scorecardresearch
Sunday, 22 December, 2024
होममत-विमतपूछता है भारत कि अर्णब गोस्वामी के अलावा और क्या है Republic TV में

पूछता है भारत कि अर्णब गोस्वामी के अलावा और क्या है Republic TV में

अर्णब गोस्वामी गिरफ्तार कर लिये गए, इसलिए नहीं कि उन्होंने पत्रकारिता का यह मूलभूत नियम तोड़ दिया कि खुद को कभी भी खबर मत बनाओ बल्कि इसलिए कि उन्होंने किसी को खुदकशी के लिए मजबूर किया था.

Text Size:

भारतीय टेलीविज़न के टूटे हुए भोंपू ने, जो ‘आज रात देश जानना चाहता है’ (नेशन वांट्स टु नो टूनाइट) के अपने तकिया कलाम के घेरे में उलझ गए थे, शायद कभी यह नहीं सोचा था कि उसे ये दिन भी देखना पड़ेगा. मैं जानबूझकर ‘टेलीविज़न’ कह रहा हूं, ‘पत्रकारिता’ नहीं. पत्रकारिता तथ्यों पर चलती है, सनक पर नहीं.

और रिपब्लिक टीवी के चीफ अर्णब गोस्वामी मनमौजी शख्स हैं. एक समय वह था जब वे कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी का इंटरव्यू कर पाने की अपनी ‘उपलब्धि’ को लेकर झूमते फिर रहे थे. आज वे उन्हें ‘इटली वाली सोनिया’ कहकर तंज़ कसते हुए थकते नहीं.

टीवी पर उनकी अदाकारी को अगर आशावादी नजरिए से देखा जाए तो कहा जा सकता है कि अर्णब एक मनोरंजनकर्ता हैं. अगर उन्हें यथार्थपरक नजरिए से देखा जाए तो वे लोगों को उत्तेजित करने वाले शख्स नज़र आएंगे. अभी हाल के दिनों में वे बड़ी फिल्मी हस्तियों के ड्रग सेवन, अपने स्टार बॉयफ्रेंड की जेब में सेंध लगाने वाली अभिनेत्रियों, और इन सबसे महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के कथित रिश्तों आदि पर सनसनीखेज खबरें पेश करके हमारा मनोरंजन कर रहे थे. यह सब देखने के बाद अर्णब की गिरफ्तारी एक हास्यास्पद त्रासदी ही लगती है.

जरा गौर कीजिए. एक शख्स खाप पंचायतनुमा स्टुडियो शो कर रहा था, खुद मुखिया बनकर ऐसे जज, जूरी और जल्लाद की भूमिका में जिस पर कोई सवाल नहीं उठा सकता था. और हाल के दिनों में तो वे खुद रिपब्लिक टीवी की अधिकतर सामग्री के विषय बन गए थे. वे एक ‘मर्द’ न्यूज़ एंकर थे, जो देश के नेताओं (विपक्षी) की क्लास ले रहे थे. लेकिन उन्हें उत्पीड़ित किया जा रहा था.

4 नवंबर को जब उन्हें मुंबई में उनके घर से गिरफ्तार किया गया तब ऐसा लगा कि उन्हें इस पर विश्वास ही नहीं हो रहा था. उन्हें उनकी पत्रकारिता के लिए नहीं बल्कि एकदम अलग कारण से गिरफ्तार किया गया था— 2018 में आर्किटेक्ट अन्वय नाईक की खुदकशी में उनकी कथित भूमिका के लिए.


यह भी पढ़ें: गीता, बाइबल, टोरा की तरह क़ुरान भी लोगों को लड़ने की सीख नहीं देता, तो फिर मुसलमानों को निशाना क्यों बनाया जाए


टीआरपी के लिए मारामारी

नरेंद्र मोदी सरकार के कई मंत्रियों—अमित शाह समेत—ने अर्णब की गिरफ्तारी की निंदा की है और कहा कि यह उन्हें ‘इमरजेंसी की याद दिलाता है’. भाजपा नेताओं ने कई शहरों में विरोध प्रदर्शन भी किए. रविवार तक तो अर्णब हिरासत में थे.

लेकिन अर्णब ने टीआरपी के लिए लड़ाई में यों ही हार नहीं मानी. गिरफ्तार किए जाने के बाद घर से वे ‘हमला…हमला…’ चीखते हुए निकले और ज़ोर दिया कि इस ड्रामा के हीरो वे ही हैं, और उद्धव ठाकरे (जिनकी सरकार को गिराने के लिए अकेले वे ही काफी हैं) उनके पीछे पड़े हैं.

आप रिपब्लिक टीवी के किसी भी सोशल मीडिया हैंडल या कवरेज को देखें, वे हर जगह छाये मिलेंगे—प्राइम टाइम बहस के मेजबान के रूप में नहीं बल्कि खुद खबर के रूप में. उन्होंने खुद को ही खबर बना लिया.

नागरिक अर्णब गोस्वामी आज वे सारे अधिकार मांग रहे हैं जिन्हें दूसरों को देने की वकालत उन्होंने कभी नहीं की. और आश्चर्य यह कि वे वह हर काम कर रहे हैं जो वे लोग अपने अधिकारों की रक्षा के लिए करते थे जिनसे अर्णब नफरत करते हैं.

उनके ऊपर हमला अचानक इतना गलत हो गया है. लेकिन जब सामाजिक कार्यकर्ता सदफ जफर को पुलिस प्रताड़ित कर रही थी, या जब पुलिस पर दिल्ली में फरवरी में नागरिकता कानून का विरोध कर रही 15 महिलाओं और 30 पुरुषों पर कथित हमला करने का आरोप लगाया गया था तब तो अर्णब उनका उतनी उग्रता से बचाव नहीं कर रहे थे.

वास्तव में उनकी गिरफ्तारी के बाद से, पूरे भारत की नुमाइंदगी का दावा करने वाले रिपब्लिक टीवी के कर्मचारी— #इंडियाविथअर्णब के झंडे के नीचे— उनके अधिकारों के लिए लड़ रहे हैं. ये वही लोग हैं, जो भारत सरकार के खिलाफ विरोध कर रहे शाहीन बाग के प्रदर्शनकारियों को दिन-रात ‘पाकिस्तान समर्थक’ बता रहे थे. अब अगर अर्णब महाराष्ट्र सरकार का विरोध कर रहे हैं, तो इसी तर्क से कहा जा सकता है कि वे और उनके चैनल के लोग महाराष्ट्र विरोधी या मराठा विरोधी हैं.

इसे कर्म का फेर ही कहा जाएगा. जब रिया चक्रवर्ती को गिरफ्तार किया गया था तब अर्णब उन लोगों के चेहरे पर उभरे भावों का ‘स्नैपशॉट’ दिखाना चाहते थे, जो तब तक रिया की प्रताड़णा के खिलाफ बोल रहे थे. आज अर्णब की गिरफ्तारी के ‘स्नैपशॉट’ पूरे सोशल मीडिया पर छाये हुए हैं. मीडिया अदालत न बने, इस बुनियादी उसूल की अर्णब ने धज्जियां उड़ा दी थी. ‘#अरेस्टरिया’ ऐसा ही मीडिया ट्रायल था. और वे कई मीडिया ट्रायल चला चुके थे.

लेकिन अर्णब की गिरफ्तारी ने एक अलग बड़ी समस्या को उभार दिया है.

राष्ट्र जानना चाहता है

बहुत कुछ भाजपा की तरह अर्णब ने भी अपने संगठन में दूसरी पंक्ति नहीं तैयार की. अब राष्ट्र जानना चाहता है कि अर्णब गोस्वामी के बाद रिपब्लिक टीवी का कोई भविष्य है या नहीं?

उनकी गिरफ्तारी ने साबित कर दिया है कि अंग्रेजी और हिंदी, दोनों में खुद को ‘स्टार एंकर’ बनाना उनके लिए महंगा पड़ा है. अब उनका चैनल ऐसे एंकरों को पेश कर रहा है, जो अर्णब के सुर में बोलने के लिए पसीना बहा रहे हैं और इंसाफ की गुहार लगा रहे हैं. इसकी वजह यह है कि अर्णब ने मुख्यतः ऐसे युवा पत्रकारों को अपने यहां रखा जो उनके दरबार में कोई सवाल उठाने की हिम्मत न करें. हैरानी की बात है कि उन्होंने चैनल का नाम अर्णब टीवी क्यों नहीं रखा.

और ध्यान रहे कि रिपब्लिक टीवी ने हाल में दावा किया कि ‘पूरे भारत के तमाम न्यूज़ रूमों में पत्रकार अर्णब गोस्वामी के साथ मजबूती से खड़े हैं’. इसके बाद कैमरा पांच न्यूज़ रूम घूमता है, जिनमें दो न्यूज़ रूम खुद रिपब्लिक टीवी के चैनलों के हैं.

अर्णब के उग्र अहंकारी तौर-तरीकों ने उन्हें मुश्किल में डाल दिया है. और फिलहाल चूंकि वे मौजूद नहीं हैं तो उनका चैनल किसी को, उनके पक्के समर्थकों तक को नहीं तरजीह दे रहा. वैसे, कुछ आरोपियों के बयानों से जब टीआरपी घोटाले में रिपब्लिक टीवी का भी नाम सामने आया है, तब उनका कोई समर्थक भी है या नहीं यह कहना मुश्किल है.

अर्णब गोस्वामी जिस विचित्र ढंग से राजनीति-प्रेरित न्यूज़ एंकरिंग कर रहे थे उससे एक महत्वपूर्ण तथ्य उभरता है. मीडिया अगर किसी राजनीतिक पार्टी का एक हाथ बनने की कोशिश करेगा तब वह एक मोहरे के सिवा कुछ नहीं रह जाएगा. लेमिन, जंग जीतने के लिए सबसे पहले मोहरों की ही बलि दी जाती है. भाजपा अर्णब का इस्तेमाल करके यह दिखाना चाहती है कि महा विकास आघाड़ी और शिवसेना इंदिरा गांधी जैसी तानाशाह पार्टियां ही हैं. बहरहाल, अर्णब ने खुद को एक दिलचस्प खबर बना लिया और राष्ट्रीय समाचारों में शिखर पर पहुंच गए. आप जानते हैं कि शिखर के आगे क्या होता है.

(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

(लेखिका एक राजनीतिक पर्यवेक्षक हैं. व्यक्त विचार निजी हैं)


यह भी पढ़ें: मोदी की लॉकडाउन के दौरान बढ़ी दाढ़ी रहने वाली है, सियासी तौर पर अभी इसे बहुत कुछ हासिल करना है


 

share & View comments

1 टिप्पणी

  1. अर्नब गोस्वामी के साथ देश का एक बड़ा वर्ग खड़ा है, और अर्नब स्वतंत्र भारत के पहले ऐसे पत्रकार हैं, जिनके साथ इतना बड़ा जनसमर्थन है। शायद अर्नब का बहुत कम समय में इतना आगे बढ़ जाना, सनातनियों का समर्थन पाना आपलोगों के लिए दुःख, चिन्ता औऱ आलोचना का कारण है।
    पत्रकारिता के विषय में देश आपलोगों से ज्ञान नहीं चाहता।
    क्या आपको लगता है कि ऐसी रिपोर्टिंग के लिए आपके द्वारा सार्वजनिक मांगे जाने वाले सहयोग के आप पात्र हैं ?

Comments are closed.