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Friday, 29 March, 2024
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क्यों कांग्रेस को अब परिवारवाद पर शर्माना बंद कर देना चाहिए

अमित शाह भाजपा को परिवारों के गुट की तरह चला रहे हैं और कांग्रेस पर परिवारवादी होने का आरोप भी लगा रहे हैं.

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अगर भाजपा के मतदाता कांग्रेस की तरफ जाने की सोच रहे होंगे तो नरेंद्र मोदी उन्हें याद दिला रहे हैं कि कांग्रेस में पूरी सत्ता एक परिवार के इर्द गिर्द सिमटी है.

प्रधानमंत्री ने आरोप लगाया कि गांधी परिवार से बाहर कोई भी व्यक्ति कांग्रेस का अध्यक्ष नहीं बन सकता. इस पर पी चिदंबरम ने 1947 के बाद कांग्रेस के अध्यक्षों की सूची पेश कर दी. उन्होंने मनमोहन सिंह और पीवी नरसिम्हा राव जैसे लोगों का भी उदाहरण दिया जो कांग्रेस परिवार के बाहर के थे लेकिन पार्टी ने उन्हें प्रधानमंत्री बनाया.

चिदंबरम का यह बचाव काम नहीं आया क्योंकि प्रधानमंत्री मोदी ने परिवार पर अपना हमला जारी रखा. उन्होंने सीताराम केसरी की याद दिलाई कि कैसे कांग्रेस ने उन्हें प्रताड़ित किया था और उनके पद को सोनिया गांधी के वफादारों ने तख्तापलट करके हथिया लिया था.

कांग्रेस पार्टी नेतृत्व के मामले में आंतरिक लोकतंत्र का दावा नहीं कर सकती क्योंकि वह नहीं है. यह ऐसी बहस है जिसे वे नहीं जीत सकते. ऐसा करते हुए वे एक परिवार के नेतृत्व के लिए माफी मांगते नजर आते हैं. यह अजीब है कि उनकी गांधी-नेहरू परिवार नाम की एकमात्र विशेषता के लिए वे माफी मांगते हैं.

मोदी के नेतृत्व में भाजपा हर दिन कांग्रेस को विश्वसनीयता पर हमला कर रही है. अपने बचाव करके कांग्रेस सिर्फ भाजपा के जाल में फंस रही है.

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खानदानी नेता

सच तो यह है कि भारतीय मतदाता परिवार के बारे में चिंता नहीं करते. अगर कुछ है तो यह कि परिवार नेता पर विश्वास करने में ​मतदाता की मदद करता है. उन्हें यह विश्वास होता है कि फलां नेता उस परिवार से है जिसकी अतीत में साख रही है. मध्य प्रदेश चुनाव में उन परिवारिक नेताओं की संख्या देखिए जिन्हें भाजपा ने टिकट दिए हैं.

लोकसभा 2014 में हर पांच में से एक विजेता ऐसा था जो किसी न किसी परिवार से था. पूरे देश में हर राज्य की हर पार्टी में राजनीतिक वंशवाद फल-फूल रहा है. सितंबर, 2017 की रिपोर्ट के अनुसार, मोदी सरकार की कैबिनेट में 75 लोगों में 15 राजनीतिक परिवारों का प्रतिनिधित्व करते हैं. योगी आदित्यनाथ से लेकर देवेंद्र फड़नवीस तक, वसुंधरा राजे से लेकर पेमा खांडू तक, मेनका गांधी से लेकर वरुण गांधी तक भाजपा में ऐसे नेताओं की भरमार है जिन्हें राजनीति में प्रवेश ही उनके परिवार के कारण मिला है. हैरत की बात है अमित शाह भाजपा को परिवारों के गुट की तरह चला रहे हैं और कांग्रेस पर परिवारवादी होने का आरोप भी लगा रहे हैं.


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राजनीतिक परिवारों चाहिए कि वे सतह पर कुछ ऐसी चीजों को लाएं जिससे मतदाता उनपर ज्यादा विश्वास कर पाएं. आप यह तर्क दे सकते हैं कि भारतीय राजनीति में बाहरी लोगों के लिए दरवाजे बंद हैं. लेकिन यह शायद ही होता है कि आप किसी मतदाता से मिलें और वह ​कहे कि मैं फलां नेता को वोट नहीं दूंगा क्योंकि वह राजनीतिक परिवार से है. इसके उलट, राजनीतिक परिवार नेता की विश्वसनीयता बढ़ाने में मदद करते हैं. आम तौर पर लोगों को कहते हुए सुनते हैं कि ‘पुराने नेता थे हमारे, बहुत किया हमारे लिए, अब उनका लड़का आया है, उसी को वोट देंगे.’

भाजपा का जाल

वसुंधरा राजे सिंधिया का मामला बेहद दिलचस्प है. वे मध्य प्रदेश के उस ग्वालियर राजघराने से आती हैं जो कांग्रेस का हिस्सा है. वसुंधरा के खुद के राजनीतिक कुनबे को आगे बढ़ाते हुए उनके बेटे भाजपा से सांसद भी हैं. अभी हाल में उन्होंने आरोप लगाया कि कैसे कांग्रेस पार्टी गांधी परिवार के चार लोगों के नियंत्रण में है!

भाजपा का यह पाखंड यह साबित करता है अवधारणाओं के युद्ध में गांधी-नेहरू परिवार पर हमला करके भाजपा सिर्फ कांग्रेस को बचाव की मुद्रा में लाना चाहती है. कांग्रेस जब भी भाजपा की ओर से फेंके गए इस चारे की ओर लपकती है, यह अपने को नुकसान पहुंचा लेती है. यह भाजपा को मजबूत और कांग्रेस को कमजोर बनाता है. कई बार तो भाजपा इसके लिए कोशिश भी नहीं करती. राहुल गांधी विदेश जाते हैं और प्रवासी भारतीयों को दिए साक्षात्कार में कुछ ऐसा कहते प्रतीत होते हैं कि ‘राजनीतिक परिवार से होने के लिए मुझे अफसोस है.’


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नेहरू-गांधी परिवार का होने की वजह से माफी मांगने की बजाय राहुल गांधी को इस बात का गर्व होना चाहिए. कांग्रेस पार्टी की एकमात्र खूबी यही है कि वह नेहरू-गांधी परिवार की पार्टी है. यदि गांधी-नेहरू परिवार को हटा दिया जाए तो कांग्रेस पार्टी में कुछ नहीं बचेगा. यही कारण है कि कांग्रेस के लोगों ने सोनिया गांधी से आग्रह किया कि वे कांग्रेस पार्टी की कमान संभालें, क्योंकि यह नरसिम्हा राव और सीताराम केसरी के नेतृत्व में पत्तों के महल की तरह ढह रही थी.

गर्व से स्वीकार कीजिए

पी चिदंबरम को गांधी नेहरू परिवार के बाहर के नेता गिनाने की जगह कहना चाहिए कि उन्हें गर्व है कि उनकी पार्टी का नेतृत्व गांधी-नेहरू परिवार के हाथ में है. इस परिवार के दो सदस्यों ने देश के लिए अपनी जान दी. नेहरू ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में हिस्सा ​लेकर करीब नौ साल तक जेल में बिताया. उन्हें पहली बार कांग्रेस का अध्यक्ष उन महात्मा गांधी की सिफारिश पर बनाया गया था, जिन्हें नरेंद्र मोदी अपनाने की कोशिश कर रहे हैं.

सभी प्रभावशाली नेताओं की तरह गांधी-नेहरू ऐसी शख्सियत वाले नेता हैं जिनकी झोली में कुछ असफलताओं के साथ उपलब्धियां ज्यादा हैं. फिर भी, सिर्फ हिंदुत्ववादी ही हैं जो उन्हें गाली देते हैं. बुजुर्ग लोग नेहरू, इंदिरा और राजीव को प्रेम से याद करते हैं. कांग्रेस को अपने गांधी उपनाम पर माफी मांगने की जगह इस परिवार पर अपने मालिकाने का दावा करने का अभियान चलाना चाहिए. शायद अब तक की सबसे अद्भुत परिवारवादी सोनिया गांधी हैं जिन्होंने अटल बिहारी वाजपेयी जैसे नेता को उखाड़ फेंका. उनके नेतृत्व में कांग्रेस ने 10 साल तक शासन किया और भारतीय मतदाताओं ने भाजपा की उस बात पर ध्यान नहीं दिया कि वे ‘इतालवी’ हैं.

आधुनिक भारत के नायक नेहरू, इंदिरा और राजीव को पुनर्जीवित करके ही राहुल गांधी अपनी विरासत के गौरव का आनंद उठा सकते हैं. राहुल गांधी की झोली में उपलब्धियां नहीं हैं. वे मतदाताओं के बीच अपने को भारत के स्वतंत्रता संग्राम, लोकतंत्र और दशकों की प्रगति से जोड़कर पेश कर सकते हैं.

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