पाकिस्तान के पंजाब सूबे के डेरा गाज़ी ख़ान परमाणु प्रतिष्ठान के उत्तरी परिसर में उत्पादन क्षमता का तेज विस्तार, सुरक्षा में वृद्धि और संभावित नए निर्माण देखने को मिले हैं और ये सब केवल नौ महीनों के भीतर हुआ है. यह संयंत्र परमाणु अप्रसार संधि के दायरे के बाहर है और माना जाता है कि यह पाकिस्तान के परमाणु हथियार कार्यक्रम को आपूर्ति करने वाला एक सैन्य प्रतिष्ठान है. उत्तरी परिसर को खास तौर पर यूरेनियम डाइऑक्साइड के रूपांतरण और यूरेनियम हेक्साफ्लोराइड (यूएफ 6) के उत्पादन वाला संयंत्र माना जाता है. यह संयंत्र पास के बगलचूर खदानों से प्राकृतिक यूरेनियम हासिल करता है और उन्हें पहले यूरेनियम डाइऑक्साइड में और फिर रिएक्टरों के लिए ईंधन की छड़ों में परिवर्तित करता है, जो परमाणु हथियार बनाने के काम आने वाले समस्थानिकों या आइसोटोप का उत्पादन कर सकते हैं.
पाकिस्तान ज़ोर देकर कहता है कि डेरा गाज़ी ख़ान (डीजीके) परमाणु संयंत्र चालू नहीं है, जैसा कि जेम्स मार्टिन सेंटर फॉर नॉनप्रोलिफरेशन स्टडीज (सीएनएस) ने पिछले साल और इंस्टीट्यूट फॉर साइंस इन इंटरनेशनल सिक्योरिटी ने 2009 में बताया था. लेकिन सबूत इसके विपरीत हैं. यह संयंत्र आतंकवाद के भारी खतरे वाले एक इलाके में है और स्थानीय नेताओं का कहना है कि विगत में इस पर ‘स्वतंत्रता सेनानियों’ का हमला हो चुका है. सीएनएस की 2018 की रिपोर्ट में दक्षिणी परिसर के विस्तार का संकेत था और हमें अब यहां उत्पादन में खासी वृद्धि और सुरक्षा व्यवस्था बढ़ाए जाने के संकेत दिख रहे हैं और उत्तरी परिसर में निर्माण कार्य भी सबूत हैं.
डीजीके संयंत्र का रहस्मय विस्तार
इस संदर्भ में एक उल्लेखनीय बात ये है कि पाकिस्तान के चार सक्रिय यूरेनियम खानों में से एक बगलचूर में गतिविधियों में विस्तार नहीं देखा गया है. यानि इन खदानों से यूरेनियम की आपूर्ति में स्थिरता बनी हुई है और ये डीजीके संयंत्र के विस्तार की वजह नहीं हो सकती. हालांकि, अक्टूबर 2019 में डेरा गाज़ी ख़ान से लगभग 650 किलोमीटर दूर, बलूचिस्तान की बरुग पहाड़ियों में नई गतिविधियों और विस्तार कार्य का पता चला था.
बरुग को मिसाइलों और हथियारों के भंडारण का केंद्र माना जाता रहा है. हालांकि वहां की गतिविधियों और विस्तार के पैटर्न से प्रतीत होता है कि या तो यह एक दोहरे कार्य (हथियार भंडारण और अयस्क खनन) वाला केंद्र है या सिर्फ एक अयस्क खदान है. हालांकि, खनन संबंधी संरचनात्मक खतरों को देखते हुए, इस बात की संभावना बहुत कम है कि सुरंगों का उपयोग कच्चे माल के खनन और निर्मित हथियारों के भंडारण, दोनों ही उद्देश्यों के लिए किया जाए.
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इसके अलावा, पाकिस्तान खुली खदानों या पारंपरिक खनन विधि का उपयोग नहीं करता है, जिसका कि पता लगाना आसान होता है. इसकी बजाय पाकिस्तान इन-सीटू लीच (आईएसएल) विधि से खनन करता है. फ्रैकिंग जैसी इस प्रक्रिया के अपने अलग भूकंपीय खतरे होते हैं. आईएसएल प्रक्रिया में सुराख बनाकर या विस्फोटकों का उपयोग कर अयस्क भंडार तक रास्ता तैयार किया जाता है. फिर उसमें एक अत्यंत क्षयकारी रासायनिक मिश्रण डाला जाता है जो अयस्क को पिघलाना शुरू कर देता है और उसके बाद इस तरल पदार्थ को पंप की मदद से बाहर सतह पर खींच लिया जाता है.
अयस्क भंडार किसी गहराई में हैं ये तो मालूम नहीं पर ड्रिलिंग और सतह के नीचे बनी खोखली जगह से पूरे खनन स्थल के भौगोलिक ढांचे का कमज़ोर पड़ना स्वाभाविक है.
परमाणु संयंत्रों के लिए कच्चा माला सुलभ कराने वाले अन्य संदिग्ध खदानों का विस्तार नहीं होने के मद्देनज़र ये स्वत: ही स्पष्ट है कि बरूग के इन नए स्रोतों से प्राप्त यूरेनियम अयस्क कहा जाता है.
डीजेके परमाणु संयंत्र में निर्माण कार्य
जनवरी 2019 में किसी समय बाईं ओर चार नए तालाबों (टेल पॉन्ड) का निर्माण शुरू किया गया था, जो अक्टूबर तक पूरी तरह चालू हो चुका था. ये उपरोक्त चित्र में दाईं ओर दिख रहे पांच तालाबों के विकल्प नहीं हैं. अक्टूबर में चार नए तालाबों के साथ पुराने तालाब भी भरे हुए थे. सभी नौ तालाबों में द्रव की संयुक्त मात्रा का विशुद्ध गैर-विशेषज्ञीय हिसाब लगाने पर यूरेनियम संवर्धन के कार्य में 70 से 90 प्रतिशत तक की वृद्धि का संकेत मिलता है.
इसके अलावा, नए निर्माण भी उभरते प्रतीत हो रहे हैं. जून 2019 में, नीचे दिए गए चित्रों में चिन्हित स्थल पर भारी-भरकम निर्माण मशीनरी द्वारा सफाई और समतलीकरण के कार्य किए जाने के स्पष्ट संकेत दिख रहे थे. चार महीनों के भीतर, वहां एक नई संरचना की नींव उभर चुकी थी और बड़ी मात्रा में निर्माण सामग्री भी रखे देखे गए थे.
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इसके अतिरिक्त, इस प्रतिष्ठान की पूर्वी परिधि पर हथियार भंडारण की नई सुविधाओं का निर्माण भी देखा गया. ये ऊपर वर्णित पश्चिमी स्थल की बिल्कुल सीध में है. हालांकि, वहां रखे गए हथियारों की प्रकृति के बारे में सटीक तौर पर बताना मुश्किल है. पर, ये सुरक्षा टावर्स नहीं हैं और उनके निर्माण के ढर्रे से संकेत मिलता है कि वे हवाई रक्षा से संबंधित हो सकते हैं या फिर ये क्षेत्र में प्रवेश के विरुद्ध प्रतिरोधक प्रणाली के तौर पर काम आते होंगे.
उदाहरण के लिए, यह चित्र प्रतिष्ठान के पश्चिमोत्तर हिस्से में टेल पॉन्ड के पास बहुस्तरीय बाड़े को स्पष्ट रूप में दर्शाता है और वहां के लिए विशेष रूप से निर्मित निगरानी टॉवर को भी देखा जा सकता है.
निष्कर्ष
हालांकि, दोनों स्थानों की गतिविधियों में निश्चित संबंध शायद नहीं जोड़ा जा सके, पर डीजीके में बड़े पैमाने पर उत्पादन वृद्धि, नए निर्माण और सुरक्षा व्यवस्था तथा बरूग खदानों में विस्तार परस्पर अहम संबद्धता है. आमतौर पर इन प्रतिष्ठानों में से कोई भी नागरिक उद्देश्यों को पूरा नहीं करता है और इसलिए पहले से ही वृहद पाकिस्तानी परमाणु भंडार का आगे और विस्तार एक तार्किक निष्कर्ष हो सकता है.
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(लेखक इंस्टीट्यूट ऑफ पीस एंड कॉन्फ्लिक्ट स्टडीज़ में वरिष्ठ अध्येता हैं. वह @iyervval हैंडल से ट्वीट करते हैं. यहां व्यक्त विचार उनके निजी हैं.)