मेहुल चोकसी ने टैक्स बचाने वाले देश कैरेबियन एंटीगुआ की नागरिकता ली। क्या भीड़ के हाथों मरनेवाले किसी व्यक्ति के पास यह विकल्प था?
मोहम्मद अख़लाक़। पहलू खान। रकबर खान। नीलोत्पल दास । अभिजीत नाथ। हाफ़िज़ जुनैद। रूक्मिणी।
भीड़ द्वारा पीट पीटकर जान से मार दिए गए ये लोग भारत की बदहाल व्यवस्था के शिकार हुए हैं, भले ही उनपर पशु तस्करी, गोमांस खाने या बच्चा चोरी के आरोप लगाए गए हों।
अब तो रईसों को भी उनका दर्द महसूस होने लगा है।
बैंक फ्रॉड के आरोपी हीरा व्यापारी मेहुल चोकसी ने मुम्बई की एक कोर्ट में अपने ऊपर लगे सारे गैर जमानती आरोप वापस लेने की अपील की है। उन्होंने भारत में “भीड़ द्वारा पीटकर मार दिए जाने की घटनाओं में हो रही वृद्धि” का हवाला देते हुए कहा कि अगर उन्हें भारत लौटने को मजबूर किया गया तो उनकी जान को खतरा हो सकता है।
यह आश्चर्य की बात नहीं, चोकसी मूल रूप से एक व्यवसायी हैं। उन्हें अच्छी तरह पता है कि कैसे एक राष्ट्रीय त्रासदी को अपने फायदे के लिए इस्तेमाल करना है। उन्हें पता है कि यह सही समय है क्योंकि लिंच मॉब अभी अखबारों के पहले पन्ने से लेकर संसद तक में चर्चा का विषय बने हुए हैं।
वह हीरों का व्यापार करते हैं, गायों का नहीं, यह केवल एक छोटी सी बात है। आखिर यह बेशकीमती माल है।
भारत के उच्चवर्गीय रईसों के लिए सब कुछ मान्य है। हर परिस्थिति को उनके लाभ के लिए तोड़ा-मरोड़ा जा सकता है।
जब भारत सरकार ने विजय माल्या को प्रत्यर्पित करने की कोशिश की तब उनके वकीलों ने यूके की एक कोर्ट में दलील दी थी कि भीड़ भाड़ एवं गंदगी वाली भारत की जेलों में उन्हें रखना उनके मानवाधिकारों का हनन होगा। आखिरकार “किंग ऑफ गुड टाइम्स” रहे विजय माल्या के साथ बुरा व्यवहार तो नहीं कर सकते न, जेल में भी नहीं। दूसरी समस्या थी कि भारत में माल्या का मीडिया ट्रायल किया जाएगा।
यह एक जांची-परखी रणनीति है।
सट्टेबाज़ संजीव चावला को मानवाधिकार नियमों के अंतर्गत जेल से तब रिहा कर दिया गया जब विशेषज्ञों ने कहा कि तिहाड़ जेल में “भीड़भाड़ एवं हिंसा के अलावा कैदियों के साथ बुरा व्यवहार “ होता है। कोर्ट ने कैदियों के बीच होनेवाली हिंसा के साथ साथ स्वास्थ्य संबंधी सुविधाओं का मुद्दा तो उठाया ही, साथ ही यह सवाल भी पूछा “कि क्या शौचालय सुविधाएं साझे में होंगी? अगर हां तो वे सुविधाएं क्या हैं?”
भारत की समुद्री सीमा के अंदर हथियार के साथ पकड़े गए ब्रिटिश (चेन्नई सिक्स के नाम से मशहूर) नाविकों में से एक ने कोर्ट को दिए अपने बयान में खुले शौच, चूहों, तिलचट्टों एवं सांपों का रोना रोया। कभी कभी तो ऐसा लगता है कि वे जेल की बजाय “बेस्ट एक्जॉटिक मेरीगोल्ड होटल” के ट्रिप एडवाइजर रिव्यू पर बातचीत में लगे हों।
इसी तरह मनी लॉन्ड्रिंग एवं धोखाधड़ी के एक अन्य आरोपी नीरव मोदी भी यही रास्ता अपनाएंगे, ऐसा लगभग तय है। उनके वकील ने तो यहां तक कहा है कि “अगर हमें ऐसा लगता है कि बिना मीडिया ट्रायल के एक पारदर्शी जांच होगी तो आप उनके उपस्थित होने की उम्मीद कर सकते हैं।” अन्य खबरों के अनुसार मोदी यूके से राजनैतिक शरण मांग सकते हैं क्योंकि उन्हें भारत में अपनी जान का डर है।
वकील मनुराज शुनमुगासुन्दरम एवं बैरिस्टर-ऐट-लॉ मुथुपंदी गणेशन लिखते हैं कि भारत सरकार द्वारा उत्पीड़न एवं अन्य अमानवीय, क्रूर एवं अपमानजनक दंडों के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र द्वारा लाये गए प्रस्ताव को मंजूरी न दिए जाने के कारण ही ऐसी परिस्थिति उत्पन्न हुई है जिसका फायदा उठाकर माल्या एवं चावला जैसे लोग प्रत्यर्पण से बच निकलते हैं। इसका एक उपाय तो यह है कि एक समझौते के तहत माल्या जैसों के लिए एक विशेष जेल बनाई जाए, जैसा केन्या ने व्यवसायी यगनेश देवानी के मामले में किया था।
इसमें कोई संदेह नहीं है कि भारत में जेल सुधारों की जरूरत है, और जेलों की स्थिति भयानक रूप से बुरी है। हम सबने सेक्रेड गेम्स देखा है। इसके बावजूद हालात देखकर यह तो लगता ही है कि भारत के सुपर-रईस खुद को कानून से ऊपर मानते हैं। चाहे उनपर करोड़ों के गबन का आरोप ही क्यों न लगा हो लेकिन फिर भी कानून एवं भीड़भाड़ , चूहों एव तिलचट्टोंं से भरी भारतीय जेलें आम आदमियों के लिए हैं, उन रईसों के लिए नहीं। और अगर वे संजय दत्त की तरह किसी तरह जेल चले भी जाएं तो उनपर पूरी की पूरी “रिच ब्वाय” फिल्में बनती हैं ताकि हम यह देखकर दुखी हो सकें कि इन बेचारों ने किस तरह जाम पड़े शौचालयों एवं खाने में मिली मक्खियों का सामना कर अपनी जान बचाई थी।
सुषमा स्वराज भारतीय जेलों की इस बदनामी से नाखुश हैं । उन्होंने अंग्रेजों को याद दिलाया कि ये वही जेलें थीं जिनमें उन्होंने किसी समय महात्मा गांधी और जवाहरलाल नेहरू को कैद किया था। (अंततः, नेहरू वर्तमान सरकार के किसी काम तो आये)। लेकिन ऐसा भी नहीं है कि ब्रिटिश सरकार शर्मिंदा होकर माल्या को भारत को सौंप देगी। 1992 में की गई प्रत्यर्पण संधि के बावजूद आजतक केवल एक व्यक्ति का सफलतापूर्वक प्रत्यर्पण हो पाया है।
यह आश्चर्य की बात नहीं है कि ये खाये अघाये रईस शक्तिशाली कानूनी फर्मों की मदद से कानून की हर कमी का भरपूर फायदा उठाते हुए बच निकलना चाहेंगे। लेकिन मेहुल चोकसी एक नए निचले स्तर पर हैं क्योंकि वह भारत के कुछ सबसे पीड़ित एवं वंचित लोगों के कंन्धों पर रखकर अपनी बंदूक चला रहे हैं।
ये गरीब किसान हैं जो गोरक्षकों के भेष में आतंक मचा रहे गुंडों एवं लुटेरों से बचने की कोशिश में लगे हैं। ये ऐसे लोग हैं जो अगर गाय के साथ दिख भी जाएं तो गोरक्षकों को उन्हें चोट पहुंचाने, यहां तक कि जान से मारने की भी खुली छूट है। ये वह लोग हैं जिनकी भीड़ पीट-पीटकर हत्या कर देती है और जब इनके हत्यारे बेल पर बाहर निकलते हैं तो सरकार के मंत्री उनका स्वागत मालाएं पहनाकर करते हैं। यह वे लोग हैं जिनका जुर्म केवल इतना है कि वे अजनबी हैं और जिस गांव में रह रहे हैं वहां की भाषा नहीं बोल सकते। या फिर यह कि वे बच्चों से उस वक़्त बात करते दिखते हैं जब व्हाट्सऐप पर बच्चा चोरी की अफवाहें फैलाई जा रही हैं। उनकी हत्या राजमार्गों से लेकर गांवों की पगडंडियों एवं भीड़ भरी रेलगाड़ियों में की गई है।
दूसरी तरफ, चोकसी एक जेट विमान में देश से बाहर उड़ गए, भले ही उनपर पंजाब नेशनल बैंक को 2 अरब डॉलर का चूना लगाने का आरोप क्यों न लगा हो। यह संभव है कि चोकसी को अपनी रईसी के घमंड में यह लगता हो कि कानून, कतारें, आयकर संबंधित नियम एवं जेल के नियम उनपर लागू नहीं होते और वे पैसे के बल पर हर चीज़ का ‘डीलक्स’ संस्करण खरीद सकते हैं। लेकिन चोकसी इससे आगे बढ़ चुके हैं- वे भीड़ का शिकार बने लोगों की मौतों का फायदा उठाकर अपने खिलाफ निकला वारंट रद्द कराना चाहते हैं जोकि एक निहायत ही अश्लील हरकत है।
यह इस उच्चवर्गीय हकदारी का एक नंगा सुबूत है। यह ऊना के उन पीड़ितों का मज़ाक उड़ाना हुआ जिन्हें कोड़े मारे गए। चाहे हैदराबाद के उस साफ्टवेयर इंजीनियर का मामला हो जिसे बच्चों को चाकलेट खिलाने के जुर्म में पीट दिया गया हो या श्रीनगर में अपनी ड्यूटी निभा रहे पुलिस अफसर का, चोकसी इनका फायदा उठाकर कानून से बचने में लगे हैं।
भारत में लिंच मौब्स के डर से थर थर काँपनेवाले चोकसी ने कैरीबियाई कर हेवन एंटिगा की नागरिकता ली है।क्या इन लिंच मॉब के पीड़ितों, जिनके लिए चोकसी खून के आंसू बहा रहे हैं, के पास कभी भी यह विकल्प था?
संदीप रॉय एक पत्रकार, स्तंभकार और एक लेखक हैं