scorecardresearch
Friday, 20 December, 2024
होममत-विमतनेशनल इंट्रेस्टमोदी सरकार से संभाले नहीं संभल रहा सबसे जटिल राज्य मणिपुर

मोदी सरकार से संभाले नहीं संभल रहा सबसे जटिल राज्य मणिपुर

इंदिरा गांधी के बाद सबसे ताकतवर मानी जा रही मोदी सरकार जबकि सत्ता में है, मणिपुर अराजकता की गिरफ्त में फंसा है और मुख्यमंत्री बीरेन सिंह की नौटंकी बताती है कि सर्वशक्तिशाली भाजपा हाईकमान का भी हुक्म वहां नहीं चल रहा है.

Text Size:

‘भारत का कौन-सा राज्य ऐसा है जिसका शासन सबसे चुनौतीपूर्ण है?’ इस सवाल का जवाब सबसे आसान है. भारत के नक्शे पर नज़र डालिए और आपकी अंगुली छोटे-से राज्य मणिपुर पर टिक जाएगी. दो महीने से ज्यादा हो गए हैं और इस सीमावर्ती राज्य पर सिवाय आपस में भिड़े हथियारबंद गिरोहों और भीड़ के किसी का हुक्म नहीं चल पा रहा है.

केंद्र में सत्तासीन भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) इस राज्य की सत्ता भी संभाल रही है. यह ठीक उसी तरह हाईकमान के इशारे पर चलने वाली पार्टी है जिस तरह इंदिरा गांधी के उत्कर्ष के दौर में कांग्रेस पार्टी चलती थी, लेकिन क्या इस सर्वशक्तिशाली हाईकमान का हुक्म मणिपुर में चल रहा है? सबूत तो बताते हैं कि ऐसा नहीं हो पा रहा है.

उदाहरण के लिए, उस ‘तमाशे’ पर गहरी नज़र डालिए, जो इंफाल में शुक्रवार को किया गया, जब यह कॉलम लिखा जा रहा था. नाकाम रहे मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह ने जिनकी नज़रों के सामने पूरा राज्य जलता रहा और जो अपने पार्टी के दिग्गज तथा केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के साथ जनजातीय पहाड़ी जिलों का दौरा करने की हिम्मत नहीं जुटा सके, आखिरकार, खबर फैलाई गई कि वे इस्तीफा देने जा रहे हैं.

दुनिया भर को अपनी इस ‘मंशा’ की जानकारी देने के बाद वे अपना इस्तीफा लेकर राज भवन पहुंचे. तब तक, प्रायोजित नौटंकी के तहत, उनके मैतेई समुदाय की महिलाएं शोर मचाती और उनसे इस्तीफा न देने की मांग करती भीड़ वहां जमा हो चुकी थी. उनमें से एक महिला ने बीरेन सिंह के एक कर्मचारी के हाथ से वो इस्तीफा छीन कर उसे फाड़ डाला.

फाड़े गए इस्तीफे को उन महिलाओं ने अपने पैरों के नीचे रौंदा और इसकी तस्वीरें सोशल मीडिया पर प्रसारित कर दी गई. इसके बाद बीरेन सिंह ने ट्वीट किया कि वे इस्तीफा नहीं देंगे. जनता जब उन्हें इतना चाहती है, तब भला वे इस्तीफा कैसे दे सकते हैं? इस्तीफे को छीनने, फाड़ने, पैरों तले रौंदने और जो इस्तीफा था ही नहीं उसे वापस लेने की सारी कार्रवाई उतनी ही फर्जी और नाटकीय थी जितनी इस्तीफे की पेशकश के लिए राज भवन तक उनका मार्च था. अंततः भाजपाई मुख्यमंत्री अपनी कुर्सी पर डटे रहे, भले ही दो महीने से राज्य पर उनका कोई हुक्म नहीं चल रहा है.

अब भाजपा हाईकमान की सत्ता के बारे में इससे क्या संकेत मिलता है? अगर यह पार्टी हाईकमान उनसे वाकई इस्तीफा चाहता था, तो बीरेन सिंह ने भीड़ की ताकत दिखाकर उसकी अवज्ञा की है. अगर ऐसा नहीं था, तो क्या उन्होंने पार्टी के हुक्मरानों की उपेक्षा करते हुए इस्तीफा देने की धमकी नहीं दी और अपनी ताकत दिखाने के लिए भीड़ नहीं जुटाई? जो भी हो, इसने उनके पार्टी हाईकमान को शक्तिहीन और भ्रमित साबित किया. मणिपुर उसी हाल में रहा जिस हाल में वह पिछले कई सप्ताहों से है— रक्तरंजित, जलता हुआ, हिंसाग्रस्त, हताश और क्रुद्ध.

बीरेन सिंह किसी वैचारिक परवरिश या प्रशिक्षण से नहीं उभरे हैं. वे एक फुटबॉल खिलाड़ी रहे और इतने काम के डिफेंडर थे कि बीएसएफ ने उन्हें भर्ती कर लिया था. उन्होंने 14 साल तक उसकी नौकरी की और उसके लिए फुटबॉल खेलते रहे. उन्होंने कथित लोकतांत्रिक क्रांतिकारी पीपुल्स पार्टी बनाई, जिसके टिकट पर 2002 में दो उम्मीदवार विधायक चुने गए. बीरेन सिंह उनमें से एक थे. जल्दी ही उन्होंने अपनी पार्टी का कांग्रेस में विलय कर दिया.

बाद में, जब कांग्रेस केंद्र में सत्ता में नहीं रही और भाजपा का ‘मानव संसाधन’ विभाग प्रतिभाओं की खोज में निकला तब बीरेन सिंह को पाला बदलने में कोई मलाल नहीं हुआ. उनके सामने किसी वैचारिक प्रतिबद्धता का बंधन या हिचक नहीं थी. इस बीच उन्होंने अपने नेतृत्व का दूसरा पहलू सामने रखा — हिंसक रूप से विभाजित राज्य में जातीय वफादारी वाला पहलू. इस प्रक्रिया में उन्होंने अपने पार्टी के सामने दो अहम सवाल खड़े कर दिए हैं.

पहला सवाल यह है कि मैतेई समुदाय चूंकि हिंदू बहुल है इसलिए उसकी वफादारी और उसका समर्थन हासिल करने और ईसाई जनजातीय समुदायों को असंतुष्ट छोड़ देने से क्या वहां अमन-चैन बना रह सकता है? जनजातीय समुदायों को यह साजिश लगती है. यह राज्य में हिंदू-ईसाई ध्रुवीकरण करने की चाल सिवाय कुछ नहीं है.

दूसरा सवाल यह है कि वे अपने ही एक राज्य में शासन की विफलता की फांस कब तक लगाए रहेंगे? खासकर तब जब कि वे उत्तर-पूर्वी राज्यों में अपने उभार को अपनी महान सफलता बताने का दावा करते रहे हैं?


यह भी पढ़ें: मोदी को इंदिरा गांधी से सीखना चाहिए, मणिपुर में बीरेन सरकार कोई समाधान नहीं बल्कि खुद एक समस्या है


पहचान की राजनीति या साफ तौर पर कहें तो हिंदू-मुस्लिम ध्रुवीकरण की राजनीति ने भाजपा को असम और त्रिपुरा में लगातार दो बार सत्ता दिलाई है. दूसरे राज्यों को या तो “कब्जे” में लिया गया, या कांग्रेस के पुराने लोगों की राजनीतिक खरीद-फरोख्त करके (अरुणाचल प्रदेश तथा मणिपुर की तरह) अपनी झोली में डाला गया, या बड़ी ताकत-छोटी ताकत के पुराने किस्म के गठबंधन करके (मेघालय, मिजोरम, नगालैंड और सिक्किम की तरह) हासिल किया गया. छोटे, जनजातीय उत्तर-पूर्वी राज्यों में स्थानीय/क्षेत्रीय स्वायत्तता की मजबूत ललक होती है, लेकिन उनमें से हरेक राज्य इतना छोटा है कि वह केंद्र से 36 का रिश्ता नहीं रख सकता.

यह व्यवस्था अब तक काफी अच्छी तरह काम कर रही थी और भाजपा उत्तर-पूर्व पर राज करने की अपनी खास ख्वाहिश और सपने को सच करने के मजे ले रही थी. इसके पीछे विचार यह भी था कि वह क्षेत्र कांग्रेस की “स्वार्थी और भ्रष्ट” राजनीति अस्थिरता की गिरफ्त में फंसा था. उत्तर-पूर्व में भाजपा की राजनीतिक सफलता भारतीय राजनीति में एक उल्लेखनीय मोड़ थी और हमने इसे अपने इस कॉलम में रेखांकित भी किया था, लेकिन इस सफलता पर मणिपुर में गहरा ग्रहण लग रहा है.

भाजपा ने उत्तर-पूर्व के पुराने संकट के लिए कांग्रेस के “स्वार्थ” और “भ्रष्टाचार” को जिम्मेदार तो बताया है मगर उसने दो बातों की अनदेखी की है. अगर कांग्रेस इतनी ही भ्रष्ट थी तो इस क्षेत्र में भाजपा का नया नेतृत्व कांग्रेस से उधार क्यों लिया गया है? दूसरी बात, उसने तीसरे कारण, इस क्षेत्र की ‘जटिलता’ को बड़े आराम से भुला दिया.

उत्तर-पूर्व में आपका जिस चीज़ से सामना होता है उसके कारण हिंदी पट्टी वाला जाना-पहचाना हिंदू-मुस्लिम या जातीय समीकरण का फॉर्मूला इस जनजातीय क्षेत्र में कारगर नहीं होता. इसकी मिसाल मणिपुर से ज्यादा और कोई राज्य नहीं है. इसलिए मणिपुर देश का वह राज्य है जिस पर शासन करना सबसे कठिन है. इस पर शासन करने की चुनौतियों को समझने के लिए उसके इतिहास, भूगोल और आबादी के स्वरूप को समझने से शुरुआत करनी पड़ेगी. यहीं से अभी यह शुरुआत करें क्योंकि इसमें सारे तत्व शामिल हैं. मणिपुर में व्यापक तौर पर तीन स्थानीय समूह हैं— मैतेई, कुकी, और नगा. अब देखें कि इन तीनों समूहों की मांगें क्या हैं —

  •  मैतेई चाहते हैं कि उन्हें अनुसूचित जनजाति (एसटी) का दर्जा मिले और अपने पूर्ण राज्य में उनका राजनीतिक वर्चस्व कायम रहे.
  • कुकी अपने लिए स्वायत्त क्षेत्र चाहते हैं, आधा राज्य ही सही ताकि उन्हें मैतेई वर्चस्व वाले शासन के अधीन न रहना पड़े.
  • और नगा मणिपुर से तो अलग होना चाहते हैं, लेकिन अब भारत से अलग नहीं होना चाहते, ताकि विस्तृत नगालैंड या नगालिम में शामिल हो सकें. ‘एनएससीएन’ के वार्ताकार केंद्र से इसी की मांग कर रहे हैं.

सार यह कि तीनों में से कोई समूह भारत से अलग नहीं होना चाहता. फिर भी तीनों ऑटोमेटिक हथियारों से लैस हैं. सुरक्षा बल इनमें से कुछ हथियारों को किसी तरह जब्त भले कर लें, हालांकि, ऐसी मंशा अब तक नहीं दिखी है, लेकिन हथियारों की सप्लाई अबाध जारी है.

कुकी समूह को ये म्यांमार सीमा पार करके आते हैं, तो मैतेई समूह इंफाल घाटी में पुलिस के किसी शस्त्रागार पर हमला करके इन्हें हासिल कर सकता है. वे अक्सर अपना आधार कार्ड भी छोड़ जाते हैं मानो वे यह कहना चाहते हों कि कोई पूछे कि तुम्हारे हथियार कौन ले गया तो उसे बता सको कि मैं यहां आया था.

सुरक्षाबलों के लिए सबसे बड़ी चुनौती इस साधारण तथ्य से उभरती है कि कोई भी समूह भारत से अलग नहीं होना चाहता. ऐसे में सेना उन्हें देश का दुश्मन या राष्ट्रद्रोही कैसे माने और उन पर गोली कैसे चलाए? यह बड़ी जटिल स्थिति है. भारतीय इतिहास में ऐसी दुविधापूर्ण स्थिति कभी नहीं आई. दीमापुर में तैनात सेना की विशेष बगावत विरोधी तीसरी कोर या ‘स्पियर कोर’ को अब मणिपुर में भेजा गया है और उसकी मदद के लिए सीआरपीएफ और असम राइफल्स की कई बटालियनों को भी भेजा गया है, लेकिन वे लड़ नहीं सकते.

अब मणिपुर में चूंकि किसी समूह को ‘दुश्मन’ नहीं माना गया है इसलिए वे कुल मिलाकर वही भूमिका निभा रहे हैं जो संयुक्त राष्ट्र की शांति सेना किसी संघर्ष क्षेत्र में निभाती है. वे लड़ाई से बचते हुए माल और सप्लाई की आवाजाही के लिए सुरक्षित क्षेत्र और तटस्थ रास्ते तैयार करने में जुटे रहते हैं.

वे उन लोगों के हथियार छीनना दूर उन पर गोली तक नहीं चला सकते, जो उन्हें अपने हथियार का निशाना बना रहे होते हैं. दुनिया में बगावत से लड़ने के लिए सबसे अनुभवी, प्रशिक्षित और सफल मानी गई सेना के लिए यह अजूबा अनुभव है, जब उसे पहली बार उत्तर-पूर्व की गहरी जटिलताओं से निबटना पड़ रहा है. राजनीतिक रूप से यह भाजपा के लिए भी ऐसी ही एक चुनौती है.

(संपादन: फाल्गुनी शर्मा)

(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


यह भी पढ़ें: आज टूटा हुआ मणिपुर हमारी नज़रों और दिमाग से ओझल है, हम इतने कठोर और अहंकारी नहीं हो सकते


 

share & View comments