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Sunday, 22 December, 2024
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मोदी पर वर्तमान मेहरबान है लेकिन भविष्य उन्हें इस रूप में नहीं देखेगा

वर्तमान, प्रधानमंत्री मोदी पर मेहरबान है. लेकिन भविष्य में उन्हें किस चीज़ के लिए याद किया जाएगा और वो अपने पीछे क्या विरासत छोड़कर जाएंगे?

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वर्तमान, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर मेहरबान हो सकता है लेकिन इतिहास उनके प्रति बहुत निष्ठुर रहेगा. मोदी अपने तमाम अनुचित फैसलों को लेकर बचते आ रहे हैं, जिनमें बड़ी भूलें भी शामिल हैं और आने वाले सालों में भी शायद वो यही करते रहेंगे क्योंकि दयालु मतदाता अपने सम्मान से उन्हें नवाज़ते रहेंगे और उनका दिखावटी अंदाज़ बाकी हर चीज़ पर हावी होता रहेगा. लेकिन इतिहास मोदी को एक ऐसे प्रधानमंत्री के रूप में याद रखेगा, जिसे एक ज़बर्दस्त जनादेश मिला लेकिन जो राष्ट्र निर्माण में कोई ठोस योगदान देने में नाकाम रहा.

सोमवार को जब पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने, गलवान पर बयान के लिए पीएम मोदी की आलोचना की, तो उनका वो मशहूर बयान याद आ गया, जो उन्होंने 2014 में अपने कार्यकाल के अंत की तरफ दिया था- ‘समकालीन मीडिया या संसद के विपक्षी दलों के मुकाबले, इतिहास मुझपर ज़्यादा मेहरबान रहेगा’.

मूर्खता भरी नोटबंदी से लेकर अनुच्छेद-370 को कमज़ोर करने के फैसले को ज़बर्दस्ती थोपने और उसके बाद कश्मीर में सख़्त शिकंजा कसने और विवादास्पद व फूट डालने वाले कानून लाने तक, मोदी ने पूरे राजनीतिक माहौल को खराब कर दिया है और अपने पड़ोसियों के साथ भारत के रिश्तों को भी बिगाड़ दिया है. प्रधानमंत्री ने ऐसे बहुत से मील के पत्थर लगा दिए हैं, जो उनका इतिहास लिखे जाते समय, उनकी चापलूसी करते नहीं देखेंगे.

मोदी: वर्तमान

इसमें कोई शक नहीं है कि मोदी का शुमार, सबसे लोकप्रिय नेताओं में होता है. उनके जैसा अनुकरण आज़ाद भारत में शायद पहले कभी नहीं देखा गया. चुनावों को कवर करने और दूसरे आयोजनों के सिलसिले में मैंने काफी सफर किया है और उनकी ज़बर्दस्त लोकप्रियता देखी है. ये लोकप्रियता हर जेंडर, हर जगह और हर सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि में मिलती है.

ज़बर्दस्त साख और लोगों के साथ जुड़ने की विलक्षण क्षमता ने ही मोदी को इस स्थान पर बिठाया हुआ है और बिठाए रखेगी. उनकी गलतियों से कोई फर्क नहीं पड़ता. विपक्ष के तीखे हमले उनके कुशल अभिनय के सामने फीके पड़ जाते हैं और वो सुनिश्चित करते हैं कि चीज़ों को घुमाने की उनकी कला, बड़ी से बड़ी चुनौतियों पर भारी पड़ जाती है.


यह भी पढ़ें: 1962 की चीन से लड़ाई में अटल ने नेहरू को घेरा था तो लद्दाख मामले में विपक्ष क्यों ना करे मोदी से सवाल


अभी तक किसी भी चीज़ ने मोदी को क्षति नहीं पहुंचाई है: चाहे वो नवम्बर 2016 को एक ही बार में, नोटबंदी का मूर्खता भरा फैसला हो या उसके कुछ समय बाद ही, बिना सोचे समझे जल्दबाज़ी में जीएसटी लागू करना हो, दोनों का ही हर वर्ग के मतदाताओं पर विपरीत प्रभाव पड़ा. और फिर भी, जब भी मोदी पर हमला होता है, वो और मज़बूत हो जाते हैं. कोई इस बात को नहीं भूल सकता कि 2019 के लोकसभा चुनावों से पहले, कैसे पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी का चौकीदार चोर है और राफेल सौदे में भ्रष्टाचार का आरोप, जो मोदी पर सीधा हमला थे, उल्टे पड़ गए.

बिना कुछ सवाल पूछने वाले मतदाता, जो पीएम की कही कुछ भी बात मान लेते हैं और एक बिखरा हुआ, बेमेल और अकसर डरा हुआ विपक्ष, मोदी की सबसे बड़ी ताकत रहे हैं. इसलिए वर्तमान, प्रधानमंत्री पर मेहरबान है. लेकिन भविष्य में उन्हें किस चीज़ के लिए याद किया जाएगा और वो अपने पीछे क्या विरासत छोड़कर जाएंगे?

जहां इतिहास मोदी पर मेहरबान नहीं होगा

बहुत से प्रतिकूल नीतिगत फैसलों में, ख़ासकर आर्थिक मोर्चे पर, नोटबंदी, और उसके बाद ‘त्रुटिपूर्ण’ और जल्दबाज़ी में लाया गया जीएसटी, लिस्ट में सबसे ऊपर होंगे, जिनके नकारात्मक असर अर्थव्यवस्था में अभी तक देखे जा रहे हैं. जब मोदी ने उन्हें बड़े आर्थिक सुधार बताकर देश के सामने पेश किया, तो उनका उद्देश्य क्रमश: काले धन को कम करना, और अप्रत्यक्ष कर व्यवस्था को औपचारिक रूप देना था लेकिन सच्चाई ये है कि वो उस अर्थव्यवस्था पर दोहरी मार थी, जो उस समय तक ठीक से चल रही थी.

वो उनका पहला कार्यकाल था. अपने दूसरे कार्यकाल में, जहां वो और भी बड़े जनादेश के साथ लौटे थे, मोदी सरकार ने कई ऐसे कानून पारित किए, जिन्होंने भारत के सामाजिक ताने-बाने में तनाव पैदा कर दिया और उसमें ऐसा ध्रुवीकरण कर दिया, जैसा पहले कभी नहीं हुआ.

मोदी को उस बदनामी के लिए याद किया जाएगा कि उन्होंने एक ऐसी पार्टी की सरकार की अगुवाई की, जिसने तमाम राज्यों में ध्रुवीकरण की राजनीति की. इतिहास नहीं भूलेगा जब अमित शाह ने गैर-कानूनी प्रवासियों की तुलना ‘दीमकों‘ से की और कहा कि उन्हें बंगाल की खाड़ी में फेंक दिया जाएगा. उस समय मोदी थे, जो भारत के प्रधानमंत्री थे.

इतिहास मोदी पर मेहरबान नहीं रहेगा, क्योंकि उन्होंने असम के राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) को, जातीय मुद्दे से साम्प्रदायिक मुद्दे में तब्दील कर दिया या विवादास्पद नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) लेकर आए.

तीन तलाक़ कानून, आरटीआई और यूएपीए जैसे कानूनों में संदेहास्पद बदलाव और ‘बाहरी’ को लेकर कट्टर राष्ट्रवाद- ये सब दर्शाते हैं कि कैसे मोदी सरकार का पूरा ज़ोर, सिर्फ अपने संकुचित विज़न को पूरा करने पर रहा है.

कोविड संकट अभूतपूर्व भी है और निष्ठुर भी, लेकिन मोदी सरकार का श्रम संकट से निपटना, उसकी लापरवाही और राज्यों के ऊपर हावी होकर, संघीय ढांचे को कमज़ोर करने की उसकी कोशिश पर, हमेशा सवाल उठते रहेंगे.

सरकार और बीजेपी के अंदर प्रतिभा की कमी और दूसरी पीढ़ी के ठोस नेताओं को तैयार करने या योग्य लोगों को रोके रखने की उनकी असमर्थता भी, मोदी की सबसे बड़ी कमज़ोरियां रही है.

मोदी ने भारत की विदेश नीति को जिस तरह से संभाला है, वो भी उन्हें एक ख़राब स्थिति में दिखाता है. चाहे वो चीन के साथ एलएसी पर चल रहा गतिरोध हो, जिसमें 20 भारतीय सैनिक मारे गए हैं या लड़ाकू नेपाल का इकतरफा ढंग से अपना नक्शा बदलकर, भारत के इलाके को उसमें दिखाना हो या फिर कश्मीर में सुरक्षा बलों पर हो रहे निरंतर हमले हों, भारत को अपने पड़ेसियों से जितनी लगातार चुनौतियां अब मिल रही हैं, उतनी पहले कभी नहीं मिली.

सर्वदलीय बैठक में गलवान पर मोदी के बयान ने, हंगामा खड़ा कर दिया, जो इसे और भी दर्शाता है कि वो मतदाताओं को खुश करने में लगे राजनेता की तरह सोचते हैं, बजाय ऐसे लीडर के, जो भौगोलिक और सामरिक नज़रिए से सोचता हो.


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बांग्लादेशी घुसपैठियों के मुद्दे ने बांग्लादेश के साथ रिश्तों पर असर डाला है जबकि राजपक्षा बंधुओं की अगुवाई में, श्रीलंका के रिश्ते भी भारत के साथ बहुत मैत्रीपूर्ण नहीं हैं और वो चीन के साथ निकटता के लिए जाना जाता है.

जहां इतिहास मेहरबान होगा

ऐसा नहीं कहा जा सकता कि मोदी ने, कुछ भी हासिल नहीं किया है. उनके पहले कार्यकाल में रखी गई कल्याण की बुनियाद- ग्रामीण आवास मुहैया कराने से लेकर कुकिंग गैस कनेक्शंस, गांवों में बिजली, स्वास्थ्य बीमा, स्कीमों को लागू करने में आ रही खामियां को दूर करने के लिए आधार पर ज़ोर और गरीबों तक लाभ पहुंचाने के लिए, सामाजिक-आर्थिक जातीय गणना का मज़बूती से इस्तेमाल- ये सभी नीतिगत कदम बहुत लोकप्रिय, उपयोगी और ठोस साबित हुए हैं.

कूटनीतिक रूप से, भारत-अमेरिका के बीच बढ़ते रिश्ते, मोदी सरकार की विदेश नीति की एक प्रमुख उपलब्धि रही है. 2016 में सीमा पार हुई सर्जिकल स्ट्राइक्स और 2019 में बालाकोट हवाई हमले ने भी, मोदी की ताकत को बढ़ाया है.

लेकिन ऐसा लगता है कि कल्याण और शासन पर मोदी सरकार का फोकस, दूसरे कार्यकाल में गायब ही हो गया है. पिछले एक साल में, ज़्यादा अहम मुद्दों को छोड़कर, मोदी सिर्फ बहुसंख्यकवाद और राष्ट्रवाद के अपने संकीर्ण विज़न को पूरा करते और उन ऐतिहासिक मुद्दों को खत्म करते दिखाई दिए हैं, जो उनके प्रमुख मतदाता वर्ग के लिए महत्व रखते हैं.

मोदी शायद अभी कुछ और समय तक चुनाव जीतते रहेंगे लेकिन वोट पाने की अपनी कमाल की क्षमता के अलावा, दीर्घकाल में उन्हें किस चीज़ के लिए याद किया जाएगा? ये वो सवाल है जो मोदी के सामने खड़ा होगा, अगर वो चाहते हैं कि इतिहास उन्हें एक राष्ट्र-निर्माता के रूप में याद रखे, न कि सिर्फ एक चुनाव जीतने वाली और धारा प्रवाह बोलने वाली मशीन की तरह.

(व्यक्त विचार निजी हैं)

(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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3 टिप्पणी

  1. हम आपके विचारों से सहमत नहीं है हमें हमारी देश की सरकार और सेना पर पूरा भरोसा है मोदी सरकार ने जो को भी कानून पास के हैं वह सब देश हित में है

  2. हम आपके विचारों से सहमत नहीं है हमें हमारी देश की सरकार और सेना पर पूरा भरोसा है मोदी सरकार ने जो को कानून पास किए हैं वह सब देश हित में है

  3. इतिहास आपको विशेकर प्रिंत को भी अपनी नेगितिवे सोच क लिए माफ़ नही करेगा , इतिहास की गलतियों को ठीक करने वाले पम की आलोचना करना और देश विरोधी कानूनों और धारायों का समर्थन करना ये बताता ता है की द प्रिंट देशविरोधी और एक पार्टी या परिवार विशेह की खता ह

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