व शांति संकेत एक व्यावहारिक फैसला था, जो इस समझ पर आधारित था कि अपने पूर्वी पड़ोसी से दुश्मनी, सिर्फ पाकिस्तान को नुक़सान पहुंचा रही थी.

लेकिन, अब जब पाकिस्तान की फेडरल कैबिनेट ने भारत से आयात के ईसीसी के फैसले को टाल दिया है- विदेश मंत्री शाह महमूद क़ुरैशी ने, पीएम इमरान ख़ान के रुख़ को दोहराया है, कि जब तक भारत 5 अगस्त को लिए गए अपने एक तरफा फैसले पर दोबारा ग़ौर नहीं करता, तब तक भारत के साथ रिश्तों को सामान्य करना मुमकिन नहीं होगा’- तो ये बिल्कुल साफ हो गया है, कि नई दिल्ली से रिश्ते सुधारने की इस्लामाबाद की पेशकश, बेमतलब की बकवास के अलावा कुछ नहीं थी. कुछ दिन के अंदर हुए इस मत-परिवर्तन को आप और क्या कह सकते हैं?


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पाकिस्तान की आत्मघाती मानसिकता

इसलिए पता ये चला कि जनरल बाजवा की साहसी पुकार, ऐसी ही धोखे में डालने वाली थी, जैसी उनके पूर्ववर्ती  जनरल रहील शरीफ का दावा था कि पाकिस्तानी सेना ‘सभी क़िस्म के दहशतगर्दों के पीछे जाएगी, और साथ ही उन्हें उकसाने वालों, फाइनेंसरों और उनके हमदर्दों को भी नहीं छोड़ेगी.’ पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने ठीक ही कहा था, कि पाकिस्तान ने उसे दी गई तमाम आर्थिक सहायता के बदले, बदले में ‘झूठ और धोखे के अलावा कुछ नहीं दिया’.

ये कोई रहस्य नहीं है कि पाकिस्तान का कश्मीर के प्रति प्रेम, एक आत्मघाती मानसिकता है, जो उसके विकास और तरक़्की की राह में, एक बड़ा रोड़ा बनी हुई है. भारत से अस्तित्व संबंधी काल्पनिक ख़तरे के बहाने से, जिसका रावलपिंडी राग अलाप रहा है, पाकिस्तानी सेना देश के बजट का एक बड़ा हिस्सा डकार जाती है, और ढांचागत विकास और ग़रीबी उन्मूलन के लिए, मुश्किल से ही कुछ बच पाता है. पूर्व प्रधानमंत्री ज़ुल्फिक़ार अली भुट्टो का मशहूर वाक्य– ‘हम घास खाएंगे, भूखे तक रहेंगे, लेकिन हम अपना ख़ुद का (एटम बम) बनाएंगे’- पाकिस्तानी नेतृत्व के सैन्य जुनून की एक अच्छी झलक दिखाता है.

भारत के साथ कारोबारी रिश्तों पर पाबंदी के कारण, पाकिस्तान के उद्योगों को मजबूरन, दूसरी जगहों से महंगे आयात करने पड़ते हैं, जिससे उनकी चीज़ें महंगी हो जाती हैं. इसके अलावा, जहां पाकिस्तानी उद्योग तकलीफ में है, वहीं बिचौलिए मिडिल ईस्ट के तीसरे देशों के ज़रिए, भारत-पाकिस्तान के बीच अनाधिकारिक व्यापार को सुगम बनाकर, भारी मुनाफा कमा रहे हैं, और इमरान ख़ान सरकार ने भी इस सच्चाई को स्वीकार किया है. दिसंबर 2019 में, डॉन अख़बार ने राजस्व मंत्री हम्माद अज़हर का ये मानते हुए हवाला दिया, कि ‘बढ़ रही क़ीमतें, ख़ासकर खाद्य पदार्थों की महंगाई, भारत से व्यापार स्थगित किए जाने, मौसमी कारण, तथा बिचौलियों की भूमिका का नतीजा है’.

मार्च 2021 में, तक़रीबन साथ-साथ हुई दो घटनाओं ने दिखा दिया कि पाकिस्तान की प्राथमिकताओं की समझ कैसी विषम है. एक ओर राष्ट्रीय स्वास्थ्य सेवा सचिव आमिर अशरफ ख्वाजा ने ऐलान किया, कि सरकार की इस साल कोविड-19 वैक्सीन्स खरीदने की कोई योजना नहीं है, और इस विनाशकारी महामारी का मुक़ाबला, ‘हर्ड इम्यूनिटी’ और दान में मिली वैक्सीन्स से किया जाएगा. दूसरी ओर, पाकिस्तानी सेना सक्रियता के साथ 1.5 बिलियन डॉलर की उस डील के पीछे लगी थी, जो उसने जुलाई 2018 में टर्की के साथ, टर्की-निर्मित हेलिकॉप्टर गनशिप्स के लिए साइन की थी. हालांकि अमेरिका ने अब इस बिक्री को रोक दिया है. तो, जहां पीएम ख़ान दुनिया भर को एक दुखभरी कहानी सुना रहे हैं, कि कैसे पाकिस्तान के पास ‘पैसे नहीं हैं कि वो पहले से ही दवाब में चल रही स्वास्थ्य सेवाओं पर और ख़र्च कर सके, और लोगों को भूखों मरने से रोक सके’, वहीं उनकी सेना पर मुल्क के आर्थिक संकट का कोई असर नहीं दिख रहा है, और ऐसा लगता है कि उसे बस पहले से ही सैन्य उपकरणों विशाल भंडार को, और बढ़ाने की चिंता लगी हुई है.


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पाकिस्तान की ‘स्थिति’ के साथ मसले

रिश्ते सुधारने की दिशा में किसी भी बातचीत को, कामयाबी के साथ फिर से पटरी पर लाने का, पहला बुनियादी नियम ये है कि पहले से कोई शर्तें न रखी जाएं, ख़ासकर अगर वो बेतुकी हों. लेकिन, पीएम ख़ान का ज़ोर देना कि नई दिल्ली को, भारतीय संविधान की धारा 370 को बहाल करना होगा- जिसमें जम्मू-कश्मीर को ख़ास दर्जा दिया गया था- उसके बाद ही इस्लामाबाद रिश्तों को सामान्य करने की सोच सकता है, इन कारणों से एक मूर्खता भरी मांग के अलावा कुछ नहीं कहा जा सकता.

धारा 370 भारतीय संविधान के XXI वें हिस्से में शामिल किया गया था, जिसका शीर्षक था ‘अस्थायी, संक्रमणकालीन, और विशेष प्रावधान’ और इसका जम्मू-कश्मीर पर यूएन प्रस्ताव से कोई संबंध नहीं है.

भारत एक संप्रभु राष्ट्र है, और अपने संविधान में कोई भी संशोधन करना, अकेले लोकतांत्रिक रूप से चुनी गई उसकी सरकार का अलंघनीय अधिकार है. इसलिए, इसे एक तरफा फैसला क़रार देकर, इस्लामाबाद सिर्फ ख़ुद को हंसी का पात्र बना रहा है.

पाकिस्तान समझ सकता है कि धारा 370 को ख़त्म करना, ‘सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) के बहुत से प्रस्तावों का घोर उल्लंघन हो सकता है, ’ लेकिन इस्लामाबाद की इस मांग को ठुकराकर, कि नई दिल्ली को उसे बहाल करने का निर्देश दिया जाए, यूएनएससी और अन्य अंतर्राष्ट्रीय एजेंसियों ने पाकिस्तान द्वारा गढ़ी गई इस काल्पनिक कहानी को पूरी तरह ख़ारिज कर दिया है.

धारा को हटाए जाने के फौरन बाद, पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद क़ुरैशी ने ऐलान किया था, कि ‘हमने फैसला किया है कि हम कश्मीर केस (धारा 370 रद्द करने संबंधित) को अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय (आईजेसी) में ले जाएंगे’. उन्होंने यहां तक कहा कि ‘ये फैसला तमाम क़ानूनी पहलुओं पर ग़ौर करने के बाद लिया गया’. इसलिए, आईसीजे में जाने की पाकिस्तान की नाकामी, क्या उसकी तरफ से साफतौर पर इक़रार नहीं है, कि उसकी तकरार क़ानूनी रूप से नहीं टिकेगी?


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मंशा साफ है

चूंकि पाकिस्तान की कूटनीतिक कोर बेहद सक्षम है, इसलिए इमरान ख़ान की ओर से इतनी भारी भूल समझ से बिल्कुल बाहर है, लेकिन पाकिस्तानी सेना विदेशी मामलात में छेड़छाड़ के लिए बदनाम है, जबकि उसके पास कूटनीति की कोई समझ नहीं है. इसलिए धारा 370 की बहाली को एकमात्र कारण बताकर, भारत के साथ शांति बहाली की इच्छा से पलटने का, इस्लामाबाद का शर्मनाक फैसला, संभवत: एक ऐसा फैसला है जो रावलपिंडी के जनरल हेडक्वार्टर्स से आया है, और इसके पीछे का कारण इस्लामाबाद स्थित विदेश मंत्रालय की सिफारिशें नहीं हैं.

दरअस्ल, अपनी उदार टिप्पणी करते हुए, कि ‘अब कल को भूलकर आगे बढ़ने का समय है’, बाजवा ने ख़ुद भारत के साथ शांति की किसी भी पहल के कमज़ोर होने का, साफ इशारा कर दिया था. पाठकों को याद होगा कि अपने इस ऐलान से पहले, उन्होंने ज़िक्र किया था कि ‘कश्मीर समस्या के समाधान के बिना…उपमहाद्वीप में मेल-मिलाप की प्रक्रिया के, राजनीति से प्रेरित युद्धप्रियता के कारण, पटरी से उतरने का ख़तरा बना रहेगा’. इसलिए इसमें कोई आश्चर्य नहीं, कि दोनों देशों के बीच 2021 में की गई शांति की पहल, एलओसी सीज़फायर समझौते की स्याही सूखने से पहले ही ठंडी पड़ गई, जिसके पीछे का कारण इस्लामाबाद की ओर से दिखाई गई राजनीति से प्रेरित युद्धप्रियता है.

यक़ीन के साथ कहना मुश्किल है कि क्या भारत-पाकिस्तान रिश्तों के फिर से बिगड़ने की जनरल बाजवा की भविष्यवाणी महज़ एक संयोग है. लेकिन, एक बात साफ है- हाल के समय में, दोनों के लिए मुफ़ीद व्यवसायिक गतिविधियां, और दोनों देशों के लोगों के बीच खुले संपर्क से, रावलपिंडी की उस कहानी को ख़ारिज किया जा सकता था, जिसमें भारत को एक राक्षस के तौर पर दिखाने की कोशिश की जाती है. पाकिस्तान सेना संविधान से इतर अपनी शक्तियां हासिल करने के लिए, ख़ुद को भारत के ‘आधिपत्य’ के इरादों के खिलाफ बचाव के तौर पर पेश करती है. इसलिए भारत को लेकर जनता की धारणा में कोई भी बदलाव, रावलपिंडी की ताक़त के आधार को कमज़ोर करेगा, जिसे पाकिस्तानी सेना कभी मंज़ूर नहीं करेगी.

ये कोई राज़ की बात नहीं है कि पाकिस्तान एक ऐसा देश है, जहां विधायिका प्रस्तावित करती है, और सेना उसे ख़ारिज करती है. इसलिए, क्या कहीं दूर इस बात की संभावना नहीं है, कि जनरल बाजवा का ‘कल को भूलकर आगे बढ़ने’ की पेशकश, और सैन्य प्रतिष्ठान के चुने हुए प्रधानमंत्री का इसके बिल्कुल उलट, धारा 370 को रद्द करने को, रिश्तों के सामान्य बनाने की शर्त बनाना, एक ही योजना का हिस्सा नहीं हैं, और इसके मक़सद एक बार फिर कश्मीर मुद्दे पर अंतर्राष्ट्रीय तवज्जो खींचना नहीं है?

(कर्नल निलेश कुंवर भारतीय सेना के एक रिटायर्ड अधिकारी हैं, जिन्होंने जम्मू-कश्मीर, असम, नागालैंड और मणिपुर में सेवाएं दी हैं. व्यक्त विचार निजी हैं)

(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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