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Thursday, 2 May, 2024
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भारत में हिंदी क्षेत्र के अधिकतर लोग पटाख़ों पर पाबंदी चाहते हैं. TV को आपको कुछ और मत बताने दीजिए

दिवाली पटाखों पर पाबंदी के मामले में, 15,000 भारतीयों के सर्वेक्षण में पता चला है कि धर्म सर्वोपरि नहीं है.

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हर बार की तरह ही दिवाली के अगले दिन, दिल्ली में प्रदूषण का सबसे ख़राब स्तर दर्ज किया गया. लेकिन ये साल कुछ अलग था- अधिकतर जगहों पर पटाख़ों पर पाबंदी थी. इसमें कोई शक नहीं कि पाबंदी का सख़्ती से पालन नहीं किया गया, जैसा कि किसी आज़ाद देश में किसी भी तरह की पाबंदी के साथ होता है.

दिवाली ने तमाम सोशल मीडिया और टीवी चैनलों पर, रूढ़िवादी बनाम उदारवादी टकराव को जन्म दे दिया. परंपरावादियों ने पटाख़ों या आतिशबाज़ी पर प्रतिबंध को, हिंदू त्योहार की समृद्ध धार्मिक परंपराओं पर हमला क़रार दिया. उधर उदारवादियों की शिकायत थी कि प्रतिबंध पर्याप्त रूप से कड़ा नहीं था, जिसकी वजह से प्रदूषण स्तरों में फिर से बढ़ोतरी हुई.

भारतीय लोग क्या सोचते हैं- दिवाली पर आतिशबाज़ी पर पाबंदी लगनी चाहिए कि नहीं? प्रश्नम ने पता लगाने का फैसला किया. हमने 15,000 से अधिक भारतीय वयस्कों से पूछा जो हिंदी क्षेत्र के नौ राज्यों- बिहार, दिल्ली, हरियाणा, हिमाचल, झारखंड, मध्य प्रदेश, राजस्थान, उत्तर प्रदेश और झारखंड- के 265 ज़िलों और 1,220 विधान सभा चुनाव क्षेत्रों में फैले हुए थे. लेकिन इस बार हमने जो तरीक़ा अपनाया, उसे अर्थशास्त्री ‘बेतरतीब नियंत्रित परीक्षण’ कहते हैं. हमने नमूने को दो समूहों में लगभग बराबर बांट दिया, जिसमें समान भौगोलिक स्थिति वाले लोगों को एक ग्रुप में रखा गया. पहले समूह (ग्रुप-ए) से सिर्फ ये पूछा गया, कि क्या प्रदूषण की वजह से दीवाली के दौरान, पटाख़ों पर पाबंदी लग जानी चाहिए. दूसरे समूह (ग्रुप बी) को कुछ जानकारी दी गई- उन्हें बताया गया कि दीवाली पटाख़े प्रदूषण फैलाते हैं, जिससे बच्चों के फेफड़ों में संक्रमण होता है, और हर साल दस लाख भारतीयों की मौत हो जाती है. इस सूचना के आधार पर उनसे पूछा गया, कि दीवाली के दौरान आतिशबाज़ी पर पाबंदी लगनी चाहिए या नहीं.


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इस प्रयोग के पीछे ये परखने की मंशा थी, कि लोगों को प्रदूषण के बारे में सूचित या शिक्षित करने से, क्या उनके उत्तरों में सांख्यिकीय रूप से कोई ख़ास अंतर आता है. दूसरे शब्दों में, पर्यावरण जैसे विषयों पर जानकारी मुहैया कराने से, क्या कोई फर्क़ पड़ता है?

ग्रुप 1- आतिशबाज़ी पर पाबंदी लगाईए

एक अच्छी ख़ासी संख्या में लोगों का मानना है, कि प्रदूषण के कारण दीवाली के दौरान आतिशबाज़ी पर पाबंदी होनी चाहिए.

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ये निष्कर्ष हमारे लिए चौंकाने वाला था, क्योंकि हाल के वर्षों में मीडिया के शोर-शराबे ने, हमारे दिमाग़ को ऐसा ब्रेनवॉश किया है कि हम मानने लगे हैं, कि हमारे देश में धर्म सभी दूसरे मुद्दों पर भारी पड़ जाता है.

ऐसा ज़रूरी नहीं है. जैसा कि हमारा सर्वेक्षण दिखाता है, 57 प्रतिशत लोगों का सोचना है कि आतिशबाज़ी पर पाबंदी होनी चाहिए, जिससे एक बार फिर ज़ाहिर हो जाता है, कि भारतीय समाचार मीडिया हमारे देश के लोगों की सोच से कितना कटा हुआ है.

याद रखिए कि ये एक बहुत अच्छे से स्तरित किया हुआ व्यापक सर्वेक्षण था, जिसमें नौ राज्यों के हर ज़िले में फैले, 7,562 लोगों को कवर किया गया था, और ये केवल शहरी इलाक़ों के जागृत उदारवादियों का सर्वेक्षण नहीं था, जो इस सर्वे में संशय रखने वाले लोग समझ सकते हैं. उसके अलावा कच्चा डेटा भी उपलब्ध कराया जा सकता है, जिससे कोई भी विश्लेषण करके चेक कर सकता है.

इसके अलावा लगभग हर हिंदी-भाषी प्रांत में, अधिकतर लोगों ने पर्यावरण को धार्मिक परंपराओं के ऊपर तरजीह दी.

ग्रुप 2- जानकारी से कैसे सहायता मिलती है

जब समान भौगोलिक क्षेत्रों के एक जैसे समूह को, प्रदूषण से होने वाले नुक़सान की जानकारी दी गई, तो तक़रीबन 70 प्रतिशत को लगा कि आतिशबाज़ी पर पाबंदी होनी चाहिए.

तो, 20 प्रतिशत ज़्यादा लोगों ने प्रतिबंध का समर्थन किया, जब उन्हें पर्यावरण और स्वास्थ्य के नुक़सान के बारे में बताया गया. आंकड़ों की भाषा में हम 99 प्रतिशत विश्वास के साथ कह सकते हैं, कि लोगों को पर्यावरण मुद्दों पर शिक्षित करने से, उनकी समझ में आ सकता है और वो अपनी राय बदल सकते हैं.

एक बार फिर, हर राज्य में उन लोगों का प्रतिशत कहीं ज़्यादा था, जो आतिशबाज़ी पर पाबंदी के पक्ष में थे.

स्पष्ट है कि काफी हद तक, भारतीय लोग धार्मिक परंपराओं के मुक़ाबले, स्वास्थ्य और पर्यावरण की ज़्यादा चिंता करते हैं. ये निष्कर्ष इस कॉलम के बहुत से ऐसे पाठकों के लिए चौंकाने वाला होगा, जो आमतौर पर न्यूज़ मीडिया को उत्सुकता के साथ देखते हैं, और जिन्हें यक़ीन दिला दिया गया है कि आज के भारत में, धर्म बाक़ी सभी चीज़ों पर भारी पड़ता है.

पारदर्शिता और ईमानदारी के सिद्धांतों के अनुरूप, प्रश्नम इस सर्वे का तमाम कच्चा डेटा यहां उपलब्ध कराता है, जिससे कि विश्लेषक और शोधकर्त्ता उसे सत्यापित करके, आगे विश्लेषण कर सकें.

(राजेश जैन एक एआई टेक्नॉलजी स्टार्ट-अप प्रश्नम के संस्थापक हैं, जिसका उद्देश्य राय एकत्र करने के काम को अधिक वैज्ञानिक, आसान, तेज़ और किफायती बनाना है. वो @rajeshjain पर ट्वीट करते हैं.)

(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें )

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