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Thursday, 25 April, 2024
होममत-विमतमोदी की लॉकडाउन के दौरान बढ़ी दाढ़ी रहने वाली है, सियासी तौर पर अभी इसे बहुत कुछ हासिल करना है

मोदी की लॉकडाउन के दौरान बढ़ी दाढ़ी रहने वाली है, सियासी तौर पर अभी इसे बहुत कुछ हासिल करना है

मोदी धीरे-धीरे और लगातार अपने व्यक्तित्व को तराशते हुए खुद को कुछ सबसे महान राजनीतिक और दार्शनिक शख्सियतों के लुक्स से मिलाने की कोशिश कर रहे हैं.

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को नाट्य कला बहुत पसंद है. ये उन पर कोई तंज़ नहीं है. उन्होंने खुद एक बार एक पत्रकार से कहा था कि स्कूल में उनका प्रिय विषय नाटक था. इससे उनके बारे में बहुत कुछ समझा जा सकता है लेकिन वो चर्चा किसी और दिन होगी. फिलहाल, नरेंद्र मोदी के नए लुक की बात करते हैं. और इस किरदार को नया ‘अवतार’ देने में क्या प्रयास लगता है.

स्टाइल को हासिल करना उतना भी आसान नहीं होता. आपको उस पर मेहनत करनी पड़ती है, इसके लिए अनुशासन और समय चाहिए होता है. समय बहुत ज़रूरी फैक्टर होता है, खासकर उनके लिए जो अब 70 से ऊपर के हैं. मोदी को, इसमें लगभग छह महीने लग गए- लॉकडाउन का पूरा समय. मोदी अकेले नहीं थे. हम में से बहुत लोग ‘मजबूरी के’ इन लुक्स की कल्पना किया करते थे. लेकिन जैसे ही लॉकडाउन में ढील हुई, हम बार्बर शॉप की तरफ भाग पड़े. लेकिन मोदी नहीं. वो लगातार इस पर काम करते रहे. जैसा कि कहा जाता है, उन्होंने ‘इसे मेनटेन’ किया.


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पीएम के लुक्स पर जनता के गलत अंदाज़े

पीएम के लंबे बाल और लंबी दाढ़ी रखने से अटकलों का बाज़ार गर्म है- कुछ लोग कहते हैं कि वो सोशल डिस्टेंसिंग का पालन कर रहे हैं इसलिए नाई को अपने पास नहीं आने देंगे. जो लोग इस थ्योरी पर यकीन करते हैं, उन बेचारों को या तो कुछ पता नहीं है या फिर वो स्टाइल के भागफल और मोदी की सियासत को नहीं समझते.

क्या कभी आपने गौर किया कि हमारे पीएम की दाढ़ी कितने अच्छे से तराशी हुई है? अगर नाई उसे नहीं तराश रहा तो फिर कौन? जब तक वो खुद ऐसा न कर रहे हों. और अगर ऐसा है तो हमारे पीएम न सिर्फ क्लाउड कवर, विंड इनर्जी, कैशलेस इकॉनोमी, इतिहास और संक्षिप्त नाम पकड़ने में एक्सपर्ट हैं बल्कि हेयर स्टाइलिंग भी समझते हैं. हेयर स्टाइलिंग के साथ टाइमिंग बहुत अहम होती है. पहले आपको उन्हें बढ़ने देना होता है और फिर उन्हें फाइन कट करना होता है, इससे पहले कि वो आपकी छवि बिगाड़ने लगे.

बहुत से लोग कहते हैं कि एक ‘फकीर’ का हुलिया बनाकर, मोदी एक तपस्वी की छवि पेश करना चाहते हैं. ये भी असली वजह नहीं है. हम अच्छी तरह जानते हैं कि पीएम पूरी कोशिश करते हैं कि उन्हें एक ‘फकीर’ के तौर पर जाना जाए लेकिन कपड़ों, चश्मों, गाड़ियों और अब विमानों की उनकी पसंद, फकीर जैसी तो हरगिज़ नहीं है. बल्कि ‘अनुभवी पत्रकार’ अक्षय कुमार को दिए एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा था कि गरीब होने से शायद उनके अंदर एक हीन भावना आ गई थी इसीलिए वो हमेशा कोशिश करते थे कि हमेशा साफ रहें और इस्त्री किए हुए कपड़े पहनें. इसलिए अपने दिखावे पर ध्यान देने का उनका शौक एक पुरानी आदत है.

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जिन्होंने इसे समझ लिया

कुछ लोग ऐसे भी हैं जिनका मानना है कि मोदी एक तपस्वी की छवि इसलिए अपना रहे हैं क्योंकि वो अपने आपको एक संत समान राष्ट्र प्रमुख के तौर पर पेश करना चाह रहे हैं जिसने आखिरकार अयोध्या में राम मंदिर का रास्ता साफ कराने में मदद की- एक ‘सच्चा राम भक्त’ जो भारत में ‘राम राज्य’ वापस ले आया.

राम मंदिर भूमि पूजन के दौरान मोदी ऐसे ही दिखे भी जहां उन्होंने सुनिश्चित किया कि आयोजन में वो सबसे महत्वपूर्ण व्यक्ति थे. संवैधानिक रूप से हां, मौजूद व्यक्तियों में प्रधानमंत्री सबसे महत्वपूर्ण व्यक्ति थे लेकिन साधुओं की संगत में, आप अलग नहीं ‘दिख’ सकते. लेकिन चूंकि राम मंदिर आंदोलन का कोई भी व्यक्ति, जो बाबरी मस्जिद गिराने में ‘मददगार’ था, आमंत्रित नहीं किया गया, इसलिए मोदी ने सुनिश्चित किया कि वो एक ऐसे वयोवृद्ध लीडर दिखें जो न सिर्फ भारत पर शासन करते हैं बल्कि संभवत: उसके वैचारिक-दार्शनिक प्रमुख भी हैं, जो देश को ‘धर्म’ और ‘मोक्ष’ की ओर ले जाएंगे.

और मुझे लगता है कि मोदी अपने लंबे बाल और दाढ़ी वाले लुक के साथ उसी ओर बढ़ रहे हैं. महामारी के साथ बिल्कुल सही तालमेल बिठाते हुए मोदी अपनी छवि को पूरी तरह बदल रहे हैं, देश की नहीं. ये बदलाव एक आयोजन से आगे जाता है. बाहरी ‘लुक’ को देखते हुए, वो कुछ बड़ा करने की तैयारी में हैं- अपने आपको एक ‘महामानव’ में तब्दील करने की काफी कुछ गांधी और टैगोर की तरह, जिन्होंने वास्तव में इस देश की परिकल्पना को आकार दिया है. लेकिन गुरुदेव की दाढ़ी किसी को भी एक भारी टक्कर देगी. कुछ लोग तो मोदी के लुक को शिवाजी महाराज से भी मिला रहे हैं.


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गुरुदेव और महात्मा से सीख

मोहनदास करमचंद गांधी के ‘लुक्स’ ने भी, उनके ‘गांधी’ से ‘महात्मा’ बनने में अपनी भूमिका अदा की थी. खादी की धोती लपेटे छड़ी के साथ चलते और आश्रम में सादा जीवन जीने वाले इंसान के व्यक्तित्व ने लोगों को प्रभावित किया जो उन्हें संत की तरह देखने लगे. अगर गांधी ने भारत की आज़ादी के लिए यही काम, कुर्ता-पायजामा, अचकन या कोई सूट पहने किया होता तो उन्हें ज़्यादा से ज़्यादा, एक राजनेता के तौर पर देखा जाता. बल्कि स्वतंत्रता आंदोलन की एक और बड़ी हस्ती नेहरू को भी एक धनी पिता के बेटे के तौर पर देखा जाता है, जो एक हकदार आदमी की तरह लगते थे. ‘महात्मा’ बनने की कोशिश में, मोदी संदेश दे रहे हैं कि वो चुनावों, तुच्छ राजनीति और जवाबदेही से ऊपर हैं.

जो चीज़ गांधी के लिए सही है, वो रबींद्रनाथ टैगोर के लिए भी सही है. कवि-दार्शनिक जो लंबे बाल रखते थे और जुब्बा (पारंपरिक लंबा ट्यूनिक) पहनते थे, अपने लुक्स की वजह से भी, लोगों की याद में बस गए हैं जिसे उन्होंने कलात्मक तरीके से तैयार किया था और अपनी शख्सियत और अपने काम को एक ऐसे आलौकिक स्पेस में ले गए जिसने लोगों को विस्मित कर दिया. बहुत से लोगों ने कहा है कि 2019 के लोकसभा चुनावों में पश्चिम बंगाल में मतदान से ठीक पहले केदारनाथ के अपने दौरे में जुब्बा और कमरबंद पहनकर मोदी ने टैगोर के लुक की नकल करने की कोशिश की थी.

काफी हद तक उन दो हस्तियों की तरह जो आज भारत की मूर्तिविद्ध्या में छाए हुए हैं- चाहे वो करेंसी हो, सिक्के हों या टिकट हों- मोदी धीरे-धीरे और लगातार अपने व्यक्तित्व को तराश रहे हैं ताकि खुद को भारत के कुछ महानतम राजनीतिक और आइकॉन्स से मिला सकें क्योंकि वो अपने आप को एक ऐतिहासिक शख्सियत बनाना चाहते हैं. वो भारत में अपने राजनीतिक कार्यकाल को एक ऐतिहासिक क्षण बनाना चाहते हैं. और वो इसका एक किरदार दिखना चाहते हैं.

ये लुक भारत की आज़ादी के बाद के इतिहास में मोदी को एक महत्वपूर्ण राजनीतिक शख्सियत के रूप में स्थापित करने में सहायक साबित होगा- एक ऐसी राजनीतिक शख्सियत जो धर्म, दर्शन और राजनीति का मिश्रण है, बिल्कुल पूर्व के राजाओं की तरह. अगर हासिल हो गई तो ये बहुत ताकतवर स्थिति है. भारत पर जिस तरह शासन किया जाता है, अगर उसमें कोई संवैधानिक बदलाव होते हैं और कोई व्यापक पद तैयार किया जाता है तो मोदी उसमें अच्छे से फिट हो जाएंगे. कौन जानता है, हो सकता है हमें वो करेंसी नोटों पर भी दिख जाएं.

(लेखिका एक राजनीतिक पर्यवेक्षक हैं. व्यक्त विचार निजी हैं)

(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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2 टिप्पणी

  1. कई बार आप लेखक के नाम से ही पुरी लेख का मजमुन समझ सकते है। कई काल्पनिक बातों का जोड़ आपको तथाकथित ” बुद्धिजीवी” बनाता है। लोग व्यक्तिगत नफरत समक्षते है। राजनीतिक लेख की बात ही कुछ होती हैं।

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