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Thursday, 25 April, 2024
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नीतीश कुमार की जदयू को अब भाजपा को बिहार पर शासन करने का मौका देना चाहिए

नीतीश कुमार की कार्यशैली ने जदयू को एक व्यक्ति-केंद्रित पार्टी बना दिया है, न कि विचारधारा पर आधारित दल. बिहार की कमान अब भाजपा को संभालनी चाहिए.

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दो दशक पहले लालकृष्ण आडवाणी और दिवंगत जॉर्ज फर्नांडिस द्वारा स्थापित जनता दल यूनाइटेड (जदयू) और भाजपा का गठबंधन बिहार विधानसभा चुनावों से पहले अपेक्षानुरूप अस्थिरता का सामना कर रहा है. इस गठबंधन का सर्वाधिक फायदा मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने उठाया है. लेकिन, अब समय आ गया है कि वह भाजपा को राज्य में गठबंधन की अगुवाई करने का का अवसर दें. खासकर इसलिए भी कि देश में आज मोदी लहर है और ये बिहार में भी परिलक्षित होनी चाहिए.

इस तथ्य के अलावा कि नीतीश कुमार कितने लंबे समय से गठबंधन के शीर्ष पर आसीन हैं, ये बात भी गौरतलब है कि जनता अब उनके शासन पर सवाल उठाने लगी है. राज्य में बाढ़ की गंभीर स्थिति और मुजफ्फरपुर में मस्तिष्क ज्वर (इंसेफेलाइटिस) से कई बच्चों की मौत के मद्देनज़र इन सवालों की गंभीरता और बढ़ गई है. पहले ही राजस्व घाटे से जूझ रहे बिहार को शराबबंदी के कारण करोड़ों की चोट पड़ रही है. लालू प्रसाद यादव और ‘जंगल राज’ का हौवा दिखाने से राज्य का भला नहीं हो रहा है. राज्य को अब नेतृत्व परिवर्तन की दरकार है और भाजपा दायित्व संभालने के लिए तैयार है -अकेले अपने दम पर.

भाजपा पूर्वी भारत में उत्तरोत्तर मज़बूत हो रही है और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में इसकी उन्नति अभूतपूर्व रही है. पार्टी अब एक अजेय ताकत बन चुकी है और ये सही समय है कि बिहार में वो अपनी हैसियत का अहसास कराए.

बढ़ती असहमति

जदयू और भाजपा के बीच मतभेद बहुत दिनों से पनपते रहे हैं और अब स्थिति के बेकाबू होने का खतरा बन गया है.

अनुच्छेद 370 जम्मू कश्मीर में दलितों और पिछड़े समुदायों के विकास की राह का अवरोध साबित हो रहा था. तभी तो सामाजिक न्याय के वास्ते इसे निरस्त करने के मोदी सरकार के फैसले का मायावती की बसपा तक ने बिना शर्त समर्थन किया पर, समता और सामाजिक न्याय की विचारधारा पर गठित जदयू ने पहले तो केंद्र सरकार के कदम का विरोध किया, फिर यू-टर्न लेते हुए उसके समर्थन का फैसला किया.

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राज्य के कट्टरपंथी इस्लामी तत्वों को राजनीतिक संदेश देने भर के लिए जदयू ने तीन तलाक को अपराध बनाने वाले प्रगतिशील कानून का समर्थन नहीं किया. एनआरसी को लेकर भी पार्टी बहुत असहजता महसूस कर रही है. अभी पिछले साल ही, पटना विश्वविद्यालय छात्र संघ के चुनाव के दौरान एबीवीपी और छात्र जदयू आमने-सामने थे. दोनों दलों ने इसे प्रतिष्ठा का सवाल बना लिया था. छात्र संघ के अगले महीने हो रहे नए चुनाव के मद्देनज़र दोनों दलों में विवाद का बढ़ना तय है.


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पिछले दिनों रांची में अपनी पार्टी के सम्मेलन के दौरान नीतीश कुमार झारखंड की भाजपा सरकार को आड़े हाथों लेने से भी नहीं चूके थे. उन्होंने कहा, ‘अविभाजित बिहार से काट कर बनाए गए राज्य ने अपेक्षाओं के अनुरूप प्रगति नहीं की है.’ इसके जवाब में भाजपा सांसद और पूर्व केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री सीपी ठाकुर ने झारखंड का बिहार के मुकाबले ज़्यादा विकास करने की बात की. जबकि भाजपा के वरिष्ठ नेता संजय पासवान ने नीतीश कुमार को पटना छोड़ दिल्ली जाने और राष्ट्रीय राजनीति में अधिक प्रभावी भूमिका निभाने की सलाह दी है. ऐसा होने पर राज्य में भाजपा के मुख्यमंत्री के लिए अवसर बनेगा.

सही चाल के लिए सही समय

ओडिशा में नवीन पटनायक, पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी और उत्तर प्रदेश में मायावती के समान बिहार में नीतीश कुमार भी अपनी पार्टी में नेतृत्व की अगली कतार स्थापित करने में नाकाम रहे हैं. ऐसा जानबूझ कर किया गया या नहीं, ये तो वही जानते होंगे. जदयू का गठन दिवंगत जॉर्ज फर्नांडिस जैसे राजनीतिक दिग्गजों ने किया था, जिनकी बिहार में लोकप्रियता बेमिसाल थी.

नीतीश कुमार की कार्यशैली ने जदयू को एक व्यक्ति-केंद्रित पार्टी बना दिया है, न कि विचारधारा पर आधारित दल.

पिछले दिनों राज्य के पूर्व मंत्री और कुशवाहा नेता रामदेव महतो की बरसी पर एक बड़ा कार्यक्रम आयोजित करने वाले, भाजपा की प्रदेश कार्यसमिति के सदस्य रत्नेश कुशवाहा ने गठबंधन के बारे में कहा, ‘भाजपा ने निर्वाचित सांसदों वाली अपनी पांच लोकसभा सीटों को गठबंधन धर्म के नाम पर न्योछावर कर दिया था, इसलिए समय का तकाज़ा है कि नीतीश कुमार भी बिहार की जनता की भावनाओं का आदर करते हुए सम्मानपूर्वक मुख्यमंत्री का पद भाजपा को सौंप दें.’

भाजपा कार्यकर्ता राज्य में अगले साल निर्धारित विधानसभा चुनाव अकेले अपने दम पर लड़ने के पक्षधर हैं. बिहार में भाजपा की अपनी खुद की सरकार या अपना मुख्यमंत्री कभी नही रहा है. अब इसका समय आ गया है.

(लेखक पटना विश्वविद्यालय में सहायक प्रोफेसर हैं. वे भारतीय जनता युवा मोर्चा की राज्य कार्यसमिति के सदस्य भी हैं. यहां व्यक्त विचार उनके हैं.)

(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)

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