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Sunday, 22 December, 2024
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पुरुष भी हैं पितृसत्ता के शिकार, तेज प्रताप यादव से पूछकर देखिए

पितृसत्ता पुरुषों द्वारा महिलाओं के साथ किया जाने वाला व्यवहार भर नहीं है. पितृसत्ता वह व्यवहार है जो समाज हम सबके साथ करता है, पुरुष और महिला दोनों के साथ.

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तेज प्रताप यादव लगता है आखिरकार पटना लौट आए हैं, पर एक नए घर में. नवंबर और दिसंबर के दौरान वे कभी-कभार ही पटना में रहे, और अपने पारिवारिक घर में नहीं गए. उस दौरान उन्होंने ज़्यादातर समय मथुरा के आसपास ब्रज के इलाकों, वाराणसी, बोधगया और अन्य स्थानों की तीर्थयात्रा में बिताया. उन्होंने रांची की बिरसा मुंडा जेल के भी चक्कर काटे, जहां उनके पिता लालू यादव बंद हैं. वह बड़ी दृढ़ता से अपनी मां राबड़ी देवी, पत्नी ऐश्वर्या राय और अपने तीन साल के छोटे भाई तेजस्वी यादव से मुलाक़ात को टालते रहे हैं.

तेज प्रताप ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को फोन कर बिहार विधानसभा के निर्वाचित सदस्य के रूप में अपने लिए अलग आवास की मांग रखी. अभी तक वह अपनी मां और पत्नी के साथ पटना के 10, सर्कुलर रोड पर रह रहे थे. अब उन्हें 7 एम, स्ट्रैंड रोड पर अपना अलग घर दिया गया है.


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परिवार से अलग रहने का उन्हें अपने तलाक़ मामले में लाभ मिलना चाहिए. तलाक़ की उनकी अर्ज़ी पर पटना की एक पारिवारिक अदालत में 8 जनवरी को सुनवाई होनी है. उनका परिवार चाहता है कि वह पत्नी ऐश्वर्या से अपने मतभेदों को सुलझाएं. दोनों की मई 2018 में शादी हुई थी. तेज प्रताप का कहना है कि उन दोनों में परस्पर अनुकूलता नहीं है. उनका कहना है कि दिल्ली की मिरांडा हाउस कॉलेज से पढ़ी ऐश्वर्या उनके मुक़ाबले कुछ ज़्यादा ही सुसंस्कृत हैं. जबकि वह एक गंवई इंसान हैं, जो राजनीति और सार्वजनिक जीवन के लिए बेमेल हैं.

तेज प्रताप की घुटन

तेज प्रताप यादव का अपने परिवार के खिलाफ़ संघर्ष पितृसत्ता के विरुद्ध मानवता के संघर्ष का हिस्सा है. उनकी चाहत आम आदमी की चाहत है: अपनी मर्ज़ी का मालिक होना, न कि अपने मां-बाप की संतान मात्र. उन्होंने कहा है, ‘बहुत मुश्किलों के बाद भगवान जीवन देते हैं, यदि किसी को अपनी ज़िंदगी घुट-घुटकर बितानी पड़े, तो फिर ज़िंदा रहने का क्या मतलब?’

यहां ‘घुटन’ शब्द सही उपमा है. भारत में लाखों स्त्री-पुरुष परिवार द्वारा तय ‘अरेंज्ड मैरिज’ के कारण और शादी के लिए पड़ते दबाव के कारण घुटन भरी ज़िंदगी जी रहे हैं. भारतीय मां-बाप कोख में ही बच्चों से करार कर लेते हैं- तुम्हें इसी शर्त पर दुनिया में लाएंगे जब तुम हमारे कहे समय पर, और जिससे कहें उससे शादी करने पर सहमत हो.


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ऐश्वर्या राय के पिता पूर्व मंत्री तथा लालू परिवार द्वारा संचालित पार्टी राष्ट्रीय जनता दल में एक नेता हैं. ऐश्वर्या के दादा बिहार के मुख्यमंत्री रहे थे. यह शादी बच्चों के माता-पिताओं के बीच एक राजनीतिक संबंध थी. तेज प्रताप खुलकर कह चुके हैं: ‘मुझे मेरे परिवार के कुछ लोगों और पार्टी के फायदे के लिए बलि का बकरा बनाया गया… हमारे बीच कोई समानता नहीं है.’

‘हम दोनों बिल्कुल अलग पृष्ठभूमियों से आते हैं. हमारी संस्कृति और हमारे लालन-पालन के परिवेश एकदम अलग रहे हैं. मैं इस शादी के लिए कभी तैयार नही था. मैं अपने माता-पिता से विनती करते रहा, और मैंने अपनी भावनाएं भाई तेजस्वी और बहनों से भी साझा कीं, पर किसी ने मुझे गंभीरता से नहीं लिया.’

सिर्फ महिलाएं ही नहीं

तेज प्रताप यादव की दशा से साफ है कि पुरुष भी पितृसत्ता के शिकार हैं. अक्सर उन्हें अपनी मर्ज़ी थोपने वाले परिवारों द्वारा अनचाहे एवं अनुपयुक्त विवाह बंधनों में बांधा जाता है, ज़्यादातर दहेज या सामाजिक प्रतिष्ठा के नाम पर. और हम यहां बिहार में होने वाली ज़बरिया शादी की चर्चा ही नहीं कर रहे, जब लड़की के घर वाले बंदूक की नोक पर शादी के लिए लड़के को पकड़ लाते हैं. हर साल ऐसे अपहरणों की संख्या में वृद्धि हो रही है-2017 में ऐसे 3,400 मामले सामने आए थे.

बेटों को शादी के लिए बाध्य करना बंदूक की नोक पर अपहरण से कम नहीं है. मां-बाप के ऐसे दबाव, ज़बरिया विवाह और तलाक़ के इच्छुक बेटों को अलग-थलग कर दिए जाने को पुरुषों के खिलाफ़ पितृसत्तात्मक हिंसा के रूप में मान्यता मिलनी चाहिए, महिलाओं की आज़ादी और आत्मनिर्भरता पर हमले के समान ही.


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विवाह की संस्था को लोग अक्सर परेशानियों के कारण के रूप में तो देखते हैं, पर इस बात पर ध्यान नहीं देते कि इसका शिकार सिर्फ महिलाएं ही नहीं बनती हैं. हालांकि, पुरुषों और महिलाओं की मुसीबतों की तुलना नहीं की जा सकती. पुरुषों को शायद सिर्फ ‘घुटन भरे’ साथ का सामना करना पड़ता हो, जिसकी क्षतिपूर्ति वे बच्चों से, और शायद व्यभिचार से कर लेते हों. पर महिलाओं को काफी ज़्यादा मुसीबतें झेलनी पड़ती हैं: घरेलू हिंसा, दहेज के लिए मौत, वैवाहिक बलात्कार, सास के हाथों उत्पीड़न, बच्चे पैदा करने का दबाव, कोख में भ्रूण हत्या इत्यादि.

भले ही अपेक्षाकृत कम उत्पीड़न होता हो, पर पितृसत्ता पुरुषों को भी दुखद विवाहों के लिए बाध्य करती है, धीमी पर सतत ‘घुटन’ से उनके स्वायत्त अस्तित्व के एक अंश को ख़त्म करते हुए.

पितृसत्तात्मक महिलाएं

विवाहित महिलाओं के अधिकारों की लड़ाई में इस तथ्य को स्वीकारने से मदद मिल सकती है कि पुरुष भी पितृसत्ता और विवाह की पितृसत्तात्मक संस्था से पीड़ित हो सकते हैं. भारत में तलाक़ के अनुपात का कम होना एक महान पारिवारिक संस्कृति का लक्षण नहीं है. इसके विपरीत, यह इस बात का संकेत है कि कैसे बड़ी तादाद में लोग ‘घुटन भरी’ ज़िंदगी जीने को तैयार हैं-महिला और पुरुष दोनों ही.

संयोग से, इस मामले में ऐश्वर्या राय अपनी ससुराल से बाहर नहीं निकली हैं. शायद, उन पर भी अपने मां-बाप और सास-ससुर का दबाव होगा ‘शादी को सफल बनाने का’. या शायद, वह खुद पितृसत्ता के परिणामों से खुश हों, क्या पता! आख़िर, एक दिन वह अपनी सास की ही तरह मुख्यमंत्री जो बन सकती हैं! जैसे पुरुष पितृसत्ता से पीड़ित हो सकते हैं, उसी तरह महिलाएं भी पितृसत्ता की वाहक हो सकती हैं-हां, राबड़ी जैसी महिलाएं और शायद ऐश्वर्या जैसी.

पुरुषों की दुर्दशा का मज़ाक उड़ाए जाने और उन्हें गंभीरता से नहीं लेने से किसी का भला नहीं होता. तेज प्रताप कह चुके हैं, ‘हमारे मतभेद दूर नहीं हो सकते. शादी होने तक मैं अपने माता-पिता से यह बात कहता रहा. पर तब किसी ने मेरी नहीं सुनी और आज भी कोई मेरी नहीं सुन रहा.’


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यदि तेज प्रताप यादव का मामला मां-बाप द्वारा शादी में बंधे रहने के लिए बाध्य की जा रही किसी महिला का होता तो शायद हम ज़्यादा सहानुभूति दिखाते. पर हमारी सोच इस तरह से विकसित हुई है कि हम पितृसत्ता को मात्र महिलाओं को दुष्प्रभावित करने वाले बल के रूप में देखते हैं.

यह सच नहीं है. पितृसत्ता पुरुषों द्वारा महिलाओं के साथ किया जाने वाला व्यवहार भर नहीं है. पितृसत्ता वह व्यवहार है जो समाज हम सभी के साथ करता है, पुरुषों और महिलाओं दोनों ही के साथ. निश्चय ही, भावनात्मक उत्पीड़न और शारीरिक शोषण, संस्थागत स्त्री-द्वेष, पिता और पुरुष अधिकारियों के भेदभाव, स्त्री-भ्रूण हत्या और दहेज के लिए हत्या इत्यादि के रूप में महिलाओं को ज़्यादा मुसीबतें झेलनी पड़ती हैं. पर, पुरुषों को भी पितृसत्ता की इसी ताक़त के उत्पीड़न का सामना करना पड़ता है.

नारीवादी आंदोलन इस तथ्य को स्वीकार करने से और मज़बूत बनकर उभरेगा. आख़िर, नारीवाद व्यक्तिगत स्वतंत्रता और विकल्पों के बारे में ही तो है. इसलिए हमें तेज प्रताप यादव के प्रति सहानुभूति रखनी चाहिए.

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