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Thursday, 19 December, 2024
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कांग्रेस विचारकों को पुरस्कार देकर मोदी सरकार क्या संकेत दे रही है?

भाजपा नेतृत्व में या तो गहरी हीन भावना है, जो अपने कट्टर निंदक बौद्धिकों से दबती है. केवल कांग्रेस की नक़ल की है, बुनियादी रूप से भिन्न नीति सोचा तक नहीं.

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भाजपा सरकार द्वारा कुलदीप नैयर को ‘उत्कृष्ट कोटि की विशिष्ट सेवा’ के लिए पद्म-विभूषण से सम्मानित किया गया है. यह कोई आकस्मिक या अनायास नहीं. पिछले जून माह में भाजपा अध्यक्ष उनसे मिलने भी गए थे. तब फौरन नैयर ने एक लेख प्रकाशित करके भाजपा शासन को ‘अशुभ’ बताते हुए फिर पहले की तरह केवल फटकारा और दुत्कारा.

जबकि नैयर एक सामान्य पत्रकार थे, जो इंदिरा गाँधी की एमरजेंसी के संयोग से एकाएक बड़े गिने जाने लगे. तब तक उन्हें कोई नहीं जानता था, जबकि वे मध्यवय की प्रौढ़ आयु के हो चुके थे. फिर, उनके अखबारी लेखों में आदतन हिन्दू-विरोध, इस्लाम-परस्ती और पाकिस्तान के प्रति प्रेम नियमित तौर पर देखा जाता रहा. केवल शाब्दिक नहीं, एक्टिविस्ट के तौर पर भी वे यह करते रहे. यहाँ तक कि वे कश्मीर पर पाकिस्तानी आईएसआई के प्रायोजित विदेश के जलसों में भी जाते थे. अमेरिका में गुलाम नबी फई की गिरफ्तारी के बाद नैयर ने सफाई जरूर दी कि उन्हें पता नहीं था कि जलसे आयोजित करने वाला फई पाकिस्तानी एजेंट था, पर यह बेकार की बात थी. फई की पहचान जगजाहिर थी.


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तो ऐसे लेखक-एक्टिविस्ट को ‘विशिष्ट सेवा’ का राष्ट्रीय सम्मान देकर भाजपा सत्ताधारियों ने बौद्धिक जगत को क्या संदेश दिया है? विशेष कर उन तमाम लेखकों, पत्रकारों, बुद्धिजीवियों, एक्टिविस्टों को जिन्हें हिन्दूवादी या ‘सांंप्रदायिक’ कहा जाता है?

प्रश्न की गंभीरता इससे स्पष्ट होगी कि नैयर जैसे लेखक की तुलना में राम स्वरूप, सीताराम गोयल या कोनराड एल्स्ट का योगदान अप्रतिम रहा है. तीनों को विश्व स्तर पर हिन्दू और हिन्दू पक्षी मौलिक चिन्तक-लेखक के रूप में जाना जाता है. राजनीतिक दृष्टि से भी, स्वयं संघ-भाजपा का भी विविध झूठे लांछनों से बचाव करने में कोनराड का बौद्धिक काम अतुलनीय है. वह भी उस जमाने में जब ऐसा करना और भी लांंछनीय तथा अपनी हानि करना होता था. यह सब बातें संघ और भाजपा का नेतृत्व बखूबी जानता है, और दशकों से जानता है. ये तीन केवल उदाहरण हैं.

तब यदि ऐसे सचमुच विशिष्ट, असाधारण विद्वानों को भाजपा सत्ताधारियों ने कभी किसी स्मरण के लायक नहीं समझा, तो इसके निहितार्थ बड़े रोचक और गंभीर हैं. अब तक, 11 वर्ष केंद्रीय शासन चला चुके भाजपा सत्ताधारियों ने एक हजार से अधिक लोगों को पद्म पुरस्कार दिए हैं. लेकिन इनमें यदि ये तीन क्यक्ति कभी इसके योग्य नहीं समझे गए, तो इसका अर्थ साफ है.


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या तो भाजपा नेतृत्व में गहरी हीन भावना है, जो अपने कट्टर निंदक बौद्धिकों से दबती है या फिर उसे सचमुच हिन्दू भारत की दिनों-दिन विकट होती स्थिति का कोई अंदाजा नहीं. या दोनों ही बातें हैं. शायद इसीलिए उन्होंने हर चीज में केवल कांग्रेस की नकल की है. अपनी ओर से किसी बुनियादी रूप से भिन्न नीति बनाने की सोचा तक नहीं.

ऐसी स्थिति में, ‘कांग्रेस मुक्त भारत’ का नारा उनका बौद्धिक और राजनीतिक खालीपन ही दर्शाता है. आखिर, प्रणब मुखर्जी ने आजीवन कांग्रेस की ही सेवा की है, तब यदि वे भारत के रत्न हैं, तो भाजपा द्वारा कांग्रेस की निंदा करना भी अनर्गल हो जाता है. उससे देश को ‘मुक्त’ करने की बात करना तो दूर रहा. बल्कि अपने अब तक के तमाम कामों से भाजपा ने अपने को कांग्रेस की नकल करने वाला ही साबित किया है, तब यदि लोग असल की ओर ही मुड़ने लगें, तो क्या अजब!

(शंकर शरण हिंदी के स्तंभकार और राजनीति विज्ञान के प्रोफेसर हैं.)

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