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Tuesday, 17 December, 2024
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पैसिफिक समंदर पार खालिस्तान: कैसे कनाडा में जन्मा गैंग्स ऑफ पंजाब

सिद्धू मूसेवाला की हत्या से अंतरदेशीय आपराधिक गिरोहों पर खौफनाक रोशनी पड़ी, जिसकी जहरीली हवा पंजाब के युवाओं में घर कर रही है.

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अर्नेस्टो ‘चे’ ग्वेरा, जिनके शब्द और खूबसूरत चेहरा अरबों टी-शर्ट की प्रेरणा बने, ने लिखा कि क्रांतिकारी को ‘संपूर्ण संन्यासी होना चाहिए.’ ऐसा आदमी जो ‘कठोर आत्म-संयम से उपजी सादगी’ के साथ ‘नैतिक आचार-विचार’ से बंधा हो, ‘जिससे वह उस सुधार का सच्चा पुजारी दिखे, जिसकी वह कामना करता है.’ क्रांतिकारी हरावल दस्ता, जो मानव विकास की सर्वोच्च अवस्था है, का मतलब रायफल चमकाना, जैसे-तैसे झूलन खटोलों पर सोना और पुलिस से भागना नहीं होता है. ग्वेरा जोर देकर कहते हैं कि ये तो डकैतों के वक्त काटने के लिए होते हैं.

अब, चिनार के पत्तों के साये में एक अलग तरह का क्रांतिकारी सौंदर्य-शास्त्र विकसित हो गया है. एक खालिस्तानी हिप-हॉप वीडियो में रॉल्स रॉयस कारों, शानदार विला और बेसबॉल शर्ट में कुछ बीसेक बरस की बालाओं में गाना झूमता है, ‘कलाश्निकोव भी क्या गजब की चीज है, जैसे ही उठाओ, किसी को शूट करने का जी करता है.’

सिद्धू मूसेवाला नाम से चर्चित शुभदीप सिंह सिद्धू की हत्या अंतरदेशीय आपराधिक गिरोहों की राज्य में बढ़ती पहुंच की ओर खौफनाक रोशनी डालती है. सिद्धू मूसेवाला राजनीतिक, खालिस्तान के पैरोकार और पंजाब की गैंगस्टर संस्कृति के कवि थे, जो अपने साथ वालों को ‘बंदूक के साथ जीने-मरने’ की वकालत करते थे. भारत में यह कहानी कम लोगों को पता है कि कैसे पैसिफिक के पार ये गिरोह उभरे और कैसे घर वापसी की. पंजाब में युवाओं के बीच कैसी जहरीली हवा बह रही है, उसके लिए यह जानना जरूरी है.


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पंजाबी गिरोह का उभार

कहते हैं, भूपेंद्र ‘बिंदी’ सिंह जोहाल ने अपने दोस्तों से कहा था, ‘तेज रफ्तार जिंदगी जीओ, जवानी में मरो और खूबसूरत शव बनो.’ कुछ लोगों को यह अविश्वसनीय लगेगा क्योंकि ये पंक्तियां 1947 में लिखी कम चर्चित एक अनोखी किताब की हैं. सबसे चर्चित पंजाबी मूल के कनाडाई गैंगस्टरों को शायद वह दुनिया मिल गई है, जिसकी चर्चा विलियर्ड मोटली ‘नॉक ऑन एनी डोर’ में करते हैं. जोहाल की ही तरह मोटली की किताब का केंद्रीय पात्र युवा अप्रवासी हैं, जिसे मध्यवर्गीय स्वर्ग में प्रवेश नहीं मिलता तो हिंसक अपराध की ओर मुड़ जाता है और मारा जाता है.

कनाडा में पंजाबी मूल के लोगों ने भारत की सबसे समृद्ध धरोहर की नींव रखी: कोमागाटा मारु मामले से नस्लवाद विरोधी संघर्ष छिड़ा, गदर क्रांतिकारी उभरे, राजनैतिक उपलब्धियों की गाथा ने जन्म लिया. जोहल (अपने दोस्तों के लिए बिंदी) उस सपने में किसी विसंगति से उभरा.

जब उसका परिवार 1975 में कनाडा पहुंचा तो जोहल पांच साल का था. कहते हैं, उसे इकलौती, वैंकुवर में काम करने वाली मां ने पाला-पोसा. शुरू में जोहल स्कूल में पढ़ाई में अच्छा था. उसी स्कूल में जहां के छात्र अब अंतरराष्ट्रीय विकास मंत्री हरजीत सज्जन हैं. लेकिन जोहल वाइस प्रिंसिपल पर हिंसक हमले की वजह से स्कूल से निकाल दिया गया. फिर उसे कार विंडो तोड़ने से लेकर मार-पीट करने के जुर्म में सजा हुई.

वैंकुवर की धरती पर पंजाबी मूल के गिरोहों का उभार 1980 के दशक में हुआ. इसकी एक वजह नस्लीय भेदभाव था, तो दूसरी समुदाय में आपसी सांस्कृतिक टकराव और तीसरी दूसरे मूल के समुदायों की मर्दानगी वाले तौर-तरीकों की नकल. कहा जाता है कि जोहल का मूलरूप से स्पानी भाषी गिरोह लॉस डायबोल्स में प्रवेश उसके स्कूल के दोस्त फैजल डीन ने कराया. बाद में, गिरोह जब मूल समुदाय के आधार पर बंट गए तो वह रॉन और जिमी दोसांझ भाइयों के पंजाबी गिरोह में चला गया.

अपराध विज्ञानी स्टीफन शेनीडर का अनुमान है कि कोकीन और मार्जियुआना के फलते-फूलते बाजार से जोहल जल्दी ही हफ्ते में 8,00,000 डॉलर कमाने लगा. हालांकि काम खून-खच्चर वाला था. 1995 में जोहल पर अपने संरक्षक दोसांझ भाइयों के कत्ल का मुकदमा चला. वह छूट गया-शर्तिया तौर पर. अब पता चलता है कि वजह उसके सह-अभियुक्त के जज गिलियन गेस से गुपचुप रिश्ते थे.

कोकीन का लती, ऊटपटांग व्यवहार करने वाले जोहल की एक भीड़ भरे नाइटक्लब में डांस करते वक्त उसके अपने गैंग ने ही हत्या कर दी. उसका हत्यारा बाल बटर खुद एक गैंगवार में हमेशा के लिए अपाहिज हो गया. जांचकर्ताओं से बटर ने कबूल किया कि दोनों कई अनसुलझे हत्याओं के पीछे थे. कुछ तो पैसे के लिए हत्या के साइड बिजनेस के कारण हुई, जिसे वे एलिट कहा करते थे.

जड़ों की तलाश

पिछले दशक की शुरुआत से अप्रवासी गैंगस्टरों ने अपने पैतृक देश में अपनी जड़ें फैलानी शुरू कीं. गांव के स्तर पर खेल आयोजन, मंदिरों-गुरुद्वारों को दान के अलावा बड़ी कारें और जायदाद खरीदनी शुरू की. अमेरिका में 2005 में ड्रग्स के आरोप में पकड़े गए हरजीत मान, जसदेव सिंह और सुखराज धालीवाल को पंजाब में दनके गांव वालों ने दिल खोलकर दान देने वाला बताया. गिरोहों के नाम भी पंजाब के गांव पर रखे गए. मसलन, ढकदुहरे, संघेरा, मल्ही बटर वगैरह.

पंजाबी गिरोहों ने फ्रेशर वैली में ड्रग्स के कारोबार पर अपनी पकड़ मजबूत करने की कोशिश की तो 2012 में कई हत्याओं में संदीप, बलराज और पॉल दुहरे का हाथ बताया गया. पिछले साल कनाडा की पुलिस ने अंतरदेशीय ड्रग्स कारोबार के सिलसिले में दबिश के दौरान जिन 20 लोगों को पकड़ा, उनमें नौ पंजाबी मूल के थे. वैंकुवर के बच्चों की तरह ही गैंगस्टर पंजाब में बच्चों प्रेरणास्रोत बन गए.

समाजशास्त्रीय मंजीत पाबला ने दर्ज किया कि समुदाय में जोहल कुछ लोगों के लिए राक्षस का अवतार था तो दूसरों के लोक हीरो. ब्रिटिश कोलंबिया के पूर्व सॉलिसिटर जनरल कश हीड ने कहा, ‘जब लोग बिंदी जोहल, रॉन या जिम्मी दोसांझ की बात करते हैं तो हर कोई जानता है कि वे क्या थे और क्या करते थे. ये लड़के तो उन्हीं की तरह बनना चाहते हैं.’

गिरोहवाद की विचारधारा

सहस्राब्दी बदलने के साथ ही धार्मिक विचारधारा उस तरीके में घुलने-मिलने लगी, जिसे ग्वेरा डकैती कहकर खारिज कर देते. खालिस्तानी हिंसा लंबे समय से कनाडा में मौजूद है. इसका जोर गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटियों के तख्तापलट और तारा सिंह हेयर जैसे सेक्युलर आवाजों की हत्या से बढ़ा. चाहे उनके मां-बाप उस संघर्ष को पीछे छोड़ आए हों, लेकिन नए लड़कों के समूह 1984 के सांप्रदायिक कत्लेआम और ऑपरेशन ब्लू स्टार जैसे मुद्दे फिर जिंदा कर लेते हैं.

2008 में सर्रे स्कूल के सिख छात्रों के एक समूह ने ‘खालिस्तान’ और भिंडरावाले के भाषणों के नारे लिखे टी-शर्ट पहने. उसी साल बाद में ब्रिटिश कोलंबिया के प्रधानमंत्री गॉर्डन कैंपबेल एक जुलूस में शामिल हुए जिसमें लोग एयर इंडिया की फ्लाइट 182 में बम धमाका करने वाले जलविंदर सिंह परमार की तस्वीरें लिए हुए थे.

विद्वान कमला नैयर ने लिखा कि खालिस्तान का समर्थन करने वाले युवा सिख अपनी पहचान के संकट से जूझने के लिए यह विचारधारा अपना लेते हैं. हिप-हॉप जैसे विरोध प्रदर्शन की संस्कृति की नकल करके युवा अपने मां-बाप के सांस्कृतिक रुझानों और उसी के साथ गोरे समाज में अपने अलगाव से लड़ते हैं. नैयर इस नई संस्कृति को ‘सिख परंपरा का रैप वर्सन’ बताती हैं.

इसी तरह पंजाब में आतंकवाद के दौर के बाद बंदूक संस्कृति का खास हिस्सा बन गई है. नेता और पुलिस वाले इसका बेहिसाब प्रदर्शन करते हैं तो यह सत्ता और हैसियत का प्रतीक बन गई है. अलबत्ता खालिस्तान आंदोलन को लोगों का समर्थन मामूली है मगर यह सत्ता के विरोध की भाषा मुहैया कराता है.

आखिर में गैंग संस्कृति को पितृसत्ता से हवा मिलती है. 2002 में एक विचारोत्तेजक लेख में पत्रकार रेणु बक्शी ने लिखा कि पुरुष गैंग हिंसा का पितृसत्ता से रिश्ता है. उन्होंने लिखा, ‘पंजाबी बच्चा जब आंख खोलता है, तभी उसके अभिभावक उसे जीवन का सार मुहैया करा देते हैं. बचपन के गुस्से में जब वह मां को मारता-पीटता है तो उसके बाप और दादी गर्व का अनुभव करते हैं.’

दिलचस्प यह भी है कि कनाडा के गैंगों के कई सदस्य मध्यम या उच्च वर्ग परिवारों से आते हैं. वे शायद अपने मां-बाप से ज्यादा कनाडाई समाज के साथ ज्यादा सहज होते हैं.

मायूस करने वाली यह कहानी शायद हमें ज्यादा न चौंकाए. टेड गर्र के मुताबिक, युवा आबादी वाले शहरों में अपराध की दर लगातार बढ़ रही है. बाकी लोगों के अलावा हेनरिक उर्दाल ने भी बताया है कि ज्यादातर आतंकवादी युवा हैं.

मध्ययूगीन यूरोप से थर्ड रीच तक संकट के हरावल दस्ता ऐसे नौजवान थे, जिनके पास कुछ करने को नहीं था. पंजाब में हिंसा के लिए आईएसआई की साजिश करार देना तो आसान है मगर शुभदीप सिद्धू की हत्या ने हमें उस ओर देखने का मौका मुहैया कराया है कि जब संस्कृतियां बेचैन युवकों को जोड़ने में नाकाम हो जाती हैं तो क्या होता है.

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

(लेखक दिप्रिंट के नेशनल सिक्योरिटी एडिटर हैं. वह @praveenswami पर ट्वीट करते हैं. व्यक्त विचार निजी हैं.)


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