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Saturday, 2 November, 2024
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मणिपुर में मैतेई समुदाय ST दर्जे के हकदार हैं, पादरियों को इसे हिंदू-ईसाई संघर्ष में नहीं बदलना चाहिए

हालांकि, एसटी का दर्जा देने में समय लगेगा. लेकिन, मोदी सरकार मेइती समुदाय की आशंकाओं को दूर करने के लिए पूरे मणिपुर में अनुच्छेद 371 के प्रावधानों का विस्तार करने पर विचार कर सकती है.

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मणिपुर में स्थिति सामान्य होती दिख रही है, जो कि एक अच्छी खबर है. राज्य सरकार स्थिति को नियंत्रित करने के लिए सेना की मदद ले रही है. हालांकि, ऐसे संवेदनशील मुद्दों और इस तरह की संवेदनशील इलाके में लंबे समय तक सेना की मदद लेने का प्रतिकूल प्रभाव भी पर सकता है. इसलिए, यह सलाह दी जाती है कि सेना को जल्द से जल्द मणिपुर से हटा दिया जाए.

अनुसूचित जनजाति मांग समिति (एसटीडीसीएम) ने कहा है कि वह मेइती समुदाय को एसटी सूची में शामिल करने की मांग को जारी रखेगी और भविष्य में अपनी मांग और तेज करेगी. ट्राइबल सॉलिडेरिटी मार्च, जो कुछ पहाड़ी जनजातियों का जल्दबाजी में तैयार किया गया एक छात्र संगठन है, मेइती समुदाय की मांगों का विरोध करने के लिए दृढ़ संकल्पित प्रतीत होता है. इसके कारण आगे भी सामाजिक अशांति होने की संभावना बढ़ जाती है.

एक सीमावर्ती राज्य में लंबे समय तक अशांति की स्थिति, जो कई विद्रोही समूहों के घर होने के लिए कुख्यात है, सुरक्षा के लिए एक गंभीर खतरा है. यह ‘लुक ईस्ट, एक्ट ईस्ट’ पॉलिसी के हिस्से के रूप में केंद्र सरकार द्वारा की जा रही आर्थिक और विकासात्मक गतिविधियों को भी गंभीर रूप से प्रभावित करेगा. इसके अलावा, असामाजिक तत्व आग में ईंधन डालेंगे और पहले से ही खंडित सामाजिक परिवेश में फूट डालने की और कोशिश करेंगे.

पूरे पूर्वोत्तर, जो पूर्व और दक्षिणपूर्व एशिया का इंट्री प्वाइंट और 1947 में विभाजन के कारण लैंडलॉक प्रदान किया गया, सिलीगुड़ी कॉरिडोर के माध्यम से देश के बाकी हिस्सों के साथ केवल एक प्रतिशत बार्डर कनेक्शन है. शेष पूर्वोत्तर में नेपाल, भूटान, म्यांमार, बांग्लादेश और तिब्बत की सीमाएं हैं. टकराव और हिंसा के एक और दौर के लिए संघर्ष के पक्षकारों के सामने केंद्र सरकार को हस्तक्षेप करना चाहिए और इस मुद्दे को हल करना चाहिए.


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सामान्य भय

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, मणिपुर में ‘आदिवासी एकजुटता मार्च’ के बाद हिंसक झड़पें हुईं, जो 3 मई को दस पहाड़ी जिलों में मेइती समुदाय की अनुसूचित जनजाति (एसटी) के दर्जे की मांग के विरोध में आयोजित की गई थी. एक दशक से अधिक समय से, मुख्य रूप से हिंदू मेइती समुदाय, जो 2011 की जनगणना के अनुसार राज्य की आबादी का लगभग 42 प्रतिशत है, यह तर्क देते हुए एसटी दर्जे की मांग कर रहा है कि यह उनकी पैतृक भूमि, सदियों पुराने रीति-रिवाजों और परंपराओं की रक्षा करने में पूरे समुदाय की मदद करेगा. और साथ ही उनकी विशिष्ट पहचान को सुरक्षित रखने भी मदद करेगा. चूंकि मेइतेई रीति-रिवाज कमोबेश पहाड़ी जनजातियों के समान ही है और काफी प्राचीन भी हैं, इसलिए उन्हें एसटी में शामिल करने से रोकने का कोई खास कारण नहीं है.

मणिपुर उच्च न्यायालय ने अपने 27 मार्च के आदेश के में राज्य सरकार को ‘अनुसूचित जनजाति सूची में मेइती/मेइतेई समुदाय को शामिल करने के लिए याचिकाकर्ता के मामले पर जल्द से जल्द विचार करने का निर्देश दिया. उच्च न्यायालय ने यह काम चार सप्ताह की अवधि के भीतर करने का आदेश दिया. हालांकि यह एक बोझिल प्रक्रिया है. इसके लिए राज्य सरकार को केंद्रीय जनजातीय मामलों के मंत्रालय को एक सिफारिश देनी होगी, जो भारत के रजिस्ट्रार जनरल (ओआरजीआई) के कार्यालय को लिखेगी. अनुसूचित जनजाति सूची में मेइती को शामिल करने का प्रस्ताव तब राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग के माध्यम से संविधान (अनुसूचित जनजाति) के आदेश 1950 में संशोधन के लिए केंद्रीय मंत्रिमंडल के पास जाएगा.

पहाड़ी जनजातियां आशंकित हैं कि ‘बहुसंख्यक’ मेइती जनजाति को एसटी का दर्जा देने से उनके लिए आरक्षण को कम करके छोटी जनजातियों को नौकरी के अवसरों से वंचित कर दिया जाएगा. वैसे भी, मणिपुर जैसे स्थलरुद्ध राज्य में रोजगार के अवसर काफी दुर्लभ हैं.

धार्मिक संघर्ष?

आदिवासी मतभेदों के अलावा, धार्मिक समूह और संस्थाएं भी परस्पर विरोधी समूहों को बढ़ावा देने में सक्रिय भूमिका निभाती हैं. 3 मई के प्रदर्शन को ऑल ट्राइबल स्टूडेंट्स यूनियन, एक ईसाई संगठन, जिसमें कुकी जनजाति शामिल है, का समर्थन प्राप्त था. जबकि कुछ चर्च के नेताओं का तर्क है कि ‘संघर्ष के धार्मिक आयाम का नाम नहीं देना चाहिए’. असम के गुवाहाटी के एमेरिटस आर्कबिशप ने धार्मिक आयाम को ‘राष्ट्रीय स्तर पर बहुसंख्यक हिंदुत्व शासन द्वारा बनाए गए ध्रुवीकृत माहौल’ के लिए जिम्मेदार ठहराया है. ईसाई समुदाय के समझदार वर्गों को पादरियों को बताना चाहिए कि वे इस संघर्ष को हिंदू-ईसाई संघर्ष में न बदलें और विक्टिम कार्ड न खेलें.

‘हिंदू’ मैतेई नेतृत्व के एक वर्ग ने पहाड़ी में चर्च के कुछ नेताओं पर विरोध के लिए जिम्मेदार होने का आरोप लगाया है. उनका तर्क है कि गैर-आदिवासी संविधान के अनुच्छेद 371 द्वारा गारंटीकृत सुरक्षा के कारण जनजातीय क्षेत्रों में संपत्ति नहीं खरीद सकते हैं, आदिवासी मैतेई बहुल घाटी भूमि में बस सकते हैं. मेइती समुदाय के डर को दूर करने के लिए सरकार अनुच्छेद 371 के प्रावधानों को पूरे मणिपुर में लागू करने पर विचार कर सकती है, जैसा कि हिमाचल प्रदेश में किया गया है.

इसके अतिरिक्त, केंद्र सरकार और पूर्वोत्तर विकास परिषद को बुनियादी ढांचे और कनेक्टिविटी परियोजनाओं की शुरुआत करनी चाहिए. साथ ही वहां छोटे और मध्यम स्तर के गैर-प्रदूषणकारी उद्योगों को बढ़ावा भी देना चाहिए. इसके अलावा शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं में सुधार करना चाहिए. पूर्वोत्तर में बहुत कुछ दांव पर लगा है और आगे की उपेक्षा केंद्र सरकार के 5 ट्रिलियन डॉलर के एजेंडे के लिए बुरी खबर होगी.

(शेषाद्री चारी ‘ऑर्गेनाइजर’ के पूर्व संपादक है. व्यक्त विचार निजी हैं)

(संपादन: ऋषभ राज)

(इस लेख़ को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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