पंजाब के नये मुख्यमंत्री भगवंत मान ने शुरू से ही रफ्तार पकड़ ली है. शपथ लेने के 24 घंटे के अंदर ही 23 मार्च को शहीद भगत सिंह की पुण्यतिथि पर उन्होंने भ्रष्टाचार पर रोक लगाने के लिए ‘हेल्पलाइन’ शुरू करने का ‘अभूतपूर्व’ फैसला किया. और मंत्रियों के शपथ लेने के चंद घंटे के भीतर उनके मंत्रीमंडल ने 25 हजार सरकारी नौकरियां देने के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी.
पहला फैसला लागू करना तो आसान है. पंजाब के सतर्कता ब्यूरो ने 2017 के बाद से एक टोल फ्री नंबर (1800-1800-1000) चालू कर रखा है जिस पर लोग घूस मांगने वाले सरकारी अधिकारी के खिलाफ शिकायत दर्ज करा सकते हैं. रविवार को मैंने इस नंबर पर फोन लगाया तो तुरंत जवाब मिला. सतर्कता ब्यूरो ने एक व्हाट्सएप नंबर और ई-मेल एड्रेस भी जारी किया है और लोगों से इन पर भ्रष्टाचार के मामले की शिकायत दर्ज करने के लिए वीडियो या संदेश भेजने की अपील की है.
पंजाब के नये मुख्यमंत्री ने घोषणा की है कि भ्रष्टाचार विरोधी हेल्पलाइन नंबर उनका ‘निजी व्हाट्सएप नंबर’ होगा.
भगत सिंह जी के शहीदी दिवस पर, हम anti-corruption हेल्पलाइन नम्बर जारी करेंगे। वो मेरा पर्सनल वॉट्सऐप नंबर होगा। अगर आपसे कोई भी रिश्वत मांगे, उसकी वीडियो/ऑडियो रिकॉर्डिंग करके मुझे भेज देना। भ्रष्टाचारियों के ख़िलाफ़ सख्त एक्शन लिया जाएगा।
पंजाब में अब भ्रष्टाचार नहीं चलेगा।
— Bhagwant Mann (@BhagwantMann) March 17, 2022
मान को अपने बॉस, आम आदमी पार्टी (आप) के संयोजक और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की ओर से किए गए कई और वादों को पूरा करना है. केजरीवाल को पंजाब में ‘आप’ की जीत एक ‘इंकलाब ‘ नज़र आती है और उनका कहना है कि इसे पूरे भारत में फैलाना है.
मान के नेतृत्व में पंजाब के 11 सदस्यीय मंत्रीमंडल में प्रशासनिक अनुभव की कमी भले हो लेकिन उसमें क्रांतिकारी तेवर की कोई कमी नहीं है. उदाहरण के लिए, एक मंत्री लाल चंद कटरुचक भारतीय रिवोल्यूशनरी मार्क्सिस्ट पार्टी के सदस्य रह चुके हैं. एक और मंत्री कुलदीप सिंह धालीवाल पुराने कॉमरेड रहे हैं और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (एम-एल) के सदस्य थे. एक मंत्री हरजोत सिंह बैन्स अन्ना हज़ारे के भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन में, जिसे तमिल अभिनेता रजनीकांत ‘रक्तहीन क्रांति’ बता चुके हैं, राजनीति का पाठ पढ़ चुके हैं.
इन नेताओं से वह क्रांति लाने की उम्मीद तो नहीं ही की जा रही है, जो अमिताभ बच्चन ने 1984 की अपनी फिल्म ‘इंकलाब’ में लाई थी. इस फिल्म में अमिताभ ने एक ऐसे पुलिस अधिकारी की भूमिका निभाई थी जिसे मजबूर होकर राजनीति के दलदल में उतरना पड़ा था और जिसने गरीबों की पार्टी बनाकर उसे सत्ता दिलाई और मुख्यमंत्री बनने से पहले पार्टी दफ्तर में जाकर अपने भावी मंत्रियों को गोली से उड़ाकर ‘जुर्म के पेड़’ को उखाड़ डाला था. फिल्मी पर्दे पर वह अमिताभ मार्का इंकलाब थी. हकीकत में क्रांति इतनी नाटकीय नहीं होती, कहीं ज्यादा ठोस होती है.
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पंजाब को देखें कि दरबार को
पंजाब में इंकलाब के चेहरे भगवंत मान के लिए चुनौतियों का अंबार लगा हुआ है. पंजाब से मेरे एक मित्र ने शनिवार की शाम मुझसे कहा, ‘इस बार हमने ‘नोटा’ पर बटन दबाया था, क्योंकि अकाली कोई विकल्प नहीं थे और कांग्रेस में घालमेल चल रहा था. मान ‘नोटा’ के कारण मुख्यमंत्री बने. उन्हें ‘आप’ के बारे में हमें बहुत विश्वास दिलाना है.
तो, पंजाब की जनता की नजरों में अपने को साबित करने के लिए क्या कुछ करना चाहिए?
उस मित्र ने कहा, ‘सबसे पहले तो उन्हें यह करना है कि वे दिल्ली दरबार के गुलाम की तरह बर्ताव नहीं करेंगे. अगर वे दिल्ली में बैठे राजनीतिक आकाओं की मेहरबानी पर निर्भर नजर आएंगे तो पंजाबियों का विश्वास और सम्मान कभी नहीं हासिल कर पाएंगे.’
पंजाब से आए एक मेहमान की तरह वे वास्तव में कोई रहस्योदघाटन नहीं कर रहे थे बल्कि उनके प्रति नाराजगी रहस्यपूर्ण थी. चुनाव नतीजे आने के अगले दिन मान दिल्ली में केजरीवाल से मिले और उनके पैर छूते मान की तस्वीर वायरल हो गई. इस पर पंजाब में कई हलकों में काफी तीखी प्रतिक्रियाएं हुईं. अब यह कहा जा सकता है कि 48 वर्षीय नेता ने उम्र में पांच वर्ष बड़े पार्टी नेता के पैर छूकर आशीर्वाद लिये तो इसमें गलत क्या है? इसे पंजाब की शान का मुद्दा क्यों बनाया जाए? इन सवालों के जवाब सिखों के गर्वीले इतिहास में छिपे हैं लेकिन यह इस लेख का विषय नहीं है.
इतना कहना काफी होगा कि मान जब मुख्यमंत्री के रूप में अपनी पारी शुरू कर रहे हैं, तब दिल्ली दरबार में सलाम बजाने की मजबूरी भी उनके लिए कई चुनौतियों में शुमार होगी. इस तथ्य से कोई फर्क नहीं पड़ने वाला कि मान एक संपूर्ण राज्य के मुख्यमंत्री हैं जबकि केजरीवाल एक केंद्रशासित प्रदेश के मुख्यमंत्री हैं.
‘आप’ के कमांड और कंट्रोल की केंद्रीकृत व्यवस्था में सभी अधिकार केजरीवाल से शुरू होते हैं और वहीं से नीचे तक जाते हैं. अपने राज्य में मुख्यमंत्री के तौर पर मान का मान भले कम होता हो, उन्हें दिल्ली के मुख्यमंत्री के आगे झुकना ही होगा. इसलिए, मान के मंत्रियों की सूची खुद मान ने नहीं बल्कि केजरीवाल ने तैयार की. और मान ने भ्रष्टाचार विरोधी हेल्पलाइन की घोषणा की ही थी कि 15 मिनट के अंदर केजरीवाल ने अपने विस्तृत बयान का वीडियो जारी करके यह बता डाला कि दिल्ली में 2013-14 में 49 दिनों तक चली उनकी सरकार ने किस तरह भ्रष्टाचार विरोधी कदम उठाए थे.
पंजाब में भ्रष्टाचार के खिलाफ़ आम आदमी पार्टी सरकार का फ़ैसला ऐतिहासिक। पंजाब में अब भ्रष्टाचार नहीं चलेगा। Press Conference | LIVE https://t.co/onauWALPo5
— Arvind Kejriwal (@ArvindKejriwal) March 17, 2022
संदेश साफ है कि केजरीवाल पंजाब में अपना दिल्ली मॉडल लागू कर रहे हैं और मान को इसे आगे बढ़ाने वाले की भूमिका निभानी है. मान के मंत्रियों को अच्छी तरह पता है कि उन्हें किसके प्रति निष्ठावान रहना है. हरजोत सिंह बैन्स ने मंत्री पद की शपथ लेने के बाद कहा, ‘अरविंद केजरीवाल ने राजनीति में युवाओं का भरोसा फिर से बहाल किया है… हम पंजाब को एक मॉडल बनाएंगे और 2024 में अरविंद केजरीवाल देश के प्रधानमंत्री बनेंगे.’
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मोदी सरकार के खिलाफ विकल्प
इसलिए, राष्ट्रीय स्तर पर केजरीवाल की महत्वाकांक्षा पंजाब के मुख्यमंत्री के रूप में मान के लिए मुश्किल पेश करने वाली है. पंजाब में भाजपा मान के लिए राजनीतिक चुनौती नहीं है. मान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को खुश रखना चाहेंगे क्योंकि केंद्र सरकार उदासीन या खिलाफ हो गई तो यह मान के जीवन को और कठिन बना देगी.
2021-22 में रबी फसल की मार्केटिंग के सीजन में पंजाब न्यूनतम समर्थन कीमत (एमएसपी) पर गेहूं की उगाही करने में सबसे अव्वल था. जनवरी 2021-22 के तीसरे सप्ताह तक केंद्र ने धान की जितनी उगाही की थी उसमें पंजाब का योगदान सबसे बड़ा था, जिससे 77 लाख किसानों को फायदा हुआ.
2022 के अंत तक केजरीवाल की ‘आप’ उन राज्यों में तीसरे विकल्प के रूप में उभरना चाहेगी जिनमें भाजपा और कांग्रेस सीधी टक्कर में हैं. ऐसे राज्यों में गुजरात और हिमाचल प्रदेश को गिना जा सकता है. भाजपा कांग्रेस को मुख्य चुनौती के रूप में पाकर खुश होगी और वह नहीं चाहेगी कि आप पंजाब मॉडल को विकसित कर पाए.
राष्ट्रीय राजधानी में स्थित दिल्ली मॉडल अर्द्ध शहरी या ग्रामीण क्षेत्र में उतना आकर्षक नहीं होगा. अगर दिल्ली में बैठे नीति नियंता यह सोचने लगें कि केंद्र केवल एक राज्य पंजाब से ही इतना अनाज क्यों खरीदे, तब क्या होगा? आखिर, तेलंगाना के मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव ने चेतावनी दे दी है कि अगर केंद्र पंजाब से ही 100 फीसदी धान की खरीद करता है तो वे यह मांग करने के लिए आंदोलन चलाएंगे कि वह तेलंगाना से भी ऐसा ही करे.
इस बहस में और भी मुख्यमंत्री शामिल हो सकते हैं. आप के अंदरूनी सूत्र बताते हैं कि अगर केंद्र ने खरीद नहीं की तो पंजाब एमएसपी पर गेहूं और धान की खरीद के लिए निगम का गठन करेगा और एमएसपी तथा बाजार भाव में फर्क की भरपाई करेगा. लेकिन क्या पंजाब यह बोझ उठा सकता है? पहले से ही कर्ज के बोझ से दबे राज्य पर चुनाव से पहले किए गए वादों (300 यूनिट मुफ्त बिजली देने और हरेक महिला को 1000 रुपये देने) को पूरा करने के लिए 20,600 करोड़ रुपए का अतिरिक्त खर्च उठाना पड़ेगा.
पंजाब सीमावर्ती राज्य है इसलिए उसे केंद्र के साथ मिलकर काम करना होगा.
कैप्टन अमरिंदर सिंह इन मजबूरियों को समझते थे और उन्होंने मोदी सरकार के साथ गर्मजोशी भरा रिश्ता बनाए रखा था. कांग्रेस आलाकमान ने इस बात को नहीं समझा. केंद्र के साथ कैप्टन के समीकरण ने उनके बारे में गलफहमियां पैदा की.
क्या केजरीवाल मान को मोदी सरकार को खुश रखने की इजाजत देंगे? मुमकिन नहीं है. यह न तो आप की राजनीति के अनुकूल होगा और न केजरीवाल की राष्ट्रीय महत्वाकांक्षा के लिए.
सो, केंद्र ने अगर तेलंगाना जैसे राज्यों के तर्कों को तरजीह देकर अनाज खरीद की नीति बदल दी तब मान अपने यहां के किसानों को किस तरह शांत करेंगे? केंद्र ने पंजाब से खरीद में भारी कटौती कर दी और दूसरे राज्यों से खरीद बढ़ा दी तब क्या होगा? यह अटकल लगाने वाली बात हो सकती है लेकिन जब शासन पर राजनीति हावी होने लगे तो कुछ भी हो सकता है. अगर वैसा होता है तब तीन कृषि कानूनों के मामले में केंद्र से बाजी जीत चुके किसान क्या कदम उठाएंगे?
पंजाब के नये मुख्यमंत्री के सामने एक और समस्या आने वाली है. केजरीवाल दिल्ली में प्रदूषण के लिए पंजाब में पराली जलाए जाने को जिम्मेदार बताते रहे हैं. इस साल देश की राजधानी में हवा जब प्रदूषित होने लगेगी तब वह मान को भी परेशान करेगी. उन्हें फैसला करना पड़ेगा कि अपने बॉस को खुश रखें या पराली जलाने वाले अपने किसानों को? वे जो भी फैसला करेंगे, दूसरा पक्ष नाराज होगा.
गद्दी पर बैठने के एक सप्ताह के भीतर ही मान को मार्च की तपन महसूस होने लगी होगी.
(डीके सिंह दिप्रिंट के राजनीतिक संपादक हैं. व्यक्त विचार निजी हैं)
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