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Thursday, 25 April, 2024
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PM स्वनिधि के तहत निजी बैंकों से स्ट्रीट वेंडर्स को अब तक केवल 1.6% लोन मिला

29 मार्च तक 20 लाख से अधिक रेहड़ी-पटरी वालों को ऋण दिया गया है, जिनमें से 18 लाख से ज्यादा आवेदकों को सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों से कर्ज मिला, जबकि निजी बैंकों ने सिर्फ 32,534 को ऋण दिया.

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नई दिल्ली : कोविड-19 लॉकडाउन के कारण प्रभावित रेहड़ी-पटरी वालों को छोटे-मोटे कर्ज की सुविधा मुहैया कराने के लिए प्रधानमंत्री की तरफ से आत्मनिर्भर निधि योजना घोषित किए जाने के 10 महीने बाद आवास एवं शहरी मामलों के मंत्रालय का डेटा दर्शाता है कि निजी बैंक इन स्ट्रीट वेंडर को लोन देने से कतरा रहे हैं.

पीएम स्‍वनिधि योजना के तहत स्ट्रीट वेंडर 1 वर्ष की अवधि के लिए 10,000 रुपये तक की पूंजी का कोलैटरल-फ्री लोन ले सकते हैं. समय पर कर्ज चुकाने पर 7 फीसदी सालाना की दर से सब्सिडी उनके खाते में जमा हो जाती है.

आवास मंत्रालय ने देशभर में लगभग 50 लाख रेहड़ी-पटरी वालों को इस तरह ऋण देने की योजना बनाई है जिसका उद्देश्य लॉकडाउन के कारण प्रभावित हुए लोगों को अपना व्यवसाय फिर से शुरू करने में मदद देना है.

हालांकि, दिप्रिंट को मिला मंत्रालय का डेटा ऋण बांटे जाने में सार्वजनिक और निजी क्षेत्र के बैंकों की निराशाजनक भागीदारी को दर्शाता है.


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निजी बैंकों ने सिर्फ 32,534 रेहड़ी-पटरी वालों को लोन दिया

मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक, 3 अप्रैल तक 41.21 लाख रेहड़ी-पटरी वालों ने इस योजना के तहत आवेदन किया था जिसमें से 20 लाख को 1,983 करोड़ रुपये का ऋण वितरित किया गया है.

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इसमें से सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों ने 29 मार्च तक 18 लाख लाभार्थियों (90 प्रतिशत) को ऋण वितरित किया. वहीं निजी क्षेत्र के बैंकों ने कुल 32,534 लाभार्थियों यानी 1.6 फीसदी को कर्ज दिया.

यहां तक कि क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों ने ज्यादा रेहड़ी-पटरी वालों—लगभग 1.11 लाख से अधिक लाभार्थियों—को ऋण दिया है. सहकारी बैंकों ने 29,396 रेहड़ी पटरी वालों को ऋण बांटा है.

सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (एसबीआई) इस सूची में सबसे ऊपर रहा है, जिसने 5.8 लाख आवेदकों को कर्ज दिया. इसके बाद यूनियन बैंक ऑफ इंडिया और बैंक ऑफ बड़ौदा ने क्रमशः 2.32 लाख और 1.99 लाख आवेदकों को ऋण दिया.

निजी बैंकों के बीच जम्मू और कश्मीर बैंक लिमिटेड का योगदान सबसे ज्यादा है, जिसने 29 मार्च तक 9,595 आवेदकों को ऋण बांटा है. कतार में अगला नंबर आईडीबीआई बैंक का है जिसने 7,287 आवेदकों को ऋण दिया है और फिर है कर्नाटक बैंक लिमिटेड, जिसने 6,138 आवेदकों को ऋण दिया.

खराब प्रदर्शन पर अधिकारियों का तर्क

निजी बैंकों के रेहड़ी-पटरी वालों को कर्ज देने से कतराने के बाबत पूछे जाने पर मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि कोलैटरल-फ्री लोन बाद में गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों (एनपीए) में बदल जाने का डर उनके खराब प्रदर्शन की एक बड़ी वजह है.

अपना नाम न बताने के इच्छुक अधिकारी ने कहा, ‘निजी बैंक इससे बच रहे हैं. हमने इस मामले में सक्रियता बढ़ाने के लिए निजी बैंक ऑपरेटरों के साथ कई दौर की बैठकें की हैं. वे कहते हैं कि कोलैटरल-फ्री ऋण बाद में एनपीए में बदलने की आशंका, आवेदकों की संख्या कम होने जैसे कई कारण गिना रहे हैं.’

मंत्रालय के एक दूसरे अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, ‘निजी क्षेत्र के बैंकों की तरफ से ऋण वितरण कम रहने की एक वजह यह भी बताई जा रही है कि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की तुलना में निजी बैंकों में रेहड़ी-पटरी वालों के खाते नहीं है. जब नया खाता खोलने की बात आती है तो निजी बैंक स्ट्रीट वेंडर की पहली पसंद नहीं होते हैं. जब बैंक खाता ही नहीं होगा तो कर्ज दिया जाना स्वाभाविक तौर पर प्रभावित होगा.’


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संसदीय पैनल ने चिंता जताई

पिछले महीने एक संसदीय पैनल ने भी पीएम स्वनिधि योजना में निजी बैंकों की बेहद कम भागीदारी पर चिंता जताई थी. शहरी विकास मामलों पर भाजपा सांसद जगदम्बिका पाल की अध्यक्षता वाली स्थायी संसदीय समिति ने संसद में पेश अपनी एक रिपोर्ट में कहा है कि 16 फरवरी तक योजना के तहत 37.3 लाख से अधिक आवेदन प्राप्त हुए थे, लेकिन निजी और सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के स्तर पर भागीदारी में एक बड़ा अंतर था. समिति ने कहा कि निजी क्षेत्र के बैंकों की हिस्सेदारी मात्र 4 प्रतिशत रही.

समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा, ‘…निजी क्षेत्र के बैंक भी विकास में भागीदार हैं और चूंकि उन्हें सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की तरह ही सरकारी कार्यों के मामले में समान अधिकार मिलते हैं, निजी क्षेत्र के बैंकों को भी इस योजना में अपनी भागीदारी बढ़ाने और रेहड़ी-पटरी वालों को औपचारिक वित्तीय प्रणाली का हिस्सा बनाने के सरकार के प्रयासों को सफल बनाने के लिए आगे आना चाहिए.’

इसमें सार्वजनिक और निजी क्षेत्र दोनों के बैंकों की तरफ से रेहड़ी-पटरी वालों की हाई क्रेडिट रेटिंग पर जोर दिए जाने को लेकर भी चिंता जताई गई है.

रिपोर्ट में कहा गया है, ‘समिति रेहड़ी-पटरी वालों की क्रेडिट रेटिंग/हिस्ट्री पर जोर दिए जाने को लेकर चिंतित है क्योंकि उसकी राय में अधिकांश रेहड़ी-पटरी वाले तो अब तक औपचारिक वित्तीय प्रणाली में शामिल ही नहीं होंगे और शायद तमाम ने पहले कभी कर्ज के लिए बैंकों से संपर्क भी नहीं किया होगा, यह अपने-आप में ही हाई क्रेडिट रेटिंग है.’

समिति ने आवास मंत्रालय से यह भी कहा कि रेहड़ी-पटरी वालों के सिबिल स्कोर (कंज्यूमर क्रेडिट स्कोर) पर जोर दिए जाने से छूट के लिए वित्त मंत्रालय और भारतीय रिजर्व बैंक से आगे बात करे.

मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, राज्यों और केंद्रशासित राज्यों के लिहाज से उत्तर प्रदेश ने सबसे ज्यादा (5.55 लाख) रेहड़ी-पटरी वालों को लोन दिया है, इसके बाद मध्य प्रदेश (3.09 लाख) और तेलंगाना (3.04 लाख) में ऋण बांटा गया है. विक्रेताओं के वर्ग की बात करें तो कुल लाभार्थियों में 45 फीसदी हिस्सा फल-सब्जी बेचने वालों का है, इसके बाद फास्ट फूड (21 प्रतिशत) बेचने वाले फेरीवाले और फिर कपड़ा और हैंडलूम का सामान बेचने वाले (13 प्रतिशत) हैं.

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