गाय का सवाल भारत की आजादी के 72 साल बाद भी अनसुलझा पड़ा है. इस नाम पर कितने दंगे हुए हैं, कितने घर जले हैं और कितनी जानें गई हैं, ये शोध का विषय है. लेकिन इतना तो तय है कि भारत में संगठित हिंसा और दंगों की सबसे प्रमुख वजहों में गाय शामिल है. केंद्र में अब तक कांग्रेसी, जनता दली-समाजवादी और बीजेपी की सरकारें आ चुकी हैं, लेकिन गाय को लेकर कहानी बदली नहीं है. हर राज्य में गाय को लेकर अपना कानून है और इसे लेकर समुदायों के बीच अविश्वास और कटुता कायम है.
इस समस्या का एक समाधान समाजवादी पार्टी के नेता आजम खान के पास है. वे सरकार से कह रहे हैं कि ‘भारत में गोवध पर पूर्ण पाबंदी लगाई जाए. सभी बूचड़खाने बंद किए जाएं. सभी जानवरों को मारने पर रोक लगे.’ मुसलमानों के लिए तो उनकी खास सलाह है कि वे मांस खाना बंद कर दें.
लेकिन, बीजेपी इसके लिए तैयार नहीं है. आजम खान ने जब यूपी की विधानसभा में ये मांग की थी, तो यूपी सरकार के मंत्री सिद्धार्थ नाथ सिंह ने कहा कि वैध तरीके से चल रहे बूचड़खाने चलते रहेंगे और उन्हें घबराने की कोई जरूरत नहीं है, क्योंकि सरकार को उनसे कोई दिक्कत नहीं है.
संविधान सभा में गोवध पर प्रतिबंध को लेकर बहस
आजम खान दरअसल वही मांग कर रहे हैं, जो भारत की संविधान सभा में मुसलमान नेताओं ने की थी. वे भी चाहते थे कि पूरे देश में गोवध पर पाबंदी लगा दी जाए. संविधान सभा में उनके दिए दो बयानों को देखें.
– ‘बेहतर होगा कि संविधान सभा आगे आए और मूल अधिकारों के अध्याय में गोवध पर पाबंदी के प्रावधान को शामिल करे. इस सवाल को इसी समय हल कर लिया जाए और इसे राज्य के नीति निर्देशक तत्वों के अध्याय में डालकर मामले को उलझन में न छोड़ दिया जाए.’ – ज़ाहिर उल हसन लारी, संविधान सभा में, 24 नवंबर, 1948
– अगर संविधान निर्माता आगे आएं और साफ-साफ कहें कि ‘ये सवाल हमारे धर्म का है. गाय का वध नहीं होने देना चाहिए और गोवध को रोकने के लिए जरूरी है कि इस मसले को या तो मूल अधिकारों में या नीति निर्देशक तत्वों में शामिल कर लिया जाए, तो हम उसमें कोई अड़चन डालना नहीं चाहेंगे.’ – सय्यद मोहम्मद सादुल्ला, उसी बहस में
गाय और गोकशी के मामले में मुसलमानों का पक्ष रखने के लिए यही दो नेता संविधान सभा की उस दिन की बहस में खड़े हुए और दोनों ने कहा कि गोवध पर पाबंदी लगा देनी चाहिए.
यह भी पढ़ें : आजम खान की ठाठ और ठसक से बीजेपी को दिक्कत है!
गाय का मामला मूल अधिकार या नीति निर्देशक
संविधान के शुरुआती ड्राफ्ट में गाय का मसला शामिल नहीं था, लेकिन कई सदस्यों की मांग को देखते हुए आखिरकार इस बात को नीति निर्देशक तत्वों के अध्याय में शामिल करने पर सहमति बनती नजर आई. संविधान में गोवंश की रक्षा की बात को सिद्धांत के रूप में शामिल करने के लिए संशोधन प्रस्ताव कांग्रेसी नेता ठाकुर दास भार्गव ने पेश किया.
इसमें तीन बातें थीं – आधुनिक और वैज्ञानिक उपायों के द्वारा खेती और पशुपालन को आधुनिक बनाया जाएगा, पशुधन की नस्ल को बेहतर बनाया जाएगा और तीन, गाय, बछड़ों और दूध देने वाले और हल चलाने में काम आने वाले पशुओं के वध पर रोक लगाई जाएगी. लेकिन, इस बारे में संविधान में कोई बाध्यतामूलक कानून नहीं बनाया गया और ये काम सरकारों पर छोड़ दिया गया. इसलिए हम पाएंगे कि अलग-अलग राज्यों में गोवध को लेकर अलग-अलग कानूनी व्यवस्थाएं हैं.
गोवध पर रोक की मांग और सरकार का रुख
गाय के संरक्षण के प्रश्न को नीति निर्देशक तत्वों की सूची में शामिल करने से न तो कट्टर हिंदू खुश थे, न मुसलमान. दोनों गोवध पर पाबंदी लगाने की मांग कर रहे थे. गोवध पर पाबंदी लगाने की मांग करने वाले हिंदू नेताओं में प्रमुख थे – आरवी धुलेकर, ठाकुर दास भार्गव, सेठ गोविंद दास, राम सहाय, रघुवीर और सिब्बन लाल सक्सेना. हालांकि, उन्होंने आखिरकार मान लिया कि अगर गो-संरक्षण को मौलिक अधिकार नहीं बनाया जा सकता तो उसे नीति निर्देशक बना दिया जाए और मामले को भविष्य के लिए छोड़ दिया जाए.
गोवध निषेध के इनके तर्क दो बुनियाद पर टिके थे:-
1. आर्थिक तर्क – भारत एक कृषि प्रधान देश हैं और अपनी जरूरत भर का अनाज पैदा नहीं कर पा रहा है. कृषि का काम मवेशियों पर आधारित है और देश में मवेशियों की कमी है. मवेशियों से खेतों को खाद मिलती है और हल खींचने में भी उनकी जरूरत होती है. साथ ही देश में दूध की भी कमी है. इसे देखते हुए गायों को मारने पर रोक लगा दी जाए. गाय और बैंलों को बूढ़ा हो जाने पर भी कसाईखाने न भेजा जाए, क्योंकि वे तब भी गोबर दे रहे होते हैं.
2. धार्मिक तर्क – गाय का हिंदू धर्म में बहुत महत्व है. गाय को हिंदू अपनी मां समान मानते हैं. इस मामले में बहुसंख्यक हिंदुओं की धार्मिक भावनाओं का सम्मान होना चाहिए. इस विषय पर बोलते हुए एक सदस्य आरवी धुलेकर तो लिंचिंग तक को धार्मिक महत्व का काम ठहरा बैठे. उन्होंने कहा- ‘ऐसे हजारों लोग हैं जो अपनी मां या पत्नी को मार रहे शख्स को मारने के लिए शायद न दौड़ें, लेकिन अगर कोई आदमी गाय को मार रहा है तो उसे शख्स को मारने के लिए हजारों लोग दौड़ पड़ेंगे.’
बहस में शामिल मुसलमान सदस्यों ने कहा कि गोवध रोकने के आर्थिक तर्क निरर्थक हैं और उनका कोई मतलब नहीं है. जो पशु न दूध दे रहा हो न उनका इस्तेमाल हल जोतने में हो रहा हो, उसके संरक्षण का कोई आर्थिक तर्क नहीं हो सकता. साथ ही ये संशोधन चूंकि आधुनिक खेती की बात कर रहा है, तो ये भी तय है कि आने वाले दिनों में हलों को पशु नहीं जोतेंगे, बल्कि ट्रेक्टरों का इस्तेमाल होगा. तीसरी बात ये कि अगर पशुओं की नस्ल का सुधार करना है तो वर्तमान में जो नस्लें हैं, जो नाम मात्र का दूध दे रही हैं और उनसे हलों को भी नहीं जोता जाता, उनका संरक्षण आर्थिक तर्कों पर कैसे हो सकता है.
यह भी पढ़ें : मुस्लिम, दलित व किसान जातियों के विरोध से चलती बीजेपी की राजनीति
उन्होंने कहा कि सीधी बात कीजिए. देश में हिंदू बहुसंख्यक हैं और गाय उनमें से ज्यादातर लोगों के लिए धार्मिक महत्व का जीव है. इस आधार पर अगर गोवध पर पाबंदी लगानी है, तो मुसलमान इसका विरोध नहीं करेंगे. बल्कि इस आधार पर गोकशी पर पाबंदी लगा देनी चाहिए. मुसलमान सदस्यों का जोर इस बात पर था कि इस मामले को भविष्य के लिए नहीं छोड़ देना चाहिए क्योंकि इसे लेकर लगातार समुदायों में कटुता बनी हुई है और हर साल बकरीद पर कई जगहों पर धारा– 144 लगाने की नौबत आ रही है.
हिंदुओं की धार्मिक भावनाओं के आधार पर गोकशी रोकने के पक्ष में उन्होंने पांच तर्क दिए-
1. इस देश में लाखों-लाख मुसलमान ऐसे हैं जो गोमांस नहीं खाते
2. भारत में इतने मुसलमान नहीं है और वे इतने अमीर नहीं हैं कि उनकी गायों से सारे बूचड़खाने चल जाएं. बूचड़खाने में भेजी जाने वाली ज्यादातर गायें वे हैं, जिन्हें हिंदू वहां बेच आते हैं.
3. इस्लाम नहीं कहता कि गोकशी की जाए. हां ये जरूर है कि गोकशी की वहां पाबंदी भी नहीं है.
4. अगर धार्मिक विश्वास को आधार बनाकर गोवध पर पाबंदी लगा दी जाए और इसे मूल अधिकारों के अध्याय में शामिल कर दिया जाए तो मुसलमान इसका विरोध नहीं करेंगे. सादुल्ला साहब ने कुरान को कोट करके कहा कि धर्म के नाम पर कोई जबर्दस्ती नहीं होनी चाहिए. (‘La Ikraha fid Deen’).
5. मुसलमान गोवध निषेध के पक्ष में इसलिए हैं क्योंकि इससे हिंदू समुदाय के साथ उनके संबंध सौहार्दपूर्ण बने रहेंगे और उनके बीच कटुता नहीं होगी.
गोकशी के मुद्दे पर संविधान सभा में हुई बहस यहां पढ़ी जा सकती है.
इस बहस के अंत में संविधान सभा ने पशुओं के संरक्षण से संबंधित संशोधन स्वीकार कर लिया गया. यही संशोधन अनुच्छेद 48 के रूप में संविधान में मौजूद है. इस संबंध में ड्राफ्टिंग कमेटी के चेयरमैन डॉ. बीआर आंबेडकर का हस्तक्षेप महत्वपूर्ण जिन्होंने ये कहा कि मौलिक अधिकार नागरिकों के ही हो सकते हैं, इसलिए पशुओं को मौलिक अधिकार नहीं दिए जा सकते.
इस पूरी बहस का आज मतलब ये है कि संविधान सभा के मुस्लिम सदस्यों – सादुल्ला और लारी की ये आशंका सही साबित हुई कि अगर गोवध के मुद्दे को खुला छोड़ दिया गया, तो इसे लेकर समाज में कटुता बनी रहेगी और इसका अंत हिंसा में होगा. आज कोई ये याद नहीं करता कि गोवध पर पाबंदी की वकालत मुसलमान सदस्यों ने की थी. हिंदू सदस्य तो बहुत सहजता से इस बात के लिए तैयार हो गए थे कि इस मसले को नीति निर्देशक तत्वों में डालकर मामले को सरकारों के विवेक पर छोड़ दिया जाए.
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं और यह लेख उनका निजी विचार है.)