चीन के स्टार के फीका पड़ने पर भारत ने दावोस में अपनी ताकत का प्रदर्शन किया,” जूलिया होरोविट्ज़, सीएनएन बिजनेस रिपोर्टर, ने 19 जनवरी को स्विट्जरलैंड के दावोस के स्की रिसॉर्ट शहर से लिखा. भारत के बिजली मंत्री आरके सिंह ने उनसे कहा: “मुझे निवेश के लिए कहना नहीं पड़ा. निवेश अभी-अभी आया है.” दावोस में वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम में प्रदर्शन पर उन्हें विश्वास से भर दिया.
दावोस से लौटे भारतीय तीन चीजों के बारे में बात करते हैं. पहला, बेशक, आरके सिंह का “भोजन, ऊर्जा और पानी की परस्पर क्रिया” पर एक सत्र में शानदार प्रदर्शन है. जब न्यूयॉर्क टाइम्स के कॉलमनिस्ट और सीएनबीसी पर सह-एंकर एंड्रयू रॉस सॉर्किन ने यूक्रेन के साथ युद्ध के बीच रूस से तेल आयात पर भारत को घेरने की मांग की, तो सिंह ने ऊर्जा परिवर्तन और जलवायु कार्रवाई में भारत के नेतृत्व के बारे में तथ्यों और आंकड़ों का हवाला देते हुए उन्हें चुप करा दिया. सिंह ने कहा, “मैं रूस से आयात बंद कर दूंगा लेकिन पहले यूरोपीय देशों को करने दीजिए.”
दावोस में चर्चा का दूसरा बिंदु यह था कि कैसे योग गुरु श्री श्री रविशंकर ने “दक्षिण एशिया के पुनर्जागरण” पर एक सत्र में पाकिस्तान की कनिष्ठ विदेश मंत्री हिना रब्बानी खार को आड़े हाथ लिया. जब उसने आरोप लगाया कि भारतीय लड़ाकू जेट 2019 में पाकिस्तानी क्षेत्र (बालाकोट हवाई हमले) में प्रवेश कर गए क्योंकि (लोकसभा) चुनाव “जीतना था”, तो शंकर भी ताबड़तोड़ जबाव देते हुए बोले: “पूरी दुनिया जानती है कि आतंकवाद कहां पनप रहा है. ओसामा बिन लादेन कहां था?” हिना रब्बानी मुस्कुरा रही थीं जब उन्होंने कहा कि वह “सरकार से नहीं, बल्कि आध्यात्मिक, सामाजिक क्षेत्र से हैं.” वह एक आध्यात्मिक गुरु के साथ एक मौखिक द्वंद्व में शामिल नहीं होने के लिए दृढ़ थी क्योंकि वह अपनी विशेषज्ञता के क्षेत्र- “शांति के लिए ध्यान” पर चर्चा करना चाहती थीं. वह नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) सहित प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की नीतियों का और उनका बचाव करते रहे.
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शिंदे शो
दावोस से भारतीयों की तीसरी याद के साथ लौटे हैं कि कैसे महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने WEF में हलचल पैदा की. दो अन्य मुख्यमंत्री- उत्तर प्रदेश के योगी आदित्यनाथ और कर्नाटक के बसवराज बोम्मई- और महाराष्ट्र के उप-मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस दावोस शिखर सम्मेलन में भाग लेने वाले थे. लेकिन इन भाजपा नेताओं ने दावोस के बजाए नई दिल्ली में पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में भाग लिया. एकनाथ शिंदे ने इसका बेहतरीन इस्तेमाल किया और 1.37 लाख करोड़ रुपये के समझौता ज्ञापनों पर हस्ताक्षर किए. शिंदे दावोस में किसी सत्र का हिस्सा नहीं थे. फिर भी, वह दावोस शहर में एमओयू की वजह से चर्चा में बने रहे. जब एक पत्रकार ने 1.37 लाख करोड़ रुपये का हवाला दिया, तो उन्होंने उससे कहा- “यह एक सौ सैंतीस हजार करोड़ रुपये है.” क्यों ये अधिक प्रभावशाली लग रहा है, है ना? महाराष्ट्र पवेलियन का उल्लेख द वाशिंगटन पोस्ट जैसे अंतर्राष्ट्रीय प्रकाशनों में भी मिला है क्योंकि यह वह जगह थी जहां रूसी मंडप हुआ करता था. अब घर वापसी की बात करें तो, विपक्ष के नेता आदित्य ठाकरे सीएम की दावोस यात्रा पर 30-40 करोड़ रुपये के खर्च का आरोप लगा रहे थे.
जब मैं पिछले हफ्ते नई दिल्ली में उनसे मिला तो शिंदे विपक्ष के आरोपों से परेशान नहीं दिखे. “मेरा एकमात्र उद्देश्य मुंबई और महाराष्ट्र में आम आदमी के जीवन को बेहतर बनाना है और यह केवल बुनियादी ढांचे के विकास के माध्यम से होगा. आप देखेंगे कि मेरी सरकार 2024 में मतदाताओं का सामना करने से पहले मुंबई और महाराष्ट्र को कैसे बदल देगी,” शिंदे ने मुझे बताया.
हमारी 35-40 मिनट चली बातचीत में, वह उन परियोजनाओं की लिस्ट मुझे बता रहे थे जिन पर उनका ध्यान केंद्रित था-मुंबई और सिंधुदुर्ग के बीच एक्सेस-नियंत्रित एक्सप्रेसवे, अगले सात-आठ महीनों में मुंबई ट्रांस-हार्बर लिंक को पूरा करना, नागपुर-गोवा कॉरिडोर, पुणे-नासिक इंडस्ट्रियल कॉरिडोर वगैरह-वगैरह. “और हमें इस बात की चिंता किए बिना मुंबई में कब उतरने की उम्मीद करनी चाहिए कि हम जाम में नहीं फंसेंगे?” मैंने पूछा. अगले चुनाव से पहले यह बहुत बेहतर होगा, आश्वस्त शिंदे ने जवाब दिया, फिर से सूचीबद्ध किया कि उनकी सरकार मुंबई के भीड़-भाड़ को कम करने के लिए क्या कर रही है – यातायात चौराहों के नीचे दो मंजिला सुरंगों का विकल्प तलाशना, मेट्रो के काम में तेजी लाना जो 50-60 लाख कारों को सड़क पर लाने से रोक देगा , मुंबई तटीय सड़क, आदि.
ऐसे समय में जब हर कोई शिंदे और ठाकरे की शिवसेना के बीच बाल ठाकरे की राजनीतिक विरासत पर लड़ाई पर सवार है, सीएम एक प्रशासक के रूप में अपनी ब्रांडिंग पर काम कर रहे हैं. वह फडणवीस मंत्रिमंडल में थे और फिर ठाकरे मंत्रिमंडल में लेकिन वे ठाकरे परिवार के संरक्षण में सिर्फ एक अन्य शिवसैनिक बने रहे. सीएम के रूप में, वह अब सामने आ रहे हैं. या ऐसा लगता है कि जिस तरह से वह अपने शासन के बारे में बात करते हैं, राजनीति पर सवालों को अलग रखते हैं. महाराष्ट्र के लिए उनके ‘दृष्टिकोण’ को इस तर्क के साथ खारिज करना आसान है कि वे जिन बुनियादी ढांचा परियोजनाओं का हवाला दे रहे हैं, उनमें से कई की कल्पना फडणवीस या उद्धव सरकार के दौरान की गई थी.
तथ्य यह है कि शिंदे उनमें से अधिकांश की देखरेख कर रहे थे- पहले लोक निर्माण मंत्री के रूप में, जिन्होंने फडणवीस सरकार के दौरान महाराष्ट्र राज्य सड़क विकास निगम (MSRDC) का नेतृत्व किया और फिर उद्धव के नेतृत्व वाली सरकार में शहरी विकास और लोक निर्माण मंत्री के रूप में. सीएम के रूप में भी, वह पीडब्लू (पब्लिक अंडरटेकिंग) पोर्टफोलियो अपने पास रख रहे हैं.
यह महाराष्ट्र के सार्वजनिक निर्माण मंत्री (1995-99) के रूप में उनके कार्यकाल के दौरान था कि नितिन गडकरी ‘भारत के बुनियादी ढांचे के आदमी’ के रूप में राष्ट्रीय सुर्खियों में आए, जो बहु-प्रशंसित मुंबई-पुणे एक्सप्रेसवे और कई अन्य बुनियादी ढांचा परियोजनाओं के पीछे थे. 2014 से लोक निर्माण मंत्री के रूप में, शिंदे मुंबई-नागपुर एक्सप्रेसवे और अन्य बुनियादी परियोजनाओं के लिए भी श्रेय का दावा कर सकते हैं, भले ही उनमें से कई के पीछे फडणवीस का दिमाग था.
अपनी अलग पहचान बना रहें है
तो, शिंदे का इंफ्रा फोकस हमें उनकी राजनीति के बारे में क्या बताता है? यह कि वह बिल्कुल भी फडणवीस की छत्र छाया में नहीं है , जिन्हें पीछे से महाराष्ट्र सरकार को चलाने वाला माना जा रहा है.और यह कि शिंदे उद्धव खेमे से ‘विश्वासघात’ के नारे और शिवसैनिकों की वफादारी और शिवसेना के प्रतीक को हासिल करने के संघर्ष से दबे नहीं हैं. मुख्यमंत्री महाराष्ट्र के लिए अपने खुद के प्रशासनिक कौशल और दूरदर्शिता को दिखाने में व्यस्त हैं. भारत का चुनाव आयोग जल्द ही सेना के चुनाव चिन्ह-धनुष और बाण-पर निर्णय लेने वाला है. स्पष्ट रूप से शिंदे के लिए अपनी सेना को एक साथ रखना और उद्धव के खेमे से उन्हें दूर करना महत्वपूर्ण है. आने वाले बृहन्मुंबई नगर निगम (बीएमसी) चुनाव में यह उनके गुट, बालासाहेबंची शिवसेना के लिए भी महत्वपूर्ण है.
शिंदे एक योजना पर काम कर रहे हैं और सभी परिस्थितियों के लिए खुद को तैयार कर रहे हैं. उन्होंने बड़े पैमाने पर अपने पांच सहयोगियों-राहुल शेवाले, दीपक केसरकर, दादा भुसे, उदय सामंत और अब्दुल सत्तार को संगठनात्मक कार्य सौंपा है. वह अपने सांसद पुत्र श्रीकांत, एक युवा नेता, को आगे नहीं ला रहे हैं. जब आप वंशवाद के खिलाफ लड़ते हैं तो आप अपने वंश का प्रचार नहीं करते. जहां शिवसैनिक उद्धव या शिंदे के प्रति अपनी वफादारी को लेकर असमंजस में हैं, वहीं शिंदे उनके दिमाग को घुमाने के लिए अपने शासन मॉडल का प्रदर्शन कर रहे हैं. आग लोगों की पहुंच से दूर माने जाने वाले उद्धव ठाकरे के विपरीत, शिंदे सैनिकों के लिए अपने दरवाजे खुले रखते हैं. वह अब ‘शाखाओं’ को सशक्त बनाने और उन्हें लोगों और सरकार के बीच मध्यस्थ बनाने की योजना पर काम कर रहे हैं.
अगर किसी की सरकार से कोई मांग या शिकायत है, तो स्थानीय शिवसेना कार्यालय उनके निवारण के लिए सिंगल विंडो मैकेनिज्म होगा. अगर शिवसैनिकों को ठाकरे और उनकी सरकार दूर लगती है, तो शिंदे उनके बीच रहना चाहते हैं और अपनी सरकार को उनके लिए सुलभ बनाना चाहते हैं. यदि बालासाहेब की विरासत पर दावा करने के लिए ठाकरे का खून का रिश्ता है, तो शिंदे उसी का दावा करने के लिए अपने काम और दृष्टि का प्रदर्शन करना चाहते हैं. इस प्रक्रिया में, वह खुद को स्वतंत्र के रूप में भी पेश कर रहे हैं, न कि किसी ऐसे व्यक्ति के रूप में जो फडणवीस के रहमो करम पर लटका हुआ है, जैसा कि उनके कई सहयोगी और निंदक लोग मानते होंगे.
fशिंदे सफल होते हैं या नहीं, यह इस बात पर निर्भर करेगा कि वह अगले 20 महीनों में आम आदमी के जीवन को बदलने के अपने वादे को कितना पूरा कर पाते हैं. शिवसेना का अपना कोई गडकरी नहीं रहा. गडकरी 2 के रूप में शिंदे एक ऐसा विचार है जो उद्धव और फडणवीस दोनों को उठकर नोटिस लेने पर मजबूर कर देगा.
(डीके सिंह दिप्रिंट के राजनीतिक संपादक हैं. @dksingh73 ट्वीट करते हैं. यहां व्यक्त विचार निजी हैं.)
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