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Tuesday, 8 July, 2025
होममत-विमतकोलकाता लॉ कॉलेज रेप मामला दिखाता है कि TMC सरकार के लिए महिलाओं से ज्यादा पार्टी के गुंडे अहम हैं

कोलकाता लॉ कॉलेज रेप मामला दिखाता है कि TMC सरकार के लिए महिलाओं से ज्यादा पार्टी के गुंडे अहम हैं

टीएमसी ने यूनिवर्सिटी की राजनीति को जिस तरह अपने कब्ज़े में ले लिया है, वह पश्चिम बंगाल की महिलाओं के लिए बड़ा खतरा है. मोनोजित मिश्रा जैसे लोगों को कैंपस से दूर रखना बेहद ज़रूरी है.

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पश्चिम बंगाल सरकार के अधीन चलने वाले साउथ कलकत्ता लॉ कॉलेज में एक बेहद गंभीर वारदात हुई. इसी कॉलेज के एक पूर्व छात्र और उसके साथी, जो दोनों ही कानून के छात्र हैं, पर कॉलेज परिसर में गैंगरेप जैसी घिनौनी घटना को अंजाम देने का आरोप है.

इस मामले की सच्चाई जानने के लिए भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष जेपी नड्डा के निर्देश पर चार सदस्यों वाली एक फैक्ट-फाइंडिंग कमेटी बनाई गई. कमेटी में संसद के मौजूदा पार्टी मेंबर शामिल किए गए. इन सदस्यों का चयन उनकी पेशेवर समझ, कानून, समाज, संस्कृति, जनसंख्या और इस मामले की गंभीरता को ध्यान में रखते हुए किया गया.

पश्चिम बंगाल को हमेशा से ‘देवी क्षेत्र’ कहा जाता रहा है, जहां महिलाओं को सुरक्षित और सम्मानित माना जाता था और समाज में लैंगिक समानता भी बेहतर थी, लेकिन हैरानी की बात यह है कि एक महिला मुख्यमंत्री के नेतृत्व में अब राज्य में महिलाओं, खासकर युवतियों पर अपराध तेज़ी से बढ़ रहे हैं. चिंता की बात यह है कि इन अपराधों में अक्सर तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) के कार्यकर्ताओं का नाम सामने आ रहा है.

यह सही है कि देश के अन्य राज्यों और पार्टियों में भी महिलाओं के खिलाफ अपराध होते हैं, लेकिन पश्चिम बंगाल ऐसा इकलौता राज्य है, जहां पार्टी के गुंडों को खुलकर सुरक्षा दी जाती है.

इन मामलों में सबसे डरावनी बात यह है कि राजनीतिक दलों से जुड़े लोग बार-बार महिलाओं के खिलाफ अपराध कर रहे हैं—वो भी बेखौफ, बिना किसी डर के.

जांच और खुलासे

पश्चिम बंगाल बीजेपी द्वारा साझा की गई एफआईआर की कॉपी से यह बड़ा खुलासा हुआ कि आरोपियों के असली नाम हटा दिए गए हैं और इसकी जगह I, G, S, P और D जैसे शुरुआती अक्षर लिखे गए हैं, जिनका असली आरोपियों से कोई संबंध नहीं है. ऐसे में सबसे बड़ा सवाल ये है—आखिर असली अपराधी हैं कौन? क्योंकि इन अक्षरों का किसी भी मुख्य आरोपी से कोई मेल नहीं है. मामले का मुख्य आरोपी मोनोजित मिश्रा है, जिसे ‘मैंगो’ नाम से भी जाना जाता है.

एफआईआर से नामों को इस तरह हटाना और बदलना पूरी तरह हैरान करने वाला है. इसकी कोई तर्कसंगत वजह नज़र नहीं आती. क्या पुलिस पर राजनीतिक दबाव है ताकि इस जघन्य अपराध पर परदा डाला जा सके? हमें पीड़िता से मिलने की इजाज़त नहीं दी गई, वजह बताई गई उनकी सुरक्षा और निजता—लेकिन मामला कुछ और ही लगता है. हमें एक मोबाइल नंबर दिया गया, जिसे पीड़िता के पिता का बताया गया, लेकिन उस नंबर पर सभी कॉल्स बेकार रहीं और भेजे गए व्हाट्सऐप मैसेज भी पढ़े नहीं गए. ऐसा लगता है कि लड़की और उनके परिवार को कहीं छिपा दिया गया है. संभावना है कि उन्हें किसी से मिलने तक नहीं दिया जा रहा और पुलिस उन पर दबाव डाल रही है ताकि वे सरकार के मुताबिक बयान दें.

आरजी कर केस से समानता

साउथ कलकत्ता लॉ कॉलेज और आरजी कर मेडिकल कॉलेज—दोनों ही रेप केस एक बेहद डरावना सच उजागर करते हैं. दोनों मामलों में साफ दिखता है कि किस तरह कॉलेज कैंपस में महिलाओं के खिलाफ यौन हिंसा का सिलसिला राजनीतिक संरक्षण और प्रशासनिक नाकामी की वजह से बढ़ रहा है. इन दोनों घटनाओं में आरोपियों को कॉलेज परिसर में खुला घूमने की छूट दी गई थी—एक मामले में वालंटियर (स्वयंसेवक) के तौर पर और दूसरे में स्टाफ के रूप में, जिन्हें कैंपस में व्यवस्था बनाए रखने के नाम पर जिम्मेदारी दी गई थी, उन्होंने उसी का गलत फायदा उठाया और महिलाओं को शिकार बनाने की कोशिश की. इन दोनों मामलों से यह भी साफ होता है कि किस तरह छात्र राजनीति में अपराधीकरण गहराता जा रहा है और हमारे शैक्षणिक संस्थानों में लड़कियों की सुरक्षा सुनिश्चित करने में सिस्टम पूरी तरह फेल हो रहा है—जबकि इन्हीं संस्थानों को लड़कियों को सशक्त करने का माध्यम बनना चाहिए था.

मैंने आरजी कर मामले पर पहले भी विस्तार से लिखा है.

सरकारी संरक्षण का पैटर्न

पश्चिम बंगाल के किसी भी कॉलेज में पिछले आठ साल से छात्र संघ चुनाव नहीं हुए हैं. फिर भी छात्र संगठनों का संचालन जारी है. टीएमसी से जुड़े पार्टी कार्यकर्ताओं को कॉलेजों के छात्र संघ, गवर्निंग बॉडी और यहां तक कि थानों तक में घुसा दिया गया है—कभी स्वयंसेवक (वॉलंटियर) के तौर पर तो कभी किसी पद पर बैठाकर. एफआईआर दर्ज होनी है या नहीं, केस कैसे सुलझेगा, कानूनी कार्रवाई क्या होगी—इन सबका फैसला अब ये स्वयंसेवक ही अनौपचारिक रूप से करने लगे हैं.

इस केस की गहराई से जांच करने पर और भी चौंकाने वाले तथ्य सामने आए. सच्चाई ये है कि हर राजनीतिक दल में कुछ उपद्रवी तत्व होते हैं, लेकिन आमतौर पर पार्टी की अनुशासनात्मक समितियां ऐसे मामलों में सख्त कार्रवाई करती हैं. रेप जैसे जघन्य अपराध करने वाले पार्टी कार्यकर्ताओं को सस्पेंड करना या पार्टी से बाहर करना सामान्य बात होती है. किसी पार्टी का कार्यकर्ता अगर गैंगरेप जैसे अपराध में शामिल हो, तो ये खुद पार्टी के लिए राजनीतिक आत्महत्या जैसा होता है, लेकिन सबसे डरावनी बात यह है कि पश्चिम बंगाल में टीएमसी ने ऐसे अपराधियों को बचाने के लिए पूरी राजनीतिक ताकत झोंक दी है.

हमारी जांच में मोनोजित मिश्रा का आपराधिक इतिहास सामने आया है. 2014 में उस पर अलीपुर में एक युवक को बांस से मारने की कोशिश का आरोप लगा था. 2017 में लॉ कॉलेज में एक छात्र पर हथियार से हमला करने का आरोप था. 2018 में कालीघाट में एक कारोबारी को बंदूक दिखाकर धमकाने का मामला था. 2022 में उस पर एक महिला के खिलाफ हिंसक हमला करने का आरोप था. इन मामलों में कई बार उसके खिलाफ गैर-जमानती धाराएं लगीं, फिर भी वो खुलेआम घूमता रहा. पिछले साल उसने टॉलीगंज में एक 24 साल के युवक की हत्या की कोशिश की थी.

इसके बावजूद, उसे कॉलेज में अस्थायी क्लर्क के तौर पर नौकरी दे दी गई, जहां उसे कथित तौर पर रोज़ाना 500 रुपये मिलते थे. वो पहले भी चार-पांच बार जेल जा चुका है. कॉलेज प्रशासन को उसकी पूरी आपराधिक पृष्ठभूमि मालूम थी, लेकिन चूंकि वो टीएमसी छात्र संगठन का सक्रिय सदस्य था और कॉलेज की गवर्निंग बॉडी ने ही उसे रखा था, इसलिए उसे कॉलेज में पूरी छूट थी—जो चाहे करे, जैसा चाहे करे.

गवर्निंग बॉडी के सदस्य पश्चिम बंगाल सरकार द्वारा नियुक्त होते हैं और कॉलेज की गवर्निंग बॉडी के अध्यक्ष हैं टीएमसी विधायक अशोक कुमार देब. हालांकि, उन्होंने मोनोजित मिश्रा की नियुक्ति से इनकार किया. उन्होंने कहा, ‘‘मैं राजनीतिज्ञ हूं, लोग मुझसे मदद मांगते रहते हैं. मैंने किसी की सिफारिश नहीं की.’’ बाकी का जोड़-घटाव आप खुद कर सकते हैं.

मनोजित मिश्रा कथित तौर पर साउथ कलकत्ता लॉ कॉलेज के टीएमसी छात्र संगठन का सदस्य था. हालांकि, इस यूनिट को “गुंडागर्दी” के आरोपों के बाद भंग कर दिया गया था, फिर भी उसका दबदबा बढ़ता गया. कैंपस में उसे टीएमसी का “डिफैक्टो स्ट्रॉन्गमैन” कहा जाने लगा—जिसे कॉलेज के रोज़मर्रा के कामों में दखल देने और अपनी राजनीतिक ताकत का दुरुपयोग करने की खुली छूट थी.


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छात्र राजनीति का दिखावा और मनमानी

पश्चिम बंगाल में छात्र राजनीति के हालात पर मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने अब तक कुछ भी नहीं कहा है. यही तरीका है, जिससे कोलकाता में छात्र नेता तैयार होते हैं— पहले कैंपस में दहशत फैलाते हैं, फिर किसी ऐसी पार्टी में शामिल हो जाते हैं जो उन्हें संरक्षण देती है और फिर उसी राजनीतिक संरक्षण के सहारे अपनी मनमर्जी की राजनीति करते हैं.सबसे बड़ा सवाल यह है कि जिस राज्य की मुख्यमंत्री खुद महिला हैं, वहां महिलाओं के खिलाफ अपराध क्यों बढ़ रहे हैं? मैंने भी इस पर कहा है— “एक ऐसे समाज में, जहां देवी दुर्गा की पूजा होती है और जहां महिलाओं का वर्चस्व माना जाता है, क्या हालात अब ऐसे ही बनते जा रहे हैं?”

मोनोजित मिश्रा के खिलाफ 11 मामले दर्ज हैं, इसके बावजूद कॉलेज की गवर्निंग बॉडी ने उसे अस्थायी कर्मचारी के तौर पर नियुक्त कर लिया— सभी पुलिस वेरिफिकेशन और कानूनी बैकग्राउंड चेक्स को पूरी तरह दरकिनार कर दिया.

सरकारी संस्थानों में नियुक्ति का नियम बिल्कुल साफ है— कैंपस में नौकरी के लिए पहले गजट में विज्ञापन दिया जाता है, फिर आवेदन करने वाले उम्मीदवारों का बैकग्राउंड चेक या पुलिस वेरिफिकेशन कराया जाता है, ताकि छात्रों, कॉलेज और यूनिवर्सिटी की सुरक्षा सुनिश्चित हो सके.

लेकिन जब कोई राजनीतिक रूप से ताकतवर हो, या सत्ताधारी पार्टी का पाला पोसा गुंडा हो, तो उसे सीधा भर्ती कर लिया जाता है—वो भी खास मकसद के साथ. ऐसे लोगों की जिम्मेदारी होती है— पार्टी के लिए छात्र जोड़ना, पार्टी की सदस्यता बढ़ाना और सुनिश्चित करना कि पूरा कैंपस सरकार के एजेंडे पर चले. मोनोजित मिश्रा का भी यही काम था— कैंपस में राज्य सरकार का एजेंडा लागू करवाना. यूनिवर्सिटी पॉलिटिक्स का ऐसा कार्टेल किसी भी राज्य के लिए नुकसानदायक है— चाहे वह बिहार हो, कर्नाटक या फिर पश्चिम बंगाल. अगर हम नहीं चाहते कि राज्य ‘मैंगो रिपब्लिक’ बन जाए, तो हमें मोनोजित मिश्रा जैसे कई ‘मैंगो’ टाइप लोगों को अपने कैंपसों से दूर रखना ही होगा.

(मीनाक्षी लेखी भाजपा की नेत्री, वकील और सामाजिक कार्यकर्ता हैं. उनका एक्स हैंडल @M_Lekhi है. व्यक्त किए गए विचार निजी हैं)

(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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