एक बार फिर महिलाओं के विवाह की आयु का मुद्दा सुर्खियों में है. इस बार उच्चतम न्यायालय के पास एक मुकदमा आया है जिसमें सवाल उठा है कि मुस्लिम लॉ के तहत रजस्वला की आयु, जो समान्यत: 15 साल है, पर पहुंचने वाली युवती क्या विवाह योग्य है. यह सवाल इसलिए अधिक महत्वपूर्ण है कि शीर्ष अदालत पहले ही यह व्यवस्था दे चुकी है कि 18 साल की कम आयु की युवती, चाहे वह पत्नी ही क्यों नहीं हो, के साथ यौन संबंध स्थापित करना बलात्कार की श्रेणी में आयेगा.
निकाह ‘शून्य घोषित’
यही नहीं, भारतीय दंड संहिता और दंड प्रक्रिया संहिता से इतर यौन अपराधों से बच्चों को संरक्षण कानून ‘पोक्सो के तहत 18 साल से कम आयु के बच्चों के साथ यौन संबंध बनाना या उनसे यौन हिंसा करना दंडनीय अपराध है और इसके लिये उम्र कैद तक की सजा हो सकती है.
न्यायालय में आया मामला 16 साल की मुस्लिम युवती का है जिसने अयोध्या में इसी साल अपनी मर्जी से एक युवक से निकाह कर लिया था. अयोध्या की निचली अदालत ने इस निकाह को ‘शून्य घोषित’ करते हुये युवती को 18 साल की होने तक नारी निकेतन में भेज दिया. इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने भी निचली अदालत के फैसले पर अपनी मुहर लगा दी.
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इस युवती की दलील है कि मुस्लिम ला के प्रावधानों के तहत 15 साल की आयु में वह रजस्वला (मासिक धर्म) हो गयी थी और इसलिए वह अपनी मर्जी से अपनी पसंद के किसी भी व्यक्ति के साथ विवाह करने का निर्णय लेने में सक्षम है. यह युवती चाहती है कि उसे नारी निकेतन से मुक्त किया जाये और अपने शौहर के साथ रहने की इजाजत दी जाये. क्योंकि, अदालतों के फैसलों से उसके जीने और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के मौलिक अधिकारों का हनन होता है.
न्यायमूर्ति एन वी रमण की अध्यक्षता वाली पीठ ने इस लड़की याचिका पर उत्तर प्रदेश सरकार को नोटिस जारी कर उससे जवाब मांगा है.
हालांकि दिल्ली उच्च न्यायालय सहित कई उच्च न्यायालयों ने 15 साल की मुस्लिम युवती द्वारा अपनी मर्जी से किसी व्यक्ति से शादी करने को वैध ठहराया है, लेकिन उच्चतम न्यायालय ने बाल विवाह पर अंकुश लगाने के इरादे से 11 अक्टूबर, 2017 के फैसले में भारतीय दंड संहिता की धारा 375 में प्रदत्त अपवाद-2 की भाषा में बदलाव कर दिया और इसके अनुसार इस अपवाद को इस तरह पढ़ा जाना चाहिए कि एक व्यक्ति द्वारा अपनी पत्नी, जो 18 साल से कम आयु की नहीं है, के साथ यौन संबंध बनाना बलात्कार नहीं है.
न्यायमूर्ति मदन बी लोकूर और न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता की पीठ ने अपने फैसले में स्पष्ट किया है कि ‘उनकी राय में 18 साल से कम आयु की लड़की के साथ यौन संबंध बनाना बलात्कार है, चाहें वह विवाहित हो या नहीं.’
‘न्यायालय ने तो यह भी कहा कि भारतीय दंड संहिता की धारा 375 में प्रदत्त अपवाद अनावश्यक है और यह विवाहित बालिका और अविवाहित बालिका के बीच कृत्रिम अंतर स्थापित करता है और इसका किसी भी अस्पष्ट लक्ष्य हासिल करने से कोई तार्कित औचित्य नहीं है.’
न्यायालय ने यह भी कहा था कि इस तरह का कृत्रिम विभेद पक्षपातपूर्ण है और निश्चित यह बालिकाओं के सर्वश्रेष्ठ हित में नही है. न्यायालय ने कहा था कि इस तरह के विभेद से संविधान के अनुच्छेद 15:3 और 21 का ही नहीं बल्कि अंतरराष्ट्रीय कंवेन्शनों के प्रति हमारी प्रतिबद्धता का भी उल्लंघन करता है.
बाल विवाह रोकथाम कानून
निश्चित ही 18 साल से कम आयु की लड़की से, चाहे वह 15 साल की आयु में रजस्वला हो गयी हो और उसके साथ शादी की गयी हो, शारीरिक संबंध स्थापित करना अपराध के दायरे में आयेगा. मुस्लिम लॉ के तहत भले ही 15 साल की लड़की को अपने बारे में निर्णय लेने में सक्षम हो लेकिन सवाल यह है कि क्या वह विवाह करने और इससे जुड़े दूसरे पहलुओं को समझने में परिपक्व है? क्या उसके शरीर में मां बनने की सारी क्षमतायें हैं? क्या वह इतनी अल्पायु में गर्भवती होने की स्थिति से इससे जुड़ी परिस्थितियों को समझने में परिपक्व है?
किसी भी युवक के प्रति आकर्षण एक बात है लेकिन उससे शादी करके घर बसाना और फिर वैवाहिक जिम्मेदारियां, जिसमें मां बनना भी शामिल है, एकदम अलग चीज है और हमारे देश का कानून 18 साल से कम आयु की लड़की के विवाह की अनुमति नही देता है और अगर विवाह हो भी जाये तो ऐसी लड़की साथ शारीरिक संबंध बनाना अकेले पोक्सो कानून के तहत ही दंडनीय अपराध होता है.
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इस संबंध में हमें यह भी ध्यान रखना होगा कि हमारे देश में अक्षय तृतीया के दिन बड़ी संख्या में बाल विवाह होते थे लेकिन सरकार ने इस कुप्रथा पर अंकुश लगाने के लिये बाल विवाह रोकथाम कानून बनाया. यह कानून बनने के बाद देश में बाल विवाह की कुप्रथा पर काफी हद तक अंकुश पाने में सफलता मिली है.
न्यायालय की यह व्यवस्था निश्चित ही इतनी कम आयु की लड़कियों की शारीरिक परिपक्वता और उनकी प्रजनन क्षमता की ओर ही नही बल्कि कम आयु की लड़कियों से शादी की आड़ में उनकी तस्करी जैसी सामाजिक समस्या की ओर भी इशारा करती है.
न्यायाधीशों ने तो अपने फैसले में यहां तक कहा कि बालिका के साथ विवाह करके यदि उससे शारीरिक संबंध स्थापित किया जाता है तो ऐसी स्थिति में उसके गर्भवती होने की पूरी संभावना है और उसका शरीर इसके योग्य नहीं होने के बावजूद वह बच्चे को जन्म देगी. पेश दस्तावेजों से पता चलता है कि कम आयु की लड़की के बच्चे को जन्म देने के दौरान ही मृत्यु होने के साथ ही नवजात शिशु की म्त्यु की संभावनायें बहुत अधिक होती हैं.
18 साल से कम उम्र से शारीरिक संबंध- बलात्कार
न्यायालय की इस व्यवस्था से उसकी मंशा स्पष्ट है कि 18 साल से कम आयु की पत्नी के साथ यौन संबंध स्थापित करना बलात्कार के दायरे में आयेगा.
न्यायालय को इस मामले में यौन अपराध से बाल संरक्षण कानून के प्रावधानों पर भी विचार करना होगा क्योंकि इस कानून के तहत 18 साल से कम आयु की लड़की के साथ यौन संबंध बनाना अपराध है और इसके लिये सात साल से लेकर उम्र कैद तक की सजा का प्रावधान है.
दूसरे शब्दों में यह कहा जा सकता है कि भारतीय दंड संहिता की धारा 375 में प्रदत्त अपवाद के आधार पर पति भले ही पत्नी के रूप में कम उम्र की लड़की से यौन संसर्ग को बलात्कार के दायरे में नही आने की दलील दे लेकिन वह पोक्सो कानून के दायरे से कैसे बचेगा.
पोक्सो कानून के प्रावधानों में 18 साल से कम आयु के बच्चों की गरिमा और अधिकारों को मान्यता देने और उनका सम्मान करने पर जोर देता है. इस कानून की धारा तीन, जो यौनाचार, और धारा पांच, जो शारीरिक संबंध स्थापित करने में हिंसाः से संबंधित है. इन प्रावधानों के मद्देनजर विशेष अदालत को यह मानना होगा कि व्यक्ति ने ऐसा अपराध किया है या करने का प्रयास किया है.
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वैसे भी पोक्सो कानून की धारा 42-ए भारतीय दंड संहिता सहित किसी भी अन्य कानून के प्रावधानों के अतिरिक्त है.
अब चूंकि देश भारतीय दंड संहिता और दंड प्रक्रिया संहिता से शासित होता है और यौन अपराधों से बच्चों को संरक्षण कानून ‘पोक्सो’ इन संहिताओं के प्रावधानों से इतर है, इसलिए मुस्लिम लॉ के तहत 15 साल की आयु की युवती के इस तरह से विवाह करने और उसके पति द्वारा उससे शारीरिक संबंध स्थापित करने की वैधता के सवाल पर शीर्ष अदालत को फैसला करना होगा.
क्या मुस्लिम लॉ के अंतर्गत 15 साल की उम्र की लड़की से विवाह करना और उससे शारीरिक संबंध स्थापित करना भारतीय दंड संहिता और पोक्सो कानून के प्रावधानों के तहत दंडनीय अपराध है या नही? क्या मुस्लिम लॉ इन कानून से परे है?
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं .जो तीन दशकों से शीर्ष अदालत की कार्यवाही का संकलन कर रहे हैं.यह आलेख उनके निजी विचार हैं)