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Sunday, 22 December, 2024
होममत-विमतनये खिलाड़ियों को पेट्रोल-डीजल बेचने की छूट देने से पहले नीति में सुधार लाना जरूरी

नये खिलाड़ियों को पेट्रोल-डीजल बेचने की छूट देने से पहले नीति में सुधार लाना जरूरी

इस तरह के सुधार लागू हुए तो नये खिलाड़ियों को अपने आउटलेट खोलने की छूट देने के इस ताज़ा कदम को अधिक प्रभावी बनाया जा सकेगा.

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पेट्रोलियम की खुदरा बिक्री की अपनी नीति को उदार बनाने के लिए मोदी सरकार ने बड़ा कदम उठाया है. लेकिन जरूरत इस बात की है कि रिफाइनरी में इसकी कीमत के निर्धारण प्रक्रिया को पारदर्शी बनाया जाए.

दीवाली से कुछ दिन पहले केंद्र सरकार ने पेट्रोलियम उत्पादों की खुदरा मार्केटिंग की नीति को उदार बनाने की दिशा में एक बड़ा कदम उठाया. इस क्षेत्र में पिछले 17 सालों में यह सबसे बड़ा फैसला है. 2002 में पेट्रोलियम उत्पादों की खुदरा मार्केटिंग के दरवाजे निजी क्षेत्र के लिए खोल दिए गए थे. मगर इसके साथ शर्त यह थी कि आवेदनकर्ता पेट्रोलियम सेक्टर में कम से कम 2000 करोड़ रुपये का निवेश करने का वादा करें. पिछले हफ्ते किए गए फैसले से अब ऐसी इकाई पेट्रोलियम उत्पादों की खुदरा मार्केटिंग कर सकेगी जिसकी कुल संपत्ति 250 करोड़ रुपये हो.

उम्मीद की जा रही है कि गैर-पेट्रोलियम क्षेत्रों के खिलाड़ी पेट्रोलियम उत्पादों की खुदरा मार्केटिंग में उतरना चाहेंगे. ‘टोटल’ और ‘सऊदी अरामको’ जैसी विशाल ग्लोबल कंपनियां भारतीय बाज़ार में कदम रख सकती हैं. खुदरा बिक्री करने वाली बड़ी चेनें भी फ्यूल आउटलेट खोलने पर विचार कर सकती हैं. इसकी वजह यह है कि पेट्रोलियम सेक्टर में उतरने वाले नये खिलाड़ियों के लिए इसमें निवेश करने की पुरानी शर्त खत्म कर दी गई है. लेकिन सवाल यह है कि उदारीकरण की यह नीति कितनी सफल होगी?

यह तो साफ है कि खुदरा बिक्री की नीति का 2002 में जो उदारीकरण किया गया था उसका अपेक्षित नतीजा नहीं मिला. 2002 में सार्वजनिक क्षेत्र की तेल कंपनियों ने पेट्रोल-डीजल की खुदरा मार्केटिंग पर एकाधिकार जमा लिया था. इन 17 सालों में इन कंपनियों ने 39,000 नए आउटलेट खोले और उनकी कुल संख्या 57,924 हो गई.


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इसके विपरीत, 2002 में नीति उदारीकरण के बावजूद निजी क्षेत्र की पहल ठंडी रही. इन 17 वर्षों में निजी क्षेत्र ने 6,700 नये आउटलेट खोले, जिनमें नायरा एनर्जी लि. (पहले एस्सार ऑइल के नाम से जानी जाती थी) के 5,128, रिलाएंस पेट्रो के 1,400 और शेल इंडिया के 145 आउटलेट शामिल हैं. इस अवधि में कई उत्पादों के लिए बाज़ार से जुड़ी कीमत निर्धारण व्यवस्था न होने के कारण निजी क्षेत्र का योगदान फीका रहा.

इसलिए ज्यादा फ्यूल मार्केटिंग आउटलेट की मांग सरकार नियंत्रित पेट्रोलियम मार्केटिंग कंपनियों ने पूरी की. अनुमान है कि पिछले 17 सालों में पेट्रोल-डीजल की बिक्री में ‘कंपाउंड एनुअल ग्रोथ रेट’ (सीएजीआर) मात्र 6 प्रतिशत रही. इसी अवधि में फ्यूल रिटेल आउटलेट की ‘सीएजीआर’ 7.5 प्रतिशत रही. यह रेट भी मुख्यतः सार्वजनिक क्षेत्र के फ्यूल रिटेल आउटलेट की वजह से हासिल की जा सकी.

पिछले हफ्ते जो फैसला किया गया वह एक विशेषज्ञ कमिटी की सिफ़ारिशों को सरकार द्वारा कबूल किए जाने के बाद ही किया गया. इस कमिटी ने अध्ययन किया था कि 2002 में जो उदारीकरण किया गया था उसका तेल मार्केटिंग नेटवर्क पर क्या असर पड़ा. कमिटी का निष्कर्ष था कि तेल मार्केटिंग नेटवर्क में नये खिलाड़ियों के प्रवेश की मंजूरी देने का अधिकार सरकार अपने पास तो रखे लेकिन वह शर्तों में छूट दें और उन इकाइयों को फ्यूल रिटेल आउटलेट खोलने की इजाजत दी जाए जिनकी कुल न्यूनतम संपत्ति 250 करोड़ रुपये हो. कमिटी के निष्कर्षों के मुताबिक सरकार ने यह शर्त भी रखी कि नये खिलाड़ियों को मंजूरी मिलने के पांच साल के भीतर कम से कम 5 प्रतिशत फ्यूल रिटेल आउटलेट दूरदराज़ के अधिसूचित इलाकों में खोलना होगा.

वैसे, नई नीति कितनी कारगर होगी, इसे लेकर भी कई सवाल उठाए जा रहे हैं. दूरदराज़ के अधिसूचित इलाकों में 5 प्रतिशत फ्यूल रिटेल आउटलेट खोलने की शर्त नये खिलाड़ी किस तरह पूरी करते हैं, इस पर निगरानी रखने से निर्णय के अधिकार को लेकर समस्या खड़ी हो सकती है और नये फ्यूल रिटेल आउटलेट खोलने की मंजूरी देने में राजनीतिक भेदभाव हो सकता है. इस तरह की शर्त आधारित नीतिगत पहल के दुरुपयोग के खतरे भी ज्यादा हो सकते हैं. यह नहीं भूलना चाहिए कि निर्यात से संबंधित शर्तों के साथ आयात में छूट देने की जो योजना शुरू की गई थी उसका किस तरह दुरुपयोग हुआ और उस पर कितने खराब तरीके से निगरानी रखी गई.

इसी तरह नयी नीति को और उदार बनाने की गुंजाइश है. नये खिलाड़ियों को विभिन्न रिफाइनरियों से हासिल किए गए पेट्रो उत्पादों को एक ही आउटलेट से बेचने की न मंजूरी देने की कोई वजह नहीं दिखती. जब तक नये आउटलेटों के मामले में पारदर्शिता बरती जाती है और उपभोक्ताओं को यह बताया जाता है कि उन्हें किस रिफाइनरी का फ्यूल दिया जा रहा है तब तक कोई वजह नहीं है कि उन पर अलग-अलग रिफाइनरियों के उत्पाद अलग-अलग आउटलेट से बेचने की शर्त थोपी जाए.


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ज्यादा परेशान करने वाला सवाल यह है कि अगर नीति को उदार बनाने का मकसद फ्यूल की मार्केटिंग को अधिक प्रतिस्पर्द्धी बनाना है तो सरकार को सार्वजनिक क्षेत्र की तेल रिफाइनरियों द्वारा पेट्रो उत्पादों की कीमत निर्धारण में अपारदर्शिता खत्म करने का कदम उठाना चाहिए. प्रभावी प्रतिस्पर्द्धा तभी शुरू हो जाएगी जब नये खिलाड़ी, जिनकी पहुंच किसी अपने रिफाइनरी तक नहीं है, मौजूदा रिफाइनरियों से फ्यूल खरीद सकेंगे.

हां, नये खिलाड़ी उन कीमतों पर पेट्रोल-डीजल का आयात कर सकते हैं जिनसे सार्वजनिक क्षेत्र की तेल रिफाइनरियों में प्रतिस्पर्द्धा शुरू होगी. लेकिन इस मौके का लाभ उठाते हुए भारत की सरकार-नियंत्रित तेल रिफाइनरियों की खुदरा तेल बिक्री की कीमतों में सुधार क्यों न किया जाए? इस तरह की पारदर्शिता से सार्वजनिक क्षेत्र की विभिन्न तेल रिफाइनरियों द्वारा अपने आउटलेटों से बेचे जाने वाले पेट्रो उत्पादों की कीमत में प्रतिस्पर्द्धा करने का मौका मिलेगा. इस तरह के सुधार लागू हुए तो नये खिलाड़ियों को अपने आउटलेट खोलने की छूट देने के इस ताज़ा कदम को अधिक प्रभावी बनाया जा सकेगा.

(इस लेख को अंग्रेजी मेंं पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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