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Sunday, 1 December, 2024
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कांग्रेस के लिए अबकी बार 90 पार? क्यों 30 से अधिक सीटें BJP को कर सकती है परेशान

चुनाव नतीजे पर चर्चा में प्रायः हर कोई केवल भाजपा के ‘आंकड़े’ की बात कर रहा है, लेकिन क्या हो अगर हम समीकरण को उलट दें और यह सवाल करें कि हारने वाले का प्रदर्शन कैसा रहा?

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तेलंगाना के मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी ने इस बार के आम चुनाव के नतीजे को लेकर कुछ चिढ़ाने वाले उलटे अंदाज़ में संकेत किए हैं. उनकी अपनी कांग्रेस पार्टी कितनी सीटें जीतेगी, यह न बताकर उन्होंने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को मिलने वाली सीटों की संख्या की भविष्यवाणी की है.

‘दिप्रिंट’ के पॉलिटिकल एडिटर डीके सिंह और सीनियर एसोसिएट एडिटर नीलम पाण्डेय को दिए एक लंबे इंटरव्यू में रेड्डी ने कहा कि केंद्र में अगली सरकार बनाने के लिए उनकी पार्टी को सिर्फ 125 सीटें चाहिए जबकि भाजपा को इसके लिए कम-से-कम 250 सीटें जीतनी होगी.

जी हां, मुझे पता है कि उनके इस बयान पर आपमें से कई लोग यह ज़रूर पूछेंगे कि उन्हें इतनी सीटें मिलेंगी कहां से? क्या वे कोई ख्वाब देख रहे हैं? लेकिन ज़रा मेरी बात भी सुन लीजिए. यह कॉलम मैं लिखता हूं, चैट-जीपीटी नहीं. आपको आगे कुछ जटिल बातें मिल सकती हैं. पहले से बनी किसी धारणा के आधार पर कोई बात नहीं कही गई मिलेगी और हम कभी किसी चुनाव परिणाम की भविष्यवाणी नहीं करते, किसे कितनी सीटें मिलेंगी यह बताना तो दूर की बात रही.

रेड्डी का कहना यह था कि कांग्रेस के साथ अब कई दल हैं जो उस पर भरोसा करते हैं. भाजपा के पास ये दोनों चीज़ें नहीं हैं. हम इसके साथ इस इतिहास का हवाला भी दे सकते हैं कि कोई पार्टी करीब 150-सीटों के साथ भी गठबंधन का नेतृत्व कर सकती है.

2004 में भाजपा ने 138 सीटें जीती थी और कांग्रेस ने उससे मात्र सात सीटें ज्यादा, 145 सीटें जीतकर पहली यूपीए सरकार बनाई थी क्योंकि भाजपा के मुकाबले उसके साथ ज्यादा सहयोगी दल थे, लेकिन कोई भी यह सवाल पूछ सकता है कि कोई भी कांग्रेसी-125 के आंकड़े को छूने की कल्पना भी कैसे कर रहा है? आज के इस सबसे बड़े सवाल पर लीक से हट कर भी विचार किया जा सकता है.

वोटों की गिनती के लिए जबकि करीब तीन सप्ताह ही बचे हैं, चुनाव के नतीजे पर चर्चा इसी पर केंद्रित है कि भाजपा के लिए अपेक्षाएं क्या हैं. प्रायः यही सवाल पूछा जा रहा है कि “क्यों? आपके हिसाब से उसे कितनी सीटें मिलेंगी?”

प्रायः हर कोई केवल भाजपा के ‘आंकड़े’ की बात कर रहा है. नरेंद्र मोदी ने 370-सीटों का जो लक्ष्य तय किया था उसे भाजपा हासिल कर लेगी क्या? उसके सहयोगियों की करीब 30 सीटों के साथ क्या आंकड़ा “400 पार” हो जाएगा? भाजपा को 2019 में मिलीं 303 सीटों से 20-30 सीटें ज्यादा आएंगी या कम? क्या वे 272 के आंकड़े से भी नीचे चली जाएगी? ऐसा लग रहा है मानो आपको पता हो कि फाइनल मैच कौन जीतेगा, देखना बस यह है कि वो कितने रनों या विकेट से जीतेगा या अगर फुटबॉल मैच है तो कितने गोल से.

क्या हो अगर हम समीकरण को उलट दें, और यह सवाल करें कि हारने वाले का प्रदर्शन कैसा रहा? यह सवाल कांग्रेस और मोदी के आलोचकों को उत्तेजित कर देगा. कांग्रेस तो सबसे ऊपर नहीं आने वाली, क्योंकि वह अब तक की सबसे कम, केवल 328 सीटों पर चुनाव लड़ रही है.


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2014 और 2019 में उसे क्रमशः 44 और 52 सीटें मिली थीं और भाजपा को क्रमशः 282 और 303 सीटें. राज्य-दर-राज्य चुनाव जिस तरह संपन्न हो रहा है, हम यह कह सकते हैं कि अगर भाजपा को 303 के आंकड़े में और सीटें जोड़नी है तो वे सीटें एनसीपी, शिवसेना, आप, टीएमसी, बीआरएस, बीजेडी, डीएमके और आंध्र प्रदेश की वाईएसआरसीपी जैसी गैर-कांग्रेस दलों से आनी चाहिए. कांग्रेस के खिलाफ तो वह पहले ही अधिकतम सीटें जीत चुकी है, 2019 में उससे सीधी टक्कर वाली सीटों में से 92 फीसदी पर उसने जीत दर्ज की है. इसलिए कांग्रेस को अब भाजपा के हाथों लगभग कुछ नहीं गंवाना है.

अब इस समीकरण को उलट दीजिए. भाजपा की जगह कांग्रेस को रखिए और देखिए कि वह वापस कितनी सीटें जीत सकती है. उत्तर में हिमाचल, उत्तराखंड, हरियाणा, राजस्थान, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, बिहार छत्तीसगढ़, झारखंड से शुरू करके पश्चिम और दक्षिण की ओर गुजरात, महाराष्ट्र, गोवा, कर्नाटक तक चलें तो पाएंगे कि इन राज्यों में कांग्रेस ने अपनी लगभग सारी सीटें भाजपा के हाथों गंवाई. इन राज्यों की जिन 241 सीटों पर उसने चुनाव लड़ा उनमें से केवल 9 सीटें ही वह जीत पाई थी. तो, उसके लिए अब खोने को और कुछ नहीं है. ज्यादा संख्या में सीटें वह केरल, तमिलनाडु जैसे राज्यों में ही जीत पाई थी, जहां उसका भाजपा से सीधा मुकाबला नहीं था.

इसका अर्थ यह हुआ कि मोदी-भाजपा के अश्वमेध रथ को रोकने का दारोमदार कांग्रेस पर ही है. जितनी भी सीट वह जीतेगी, भाजपा के कुल आंकड़े में उतने की कटौती करेगी. उसे 125-सीटें लाने की भी ज़रूरत नहीं है क्योंकि 90 सीटें ही काफी होंगी. क्यों, यह जानने के लिए आगे पढ़िए.

समीकरण सीधा-सा है. कांग्रेस का आंकड़ा अगर 80 पर पहुंचता है तो भाजपा के 2019 के आंकड़े में 25-30 सीटें की कमी आएगी. भाजपा और उसके समर्थक बेशक यह कह सकते हैं कि उसे ओडिशा, पश्चिम बंगाल, तेलंगाना और आंध्र में गैर-कांग्रेसी दलों से फायदा मिल रहा है. उनका दावा सही भी हो सकता है, लेकिन इसके उलट, भाजपा को ठाकरे, शरद पवार, तेजस्वी यादव की पार्टियों की ओर से दबाव का सामना करना पड़ रहा है. वैसे, तर्क के लिए हम कह सकते हैं कि कांग्रेस की 52 सीटों में अगर 10 और सीटें भी जुड़ गईं तो यह भाजपा के लिए 10 सीटों का नुकसान ही होगा. उदाहरण के लिए कांग्रेस अगर 90 के आंकड़े पर पहुंच गई तो वह भाजपा को 272 के आंकड़े से नीचे ही रोक सकती है और कहीं उसे 100 सीटें मिल गईं तब तो राष्ट्रीय राजनीति में उथल-पुथल हो जाएगी.

मैं यह नहीं कह रहा कि यही होगा या हो सकता है. मैं एक बुनियादी समीकरण को रेखांकित कर रहा हूं कि पराजित पक्ष आगे चल रहे पक्ष के मुकाबले कम बढ़त हासिल करके भी हालात में फर्क ला सकता है.

या इसे दूसरी तरह से देखें. भाजपा को करीब 30-सीटें और मिल गईं तो उसका आंकड़ा 330 के पार भी जा सकता है, लेकिन इससे अगली सरकार की मजबूती में कोई फर्क नहीं पड़ेगा, लेकिन 30-सीटें कम हो गईं तो उसके बड़े नतीजे हो सकते हैं.


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यह स्थिति केवल तभी आ सकती है जब कांग्रेस अपने खाते में कम-से-कम 30 या इससे ज्यादा सीटें जोड़ती है. कांग्रेस को मिली 70 से ज्यादा एक-एक सीट राष्ट्रीय राजनीति के संतुलन को बदल सकती है. यह पार्टी चाहे जो भी दावे कर रही हो, उसके सामने यही सबसे बड़ा सवाल है. खासकर इसलिए कि इनमें से अधिकतर सीटों पर उसे भाजपा, या साफ कहें तो मोदी को परास्त करने की चुनौती होगी. 2019 में दोनों दलों के वोट प्रतिशत में जो अंतर था उससे ज़ाहिर है कि कांग्रेस को बड़े घाटे से शुरुआत करनी है.

सवाल यह है कि फर्क लाने के लिए उसे जो 30 और सीटें चाहिए वह उन्हें कहां से हासिल करेगी? वह उन राज्यों पर नज़र डालेगी जहां 2019 में उसने भाजपा के हाथों सब कुछ गंवा दिया था और जहां इस बार वह किसी गठबंधन में शामिल है या जहां इसकी अपनी मजबूत राज्य सरकार है. ऐसे राज्यों में कर्नाटक और तेलंगाना के नाम पहले आते हैं, जहां वह क्रमशः 28 और 17 सीटों में से केवल 1 और 3 सीटें जीत पाई थी.

इनके बाद महाराष्ट्र आता है क्योंकि वहां भाजपा के सहयोगी बंटे हुए हैं और कांग्रेस को ठाकरे शिवसेना के रूप में एक नया सहयोगी मिल गया है. अब हम हिंदी पट्टी पर नज़र डालते हैं. बिहार में भाजपा का सहयोगी कमज़ोर पड़ गया है और कांग्रेस यह मान रही होगी कि उसके अपने तेजस्वी और ज्यादा मजबूत हैं. झारखंड में भी उसे सहयोगी का लाभ मिल सकता है.

फिर आप मध्य प्रदेश और राजस्थान को लेकर कांग्रेस के दावों पर गौर करते हुए हरियाणा, दिल्ली, चंडीगढ़ और हिमाचल प्रदेश पर नज़र डाल सकते हैं. इनमें कुल 22 सीटों में से कांग्रेस को सिर्फ एक सीट मिली थी. भाजपा ने एक सीट को छोड़ बाकी सभी सीटें 50 फीसदी के वोट प्रतिशत के साथ जीती थी. इस बार कांग्रेस और आप एक साथ हैं. क्या इस वजह से और पुलवामा-बालाकोट वाले जोश की गैर-मौजूदगी की वजह से खासकर हरियाणा में उसकी कुछ सीटें खिसक सकती हैं?

अगर आप इस ब्योरे पर फिर से नज़र डालेंगे तो कांग्रेस के खाते में 30 या इससे ज्यादा सीटों की वृद्धि असंभव नहीं लगेगी. याद रहे, मैंने यह नहीं कहा कि यह संभव है. जितना मैं जानता हूं, कांग्रेस का आंकड़ा-52 से नीचे भी जा सकता है. कांग्रेस के अंतिम आंकड़े की जगह भाजपा के अंतिम आंकड़े के बारे में अनुमान लगाना कम दिलचस्प है. अब आप समझ गए होंगे कि शुरू में मैंने इस चुनाव के नतीजे के बारे में रेवंत रेड्डी के अनुमान को कुछ चिढ़ाने वाले उलटे अंदाज़ में दिया गया संकेत क्यों कहा था.

(संपादन: फाल्गुनी शर्मा)

(नेशनल इंट्रेस्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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