लगता है प्रधानमंत्री मोदी इस जोखिम से अवगत हो गए हैं कि सत्तावादी का टैग क्षति पहुँचाना शुरू कर सकता है।
मंगलवार को कर्नाटक में अपने भाषण के दौरान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने फिर से कांग्रेस की आलोचना का शमां बाधा
“नामदार बनाम कामदार” और राजवंशी बनाम व्यवसायी को लेकर नरेन्द्र मोदी कर्नाटक के चुनाव प्रचार में अपना दमखम दिखा रहे हैं।
मोदी का कांग्रेस को जनता के सामने गैर-लोकतांत्रिक रूप में पेश करने का विचार है, उनका कहना है कि कांग्रेसी जन्म से सत्ता प्राप्त करते हैं, उन्होंने मोदी की तरह कठिन मेहनत नहीं की है जो एक चाय वाले से देश के प्रधानमंत्री बन गए हैं।
कांग्रेस चाहती है कि कर्नाटक के मतदाता येदियुरप्पा और सिद्धारमैया के मध्य इस चुनावी लड़ाई को देखें, जिसमें कांग्रेस के मुख्यमंत्री हर तरह से आगे है। प्रधानमंत्री इस लड़ाई को मोदी बनाम राहुल बनाना चाहते हैं, इस खेल में भाजपा आगे है।
गैर-लोकतांत्रिक मोदी
वह एक तीर से दो निशाने लगाने की कोशिश कर रहे हैं। उनका पहला निशाना सिद्धारमैया और दूसरा निशाना गैर-लोकतांत्रिक के रूप में दिखने का जोखिम है।
मोदी ने कांग्रेस को स्वत्वाधिकारी, संभ्रान्त, धनी राजवंशी तथा स्वयं को एक नम्र व्यक्ति के रूप में प्रस्तुत किया है।
यह नरेन्द्र मोदी और राहुल गाँधी के मध्य जारी एक युद्ध का हिस्सा है, जिसमें वे एक दूसरे को गैर-लोकतांत्रिक घोषित करने की कोशिश कर रहे हैं।
मोदी पर पहले से ही इस बात को लेकर उंगलियाँ उठाई जाती हैं कि जो सोचते हैं उसको “मन की बात” में बोल देते हैं, लेकिन वह यह नहीं सुनते हैं कि लोग क्या कहते हैं। यह प्रयास गैर-लोकतांत्रिक शब्द के उच्चारण से कहीं अधिक तुच्छ है। महीनों से राहुल गाँधी नरेन्द्र मोदी को सत्तावादी बनाने की कोशिश कर रहे हैं। राहुल अपने लगभग सभी भाषणों में इसी बात पर चर्चा करने की कोशिश करते हैं। इसके कुछ उदाहरण निम्नलिखित हैं:
मोदी मोबाइल एप के साथ डेटा की गोपनीयता जैसे मुद्दों पर बोलते हुए उन्होंने कहा था कि “प्रधानमंत्री बिग बॉस थे, जो भारतीयों पर जासूसी करना पसंद करते थे।”
जब सत्ता में कांग्रेस के प्रदर्शन के बारे में राहुल गाँधी से एक गंभीर सवाल पूछा गया, तो उन्होंने उत्तर दिया, “मिस्टर नरेन्द्र मोदी ऐसा कभी नहीं करेंगे। आप लोगों ने जो मुझसे कहा है कि वह आपको मोदी जी के सामने कहने की कभी भी हिम्मत नहीं होगी। और मैं इस पर गर्व महसूस कर रहा हूँ।“
उसी समारोह में उन्होंने यह भी कहा किः “मैं एक ऐसा व्यक्ति हूँ जिसको उन लोगों ने प्यार करना सिखाया जो मुझे नापसंद करते हैं। यदि कोई व्यक्ति मेरा विरोध करता है तो मुझे उससे कोई दुश्मनी नहीं है। बस यही बात मुझको नरेन्द्र मोदी से अलग करती है।“
रविवार को दिल्ली में एक जन आक्रोश रैली को संबोधित करते हुए राहुल गाँधी ने “सत्य बनाम सत्ता पर हुँकार भरी।
पिछले साल गुजरात चुनावों के दौरान माल और ब्रिकी कर को लेकर राहुल गाँधी ने नरेन्द्र मोदी की तुलना शोले के गब्बर सिंह से की थी। और इस कर को गब्बर सिंह टैक्स के रूप में प्रस्तुत किया था।
कांग्रेस पार्टी के पूर्ण अधिवेशन के दौरान राहुल गाँधी ने कहा था कि, “मोदी जी अपने आप को मानव नहीं बल्कि भगवान का अवतार मानते हैं।“ आगे उन्होंने कहा कि, “भाजपा एक फैलाया हुआ डर है। प्रेस के लोग डरे हुए हैं, पहली बार मैंने सुप्रीम कोर्ट के जजों को न्याय के लिए जनता से गुहार लगाते हुए देखा है। आरएसएस और कांग्रेस के मध्य एक अंतर है – हम देश के सभी कानूनों का सम्मान करते हैं जबकि वे इसको समाप्त करना चाहते हैं। वे केवल एक कानून चाहते हैं जो आरएसएस है।“
उन्होंने स्वतंत्रता और भय पर अपनी बात को जारी रखते हुए कहा कि, “वे गौरी लंकेश और कलबुर्गी से कहते हैं कि अगर हमसे सवाल करोगे तो मारे जाओगे। वे हमारे ईमानदार व्यापारियों से चुप रहने और भ्रष्ट अधिकारियों को पैसे वसूलने की अनुमति देते हैं।“
राहुल ने भाजपा अध्यक्ष अमित शाह पर भी तंज कसते हुए कहा कि – भाजपाई एक हत्यारे को भाजपा अध्यक्ष के रूप में स्वीकार कर लेंगे लेकिन कांग्रेस में वह ऐसे व्यक्ति को स्वीकार नहीं करेंगे क्योंकि वे कांग्रेस को एक सर्वोच्च सम्मान में रखते हैं।“
उन्होंने यह भी बताया कि मीडिया द्वारा कांग्रेस को दी गई कम तवज्जोह के लिए वह मीडिया से नाराज नहीं थे। उन्होंने अपनी बात जारी रखते हुए कहा, – लेकिन जब आरएसएस द्वारा मीडिया पर हमला किया जाएगा तो कांग्रेस का हाँथ आपकी (मीडिया) रक्षा के लिए उठेगा।“
कांग्रेस ने मोदी सरकार को महाभियोग प्रस्ताव लाने के प्रयास में गैर-लोकतांत्रिक और गैर-सत्तावादी के रूप में चित्रित किया था। पार्टी ने विरोध में ‘सेव द संविधान’ अभियान की भी शुरुआतकी थी।
‘राहुल राजवंश‘
यह सब इन प्रयासों के कारण प्रकाश में है कि हमें राहुल पर मोदी द्वारा किए गए प्रहारों को पढ़ना चाहिए,जिसमें उन्हें खुद को आम आदमी बताते हुए राहुल को राजवंश का हकदार कहा है।
कांग्रेस, मोदी को गैर-लोकतांत्रिक मान रही है, जबकि मोदी अपने भाषणों में यह दिखाने की कोशिश कर रहे हैं कि वह एक लोकतांत्रिक हैं। पिछले कुछ महीनों में,उनके भाषणों में से अधिकांश भाषण लोकतंत्र के लिए एक निष्पक्ष संदर्भ के साथ शामिल हैं।
“सत्तावादी” कथा की सफलता पर मोदी शायद उस जोखिम के बारे में जानते थे जिसका वह सामना कर रहे हैं। चुनाव में बीजेपी की अविश्वसनीय जीत, लेकिन सबसे बड़ी पार्टी होने के बावजूद गठबंधन सरकार बनाने की मजबूरी, कुछ कानूनों पर सरकार की स्पष्टता की कमी और यहां तक कि फेक न्यूज पर स्मृति ईरानी के बयान – इन सभी चीजों और इसके बाद कुछ और भी कारणों के बावजूद मोदी सरकार अपने द्वारा बनाए रास्ते पर ही चलना पसंद करती है।
यदि “सत्तावादी” कथा सफल होती है, तो यह वह है जो ‘मोदीब्रांड’ को किसी भी समय पटखनी दे सकता है। भारतीयों ने अक्सर बगावत के लिए प्यार दिखाया है, हाल ही में 2011-2013 में हुई बगावत, जिसके लाभ का आनंद प्रधानमंत्री मोदी अभी भी ले रहे हैं।
और शायद यही कारण है कि प्रधानमंत्री चाहते हैं कि हम जान लें कि वह आलोचनाओं से प्यार करते हैं।उन्होंने लंदन में प्रसून जोशी के साथ बातचीत में कहा था कि”यदि लोकतंत्र में कोई विरोध ना हो, यदि कोई आलोचना ना हो, तो यह लोकतंत्र ही कैसा?” (विडंबना यह है कि सभी प्रश्न स्पष्ट रूप से मंचित किए गए थे।)”ये सिर्फ मेरे शब्द ही नहीं बल्कि मेरा दृढ़ विश्वास है।मुझे लगता है कि लोकतंत्र के बारे में सबसे सुंदर बात आलोचना ही है।”विचारों पर असामान्य अवधि अपना ध्यान केन्द्रित करती है।
हालांकि, उन्हें शिकायत थी कि कैसे रचनात्मक आलोचना को अनुसंधान की आवश्यकता है,ना कि आधारहीन आरोप की। उन्होंने कहा कि आलोचना का जवाब न देने के लिए हमेशा उनकी निंदा की जाती थी। उन्होंने कहा, “मैं आलोचना को इतनी गंभीरता से लेता हूं कि मैं इसे समझने और इस पर कार्य करने की कोशिश करता हूं। मेरा काम आपको चुप करना नहीं है। यह गलत तरीका होगा…….आपकी आलोचना मेरे लिए एक खजाना है, “एक सोने की खान की तरह।”
लोकतंत्र की प्रशंसा करते हुए, उन्होंने यह भी कहा कि यह केवल एक लोकतंत्र की ही दम थी कि एक चायवाला प्रधानमंत्री बन गया और बकिंघम पैलेस गया और वह रोज सुबह उठकर 1-2 किलों गालियाँ रोज खाते हैं।
प्रधानमंत्री, कांग्रेस को गैर-लोकतांत्रिक बताकर राहुल को शुभकामनाएं दे रहे हैं। वह और उनकी पार्टी एक दिन के उपवास पर रहे, यह आरोप लगते हुए कि कांग्रेस संसद को चलने (कार्य करने) से रोक कर लोकतंत्र का गला दबा रही। जब यह विपक्षी दल था जिसने मोदी सरकार पर संसद का कार्य न करने का आरोप लगाया था।
एक प्रसिद्ध भाषण में, जहाँ उन्होंने नेहरू के मंत्रियों से कांग्रेस की गलतियों की गिनती शुरू की,उन्होंने कहा कि कांग्रेस को यह नहीं सोचना चाहिए कि उसने भारत को लोकतंत्र दिया है। उन्होंने पूर्वी भारत में लिच्छवी शासन की ‘स्वर्ण युग’ और कन्नड़ सामाजिक सुधारक बसवा की शिक्षाओं का हवाला देते हुए कहा कि लोकतंत्र “भारतीयों के खून में है।“
जैसा कि मोदी एक और चुनाव में अपना सिक्का जमाने के लिए मंगलवार को बसवा की भूमि पर गए थे, उन्होंने खुद को एक आम आदमी के रूप में संदर्भित किया, जिसे अभिजात वर्ग के लोग, गाँधीजी के स्वत्वाधिकारी को सत्ता में नहीं देख सकते हैं: “मैं आपके सामने कैसे बैठ सकता हूं (राहुल)? क्योंकि आप एक नामदार आदमी हैं और हम एक कामदार (आप एक प्रसिद्ध परिवार से हैं और हम मजदूर वर्ग से हैं)। हम सभ्य कपड़े पहनने में भी सक्षम नहीं हैं। हमारे जैसे छोटे लोग आपके जैसे बड़े लोगों के सामने बैठने का सपना कैसे देख सकते हैं?”
राहुल चाहते हैं कि हम मोदी को तानाशाह के रूप में देखें। मोदी चाहते हैं कि हम राहुल को सामंती शासक के रूप में देखें। कॉफी-टॉफी-कॉफी-टॉफी जैसे तर्क-वितर्क के लिए उनके पास 12 महीने हैं।