आज का फेसबुक स्टेटस: सीमा पार से अल्लाह हू अकबर का नारा उठा, 2.2 करोड़ दूसरों के लिए भावुक हुए, अपने बारे में क्या?
न भूलें कि अहमदियों को अल्लाह हू अकबर कहने पर पाकिस्तान की जेल में तीन साल काटनी पड़ी. मगर कर्नाटक पर फोकस करें, क्योंकि हम पाकिस्तानी पाकिस्तान के सिवाय कहीं भी अल्पसंख्यकों के प्रति हमदर्दी दिखाएंगे. इस्लामाबाद में भारतीय राजदूत को ‘हिजाब पहनी मुस्लिम छात्राओं पर प्रतिबंध लगाने के बेहद दमनकारी’ फरमान के खिलाफ पाकिस्तान की ‘गहरी चिंता और निंदा’ से वाकिफ कराया गया. मानो सरकारी मंत्री का बयान ही काफी नहीं था, जुम्मे (शुक्रवार) को ‘हिंद की बेटियों से हमदर्दी दिवस’ मनाया जाएगा.
इमरान खान सरकार के तहत कई जुम्मे और हमदर्दी दिनों के मद्देनजर इसका मतलब है भरी धूप में दोपहर 12 बजे से 12.30 बजे तक खड़े रहें और कुछ न करें. या 2022 में शायद हम आधे घंटे तक सनबाथिंग (धूप-स्नान) कर सकते हैं. कुछ भी हो सकता है क्योंकि भारतीय स्कूली लड़कियों की ‘गैरत’ पूरी इस्लामी दुनिया में भावनाएं भड़का देती है. फिर भी, पाकिस्तान ने सिर्फ 30 मिनट खड़े रहने की बात चुनी. यानी ठेकेदारी ज्यादा, हमदर्दी कम.
हमदर्दी दिनों पर लौटें तो इस साल सालाना ‘कश्मीर दिवस’ हमेशा की तरह आजादी के वादे, पार्कों के कश्मीर के नाम पर नामकरण करके मनाया गया और पाकिस्तान के राष्ट्रपति अपने व्यस्त दुनियावी मसलों से वक्त निकाल कर इस मौके पर पहुंचे. अब किसी को राष्ट्रपति आरिफ अल्वी को यह दोष नहीं देना चाहिए कि वे गलती से 5 फरवरी को 5 अगस्त का घेराबंदी दिन समझ बैठे, इस साजिश के लिए तो भारत को दोष दो.
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पाकिस्तान के अंदर आंखें मूंद लेना
इस साल भी सीनेट में कश्मीर सत्र के अध्यक्ष हिंदू सिनेटर कृष्ण कोहली थे. उम्मीद है, एक दिन प्रतीकवाद से ऊपर उठकर कोहली को सिंध में हिंदू अल्पसंख्यकों की दशा पर सिनेट के सत्र की अध्यक्षता का मौका मिलेगा, जहां जनवरी से सात लड़कियों को जबरन इस्लाम अपनाने पर मजबूर किया गया, जिसमें सबसे छोटी तो महज 11 साल की थी. इसके अलावा हिंदू व्यापारी सतन लाल की हत्या हुई, जिन्हें धमकी दी गई थी कि जिंदा रहना चाहते हो तो भारत चले जाओ. फिर, शेरांवाली माता मंदिर और निर्माणाधीन हिंगलाज मंदिर पर हमले हुए. इस फेहरिस्त में सबसे ऊपर, हिंदू प्रिंसिपल नोतन लाल को 14 साल के छात्र के ईश-निंदा के आरोप पर उम्र कैद की सजा दी गई. यह सब 2022 के पहले छह हफ्ते में ही हो गया.
अहमदिया समुदाय 45 कब्रों की बेअदबी के खिलाफ इंसाफ की मांग कर रहा है, जहां इस्लामी आयतें लिखीं पत्थरों को हटा दिया गया था. लेकिन कौन उन्हें इंसाफ देने जा रहा है, इंसाफ की जिम्मेदारी उन्हीं पर है, जो दोषी हैं और इस मामले में स्थानीय पुलिस है. अहमदिया समुदाय के लिए मानो जीते जी सजा काफी नहीं है, उन्हें मरने के बाद भी इस पाक जमीन पर शांति से रहने नहीं दिया जाता. उन्हें अपने उपासना स्थल भी बनाने की इजाजत नहीं होगी, जो एक नजर में मस्जिद जैसी दिखती है, लेकिन कानून के मुताबिक मस्जिद नहीं कही जा सकती. अगर बनाए गए तो गिरा दिए जाएंगे. 1974 में संवैधानिक संशोधन के जरिए अहमदियों को गैर-मुसलमान घोषित किए जाने के बाद उनके सैकड़ों उपासना स्थल तोड़ दिए गए.
ऑल सेंट्स चर्च के शहीदों के लिए हफ्तेवार संडे सर्विस में हिस्सा लेने के बाद पादरी विलियम सिराज की हत्या से उसी जगह 2013 के फिदायीन हमले की याद ताजा हो गई, जिसमें 87 लोग मारे गए थे. ईसाई समुदाय के साथ हमदर्दी दिखाने के लिए पीएम खान के अंतर-धार्मिक सौहार्द मामलों के सलाहकार इस्लामी उलेमाओं के साथ एक प्रतिनिधिमंडल लेकर पेशावर पहुंचे और चर्च में प्रार्थना करते दिखे. पीड़ितों के उपासना स्थलों पर जाने और प्रार्थना करने से हमदर्दी दिखाने के छलावे में बहुसंख्यकवाद का रौब भी दिखता है. इस दिखावे के अलावा, क्या पादरियों को पाकिस्तानी मस्जिदों में प्रार्थना की अगुआई करने को कभी कहा जाएगा?
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‘इमेज खराब होता है’
यह हमदर्दी खोखली जान पड़ती है, जब पाकिस्तान सरकार के अफसर अल्पसंख्यकों की हत्या को इस्लामोफोबिया से जोड़ देते हैं. यह कहना एक और समस्या पैदा करता है कि इस्लामोफोबिया को हवा देकर ऐसी वारदातों से दुनिया भर में मुसलमानों के लिए मुश्किलें पैदा होती हैं. आप असलियत में यह कह रहे होते हैं कि लोग यहां गैर-मुसलमानों को न मारें क्योंकि उससे दूसरे देशों में मुसलमानों को मुश्किल होती है. यह कैसी हमदर्दी है? और फिर ‘पाकिस्तान की इमेज’ को लेकर दशकों पुराना जुनून है कि न मारो क्योंकि उससे इमेज ‘खराब होता है.’ शायद दलील यह हो सकती है कि अगर अल्पसंख्यकों के उत्पीड़न से ‘इमेज’ खराब होती है तो उनकी रक्षा के लिए कानून बनाओ और सजा मत दो. या फिर राष्ट्रपति अल्वी की तरह, दुनिया को पाकिस्तान की अच्छी इमेज दिखाने के लिए फैशन डिजाइनरों की तलाश करो. जो पसंद आए चुन लो!
टार्गेट हत्याएं, उपासना स्थलों पर हमले, छोटी बच्चियों का जबरन धर्म परिवर्तन, ईश-निंदा के लिए फांसी-2022 तो पाकिस्तान में धार्मिक अल्पसंख्यकों के लिए जैसे का तैसा ही है. मगर आओ हम इस पर फोकस करें कि जस्टिन ट्रूडो ने इस्लामोफोबिया पर क्या कहा हो सकता है या दुनिया को इस पर राजी करने की कोशिश जारी रखो कि उइगर मुसलमानों के कत्लेआम की खबरें तो पश्चिम की सनक भर है. और चीन की यह कहकर तारीफ करो कि ‘इनका लेवल ही और है.’ या कर्नाटक में मुसलमान लड़कियों की फिक्र करो और अफगानिस्तान में नहीं, जिसे हम रणनीतिक साझीदार बताते हैं, बाकी तो रणनीतिक दुश्मन बने हुए हैं. अपने अलावा सबकी फिक्र करो. अपने अलावा बाकी के लिए हमदर्दी दिखाओ.
(लेखिका पाकिस्तान की फ्रीलांस पत्रकार हैं. उनका ट्विटर हैंडल है @nailainayat. व्यक्त विचार निजी हैं)
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