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Thursday, 21 November, 2024
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उत्तर प्रदेश में जंगल राज जारी है और योगी देश और धर्म को सुरक्षित बता रहे हैं

जब उन्होंने देश के सुरक्षित होने की बात कही तो कई लोगों को समझ में नहीं आया कि जिस देश की बात कर रहे हैं, उसमें वह उत्तर प्रदेश भी शामिल है या नहीं, जिसके वे मुख्यमंत्री हैं?

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क्या पता कि यह उनकी कोई ग्रंथि है, जो रह-रहकर उभर आती है, या महज वह बड़बोलापन, जिसके लिए वे लम्बे अरसे से जाने जाते रहे हैं! उत्तर प्रदेश के अपनी तरह के अलबेले मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ आजकल जब भी लोगों को संबोधित करते हैं, मुख्यमंत्री के बजाय प्रधानमंत्री की तरह. भले ही इस चक्कर में वे न मुख्यमंत्री की तरह अपनी बात कह सकें, न ही प्रधानमंत्री की तरह.

इसकी एक मिसाल उन्होंने गत दिनों अयोध्या में भी बनाई, जब कर्नाटक से लाई गई कोदंड राम की प्रतिमा का अनावरण और विश्व हिन्दू परिषद द्वरा प्रायोजित श्रीराम जन्मभूमि न्यास के अध्यक्ष महंत नृत्यगोपाल दास के 81वें जन्मदिवस समारोह का उद्घाटन करने वहां पहुंचे. अपने संबोधन में ‘वहीं’ राम मन्दिर निर्माण के प्रति ‘सम्पूर्ण समर्पण’ दर्शाने के लिए उन्होंने तुलसीदास के रामचरितमानस की बहुप्रचलित चैपाई का एक हिस्सा- ‘रामकाजु कीन्हें बिना मोहि कहां बिसराम’- उद्धृत किया और उसके बाद अपनी सरकार और अपने प्रदेश की बातें कम कीं, मोदी सरकार और देश की ज्यादा.


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अपने तईं सबसे बड़ी बात उन्होंने यह कही कि अब देश भी सुरक्षित है और धर्म भी. यहां बिना उनके कहे समझा जा सकता है कि धर्म से उनका आशय किस धर्म या उसके किस रूप से था. लेकिन जब उन्होंने देश के सुरक्षित होने की बात कही तो कई लोगों को समझ में नहीं आया कि जिस देश की बात कर रहे हैं, उसमें वह उत्तर प्रदेश भी शामिल है या नहीं, जिसके वे मुख्यमंत्री हैं? शामिल है तो उसके सरकारी अमले में ऐसी असुरक्षा क्यों व्याप्त है कि उसे, और तो और, खुद मुख्यमंत्री की ‘छवि’ और ‘मान’ तक सुरक्षित नहीं लगते?

क्यों हालत यह हो चली है कि ये छवि और मान किसी पत्रकार के किसी मीडिया संस्थान द्वारा प्रसारित वीडियो को शेयर करने भर से असुरक्षित महसूस करने लग जाते हैं? वो भी इस कदर कि प्रदेश की पुलिस को स्वतः संज्ञान लेकर पत्रकार के खिलाफ आईटी एक्ट की धारा 66 के साथ मानहानि कानून की धारा में भी एफआईआर दर्ज करानी पड़ जाती है? इतना ही नहीं, इस पत्रकार को तो पकड़ना ही पड़ता है, वीडियो वाला कार्यक्रम प्रसारित करने वाले चैनल की हेड और सम्पादक को जेल भी भेजना पड़ता है.

जानकारों की मानें तो उसकी इन कार्रवाइयों के बावजूद मुख्यमंत्री की छवि और मान की सुरक्षा पक्की नहीं मानी जा सकती क्योंकि सोशल मीडिया पर सक्रिय पत्रकारों को लग रहा है कि क्या पता, आगे उनमें से कब किसकी गिरफ्तारी की नौबत आ जाए.

पत्रकारों को ऐसा इसलिए भी लग रहा है कि प्रदेश की पुलिस मुख्यमंत्री के विरुद्ध ‘अमर्यादित’ टिप्पणियों को लेकर कुछ ज्यादा ही संवेदनशीलता प्रदर्शित करती रही है. गत वर्ष नवम्बर में उसने बहराइच में एक ऐसी ही ‘अमर्यादित’ फेसबुक पोस्ट के सिलसिले में एक व्यक्ति को गिरफ्तार कर उस पर आईटी एक्ट का मुकदमा ठोंक दिया था. इस मामले में बहराइच कोतवाली नगर क्षेत्र के गौरव गुप्ता ने राना सुल्तान जावेद, जीशान जावेद, हारुन खान, शफीक खान और किंग खान के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई थी.

उससे पहले अप्रैल, 2017 में योगी के मुख्यमंत्री बनते ही पुलिस ने उनके एक भाषण पर टिप्पणी को लेकर मुजफ्फरनगर के जाकिर अली त्यागी को गिरफ्तार कर जेल भेजा गया था. उसे लगभग 40 दिन जेल में बिताने पड़े थे. पुलिस ने उन पर धारा 420 के तहत भी मामला दर्ज किया था. यह सिलसिला सर्वोच्च न्यायालय द्वारा पत्रकार प्रशांत कनौजिया की गिरफ्तारी को नागरिक आजादी पर डाका बताने के बावजूद थमा नहीं है.

दूसरे पहलू पर जायें तो योगी के अयोध्या में देश और धर्म दोनों के सुरक्षित होने की बात कहने के कोई सप्ताह भर पहले ही अलीगढ़ के टप्पल क्षेत्र में नये सिरे से सिद्ध हो चुका था, कि देश के सबसे बड़े प्रदेश में और कोई सुरक्षित हो तो हो, वे बेटियां कतई सुरक्षित नहीं हैं, जिनको बचाने और पढ़ाने की हमारे सत्ताधीशों की तोतारटंत अब पुरानी पड़ चुकी है.

प्रसंगवश, गत 30 मई को टप्पल में ढाई साल की मासूम बच्ची को हैवानों ने बिस्किट का लालच देकर बुलाया और मार डाला. उसकी गलती इतनी-सी थी कि उसके माता-पिता कभी किसी जरूरत के वक्त इन हैवानों से लिया 10 हजार रुपये कर्ज नहीं चुका पाये थे और हैवानों को बच्ची को मारकर इसका बदला लेना था. उन्होंने उसकी आंख निकालकर शरीर पर तेजाब डाला, उसे बोरे में भरकर घर में फ्रीज में रखा और बाद में कचरे के डिब्बे में डाल दिया. बाद में उसका शव मिला तो वह बुरी तरह गल गया था.

इस नृशंस वारदात की खबर और उससे उत्पन्न गम व गुस्सा फैला तो सोती पकड़ी गयी पुलिस व प्रशासन की नींद टूटी और उनके द्वारा कई गुनहगारों की गिरफ्तारी के बाद जिलाधिकारी ने मामले की मजिस्ट्रेटी जांच का ऐलान कर दिया. लेकिन वारदात में हिन्दू-मुस्लिम एंगल तलाशने और लाभ उठाने की कोशिशें तब तक हार मानने को तैयार नहीं हुईं, जब तक यह बात सामने नहीं आ गई कि हिन्दुओं के शुभ की भाजपा अथवा योगी राज की तमाम चिंताओं का सच यह है कि एक सामान्य हिन्दू परिवार के लिए उस पर चढ़ा 10 हजार रुपयों का कर्ज चुकाना भी मुश्किल हो गया है.

खैर, टप्पल की यह बच्ची कम से कम इस अर्थ में ‘भाग्यशाली’ थी कि उसके साथ हुए गुनाह में इंसाफ के लिए देश भर से आवाजें उठीं. लेकिन बुंदेलखंड के हमीरपुर के कुरारा क्षेत्र में घर से उठाकर ले जाई गई और एक कब्रिस्तान के पास गैंगरेप की शिकार बनाई गई एक मजदूर की 11 साल की बच्ची को ज्यादा जनसहानुभूति भी नसीब नहीं हुई. अलबत्ता, गुस्साये लोगों ने कई घंटों तक पुलिस को उसका शव नहीं ले जाने दिया. ये पंक्तियां लिखने तक बच्ची के परिजनों की मामले की सीबीआई जांच की मांग नक्कारखाने में तूती की आवाज बनी हुई है.

उधर, मेरठ के खरखौदा इलाके की कांशीराम कालोनी में भी एक नौ साल की बच्ची को भी खुद से दुष्कर्म के विरोध की कीमत अपनी जान देकर चुकानी पड़ी है. उसके शोर मचाने की कोशिश करने पर दुष्कर्मी ने गला दबाकर उसकी हत्या कर दी और शव चादर में लपेट कर और बाइक पर लादकर ब्रह्मपुरी इलाके के नाले में फेंक आया.

देवरिया में एक कोचिंग में आगे की सीट पर बैठने के विवाद में बंजरिया शुक्ल गांव निवासी 12वीं के छात्र रंजीत कुमार सिंह को कुछ अमीरजादों ने मारने की नीयत से बुरी तरह पीटा. फिर भी उसकी जान नहीं निकली तो उस पर दो बार बाइक चढ़ाकर सुनिश्चित कर दिया कि किसी भी तरह वह बच न सके. उसकी हत्या में सरकारी अमले की काहिली के साथ सामाजिक कायरता ने भी अपनी भूमिका निभाई. वह पिटता और चीखता रहा मगर कोई उसे बचाने को आगे नहीं आया.

प्रदेश में अपराधों और अपराधियों के बोलबाले से जो हालात हैं, उनमें वारदातों की इस सूची को और लम्बा किया जा सकता है. लेकिन यह बताने के लिए इतनी ही घटनाएं पर्याप्त हैं कि 2017 के विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी और अखिलेश के जंगल-राज को मुद्दा बनाने और उससे निजात दिलाने का वादा करके आई भाजपा की योगी आदित्यनाथ सरकार ने उक्त वादे की ओर से किस तरह आंखें फेर रखी हैं.


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कोढ़ में खाज यह कि सत्ता दल के तौर पर इसकी जिम्मेदारी से बचने के लिए भाजपा अजीबोगरीब चीजों में राहत ढूढ़ने लगी है. इसे इस रूप में समझा जा सकता है कि लोकसभा चुनाव के दौरान राजस्थान में उछले गैंगरेप कांड के बाद अब मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल स्थित कमला नगर में आठ साल की बच्ची का शव नाले से मिलने की खबर आते ही उसके कई समर्थकों के चेहरे पर चमक आ गई है, क्योंकि अब उनके पास यह कहने का आधार हो गया है कि ऐसे जघन्य कृत्य उप्र में ही नहीं, राजस्थान व मध्य प्रदेश जैसे कांग्रेस शासित राज्यों में भी हो रहे हैं.

कौन समझाये उन्हें कि न्याय शास्त्र का सामान्य-सा नियम है कि एक अपराध दूसरे का औचित्य नहीं सिद्ध कर सकता और राजस्थान व मध्य प्रदेश में भी उत्तर प्रदेश जैसी ही असुरक्षा फैल जाये तो उत्तर प्रदेश की असुरक्षा सुरक्षा में नहीं बदल जाने वाली.

(लेखक जनमोर्चा अख़बार के स्थानीय संपादक हैं, यह लेख उनका निजी विचार है)

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