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Sunday, 22 December, 2024
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आजम खान की ठाठ और ठसक से बीजेपी को दिक्कत है!

आजम खान एक प्रभावशाली नेता हैं और रामपुर में उनका सिक्का चलता है. रामपुर अगर आज उत्तर प्रदेश के सबसे व्यवस्थित और सुंदर शहरों में है, तो इसका काफी श्रेय आजम खान को जाता है.

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आजम खान बीजेपी के लिए खास हैं. खुद उनका कहना है कि वे बीजेपी के लिए आइटम नंबर हैं, जिनका राग छेड़े बगैर, बीजेपी यूपी में कोई चुनाव नहीं लड़ती. अगर आजम खान बीजेपी के लिए खास न होते तो यूपी की बीजेपी सरकार के कार्यकाल में उन पर लगभग 80 मुकदमे न हुए होते.

ये मुकदमे भी कोई साधारण नहीं हैं. उन पर बकरी चोरी, किताब चुराने से लेकर भैंस चुराने तक के मुकदमे लगाए गए हैं. किताब चोरी का मुकदमा गंभीर साबित हो सकता है. ये संज्ञेय और गैर-जमानती अपराध है, जिसमें तीन साल तक कैद की सजा हो सकती है. हालांकि उन पर यूनिवर्सिटी बनाने के लिए जमीन हड़पने के भी आरोप लगे हैं. आजम खान कहते हैं कि उन्हें मालूम भी नहीं है कि उन पर कितने मुकदमे हैं और ये कहां-कहां दर्ज हैं. सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने कहा है कि उनकी सरकार बनने पर ये मुकदमे वापस ले लिए जाएंगे.


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बीजेपी के निशाने पर क्यों है आजम खान 

इस नेता पर बीजेपी की खास नजर इसलिए नहीं कि वे यूपी की रामपुर सीट से सांसद हैं या कि वे 10 बार विधायक और कई बार मंत्री रह चुके हैं. समाजवादी पार्टी के वे प्रमुख नेताओं में हैं, लेकिन ये कारण भी काफी नहीं है, जिसकी वजह से वे बीजेपी के निशाने पर रहते हैं.

पिछले दिनों आजम खान की लोकसभा सदस्यता जाते-जाते बची, क्योंकि उन्होंने ऐसा माना गया कि, पीठासीन अधिकारी को लेकर अभद्र बात बोल दी थी. इस बयान को लेकर पूरी बीजेपी उन पर टूट पड़ी और उन्हें दो बार सदन से माफी मांगनी पड़ी. ये उस संसद में हुआ जहां बड़ी संख्या में सांसद ऐसे हैं जिन पर आपराधिक मुकदमे चल रहे हैं. बलात्कार के आरोपों में चार्जशीट होने के बावजूद कुलदीप सिंह सेंगर की विधानसभा की सदस्यता नहीं जाती है, लेकिन सदन के पटल पर कही गई एक बात पर आजम खान का इस्तीफा लेने की कोशिश होती है.

दरअसल यहां पर बीजेपी का उद्देश्य आजम खान के उस गुरूर, उस स्वाभिमान को तोड़ने की थी, जिसके लिए वे जाने जाते हैं, वरना तो सदन के पटल पर पहले बहुत कुछ कहा जा चुका है. लेकिन कहने वाला आजम खान हो, तो बात ही कुछ और बन जाती है.

पिछले लोकसभा चुनाव में भी जब आजम खान से रामपुर से सांसद रहीं जयाप्रदा के बीजेपी में जाने को लेकर राजनीतिक मुहावरों में एक टिप्पणी की तो बीजेपी ने इसे चुनावी मुद्दा बना दिया और अमित शाह ने तो चुनावी भाषणों तक में इसका जिक्र किया. ये भाषण यूपी के बाहर भी दिए गए.

ओवैसी नहीं, आजम खान पर है बीजेपी की नज़र

तो फिर वही सवाल. आजम खान में ऐसा क्या खास है कि बीजेपी का उनके बगैर काम नहीं चलता. क्योंकि बात सिर्फ मुसलमान नेता होने की नहीं है. देश में कई और मुसलमान नेता हैं. अहमद पटेल, गुलाम नबी आजाद, सलमान खुर्शीद, असदुद्दीन ओवैसी, बदरुद्दीन अजमल जैसे बड़े नेता मुसलमान समुदाय से आते हैं. लेकिन बीजेपी का फोकस ज्यादातर आजम खान पर बना रहता है.

इसकी दो वजहें हो सकती हैं.


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मुसलमान नेता की छवि से मुक्त हैं आजम

एक, वे समाजवादी जन नेता हैं. उन्हें मुस्लिम मुद्दों और मुसलमान आबादी के साथ सीमित नहीं किया जा सकता. इसकी वजह उनके राजनीतिक अतीत में है. आजम खान एक बेहद साधारण परिवार में जन्मे. उनके पिता रामपुर में टाइपिंग इंस्टीट्यूट चलाया करते थे. वे वहां से अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी पढ़ने गए और वहां छात्र संघ के महासचिव चुने गए. इस बीच देश में इमरजेंसी लग गई और ये बागी छात्र नेता स्वाभाविक रूप से गिरफ्तार कर लिया गया. जेल में उनका स्टेटस स्पेशल था. उन्हें एक छोटे से कमरे में अकेले कैद रखा गया. जेल से भी वे बाकी लोगों के बाद छूटे.

रामपुर के नवाब से भिड़ गए आजम

इसके बाद से उनका सबसे बड़ा प्रोजेक्ट रामपुर में नवाबी खानदान को आम जनता की बराबरी पर लाना हो गया. रामपुर के नवाब और उनके परिवार का रामपुर सीट पर लगातार कब्जा था और नवाब के मरने के बाद उनकी पत्नी कांग्रेस के टिकट पर ये सीट जीतती रही. इस वर्चस्व को तोड़ने का काम आजम खान ने सफलतापूर्वक किया. आज स्थिति ये हो गई है कि कांग्रेस रामपुर लोक सभा सीट से नवाब के परिवार के किसी सदस्य को टिकट तक नहीं देती है. रामपुर की विधानसभा सीट भी नवाब परिवार की जगह आजम खान के बेटे के पास है.

चूंकि आजम खान के सामने प्रतिद्वंद्वी के तौर पर एक मुस्लिम नवाबी परिवार था, इसलिए बीजेपी उन पर मुस्लिम नेता का टैग लगा नहीं पाई. बीजेपी का यहां उभार बहुत बाद की बात है.


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रामपुर में आजम खान की धाक

दूसरी वजह शायद है कि आजम खान एक प्रभावशाली नेता हैं और रामपुर में उनका सिक्का चलता है. रामपुर अगर आज उत्तर प्रदेश के सबसे व्यवस्थित और सुंदर शहरों में है, तो इसका काफी श्रेय आजम खान को जाता है. शासन में रहते हुए आजम खान वह सब कर जाते हैं, जो बाकी नेता सोच भी नहीं सकते. मिसाल के तौर पर, पिछली सरकार में आजम खान ने रामपुर में डॉक्टरों की अधिकतम फीस तय कर दी थी. मांस का रेट भी शहर में तय कर दिया गया. ऐसा करके आजम खान ने कुछ लोगों को नाराज जरूर कर दिया, लेकिन ढेर सारे लोग खुश भी हुए होंगे. आजम खान की ये ठाठ और ठसक बीजेपी को चिढ़ाती है.

आजम खान कभी भी सिर्फ मुसलमान नेता नहीं रहे. राम मंदिर आंदोलन के दौर में आजम खान राजनीतिक परिदृश्य में तो थे, लेकिन बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी और ऐसे दूसरे संगठनों से उनका ज्यादा वास्ता नहीं रहा. बाबरी मस्जिद आंदोलन का चेहरा जाफरयाब जिलानी और सैयद शाहबुद्दीन जैसे लोग ही बने. आजम खान उस रेस में कभी शामिल नहीं रहे. उस दौर में वे नवाब से भिड़ने और रामपुर में आम आदमी का राज लाने में ही लगे रहे.

आजम खान ने नवाब की ठाठ तो मिटा दी, अब उनका मुकाबला शाह से है. आजम खान सैकड़ों संघर्षों से उबरकर आम आदमी के आजम बने हैं. इस समय वे अपने जीवन की सबसे कठिन लड़ाई लड़ रहे हैं. बीजेपी उन्हें तोड़ने में, झुकाने में लगी हुई है. लेकिन जैसा कि अर्नेस्ट हेमिंग्वे ने अपनी कहानी ओल्ड मैन एंड द सी के बूढ़े मछुआरे के बारे में कहा था कि आप आदमी को नष्ट कर सकते हैं, हरा नहीं सकते. आजम खान शायद वही आदमी हैं.

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं और ये लेख में उनके निजी विचार हैं)

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1 टिप्पणी

  1. कितना बेहूदा और वाहियात लेख लिखा जा सकता है वो भी प्रिंट जैसे जीमेदार मंच पर आज पता चला। आजम खान को legitamacy देने के चक्कर में कुछ भी लिखे जा रहे हैं। उनके काले कारनामों की देख तो लेते।

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