ममता बनर्जी डेल कार्नेगी को एक-दो बातें सिखा सकती हैं. एक झटके में उन्होंने अपने सबसे कट्टर राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी दिलीप घोष से दोस्ती कर ली और उनकी पार्टी भारतीय जनता पार्टी में खलबली मचा दी है. वे कार्नेगी की बेस्टसेलर किताब के शीर्षक को बदलकर ‘How to Win Friends, Influence People and Demolish Rivals’ कर सकती हैं.
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और भाजपा की राज्य इकाई के पूर्व अध्यक्ष के बीच तटीय शहर दीघा में नए पुरी जगन्नाथ मंदिर के सामने हुई बातचीत ने भाजपा खेमे में आक्रोश की सुनामी ला दी है. पार्टी में घोष के वफादारों और अब उन्हें ट्रोजन हॉर्स और एक बड़े विश्वासघाती के रूप में चित्रित करने वालों के बीच वार-पलटवार हो रहा है.
खबरों के अनुसार भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व ने चुप रहने के लिए कहा है, लेकिन पार्टी की राज्य इकाई के भीतर कटुता थमने का नाम नहीं ले रही है, जो पहले से ही गुटीय तनाव से ग्रस्त है. चर्चा जोरों पर है कि घोष जिनकी दो हफ्ते पहले शादी हुई है, — तृणमूल कांग्रेस (TMC) में भी शामिल हो सकते हैं.
घोष ने कहा है कि यह बिल्कुल भी संभव नहीं है, लेकिन निष्कर्ष यह है कि आने वाले महीनों में चमत्कारिक राजनीतिक सुधार को छोड़कर, ममता ने 2026 में उनके खिलाफ एकजुट लड़ाई लड़ने के लिए भाजपा की किसी भी संभावना को निर्णायक रूप से नष्ट कर दिया है.
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फिश फ्राई दोस्ती
यह पहली बार नहीं है जब ममता बनर्जी ने इस तरह का राजनीतिक पैंतरा अपनाया है. 2014 में ममता बनर्जी ने वाम मोर्चे के कई नेताओं को तब शर्मिंदा कर दिया था जब उन्होंने सीपीआई (एम) नेता बिमान बोस को राज्य सचिवालय, नबन्ना में अपने कार्यालय में चाय और फिश फ्राई के लिए आमंत्रित किया था. बिमान बोस ने निमंत्रण स्वीकार कर लिया था.
कुछ लोगों ने इस बैठक को ‘‘आत्मसमर्पण’’ करार दिया था. कुछ ने इसे एक जाल बताया. एक से अधिक वामपंथी नेताओं ने चेतावनी दी थी कि ‘चाय पर चर्चा’ वामपंथी कार्यकर्ताओं का मनोबल और गिराएगी, जो 2011 में राज्य में वामपंथी शासन के अंत और 2014 के संसदीय चुनावों में वामपंथियों के निराशाजनक प्रदर्शन से पहले ही हताश हैं.
ऐसा लगता है कि इतिहास खुद को दोहरा रहा है.
30 अप्रैल को दीघा में होने वाले उद्घाटन के लिए दिलीप घोष और विपक्ष के नेता शुभेंदु अधिकारी को निमंत्रण भेजा गया था. शुभेंदु अधिकारी ने इस आयोजन को लेकर कई सवाल उठाए. राज्य के मुख्य सचिव को लिखे पत्र में उन्होंने इस बात पर स्पष्टता मांगी कि जिस परिसर का उद्घाटन किया जा रहा है, वह सांस्कृतिक केंद्र है या मंदिर. उन्होंने सवाल किया कि ममता बनर्जी सरकार मंदिर निर्माण में कैसे शामिल हो सकती है. यह स्पष्ट था कि वह खुद समारोह में शामिल नहीं होने जा रहे थे.
अंतिम क्षण तक दिलीप घोष की उपस्थिति भी अनिश्चित थी. ज़ाहिर है, ममता बनर्जी दीघा छोड़कर कोलकाता वापस जाने वाली थीं, ताकि होटल में आग लगने की दुखद घटना के स्थल पर संचालन की देखरेख कर सकें, जिसमें 14 लोग मारे गए थे, तभी घोष के आने की खबर आई. उन्हें घोष और उनकी पत्नी का स्वागत करने के लिए मंदिर परिसर में वापस लौटना पड़ा.
और उन्होंने इस मौके को हाथ से जाने नहीं दिया. उनके अपने फेसबुक पेज पर, बैठक को 10 मिनट तक लाइव दिखाया गया ताकि पूरी दुनिया देख सके: ममता एक सोफे पर बैठी थीं, बगल के सोफे पर, घोष और उनकी पत्नी, सभी एक दूसरे से दोस्ताना बातचीत कर रहे थे. 10 मिनट तक चली बैठक में कैमरे के पीछे यह पता नहीं चल पाया कि फिश फ्राई परोसा गया या मिठाई या चाय, लेकिन नुकसान तो हो चुका था.
भाजपा के राज्य प्रमुख सुकांत मजूमदार ने इस मामले को स्पष्ट कर दिया. ‘‘यह तय किया गया था कि पार्टी से कोई भी व्यक्ति (दीघा) नहीं जाएगा, खासकर उद्घाटन के दिन. दिलीप घोष व्यक्तिगत हैसियत से गए होंगे, लेकिन पार्टी इसका समर्थन नहीं करती.’’
शुभेंदु अधिकारी गुस्से में थे, लेकिन सतर्क थे, लेकिन अन्य नेताओं ने घोष पर गाली-गलौज की झड़ी लगा दी, कभी-कभी व्यक्तिगत रूप से भी.
ममता बनर्जी ने स्पष्ट रूप से एक और क्लासिक राजनीतिक रणनीति अपनाई थी: फूट डालो और राज करो.
आखिरी हंसी
सच तो यह है कि घोष के नेतृत्व में राज्य अध्यक्ष के रूप में, भाजपा ने 2019 और 2021 के चुनावों में पश्चिम बंगाल में अपने अब तक के सर्वश्रेष्ठ परिणाम प्राप्त किए: क्रमशः 18 सांसद और 77 विधायक. इस बात पर गर्व करते हुए, घोष ने पार्टी के शीर्ष पर बैठे मौजूदा शासन पर उनके प्रदर्शन की बराबरी करने में विफल रहने के लिए बिना किसी रोक-टोक के हमला किया, इसे बेहतर बनाने की तो बात ही छोड़िए. उन्होंने पूछा, ‘‘विधायक और सांसद भाजपा क्यों छोड़ रहे हैं?’’ गौरतलब है कि 2021 के चुनावों के बाद से कई सांसदों और विधायकों ने भाजपा छोड़ दी है.
भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व इस संकट से कैसे निपटता है, यह राज्य में 2026 के चुनावों में पार्टी के स्वास्थ्य के लिए महत्वपूर्ण होगा. फिलहाल, आखिरी हंसी ममता बनर्जी की है. उन्होंने खेल का नियम अच्छी तरह से सीख लिया है: राजनीति में कोई पक्का दोस्त या दुश्मन नहीं होता. यहां तक कि भाजपा नेता घोष, जिन्होंने अतीत में उन पर सबसे घिनौने शब्दों में हमला किया था, वे भी सही हैं.
(लेखिका कोलकाता स्थित वरिष्ठ पत्रकार हैं. उनका एक्स हैंडल @Monidepa62 है. व्यक्त किए गए विचार निजी हैं.)
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