राजनीति और हास्य प्रहसन में सारा दारोमदार समय का इस्तेमाल पर ही निर्भर करता है. लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस चाल के इस्तेमाल में चूक गए हैं. आज उत्तर प्रदेश दो दुनिया में बंटा नजर आ रहा है. एक दुनिया में विपक्षी पार्टियां और किसान लखीमपुर खीरी में चार किसानों की बेरहम हत्या के खिलाफ आंदोलन कर रहे हैं. दूसरी तरफ, मोदी पूरी तरह चुप हैं और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सरकार की कई ‘उपलब्धियों’ को गिनाते हुए एक काल्पनिक दुनिया की तस्वीर पेश करने में व्यस्त हैं.
रविवार को आठ लोगों की मारे जाने के बाद से लखीमपुर खीरी उबल रहा है, मारे गए किसानों के परिजन मांग कर रहे हैं कि आंदोलनकारी किसानों को अपने वाहन से कुचलकर मार डालने वाले काफिले में केंद्रीय गृह राज्यमंत्री अजय मिश्र का बेटा आशीष मिश्र भी शामिल था. कांग्रेस की प्रियंका गांधी और रालोद के जयंत चौधरी समेत तमाम विपक्षी नेताओं ने सरकार को बचाव की मुद्रा अख़्तियार करने पर मजबूर कर दिया है और सरकार छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल समेत सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव तथा दूसरे नेताओं को राज्य में आने और लखीमपुर खीरी जाने से रोकने, उन्हें हिरासत में लेने जैसी कार्रवाई कर रही है.
लेकिन हमेशा की तरह अपनी दुनिया में खोए मोदी ‘आज़ादी@75 – नया शहरी भारत : शहरों का बदलता परिदृश्य’ नामक कार्यक्रम का उदघाटन करते हुए 35 मिनट के अपने भाषण में लखीमपुर खीरी के हादसे का भूले से भी जिक्र नहीं करते बल्कि उत्तर प्रदेश की योगी सरकार की ‘उपलब्धियों’ का बखान कर डालते हैं. हालांकि मोदी के लिए यह कोई असामान्य बात नहीं है, वे किसी दबाव में नहीं आते और अपना एजेंडा खुद ही तय करने में विश्वास रखते हैं लेकिन इस मामले में जिस दर्जे की बेशर्मी बरती जा रही है वह साफ दिख रही है. उत्तर प्रदेश में जो कांड सामने आया है उसके लिए प्रधानमंत्री मोदी से यही अपेक्षा थी कि जब वे उस राज्य के दौरे पर थे तो उस पर दुख और संवेदना जाहिर करते. यह नहीं तो कम-से-कम जश्न और आत्म-प्रशंसा के सुर में ‘सब चंगा सी’ वाला राग न अलापते.
यह भी पढ़ें: मोदी की टक्कर का कोई नहीं, पर उनके नक्शे कदमों पर चल तेज़ी से बढ़ रहे हैं योगी आदित्यनाथ
लखनऊ में मोदी
राज्यमंत्री मिश्र के बेटे ने आंदोलनकारी किसानों को ‘कुचलकर मारने’ का अपराध किया या नहीं; किसानों ने हिंसा की यह नहीं, यह सब जांच का मामला है. चश्मदीद के बयान तो मंत्री के बेटे का हाथ होने की ओर इशारा करते ही हैं, हादसे से पहले खुद मंत्री महोदय का भाषण सामने आ चुका है जिसमें वे किसानों को धमकी देते सुने जा सकते हैं. अब भाजपा इस तूफान से उबरने का उपाय कर सकती थी. लेकिन इस मामले का नतीजा जो भी निकले, फिलहाल मुद्दा यह है कि दिनदहाड़े अंजाम दिए गए इस हादसे में कई लोग मारे गए हैं और घटनास्थल से महज 150 किलोमीटर दूर एक सभा को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री ने इस त्रासदी की संवेदनहीन तरीके से उपेक्षा की, जो नहीं करनी चाहिए थी.
मोदी ने जो भाषण दिया उस पर गौर कीजिए. उन्होंने बताया कि प्रधानमंत्री आवास योजना उत्तर प्रदेश में किस तरह ‘सफल’ रही है, रियल एस्टेट नियमन प्राधिकरण का गठन कितना महान कदम था, सड़कों पर एलईडी की बत्तियां लगाने से पैसे की कितनी बचत हुई है, और असली बात यह है कि भाजपा की सरकार ने कितना शानदार काम किया है.
जो पार्टी कुछ महीने बाद चुनाव का सामना करने जा रही हो उसके लिए यह सब कतई गलत नहीं है, सिवा इसके कि यह गलत मौके पर किया गया जिससे न केवल संवेदनहीनता उजागर होती है बल्कि एक तरह का अहंकार भी प्रकट होता है जो किसी जनप्रतिनिधि को नहीं पालना चाहिए.
सक्रिय विपक्ष
लोगों की मौत के लिए योगी और मोदी की सरकार को जवाबदेह ठहराने की मांग कर रहे विपक्षी नेताओं को जिस तरह घटनास्थल तक जाने से रोका गया और हिरासत में लिया गया उससे साफ है कि स्थिति गंभीर है. जिस गेस्टहाउस में प्रियंका गांधी को हिरासत में रखा गया उसमें झाड़ू लगाकर प्रियंका ने, लखनऊ हवाई अड्डे पर धरने पर बैठकर भूपेश बघेल ने, पंजाब के मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी ने विरोध करके और जयंत चौधरी ने तीखा भाषण देकर विपक्ष की इस रणनीति को बखूबी लागू किया कि वह इस त्रासदी को सुर्खियों में बनाए रखना चाहता है. लेकिन मोदी ने लखनऊ में इसके बारे में चुप्पी साध कर और अपनी सरकार का महिमागान करके साफ कर दिया कि वे एजेंडा को ‘हड़पना’ चाहते हैं और वही सब करना चाहते हैं जिसमें वे माहिर हैं— भुलक्कड़ी, हठ और लीपापोती.
यह भी पढ़ें: मोदी को हराने का सपना देखने वालों को देना होगा तीन सवालों का जवाब, लेकिन तीसरा सवाल सबसे अहम है
मोदी की खासियत
नरेंद्र मोदी हमेशा अपने मन की करने वाले व्यक्ति रहे हैं. वे चीजों पर इस तरह खुल्लमखुला मुलम्मा चढ़ाकर पेश कर सकते हैं जैसा कोई नहीं कर सकता; और माफी मांगना या आलोचनाओं का सकारात्मक जवाब देना, आदि उन्हें अपनी कमजोरी उजागर करने वाली बातें लगती हैं.
लेकिन खुल्लमखुल्ला लीपापोती करना और असंवेदनशीलता में बारीक अंतर है. मोदी का लखनऊ का भाषण असंवेदनशीलता के खांचे में आता है. नये कृषि कानूनों को वापस न लेना अलग मामला है. नीति बनाना और उस पर टिके रहना सरकार का अधिकार है लेकिन जिस हिंसक कांड में आपका अपना मंत्री और उसका बेटा शक के दायरे में हो उसे सिरे से खारिज करना और उस घटना की खबरों को फीका करने के लिए आत्मप्रशंसा का सहारा लेना संवेदनशून्यता और उपेक्षा ही मानी जाएगी.
मोदी जब गुजरात के मुख्यमंत्री थे तभी से यह उनकी खासियत रही है. जो भी असुविधाजनक हो उसकी अनदेखी करो, केवल उसी पर ध्यान दो जो चुनाव में फायदा पहुंचाए, और अपने आलोचकों या विपक्ष को कभी यह सोचकर खुश होने का मौका मत दो कि उसने तुम्हें जवाब देने पर मजबूर किया. लेकिन सात साल से प्रधानमंत्री रहे मोदी से यह अपेक्षा तो की ही जा सकती है कि वे एक राजनेता की तरह व्यवहार करेंगे, सहानुभूति और विनम्रता के साथ पेश आएंगे.
इसका अर्थ यह नहीं है कि आप विपक्ष के आगे झुक रहे हैं. बात यह है कि प्रधानमंत्री एक भीषण कांड किस तरह प्रतिक्रिया करते हैं, बड़प्पन दिखाते हैं चाहे यह राजनीतिक रूप से असुविधाजनक क्यों न हो. भुक्तभोगी परिवारों से संवेदना प्रकट करना, तेज कार्रवाई और इंसाफ दिलाने की बात करना कमजोरी की निशानी नहीं होती, और न ही इसे विपक्ष के आगे झुकना कहा जा सकता है. यह तो शालीनता की मांग है. इससे फर्क नहीं पड़ता कि भाजपा को लगता है कि लखीमपुर खीरी कांड से चुनावी नुकसान हो सकता है. किसी प्रधानमंत्री को हर चीज को चुनावी चश्मे से नहीं देखना चाहिए. अगर मोदी को परिवार के बुजुर्ग की अपनी छवि पसंद है तो उन्हें इस छवि के अनुरूप खरा भी उतरना चाहिए, खासकर ऐसे मामलों में.
मोदी बेहद लोकप्रिय नेता हैं. जिस राज्य में कोई त्रासदी घट चुकी हो वहां उनके कद के नेता द्वारा पीठ ठोकने वाला भाषण देना जले पर नमक छिड़कने जैसी बात है. मरहम लगाना कभी नुकसान नहीं पहुंचाता, अहंकार जरूर नुकसानदायक होता है.
(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
यह भी पढ़ें: न गठबंधन, न सामंजस्य- यूपी कांग्रेस से सपा में शामिल हुए नेताओं की पार्टी छोड़ने की ये हैं वजहें