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Sunday, 22 December, 2024
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मणिपुर भारत का पूर्व का प्रवेश द्वार है, लेकिन कश्मीर की तुलना में इस पर आधा राजनीतिक फोकस भी नहीं है

मणिपुर में भीड़ द्वारा चुराए गए या जब्त किए गए हथियारों का आंकड़ा जम्मू-कश्मीर में आतंकवादियों की संख्या से सौ गुना से भी अधिक है.

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राज्य सीमावर्ती इलाकों, नई दिल्ली से दूर अलग-थलग क्षेत्रों के प्रति अपनी जगह और ज़िम्मेदारी की भावना को त्याग रहा है, जिसे नज़रअंदाज किया जाता है और उसके साथ लापरवाही बरती जाती है. ऐसा पहले भी हो चुका है और दोबारा भी हो रहा है. लद्दाख में भारत ने जगह खाली कर दी और नाटकीय रूप से अलग तरह की परिस्थितियों में मणिपुर में भी ऐसी ही घटना देखी जा रही है.

इसका कुल परिणाम यह है कि राज्य का अधिकार तब अस्तित्व में नहीं रहता जब इसे लागू करने की आवश्यकता होती है और जहां इसकी ज़रूरत पड़ती है. इस त्याग की मुद्रा के कारण लद्दाखी चरवाहों को नुकसान हुआ है और राज्य द्वारा अपना वर्चस्व थोपने की इच्छा न होने के कारण मणिपुर के लोगों की सुरक्षा प्रभावित होती है.

सीमावर्ती इलाकों के साथ ऐसा अलग-थलग व्यवहार किया जाता है कि अगर ऐसा कहीं और होता तो राष्ट्रीय तूफान खड़ा हो जाता. हां, लेकिन एक तूफान पहले से जारी है, अभी यह स्थानीय है, मंथन कर रहा है और लगातार नकारात्मकता फैला रहा है. चूंकि, तूफान नई दिल्ली से बहुत दूर है, इसलिए राष्ट्रीय प्रतिक्रियाएं उत्तरदायित्व की भावना व्यक्त नहीं कर रही हैं. हालांकि, तूफान बढ़ रहा है और वर्तमान दृष्टिकोण से अधिक पावरफुल हो रहा है. यदि इस स्थिति को समझदारी से नहीं संभाला गया तो भारत को संवेदनशील क्षेत्र में भारी गलतियों का सामना करना पड़ सकता है.

लद्दाख में अब भारतीय और चीनी सैनिकों को अलग करने वाले बफर जोन मौजूद हैं. बेशक, बफर जोन भारतीय क्षेत्र के भीतर हैं और इसलिए, नई दिल्ली विस्तारवादी चीन को और अधिक क्षेत्र दे रही है, लेकिन जो बात तर्क से परे है वो है कि मणिपुर के भीतर बफर जोन का निर्माण, जो भारतीय नागरिकों को साथी नागरिकों से अलग करेगा. राज्य की कमज़ोरी इतनी है कि वह अपना आदेश लागू नहीं कर सकता, फिर भी लोगों के बीच अदृश्य बाधाएं पैदा कर रहा है.

कानून का शासन और न्याय का वितरण राज्य की उपस्थिति का सबसे सच्चा प्रमाण है, लेकिन दोनों ही मणिपुर में कर्तव्य से गायब हैं.

किसी राज्य, प्रांत या देश के भीतर लोगों के बीच बफर जोन समाज के विभाजन के समान है. जब राज्य की सशस्त्र पुलिस या सैन्य बल अपने नागरिकों के बीच अलगाव लागू करने के लिए ज़िम्मेदार होते हैं, तो सरकार के पास स्पष्ट रूप से कानून की प्रधानता में विश्वास की कमी होती है. एक बार जब कोई समाज शारीरिक रूप से विभाजित हो जाता है, तो भावनात्मक और मनोवैज्ञानिक अलगाव भी आने लगता है. इसे आम घरों, कक्षाओं या स्कूल के मैदानों और फुटबॉल के मैदानों पर वापस लाना एक कठिन काम है. ज़रूरी नेतृत्व का कद अपेक्षित ऊंचाई से मेल नहीं खा सकता है. एक बार जब वो अवसर खो जाता है तो बंटुस्टान (सेल्फ गवर्नेंस) बस कोने में ही रह जाते हैं.


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भूगोल की समझ खोना

राष्ट्रीय राजधानी के करीब और अंतरराष्ट्रीय नज़रों का आकर्षण, कश्मीर घाटी अपनी वर्तमान स्थिति की तुलना में राष्ट्रीय सुरक्षा के लिहाज़ से ध्यान केंद्रित करती है. भले ही पाकिस्तान दशकों से दोहराई गई बातों को फिर दोहरा रहा है, लेकिन घाटी पर इसका प्रभाव नाटकीय रूप से कम हो गया है. चूंकि अधिकांश भारतीय नीति निर्धारण काफी हद तक एकपक्षीय है, इसलिए पाकिस्तान के मुद्दे को प्रमुखता से रखने से एक प्रभावी घरेलू रणनीति बन जाती है. दशकों से वहां तैनात सैनिकों की अपेक्षाकृत अपरिवर्तित संख्या के बावजूद, सक्रिय उग्रवादियों की संख्या अब ऐतिहासिक रूप से सबसे कम है.

उन आंकड़ों की तुलना मणिपुर से करें तो उपेक्षा अपमानजनक हो जाती है. मणिपुर में भीड़ द्वारा चुराए गए या जब्त किए गए हथियारों का आंकड़ा जम्मू-कश्मीर में आतंकवादियों की संख्या से सौ गुना से भी अधिक है.

इसके बावजूद, मणिपुर में राज्य के आदेश को लागू करने के लिए तैनात सैनिक जम्मू और कश्मीर के आंकड़ों की तुलना में कम हैं. उत्तरी राज्य में असाधारण संख्या घाटी या आसपास के जिलों से उत्पन्न खतरों के अनुपात में नहीं है, लेकिन दूसरी ओर, मणिपुर एक बहुत बड़ा संकट है और इसकी तुलना में इसे बहुत कम आंकड़े से काम चलाना पड़ता है.

जब नेतृत्व ने सीमावर्ती इलाकों के भूगोल के बारे में अपनी समझ को खो दिया है, तो वह वहां मौजूद सामाजिक-राजनीतिक विशिष्टताओं को स्वीकार नहीं कर सकता. सीमाएं मानचित्र पर भूगोल को विभाजित करने वाली रेखाओं से अलग किए गए स्थानों से कहीं अधिक हैं, लेकिन ज़मीनी तथ्य अलग हैं, भले ही रायसीना हिल पर उनका पूरा महत्व ख़त्म हो गया हो. भले ही भारत अपनी पश्चिमी सीमाओं पर आर्थिक रूप से तनावग्रस्त पाकिस्तान और उत्तर में विस्तारवादी चीन का सामना कर रहा है, व्यापार के अवसर दक्षिणी समुद्र या पूर्वी भूमि सीमा तक ही सीमित हैं. भूगोल ने हमेशा व्यापार और वाणिज्य को प्रभावित किया है और आगे भी करता रहेगा.

भारत का पूर्व का सबसे महत्वपूर्ण प्रवेश द्वार मोरेह, मणिपुर है. एशियाई राजमार्ग 1 म्यांमार में मांडले से तमू होते हुए मोरेह में भारत में प्रवेश करता है. AH1 टोक्यो से शुरू होता है और तुर्कि जाता है, जो वास्तव में महाद्वीप को एकीकृत करता है. यदि भारत व्यापार नहीं करता है तो वह आर्थिक रूप से विकसित नहीं हो सकता है और यह देखते हुए कि अंतर्राष्ट्रीय प्रगति का भविष्य पूर्वोतर में है, व्यापार मार्गों को सुरक्षित करना महत्वपूर्ण है. उस लिहाज़ में मणिपुर अपूरणीय है. यह एशिया के सबसे महत्वपूर्ण राजमार्ग पर स्थित है. यह भारत की खेल सफलताओं में अपने अतुलनीय योगदान के लिए भी अपूरणीय है. हालांकि, नई दिल्ली की प्राथमिकता अन्य खेलों में हो सकती है.

(मानवेंद्र सिंह कांग्रेस के नेता, डिफेंस एंड सिक्योरिटी अलर्ट एडिटर-इन-चीफ और सैनिक कल्याण सलाहकार समिति, राजस्थान के चेयरमैन हैं. उनका ट्विटर हैंडल @ManvendraJasol है. व्यक्त किए गए विचार निजी हैं.)

(संपादन: फाल्गुनी शर्मा)

(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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