प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चुनाव में आखिरकार जाति कार्ड चल दिया है. गाय और मंदिर के नाम पर देश में ध्रुवीकरण, सर्जिकल स्ट्राइक के नाम पर सनसनी की राजनीति शायद उतनी प्रभावी नहीं रही. पहले चरण के चुनाव में मंदिर व सर्जिकल स्ट्राइक जैसे मुद्दों में जनता की सुस्ती को देखते हुए वह जातीय गोलबंदी में जुट गए हैं.
मोदी ने छत्तीसगढ़ के कोरबा में दिए गए भाषण में तेली समाज को अपने साथ एकजुट करने की कवायद में कहा कि गुजरात में छत्तीसगढ़ के साहू समाज को मोदी कहा जाता है, राजस्थान में राठौर और दक्षिण भारत में वन्नियार कहा जाता है और कांग्रेस पूरे समुदाय को चोर बता रही है. ऐसा करके जाहिर है कि उन्होंने साहू समाज की भावनाओं को उभारने का काम किया है.
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क्यों छत्तीसगढ़ को चुना
छत्तीसगढ़ मुख्य रूप से ओबीसी और आदिवासी बहुल इलाका है. शुरुआती दौर में कांग्रेस ने इस इलाके में ब्राह्मण नेताओं को उभारा. श्यामाचरण शुक्ल, विद्याचरण शुक्ल सहित तमाम दिग्गज कांग्रेसी इसी छत्तीसगढ़ से ही निकले हैं. अलग राज्य बनने के बाद कांग्रेस ने जब पूर्व आईएएस अजित जोगी को मुख्यमंत्री बना दिया तो भाजपा ने अन्य पिछड़े वर्ग के मतदाताओं को लुभाने की कवायद की. हालांकि भाजपा की रणनीति में भी उच्च पदों पर सवर्णों को रखा गया और पिछड़े वर्ग को दोयम दर्जे का ही रखा गया. लंबे समय तक राज्य में पिछड़े वर्ग ने भाजपा का साथ दिया और रमन सिंह सरकार बनी रही.
इस बीच कांग्रेस ने राज्य में पिछड़े वर्ग का नेतृत्व उभारना शुरू किया. उसे आंशिक शुरुआती सफलता मिली. मई 2013 में रायपुर से 350 किलोमीटर दूर दरभा घाटी माओवादियों के हमले में कांग्रेस के प्रमुख नेता मार दिए गए. उस दौर में छत्तीसगढ़ में तेजी से उभर रहे पिछड़े वर्ग के नेता और तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष नंद कुमार पटेल भी मारे गए. उसके बाद हुए चुनाव में राज्य में भाजपा को मामूली बढ़त के साथ जीत हासिल हुई.
लेकिन कांग्रेस ने नए सिरे से पिछड़े वर्ग को एकजुट करना शुरू किया और राज्य में भूपेश बघेल और ताम्रध्वज साहू सामने आए. भूपेश बघेल कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष बने तो ताम्रध्वज साहू को पार्टी के ओबीसी विभाग का अध्यक्ष बनाया गया. 2018 में हुए विधानसभा चुनाव में छत्तीसगढ़ में भाजपा बुरी तरह से हारी. पार्टी की जीत के बाद साहू और बघेल मुख्यमंत्री के प्रबल दावेदार बनकर उभरे. शुरुआत में ऐसा लगा कि दोनों की लड़ाई में टीएस सिंहदेव मुख्यमंत्री बन जाएंगे, लेकिन आखिरकार दोनों में सहमति बनी और बघेल मुख्यमंत्री बन गए. ताम्रध्वज कैबिनेट मंत्री बने.
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साहू समाज को टटोलने की कवायद
2014 के चुनाव में कांग्रेस राज्य में सिर्फ दुर्ग लोकसभा सीट जीतने में सफल हुई थी, जहां साहू ने भाजपा के कद्दावर नेता सरोज पांडे को मात दी थी. उसके बाद राहुल गांधी के खास बने ताम्रध्वज को पार्टी के साथ पिछड़े वर्ग को जोड़ने का काम दिया गया और वह पिछड़ा वर्ग प्रकोष्ठ के अध्यक्ष बने. उनका महत्व इससे भी समझा जा सकता है कि वह पिछड़े वर्ग की बैठकों में पार्टी अध्य़क्ष को आसानी से बुला लेते हैं और हाल के पिछड़ा वर्ग के सम्मेलन में राहुल ने घोषणा की कि पार्टी ने छत्तीसगढ़ और राजस्थान में पिछड़े वर्ग को प्रतिनिधित्व दिया और आने वाले दिनों में और ज्यादा प्रतिनिधित्व देने जा रही है. साथ ही कांग्रेस ने 2019 के अपने चुनाव घोषणापत्र में ओबीसी की करीब सभी मांगें शामिल कर लीं.
ताम्रध्वज के मुख्यमंत्री न बन पाने से साहू समाज में कांग्रेस को लेकर नाराजगी टटोलने और उसका लाभ उठाने की कवायद में प्रधानमंत्री ने साहू-मोदी भाई भाई कार्ड खेला. माना जाता है कि छत्तीसगढ़ में साहू समाज के 12-13 प्रतिशत लोग हैं और वे इस समय ताम्रध्वज के नेतृत्व में कांग्रेस के साथ एकजुट हैं.
ताम्रध्वज की साहू समाज में हनक इस बात से भी देखी जा सकती है कि मोदी के बयान का छत्तीसगढ़ के साहू जाति के संगठनों ने कड़ा विरोध किया और कहा कि ‘मैं भी चौकीदार’ अभियान का हिस्सा साहू समाज नहीं है और साहू समाज एक मेहनतकश, ईमानदार समाज है और छत्तीसगढ़ सहित पूरे देश में उसकी मिसाल मेहनतकश किसान, पढ़े लिखे वर्ग और ईमानदार समाज के रूप में की जाती है. उसका नरेंद्र मोदी के 5 साल के कार्यकाल की बदनामी से कुछ भी लेना देना नहीं है. साहू समाज को चौकीदार को चोर कहे जाने से कोई आपत्ति नहीं है.
महाराष्ट्र में साहू जाति से इतर मोदी का ओबीसी कार्ड
प्रधानमंत्री ने महाराष्ट्र में भी खुद को पीड़ित बताने की कोशिश की. वहां उन्होंने साहू, मोदी, राठौर को छोड़कर खुद को पिछड़ी जाति का बताते हुए कहा कि कांग्रेस ने पूरे पिछड़े समुदाय को गालियां दीं, साथ ही कहा कि पिछड़े वर्ग का होने की वजह से कांग्रेस उन्हें कई साल से बदनाम कर रही है.
मोदी ने 2014 के चुनाव प्रचार के दौरान मध्य उत्तर प्रदेश की जनसभा में खुद को निचले तबके का करार दिया था. हालांकि मायावती द्वारा पूछे जाने पर यह नहीं बताया कि वह किस पिछड़ी जाति से संबंधित हैं. प्रियंका गांधी द्वारा नरेंद्र मोदी की ‘नीच राजनीति’ पर टिप्पणी करने पर उन्होंने कहा कि मुझे नीच जाति का कहा जा रहा है. इससे पता चलता है कि नरेंद्र मोदी जाति का कार्ड लगातार खेल रहे हैं.
पिछले 5 साल से परेशान दलित और पिछड़े
मोदी के 5 साल के कार्यकाल में दलित पिछड़ों पर जमकर हमले हुए. विभिन्न भर्तियों में आरक्षण लागू न करने के मामले तो रहे ही, सीधे प्रधानमंत्री के अधीन आने वाले डीओपीटी ने प्रतिष्ठित आईएएस परीक्षा में चयनित सैकड़ों विद्यार्थियों की जॉइनिंग किसी न किसी वजह से जाति प्रमाण पत्र में गड़बड़ियां बताकर रोक ली. सिविल सेवा पंचाट और हाईकोर्ट से अभ्यर्थियों के पक्ष में फैसला आने के बाद मोदी सरकार वंचित परिवारों के इन अभ्यर्थियों को सुप्रीम कोर्ट में मुकदमे लड़ा रही है. यह मामला संसद में उठने की वजह से प्रधानमंत्री के संज्ञान में है. लेकिन इन 5 वर्षों के दौरान मोदी को अपने पिछड़े वर्ग की कभी याद नहीं आई.
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इसके अलावा पिछड़े वर्ग के लोग 200 पॉइंट रोस्टर, यूजीसी का वजीफा बढ़ाने, मंत्रिमंडल में प्रतिनिधित्व बढ़ाने, मोदी द्वारा सिर्फ सवर्णों को प्रमुख पदों पर नियुक्त करने को लेकर सवाल उठाते रहे, लेकिन उनके भीतर का ओबीसी कभी नहीं जागा. इसके अलावा आदर्श आचार संहिता लागू होने के बीच सरकार ने 9 पेशेवरों को लैटरल एंट्री के जरिए सीधे संयुक्त सचिव बना दिया और यह आरोप लगे कि उनमें से एक भी दलित, आदिवासी या पिछड़े वर्ग से नहीं है.
मोदी सरकार में दो वर्ग सबसे तबाह नजर आ रहे हैं- किसान और छोटे कारोबारी. इनमें ज्यादातर पिछड़ी जातियों के लोग हैं. पिछले 5 साल की तबाही से निराश किसान और छोटे कारोबारियों को लुभाने के लिए मोदी ने पहले चरण के चुनाव के बाद जाति बताने की कवायद शुरू कर दी है कि वे भी पिछड़े वर्ग के हैं.
(लेखिका राजनीतिक विश्लेषक हैं.)
Pm modi rang badalne wala insan hai
Jaise Lakshan Hain Tumhaare, Jis Propaganda Ki Tum Wakalat Karte Ho, Jis Tarah Tum Chhupke Se Iss Samaj me Jaatiwaad Ka Jeher Gholna Chaahte Ho, Jahaan Jaaoge Laat Jooton Ki Kami Nahi Hogi.