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Tuesday, 24 December, 2024
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बीजेपी के निशाने पर क्यों हैं मराठा सरदार शरद पवार

शरद पवार को निपटाए बिना बीजेपी के लिए अपने दम पर महाराष्ट्र की सत्ता पर कब्जा कर पाना मुमकिन नहीं होगा. मराठा राजनीति के इस सबसे बड़े नेता के लिए बीजेपी ने बड़ी मुसीबत खड़ी कर दी है.

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केंद्र में भारतीय जनता पार्टी की सरकार दोबारा बनने के बाद से शुरू हुआ विपक्षी नेताओं को निशाना बनाने का सिलसिला अब राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के नेता शरद पवार और उनके भतीजे अजीत पवार तक जा पहुंचा है. इसके पहले, कांग्रेस नेता पी चिदंबरम, डीके शिवकुमार, समाजवादी पार्टी के नेता आजम खान पर सरकारी एजेंसियां शिकंजा कस चुकी हैं और चिदंबरम और शिवकुमार तो जेल भी पहुंचाए जा चुके हैं. ताजा मामला महाराष्ट्र से संबंधित है और इसलिए भी ज्यादा महत्वपूर्ण है क्योंकि महाराष्ट्र में विधानसभा चुनावों की तारीखों का ऐलान हो चुका है. इस चुनौती को स्वीकार करते हुए शरद पवार ने कहा है कि वे जेल जाने को तैयार हैं पर दिल्ली की सत्ता के सामने सिर नहीं झुकाएंगे.

पवार पर ईडी ने किया मामला दर्ज

शरद पवार और अजीत पवार पर प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने मनी लॉन्ड्रिंग का मामला दर्ज किया है. उनके साथ 70 लोगों को आरोपी बनाया गया है. कमाल की बात यह है कि जिस महाराष्ट्र राज्य कोऑपरेटिव बैंक में यह 25 हजार करोड़ का घोटाला बताया जाता है, बकौल शरद पवार वे उसके न तो सदस्य हैं और न ही उसकी निर्णय प्रक्रिया में किसी तरह से शामिल हैं. लेकिन, अब उनके खिलाफ एक कानूनी प्रक्रिया शुरू हो चुकी है और इस प्रकरण में उन्हें कई साल तक उलझे रहना पड़ सकता है.

शरद पवार होने का मतलब

महाराष्ट्र में शरद पवार की स्थिति देखें तो वे ऐसे नेता हैं जिनके कारण पिछले कई दशकों से उस राज्य में न तो कांग्रेस कभी सत्ता में अपने दम पर आ पाई और न ही भाजपा कभी अपना स्थायी आधार बना पाई. पिछले कई चुनावों से कांग्रेस जब भी महाराष्ट्र में सत्ता में आई तो शरद पवार को साथ में लेकर ही आ पाई. उसी तरह से भाजपा को भी अपने दम पर बहुमत महाराष्ट्र में कभी नहीं मिला और उसे हमेशा शिवसेना का साथ लेना पड़ा जो उसके लिए मुश्किलें ही पैदा करती रही है.


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मराठा नेता पवार के रहते महाराष्ट्र में सवर्ण राजनीति भी कभी उस तरह से मजबूत नहीं हो सकी जिस तरह से कि आरएसएस की इच्छा रही है. देवेंद्र फड़णवीस मुख्यमंत्री बनने के बाद भी राज्य के कद्दावर नेताओं में शुमार नहीं हो पाए हैं. एक तरह से महाराष्ट्र की राजनीति के पर्याय शरद पवार ही बने हुए हैं. पवार न सिर्फ राज्य में मराठा समुदाय के सबसे बड़े नेता बने हुए हैं, बल्कि किसान और कोऑपरेटिव आंदोलन और संस्थाओं पर भी उनकी पकड़ रही है. उनकी एक और खासियत ये है कि महाराष्ट्र के कॉरपोरेट जगत के साथ भी उनके अच्छे संबंध रहे हैं. महाराष्ट्र की दलित राजनीति में भी उनका दांव चलता रहता है और दलित आंदोलन के एक हिस्से को वे हमेशा अपने खेमे में रखते हैं.

पवार को हटाए बिना नहीं जम सकती भाजपा

इस लिहाज से भाजपा के लिए यह जरूरी है कि राज्य में शरद पवार राजनीतिक रूप से खत्म हो जाएं. भाजपा के लिए यह इसलिए भी फायदेमंद हो सकता है क्योंकि पवार का जनाधार कांग्रेस, शिवसेना और भाजपा तीनों के बीच बंटता है और भाजपा को उसका थोड़ा-सा भी हिस्सा मिल जाता है, तो भाजपा महाराष्ट्र में अपने दम पर सरकार बनाने की स्थिति में आ सकती है. इसके बाद ही वह शिवसेना और कांग्रेस को खत्म करने के दूसरे चरण में बढ़ सकती है.

महाराष्ट्र में शिवसेना के साथ भाजपा के नोंक-झोंक वाले रिश्ते हैं तो कांग्रेस-एनसीपी से सीधी लड़ाई रहती है. कांग्रेस का भी जनाधार ठीक-ठाक है, लेकिन विपक्ष का मुख्य चेहरा मराठा सरदार शरद पवार ही बने हुए हैं, इसलिए भाजपा सरकार के निशाने पर सबसे पहले वही हैं.

शिवसेना से फिलहाल तो भाजपा का तालमेल होता दिख रहा है, लेकिन उद्धव ठाकरे अपनी पार्टी के लिए मुख्यमंत्री पद चाहते हैं. या कम से कम ये चाहते हैं कि दोनों दलों के बीच सीएम पद ढाई-ढाई साल के लिए बंट जाए. ऐसे में वे हर हाल में शिवसेना को ज्यादा से ज्यादा सीटों पर चुनाव लड़वाना और जिताना तो चाहेंगे ही, साथ ही यह भी चाहेंगे कि भाजपा की सीटें कम हों. जमीनी स्तर पर शिवसेना भाजपा के उम्मीदवारों का अंदरूनी विरोध भी कर सकती है. ऐसे में भाजपा के लिए वैकल्पिक व्यवस्था करना जरूरी हो गया है, जो शरद पवार को कमजोर करके ही हो सकता है.

मराठा समुदाय को तोड़ने की कोशिश

भाजपा खासकर दूसरे दलों के मराठा नेताओं को साथ लेने की भी कोशिश कर रही है. सतारा के एनसपी सांसद उदयनराजे भोसले को तो सांसद पद से इस्तीफा दिलाकर भाजपा में शामिल कराया गया और उन्हें शिवाजी की 13वीं पीढ़ी के वंशज के रूप में प्रचारित भी किया गया. इस तरह से संदेश दिया गया कि मराठा समुदाय अब भाजपा के साथ है, लेकिन जमीनी स्थिति तो अभी ऐसी नहीं लगती. इसी रणनीति के तहत मराठा समुदाय को शिक्षा में 12 और सरकारी नौकरियों में 13 प्रतिशत आरक्षण दिया गया. भाजपा को उम्मीद थी कि इसके बाद मराठा उसकी ओर आकर्षित होंगे, लेकिन जब ऐसा कुछ देखने को नहीं मिला तो उसने सीधे शरद पवार पर ही हाथ डालना उचित समझा है.

मराठा समुदाय को आकर्षित करना भाजपा के लिए इसलिए भी जरूरी है क्योंकि राज्य का एक अन्य बड़ा समुदाय दलित वर्ग तो 1 जनवरी 2018 की भीमा-कोरेगांव की हिंसा और उसे निपटने के सरकार के तरीकों की वजह से भाजपा से बेहद नाराज है.

यूपी का प्रयोग दोहराएगी भाजपा?

बहुत संभव है कि ईडी के इस मामले में शरद पवार के खिलाफ ज्यादा कुछ न हो और उन्हें कोई बड़ी हानि न पहुंचे, लेकिन ईडी की कार्रवाई वर्तमान चुनावों के लिहाज से भाजपा के लिए फायदेमंद हो सकती है.


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जिस तरह से नोटबंदी करके उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों के समय समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के समक्ष आर्थिक तंगी की हालत पैदा कर दी गई थी और उसका फायदा भी भाजपा को हुआ था, वैसा ही शरद पवार के साथ करने की कोशिश की जा सकती है. ऐसा ईडी के छापों और शरद पवार तथा उनकी पार्टी से जुड़े लोगों के बैंक खाते सील करके किया जा सकता है.

अन्य दलों के अध्यक्षों को भी खतरा

पवार पर कार्रवाई करके भाजपा सरकार एक प्रयोग भी करती दिख रही है जिसका विस्तार वह आगे चलकर सपा, बसपा, जेडीएस, टीएमसी, बीजेडी और कांग्रेस जैसी अन्य पार्टियों को अध्यक्षों पर भी कर सकती है. अभी तक चिदंबरम, शिवकुमार और आजम खान जैसे नेताओं पर उसने कार्रवाई की है, जो अपनी पार्टी के बड़े नेता तो रहे हैं, लेकिन पार्टी अध्यक्ष नहीं. शरद पवार पहले ऐसे नेता हैं जो एक बड़ी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं.

दशकों से महाराष्ट्र की राजनीति की धुरी बने शरद पवार अपने राजनीतिक जीवन के संध्याकाल में फिर से जंग के मैदान में हैं. यह उनके जीवन की सबसे बड़ी और कठिन परीक्षा साबित हो सकती है.

(लेखक वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक हैं. यह उनका निजी विचार है.)

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