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Thursday, 13 November, 2025
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बिहार 2025 चुनाव के लिए JDU का नया ‘जातीय गणित’ तैयार

इस बार बिहार में जेडीयू 101 सीटों पर चुनाव लड़ रही है, जो 2020 की तुलना में कम है. जानिए हमारी पड़ताल में उसके उम्मीदवारों की जातीय पृष्ठभूमि से क्या खुलासा हुआ.

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बिहार की राजनीति में जाति आज भी राजनीतिक लामबंदी का अहम आधार बनी हुई है. चुनाव में उम्मीदवार तय करते समय राजनीतिक दल जातीय पहचान को बड़ी अहमियत देते हैं. इसका ताज़ा उदाहरण चिराग पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी और उपेंद्र कुशवाहा की राष्ट्रीय लोक मोर्चा हैं—दोनों एनडीए का हिस्सा हैं जिन्होंने अपने उम्मीदवारों की जातिगत संरचना सार्वजनिक रूप से बताई है. भले ही दोनों पार्टियों की इस कदम को लेकर सोशल मीडिया पर आलोचना हो रही हो, लेकिन इससे यह साफ है कि बिहार की चुनावी राजनीति में जातीय समीकरण कितनी गहराई से जड़े हुए हैं.

यह लेख जनता दल (यूनाइटेड) यानी जेडीयू के उम्मीदवारों की जातीय पृष्ठभूमि का विश्लेषण कर रहा है. इसके लिए राज्यभर के स्थानीय नेताओं से बातचीत कर आंकड़े जुटाए गए हैं. नतीजा यह निकला कि जेडीयू का फोकस पिछड़ी जातियों (बीसी) और मुसलमानों से हटकर अत्यंत पिछड़ी जातियों (ईबीसी) और ऊंची जातियों की ओर ज्यादा झुक गया है. पिछड़ी जातियों में यादव उम्मीदवारों की संख्या 18 से घटकर 8 रह गई है.

JDU उम्मीदवारों की जातीय संरचना

एनडीए के सीट बंटवारे के तहत जेडीयू को इस बार 101 सीटें मिली हैं. यह बीजेपी के बराबर है, लेकिन 2020 के मुकाबले कम है, जब जेडीयू ने 115 सीटों पर चुनाव लड़ा था. पार्टी ने सभी 101 सीटों पर अपने उम्मीदवार घोषित कर दिए हैं.

आंकड़ों के अनुसार, जेडीयू ने 38 टिकट पिछड़ी जातियों (बीसी), 22 ऊंची जातियों, 21 अत्यंत पिछड़ी जातियों (ईबीसी), 16 अनुसूचित जाति/जनजाति (एससी/एसटी) और 4 मुसलमानों को दिए हैं. इस वर्गीकरण में मुसलमानों में पासमांदा और ऊंची जाति दोनों मुस्लिम समुदाय शामिल हैं.

Figure 1
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बिहार जाति सर्वे के मुताबिक, पिछड़ी जातियां (बीसी) राज्य की कुल आबादी का 27.13 प्रतिशत हैं, जबकि अत्यंत पिछड़ी जातियां (ईबीसी) 36 प्रतिशत हैं. हालांकि, यह जनसंख्या अनुपात जेडीयू की टिकट वितरण में समान रूप से नहीं झलकता. इसी तरह, राज्य में मुसलमानों की आबादी 17.7 प्रतिशत है, लेकिन पार्टी ने केवल 4 प्रतिशत टिकट मुस्लिम उम्मीदवारों को दिए हैं.

जब जेडीयू के 2025 और 2020 के टिकट वितरण की तुलना की गई, तो पाया गया कि ऊंची जातियों और अत्यंत पिछड़ी जातियों (ईबीसी) के उम्मीदवारों की हिस्सेदारी बढ़ी है.

एनडीए में जेडीयू की सीटें घटने के बावजूद पार्टी ने ऊंची जातियों के उम्मीदवारों की हिस्सेदारी 17.39 प्रतिशत से बढ़ाकर 21.78 प्रतिशत कर दी है. वहीं अत्यंत पिछड़ी जातियों (ईबीसी) की हिस्सेदारी 14.78 प्रतिशत से बढ़कर 20.79 प्रतिशत हो गई है. अनुसूचित जाति/जनजाति (एससी/एसटी) उम्मीदवारों की संख्या में मामूली बढ़ोतरी हुई है, लेकिन सामान्य सीटों से किसी को भी टिकट नहीं मिला. (Figure 2)

Figure 2
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वहीं पिछड़ी जातियों (बीसी) के उम्मीदवारों की हिस्सेदारी 43.48 प्रतिशत से घटकर 37.62 प्रतिशत रह गई है और मुसलमान उम्मीदवारों की हिस्सेदारी 9.57 प्रतिशत से घटकर 3.96 प्रतिशत हो गई है. 2020 के चुनाव में पार्टी के सभी 11 मुस्लिम उम्मीदवार हार गए थे—यह भी संभव है कि इस बार जेडीयू ने कम मुस्लिम उम्मीदवार उतारने का फैसला इसी वजह से किया हो.


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जाति-वार उम्मीदवार संरचना

राजनीति में जाति हमेशा व्यापक श्रेणी के स्तर पर नहीं चलती, बल्कि कई बार व्यक्तिगत जाति (उपजाति) स्तर पर असर डालती है. इसी वजह से हमने जेडीयू के उम्मीदवारों के नामांकन को जाति-वार भी परखा.

आंकड़ों के मुताबिक, हर जातीय वर्ग के भीतर भी उम्मीदवारों का वितरण कुछ खास जातियों के पक्ष में झुका हुआ है.

उदाहरण के तौर पर, ऊंची जातियों में टिकट बंटवारा मुख्य रूप से राजपूत (10) और भूमिहार (9) उम्मीदवारों के पक्ष में गया है. पार्टी ने केवल दो ब्राह्मण और एक कायस्थ उम्मीदवार को टिकट दिया है. ऊंची जातियों के तहत बाकी दो उम्मीदवार मुस्लिम समुदाय से हैं — एक शेख और एक पठान.

Figure 3
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पिछड़ी जातियों (बीसी) में टिकट वितरण कुशवाहा (13), कुर्मी (12) और यादव (8) जातियों के पक्ष में झुका हुआ है. कभी जेडीयू को लव-कुश पार्टी कहा जाता था, जहां लव का मतलब कुर्मी और कुश का मतलब कुशवाहा होता है और यह पहचान अब भी उसकी उम्मीदवार सूची में दिखाई देती है.

हालांकि, यादवों का प्रतिनिधित्व अब काफी घट गया है. 2020 में पार्टी ने 18 यादव उम्मीदवार उतारे थे, जिनमें से केवल 7 जीत पाए थे. इस बार जेडीयू ने सिर्फ 8 यादव उम्मीदवारों को टिकट दिया है.

अत्यंत पिछड़ी जातियां (ईबीसी) अब जेडीयू का मजबूत वोट बैंक मानी जाती हैं. इसी समूह से पार्टी ने सबसे ज्यादा उम्मीदवार उतारे हैं — धानुक (7), मल्लाह (3), तेली (2), कुलहैया मुस्लिम (2), कमत (2), गंगोटा (2), और एक-एक उम्मीदवार कनु, हलवाई, और गडरिया समुदाय से.

देखना यह होगा कि क्या ईबीसी समुदाय इस बार भी जेडीयू के साथ वफादार बना रहता है, क्योंकि राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) भी इस वर्ग को अपनी ओर खींचने की पूरी कोशिश कर रही है.

इसके अलावा, जेडीयू ने अनुसूचित जाति/जनजाति (एससी/एसटी) समुदायों से कुल 16 उम्मीदवार उतारे हैं. पिछली बार यह संख्या 17 थी. इन समुदायों में भी टिकट वितरण कुछ खास जातियों तक सिमटा है — रविदास (5) और मुसहर (5) समुदायों को सबसे ज्यादा टिकट मिले हैं, जबकि अनुसूचित जनजाति से केवल एक उम्मीदवार को मौका दिया गया है.

बिहार की अनुसूचित जातियों की सूची में कुल 23 जातियां शामिल हैं, लेकिन जेडीयू के उम्मीदवारों में केवल 7 एससी समुदायों का प्रतिनिधित्व है.

(अरविंद कुमार यूनिवर्सिटी ऑफ हर्टफोर्डशायर, यूके में पॉलिटिक्स और इंटरनेशनल रिलेशन के विज़िटिंग लेक्चरर हैं. उनका एक्स हैंडल @arvind_kumar__ है. पंकज कुमार जामिया मिलिया इस्लामिया में पीएचडी शोधार्थी हैं. यह लेखकों के निजी विचार हैं.)

(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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