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Friday, 22 November, 2024
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इमरान खान की सत्ता को मौलाना की चुनौती लेकिन पीटीआई खूनी उदारवादियों को दोषी ठहराने में व्यस्त

इमरान इतिहास को जिस नजरिए से देखते हैं उसके मुताबिक, खून के प्यासे उदारवादी फासिस्टों ने गांवों पर बमबारी, ड्रोन से हमले और अमेरिकी नीतियों का समर्थन किया, जिनमें ‘दहशतगर्दी के खिलाफ जंग’ भी शामिल है.

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इन दिनों इस्लामाबाद में जो कुछ हो रहा है वह एक आंदोलन और एक मेले के बीच जैसा कुछ है, और वज़ीरे आज़म इमरान खान से गद्दी छोड़ देने को कहा जा रहा है. पाकिस्तान सरकार कह रही है यह आखिरी बात तो होने से रही, भले ही आंदोलन जारी रहे और वह छोटे-मोटे झटके देता रहे. जब मौलाना फजलुर रहमान की तकरीर नाकाबिले-बर्दाश्त (आप जानते हैं किसे) की हद तक पहुंच जाती है तो उसे सेंसर कर दिया जाता है.

वैसे, कुछ दिनों पहले मौलाना के चेहरे को टेलीविज़न के लिए जिस तरह प्रतिबंधित कर दिया गया उसके मद्देनजर अब यह पाकिस्तान के लिए कोई खबर जैसी चीज़ नहीं रह गई है. आज़ादी मार्च में भाग लेने वालों को अक्सर नाचते हुए, झूलों पर झूलते हुए, कबड्डी खेलते हुए, जूडो-कराटे की प्रैक्टिस करते देखा जाता है. ऐसा लगता है कोई धरना ओलंपिक चल रहा हो, बिना महिलाओं के. अलबत्ता, नज़र इसके इनाम- इमरान खान से आज़ादी- पर टिकी है.

धरना अपने सातवें दिन में पहुंच गया है और इसकी अगुआई रहमान की जमीअत उलेमा-ए-इस्लाम (एफ) कर रही है जिसमें उसे विपक्षी दलों- खैबर पख्तूनख्वा की अवामी नेशनल पार्टी, पशतूनख्वा मिल्ली अवामी पार्टी, पाकिस्तान मुस्लिम लीग (नवाज़) और पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी- का साथ हासिल है. इन सबकी विचारधाराएं भले अलग हों मगर वे एक बात पर एकराय हैं कि इमरान खान एक ‘सेलेक्टेड’ वजीरे-आजम हैं.

वापस 2014 में

ऐसा लगता है कि हम फिर 2014 में हैं, और कोई इमरान खान किसी कंटेनर पर खड़े होकर वजीरे आज़म से कह रहे हैं- आप घर लौट जाओ! इमरान की पीटीआई को यह सब कतई पसंद नहीं आ रहा, न ही वह इस तुलना को पसंद कर रही है. मौलना यह नहीं कह रहे कि वे बस अभी नया पाकिस्तान बना डालेंगे ताकि वे निकाह कर सकें, और न ही वे यह कह रहे हैं कि उनके विरोधियों की सलवार गीली हो रही है. आखिर आप बर्गर की तुलना हलवे से कैसे कर सकते हैं? उनकी आज़ादी का तराना भले यह हो कि ‘मौलाना आ रहा है’, लेकिन पीटीआई ने ‘आ रहा है’ को ज्यों का त्यों नहीं लिया है.


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इमरान का पूरा मंत्रिमंडल अचानक पाकिस्तानियों को मौलवी राज कायम होने का डर दिखाने लगा है. एक सरकार जो अपने अवाम से ‘मदीने का राज’ कायम करने का वादा कर रही थी, वह एक मजहबी पार्टी को लेकर डरी हुई है. वे इमरान द्वारा मजहब के ‘अच्छे’ इस्तेमाल के उलट मौलाना द्वारा मजहब के ‘बुरे’ इस्तेमाल को लेकर भी फिक्रमंद है.
लेकिन पाकिस्तान के लोग यह नहीं भूले हैं कि इमरान ने वोट के लिए धुर दक्षिणपंथियों की किस तरह लल्लोचप्पो की थी और कहा था कि ‘हम आर्टिकल 295सी (ईशनिन्दा के लिए मौत की सज़ा देने वाले कानून) के हक में हैं और इसका बचाव करेंगे’ और गद्दी पर बैठने के बाद आप विश्व बिरादरी को यह बताते हैं कि आपकी सरकार ने आसिया बीबी को (जिन्हें उस कानून के कारण नुकसान उठाना पड़ा जिसका आप बचाव कर रहे थे) किस तरह रिहा किया. यही तो सही है.

उदारवादियों पर तोहमत

लेकिन असली दिलचस्प बात तो यह है कि दक्षिणपंथी मजहबी पार्टी को कौन समर्थन दे और कौन न दे, इस बहस में इमरान और उनके समर्थकों को एक बार फिर अपने हमलों का निशाना मिल गया है- वह है खूनी उदारवादी. बीते दौर के, खून के प्यासे उदारवादी भोलेभाले इमरान की नींद हराम करने को लौट आए हैं. उनसे नफरत करो, उन पर तोहमत जड़ो, और पाकिस्तान में जब भी जो भी गलत हुआ उसके लिए उन्हें जिम्मेदार ठहराओ. आखिर ‘खूनी उदारवादी’ का तमगा हासिल करने के लिए उन्होंने कितने खून किए होंगे? इससे भी अहम सवाल यह है कि इन उदारवादियों की दरअसल कितनी आबादी होगी पाकिस्तान में? जो भी हो, इन गिने-चुने उदारवादियों को, जिन्हें कोई सियासी प्रतिनिधित्व भी नहीं हासिल है, हर गलती के लिए जवाबदेह ठहराया जा रहा है.

सवाल उठाया जा रहा है कि जब मौलाना ‘खतम-ए-नबूवत’ (पैगंबर के ओहदे को अंतिम मानना) के बचाव की बात कर रहे हैं, तब ये उदारवादी कहां हैं? जवाब: वे वहीं हैं जहां वे तब थे जब इमरान वोट की खातिर उसी को बचाने की बात कर रहे थे. वे कहते हैं कि मौलाना ने इमरान को यहूदी या यहूदी एजेंट कहा है. तो क्या ये उदारवादी इसका विरोध करेंगे? उनका कहना है कि आखिर ये उदारवादी तभी आवाज़ उठाते हैं जब इमरान मौलाना को यहूदी या भारतीय कहते हैं. इन चंद लोगों से, जिन्हें खून के प्यासे कहा जा रहा है, कितनी ज्यादा उम्मीदें हैं!

तालिबान खान

इतिहास के बारे में इमरान का जो नज़रिया है उसके मुताबिक, खून के प्यासे उदारवादियों ने ही गांवों पर बमबारी, ड्रोन हमलों, और ‘दहशतगर्दी के खिलाफ जंग’ समेत अमेरिकी नीतियों का समर्थन किया. वे पाकिस्तान के कबाड़ हैं.

हकीकत यह है कि इमरान ने ही दहशतगर्दी के खिलाफ जंग में शामिल होने के पूर्व फौजी हुक्मरान जनरल परवेज़ मुशर्रफ के फैसले का समर्थन किया था. उन्होंने ‘होली वार’ करने के लिए तालिबान का कई बार समर्थन किया था, वे तालिबान कमांडर वली-उर-रहमान के मारे जाने पर गुस्सा भी हुए थे और उसे ‘अमनपसंद’ कहा था, और यह भी कहा था कि तालिबान को पेशावर में अपना दफ्तर खोलने की इजाजत दी जाए. इन तमाम बातों के कारण इमरान को ‘तालिबान खान’ की उपाधि दी गई थी. तालिबान से बात करने का उनका सपना अंततः साकार होने जा रहा है- लेकिन ‘खूनी उदारवादी’ यह नहीं चाहते. अपने नेता के संकेत पर संसदीय कार्य मंत्री अली मुहम्मद खान ने भी कहा है कि जो उदारवादी पाकिस्तान को एक सेक्यूलर मुल्क बनाना चाहते हैं वे अपने रास्ते बदल लें या मुल्क छोड़ दें.

इमरान की विरासत

इमरान की पार्टी पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) कहती है कि हमें केवल दाढ़ी वालों से सावधान रहना चाहिए, बिना दाढ़ी वालों से नहीं. लेकिन बिना दाढ़ी वाले उन लोगों का क्या किया जाए, जिनका इतिहास प्रतिगामी काम करने का रहा है? आखिर, पीटीआई को अक्सर आधुनिक जमात-ए-इस्लामी कहा जाता है. वह हत्यारे मुमताज़ कादरी का और बाल विवाह का समर्थन करती है, स्कूली लड़कियों को उनकी सुरक्षा के लिए बुर्का पहनाती है और महिलाओं के अधिकारों की रक्षा के विधेयक का विरोध करती है. फिर भी, बिना दाढ़ी वाले इमरान खुद को सच्चा उदरवादी कहते हैं.


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संकर नस्ल वाली यह सरकार पिछले 14 महीने के अपने कामकाज के चलते खुद को मुश्किल में पा रही है. देश में, भ्रष्टाचार को खत्म करने के नाम पर बदले की राजनीति चल रही है, महंगाई जिस तरह बढ़ रही है, नाराज बड़े व्यवसायी सेना प्रमुख से मदद मांग रहे हैं, मीडिया पर रोक लगी है और असहमति की गुंजाइश जिस कदर सिकुड़ रही है, वे सब इस बात की तस्दीक करते हैं. लेकिन इमरान ज़ोर देकर कह रहे हैं कि फौज उनके साथ है.

विदेश के मोर्चे पर, जितना कम कहा जाए उतना बेहतर. यहां तक कि संयुक्त राष्ट्र महासभा में इमरान के भाषण से वह सब हासिल नहीं हुआ जिसका वादा किया गया था. अब सऊदी अरब और ईरान के बीच मध्यस्थता का क्या हुआ, यह मत पूछिए. अब एकमात्र उम्मीद इस्लामिक टेलीविज़न चैनेल से है, जिसे पाकिस्तान रीसेप तय्यिप एर्दोगन की टर्की और महातिर बिन मोहम्मद के मलेशिया के साथ मिलकर शुरू करने की योजना बना रहा है. अगर यह कामयाब रहा तो इसे इमरान की विरासत माना जाएगा.

(लेखिका पाकिस्तान की एक स्वतंत्र पत्रकार हैं. वह @nailainayat हैंडल से ट्वीट करती हैं. यहां व्यक्त विचार उनके निजी हैं.)

(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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