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Wednesday, 24 April, 2024
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भूटान का डोकलाम स्टैंड सुरक्षा और कूटनीति पर सवाल उठाता है, भारत को सावधान रहने की जरूरत है

भूटान के उत्तरी हिस्से का वह क्षेत्र जिस पर चीन दावा करता है वह डोकलाम की तुलना में काफी बड़ा है. डोकलाम का अपना एक सामरिक महत्व है जो इसे बीजिंग के लिए अपरिहार्य बनाता है.

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डोकलाम भारत, चीन और भूटान के बीच एक जंक्शन प्वाइंट है. इस समस्या का हल करना सिर्फ अकेले भूटान पर निर्भर नहीं है. ये बातें भूटान के प्रधानमंत्री लोटे शेरिंग ने बेल्जियम के एक दैनिक को दिए एक साक्षात्कार में कहा है. चीन भूटान के साथ अपने सीमा विवाद को सुलझाने के लिए उत्सुक है, हालांकि भूटान को ऐसा करना शोभा नहीं देता. दोनों देशों के अधिकारियों ने जनवरी 2022 में एक बैठक की थी और दक्षिण-पश्चिमी चीनी शहर कुनमिंग में एक विशेषज्ञ समूह की बैठक के रूप में तीन-चरणीय रोडमैप को ‘आगे बढ़ाने’ पर सहमति व्यक्त की थी. एक संयुक्त विज्ञप्ति में कहा गया था कि दोनों पक्षों ने ‘चीन-भूटान सीमा वार्ता में तेजी लाने के लिए तीन-चरणीय रोडमैप पर समझौता ज्ञापन को लागू करने के लिए विचारों का आदान-प्रदान किया और सकारात्मक सहमति पर पहुंचे.’

भूटान और चीन ने 1984 से अबतक सीमा वार्ता के 24 दौर आयोजित किए हैं. ऐसा लगता है कि 24वां दौर समाधान के बहुत करीब आ गया है, जो चीन की ओर से तत्काल कोशिश की ओर संकेत देता है. वार्ता मुख्य रूप से दो क्षेत्रों- डोकलाम और अन्य आस-पास के इलाकें, पश्चिमी सीमा पर तिराहे के पास की घाटियों और भूटान की उत्तरी सीमाओं के साथ जकारलुंग और पासमलुंग घाटियों को बसाने पर केंद्रित थी. संयोग से, ऐसी खबरें हैं कि चीन ने पूर्वी भूटान में सकतेंग वन्यजीव अभयारण्य पर भी दावा किया है. जून 2020 में, भूटान ने अरुणाचल प्रदेश की सीमा से लगे लगभग 750 वर्ग किलोमीटर में फैले इस अभयारण्य के लिए अंतर्राष्ट्रीय समुदाय से अनुदान मांगा था. वैश्विक संस्था के सदस्य चीन ने यह कहते हुए इस अनुदान का विरोध किया था कि यह अभयारण्य एक विवादित क्षेत्र में है. इस बात पर पूरी तरह से हैरान भूटान ने कहा कि बीजिंग ने पिछले 36 वर्षों की सीमा वार्ता में भी कभी इसका कभी उल्लेख नहीं किया और ‘पश्चिमी, मध्य और पूर्वी वर्गों’ में सीमा विवादों के चीन के उल्लेख का कड़ा विरोध किया.

जबकि भूटान के उत्तरी हिस्से पर चीनी दावों का क्षेत्र डोकलाम की तुलना में बहुत बड़ा है. डोकलाम का सामरिक महत्व है जो इसे बीजिंग के लिए अपरिहार्य बनाता है. तिब्बत के साथ भूटान की उत्तरी सीमाओं के साथ जकारलुंग और पासमलुंग घाटियां 495 वर्ग किमी मापती हैं. जबकि 269 वर्ग किमी के माप वाला यह पश्चिमी क्षेत्र भारत के लिए जरूरी बन गया हैं, खासकर 2017 में भारत-भूटान-तिब्बत (अब चीन) ट्राइजंक्शन पर गतिरोध के बाद.

1951 में तिब्बत के अधिग्रहण के बाद चीन को भारत, नेपाल और भूटान तक सीधी पहुंच मिली और पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (पीओके) के माध्यम से पाकिस्तान को अप्रत्यक्ष लैंड कनेक्शन दिया. इसके अलावा, 1962 के आक्रमण के बाद से चीन ने अक्साई चिन में लगभग 14,000 वर्ग मील भूमि पर नियंत्रण बनाए रखा है. 1959 का तिब्बत विद्रोह, जो बमुश्किल एक पखवाड़े तक चला था, ने बीजिंग को तिब्बत पर अपना शिकंजा कसने और दलाई लामा को भारत में शरण लेने के लिए मजबूर करने का मौका दिया. 1950 और 1957 के बीच चीन ने झिंजियांग उइघुर स्वायत्त क्षेत्र में येचेंग (कारगिलिक) और तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र में ल्हात्से के बीच एक बारहमासी सड़क, G219 का निर्माण किया था. इस सड़क का दूसरा चरण, G695, 2010 में किसी समय शुरू हुआ था और अगर यदि निर्बाध रूप से चलता रहा, तो यह लैंडलॉक्ड झिंजियांग को मोंग काई (हालोंग के पास), वियतनाम के एक बंदरगाह शहर, जो यानबियन राजमार्ग से जुड़ा हुआ है, से जोड़ेगा. यह बॉर्डर गेट शहर टोंकिन खाड़ी के कनेक्टिंग प्वाइंट पर स्थित है और नैनिंग-सिंगापुर का आर्थिक गलियारा इसे आसियान-चीन आर्थिक सहयोग और व्यापार के लिए एक महत्वपूर्ण संपर्क बिंदु बनाता है.


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चीन का सीमा प्रबंधन

बार्डर राजमार्ग G695 का अगला चरण चीन के सीमा प्रबंधन का हिस्सा है जो सिक्किम में नकुला के 30 किमी उत्तर में कंबा के पास से होकर गुजरेगा. चीन ने सीमावर्ती सड़कों के निर्माण में अपने इरादों का कोई रहस्य नहीं बनाया है क्योंकि शी जिनपिंग ने कहा, ‘सीमावर्ती क्षेत्रों को शासित करना किसी देश पर शासन करने और तिब्बत को स्थिर करने की कुंजी है’. इस योजना के तहत प्रस्तावित राजमार्ग क्षेत्रों के साथ भारी चीनी बसावट की खबरें हैं. अपुष्ट उपग्रह चित्रों से पता चला है कि चीन ने डोकलाम पठार के पूर्व में भूटान की ओर एक गांव बसाया है. वास्तव में, यह वही क्षेत्र है जहां 2017 में भारत और चीन के बीच दो महीने से अधिक समय तक गतिरोध देखा गया था. इसके परिणामस्वरूप भारतीय सेना ने पीएलए द्वारा डोकलाम पठार से झमपेरी रिज तक एक सड़क के निर्माण को रोक दिया था. यह सड़क पीएलए को झमपेरी रिज से लगभग 12 से 17 किमी (जैसे कौवा उड़ता है या ड्रोन उड़ सकता है) सिलीगुड़ी कॉरिडोर की देखरेख करने के लिए एक सुविधाजनक स्थान देगा.

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तिब्बत-भूटान-भारत सीमा के ट्राई-एंगल पर स्थित डोकलाम उत्तर में चुम्बी घाटी और सिक्किम के पश्चिम में भूटान की हा-घाटी और समत्से जिले के बीच स्थित है. डोंकया रेंज चुंबी घाटी को सिक्किम से अलग करती है. डोकलाम का बहुत बड़ा सामरिक महत्व है क्योंकि यह भारत को तिब्बत (चीन), नेपाल, भूटान और बांग्लादेश से जोड़ने के अलावा सिलीगुड़ी कॉरिडोर जो सभी सात पूर्वोत्तर राज्यों के प्रवेश द्वार के प्रवेश द्वार के रूप में जाना जाता है, उसे जोड़ता है.

इस बीच, भारत को बांग्लादेश के साथ प्रस्तावित (लगभग 40 साल पहले) ‘तेतुलिया कॉरिडोर’ को गंभीरता से लेना चाहिए. यह असम को पश्चिम बंगाल से जोड़ेगा और संकीर्ण सिलीगुड़ी कॉरिडोर को चौड़ा करने के लिए अधिक भूमि प्रदान करेगा, जिसे बोलचाल में चिकन नेक कहा जाता है. त्रिपुरा और बांग्लादेश के बीच बहने वाली फेनी नदी पर बने ‘मैत्री सेतु’ पुल की तरह, जो त्रिपुरा में सबरूम को बांग्लादेश के रामगढ़ से जोड़ता है, उसी तरह पश्चिम बंगाल और बांग्लादेश के बीच एक पुल और भूमि संपर्क को बढ़ाने की भी जरूरत है.

भारत-भूटान संबंध हमेशा उत्कृष्ट और सौहार्दपूर्ण रहे हैं क्योंकि भारत ने भूटान की पनबिजली परियोजनाओं में बड़े पैमाने पर योगदान दिया है. दोनों अर्थव्यवस्थाएं, रणनीतिक समीकरण और सुरक्षा जरूरतें आपस में जुड़ी हुई हैं. लैंडलॉक भूटान भी बिम्सटेक का सदस्य है क्योंकि यह अपने व्यापार, आयात और निर्यात के लिए बंगाल की खाड़ी पर बहुत अधिक निर्भर है. नई दिल्ली और थिम्फू को अधिक से अधिक बैठकें करनी चाहिए और भविष्य में किसी भी तरह के अप्रिय झटकों से बचने के लिए बेहतर समन्वय करना चाहिए.

(शेषाद्री चारी ‘ऑर्गेनाइजर’ के पूर्व संपादक है. व्यक्त विचार निजी हैं)

(संपादन: ऋषभ राज)

(इस लेख़ को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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