लोकसभा में पूरी बहुमत के साथ भरातीय जनता पार्टी ने सोमवार को सदन में आधीरात तक चली 7 घंटे लंबी बहस के बाद 311 सांसदों के समर्थन के साथ नागरिकता संशोधन विधेयक पारित करा लिया. वहीं विपक्ष की तार्किक आलोचना के बाद भी विपक्ष में कुल 80 वोट ही पड़े. बुधवार को राज्यसभा में मतदान का ये स्कोर 125 बनाम 105 रहा. जहां 125 सांसद इस विधेयक के पक्ष में थे तो 105 इसके खिलाफ. इस सांप्रदायिक विधेयक को पास करा के नरेंद्र मोदी सरकार भारत को अंधकारमय रास्ते पर ले जाने में कामयाब हुए हैं. जिससे निकलने के लिए हमें संघर्ष करना पड़ेगा.
जिस विधेयक पर बहस की गई थी, उस पर विचार किया गया और पारित किया गया, यह मूल रूप से हमारे देश के लिए ऐतिहासिक रूप से जो कुछ भी है, उसके लिए मौलिक रूप से विरोधाभासी है. सरकार की आंखों में एक समुदाय के लोग कम महत्व रखते हैं. ये संशोधन संविधान में निहित केवल समानता और धार्मिक गैर-भेदभाव के खिलाफ नहीं है बल्कि एक चौतरफा हमला भारत के विचार पर हो रहा है जिसके लिए हमारे पूर्वजों ने राष्ट्रवादी संघर्ष के दौरान अपना जीवन दिया था. प्रताप भानु मेहता के शब्दों में कहें तो ये संवैधानिक लोकतंत्र से गैर-संवैधानिक जातीय लोकतंत्र में बदलने के लिए बड़ा कदम है.
राष्ट्रवाद के नाम पर अराजकता
देश के कई हिस्सों, विशेषकर पूर्वोत्तर भारत के राज्यों में इसके खिलाफ प्रदर्शन हो रहे हैं और राज्य स्तर पर बंदी घोषित कर दी गई है और टेलीफोन-इंटरनेट सेवाओं को भी कुछ क्षेत्रों में बंद कर दिया गया है. मंगलवार की शाम को मुझे एक ई-मेल मिला जो एक परेशान बंगाली हिंदू परिवार की तरफ से भेजा गया था. तीसरी पीढ़ी के एक छात्र ने बताया कि वे स्थानीय असमिया लोगों द्वारा उनके खिलाफ प्रतिशोध के डर से रह रहे हैं जो चिंतित हैं कि यह बिल उन पर एक अतिरिक्त बोझ पैदा करेगा.
तथ्य यह है कि इसके निहितार्थ केवल विधेयक के खंडों तक सीमित नहीं हैं, ऐसे कानून का एक टुकड़ा पेश करने के लिए, विशेष रूप से एक नए राष्ट्रीय एनआरसी के संयोजन में, भाजपा भय के माहौल को उजागर करेगी. जिसमें भारतीय नागरिकों को पीड़ित के तौर पर पेश किया जाएगा और राष्ट्रवाद के नाम पर अराजकता पैदा की जाएगी और पूरे देश में इसे फैलाया जाएगा.
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आखिरकार मिली जीत
इस कदम से भाजपा ने आखिरकार दो लोगों की जीत सुनिश्चित की है. इसमें पहले तो उनके वैचारिक पूर्वज वीडी सावरकर हैं जिसने पहली बार देश को मुस्लिम और गैर-मुस्लिम में बांटने का विचार दिया था. 1940 में इसी तरह का विचार मुस्लिम लीग द्वारा लाहौर में पेश किए गए पाकिस्तान रिस्योलूशन में भी था.
हमारे राष्ट्रवादी संघर्ष की गोधूलि पर, हमारा अपना स्वतंत्रता आंदोलन इस मुद्दे पर विभाजित हो गया कि क्या धर्म राष्ट्रवाद का निर्धारक होना चाहिए. उस सिद्धांत को मानने वाले वे थे जिन्होंने पाकिस्तान के विचार की वकालत की. हालांकि महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू, मौलाना आज़ाद, बीआर आंबेडकर इसके खिलाफ थे कि राष्ट्र का धर्म से कुछ संबंध होना चाहिए. भारत के बारे में उनका विचार सभी राष्ट्रों, क्षेत्रों, जातियों और भाषाओं के सभी लोगों के लिए एक स्वतंत्र देश था, जो दो-राष्ट्र सिद्धांत से पूरी तरह अलग था.
हमारे संविधान में भारत के इस विचार का प्रतिबिंब है जिसके साथ मोदी सरकार धोखा कर रही है.
जैसा कि मैंने अपने संसदीय भाषण में कहा था, नागरिकता संशोधन विधेयक का पारित होना महात्मा गांधी के विचार पर जिन्ना की सोच की जीत है.
भाजपा पाकिस्तान को अस्वीकार नहीं कर सकती और पाकिस्तान के समान तर्क की वकालत कर सकती है. कितनी विडंबना है कि यह होना चाहिए कि हिंदुत्व भाजपा अब मोहम्मद अली जिन्ना की अंतिम प्रतिज्ञा सुनिश्चित करना चाहती है. और कितनी विडंबना है कि प्रधानमंत्री मोदी अपने कांग्रेस के आलोचकों पर पाकिस्तान की भाषा में बात करने का आरोप लगा रहे हैं, जब यह उनकी सरकार है जो न केवल पाकिस्तान की तरह बात करती है, बल्कि पाकिस्तान की तरह काम करती है और सबसे बुरा, पाकिस्तान की तरह सोचती भी है.
यह भी कितना विडंबनापूर्ण है कि हिंदुत्व पार्टी ने आक्रामक तरीके से एक ऐसे कानून के लिए जोर दिया है जो सहस्राब्दियों से हिंदू सभ्यता की प्रथा को खत्म करता है और एक ऐतिहासिक विरासत को छोड़ देता है, जिसका दावा करने के लिए हिंदू गर्व करते थे. स्वामी विवेकानंद ने अपने 1893 के शिकागो में दिए प्रसिद्ध भाषण में कहा था कि वह एक ऐसी भूमि के लिए बोलने में गर्व महसूस करते हैं जिसने हमेशा सभी देशों और धर्मों से उत्पीड़ित लोगों को शरण दी.
हम उस विरासत पर खरे उतरे जब हमने तिब्बती शरणार्थियों, बहाई समुदाय, श्रीलंकाई तमिलों और बांग्लादेशियों को अपने धर्म के बारे में पूछे बिना आश्रय दिया. अब, यह सरकार एक समुदाय को बाहर करना चाहती है और अन्य समुदायों की तरह ही उन पर अत्याचार करने से उन्हें शरण देना चाहती है और वे यह भी सुनिश्चित कर रहे हैं कि भारत के भीतर एक ही समुदाय के सदस्य भय और उत्पीड़न की स्थिति के अधीन होंगे जो इस अभ्यास के मद्देनजर बदतर हो जाएंगे.
एक हिंदुत्व पाकिस्तान
सही बात यह है कि लोकसभा में सुझाए गए भाजपा के सहयोगी अकाली दल सहित कई दलों ने धर्म-निरपेक्ष नागरिकता विधेयक पेश किया होगा. यह एक ऐसी सरकार द्वारा किया गया बेशर्म प्रदर्शन है जिसने पिछले साल भी एक राष्ट्रीय शरण नीति पर चर्चा करने और बनाने से इनकार कर दिया था, जिसे मैंने एक निजी सदस्य के विधेयक के तौर पर प्रस्तावित किया था और तत्कालीन गृह मंत्री, उनके मंत्रियों और उनके गृह सचिव के साथ व्यक्तिगत रूप से साझा किया था.
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अगर मोदी और अमित शाह की सरकार वास्तव में शरणार्थियों के बारे में परवाह करती है, तो उसने लगातार एक उद्देश्यपूर्ण नीति की आवश्यकता को स्वीकार करने या अपने स्वयं के साथ आने से इनकार क्यों किया है? अचानक, यह कुछ शरणार्थियों को नागरिकता देने का दावा करता है, जबकि वास्तव में, वे शरणार्थी की स्थिति के निर्धारण में सुधार या शरणार्थियों के सभ्य उपचार को सुनिश्चित करने के लिए अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत आवश्यक बुनियादी काम भी नहीं करना चाहते हैं.
लगभग एक साल पहले मुझे यह कहने के लिए बहुत अच्छा विकल्प मिला था कि 2019 में भाजपा के लिए एक चुनावी जीत पाकिस्तान के हिंदुत्व संस्करण की शुरुआत होगी.
सत्ता पक्ष ने जोर से विरोध किया और उसके सदस्यों ने मुझ पर मानहानि का मुकदमा किया, कोलकाता के एक न्यायाधीश ने टिप्पणी के लिए मेरे खिलाफ गिरफ्तारी वारंट भी जारी किया गया. अफसोस की बात है, मैं अब पूर्वज्ञान रखने वाला लगता हूं. पाकिस्तान का एक हिंदुत्व संस्करण सिर्फ वही है, जो भाजपा के शासन में, हमारा भारत बन रहा है.
(लेखक तिरुवनंतपुरम से लोकसभा सांसद है. उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय के सेंट स्टीफंस कॉलेज से इतिहास की पढ़ाई की है. थरूर 19 किताबों के लेखक हैं. वो ट्विटर पर @ShashiTharoor के नाम से हैं. यह उनके निजी विचार हैं)
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