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Monday, 4 November, 2024
होममत-विमतरोहिंग्याओं को गिरफ्तार करना सरकार का सही कदम वो भारतीय मुसलमानों के लिए खतरा हैं — उनका इतिहास टटोलिए

रोहिंग्याओं को गिरफ्तार करना सरकार का सही कदम वो भारतीय मुसलमानों के लिए खतरा हैं — उनका इतिहास टटोलिए

बॉर्डर के बाहर रोहिंग्या संकट जैसे खतरों को संबोधित करना शरणार्थी समूहों को मातृभूमि के भीतर पनपने की अनुमति देने से अधिक व्यवहार्य हो सकता है.

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24 जुलाई 2023 को उत्तर प्रदेश पुलिस के आतंकवाद-रोधी दस्ते ने राज्य में 74 रोहिंग्या मुस्लिम शरणार्थियों को गिरफ्तार किया, यह आरोप लगाते हुए कि वे बांग्लादेश के जरिए से भारत में प्रवेश करके अवैध रूप से रह रहे थे.

रोहिंग्या संकट एक दुखद स्थिति है जो कई दशकों में सामने आई है, जिसने सैकड़ों हज़ारों रोहिंग्या मुसलमानों को प्रभावित किया है, एक अल्पसंख्यक समुदाय जो ज्यादातर म्यांमार के राखीन में रहता है. न तो म्यांमार की सरकार और न ही राखीन का प्रमुख जातीय बौद्ध समूह, जिसे राखीन के नाम से जाना जाता है, रोहिंग्याओं को देश के नागरिक के रूप में मान्यता देते हैं बल्कि इसके बजाय उन्हें बांग्लादेश से “अवैध अप्रवासी” मानते हैं.

जबकि दक्षिण एशिया और दुनिया भर में मानवाधिकार कार्यकर्ता रोहिंग्या शरणार्थी संकट को मुख्य रूप से मानवीय दृष्टिकोण से देखते हैं, कुछ लोग इसकी मुस्लिम पहचान के चश्मे से भी व्याख्या करने की कोशिश करते हैं, यह सुझाव देते हुए कि उन्हें शरण देने में भारत की अनिच्छा एक निश्चित धार्मिक पूर्वाग्रह से प्रेरित है, कुछ भारतीय मुस्लिम संगठनों ने भी रोहिंग्या समुदाय के प्रति एकजुटता दिखाई है. अफसोस की बात है कि राष्ट्रीय हित को फिर एक विशेष समुदाय को पीड़ित करने और निशाना बनाने की कहानी के रूप में चित्रित किया जा रहा है.

फिर भी इस संकट पर भारत की प्रतिक्रिया राजनयिक, मानवीय, राजनीतिक और भू-राजनीतिक विचारों से जुड़े विभिन्न कारकों की बहुआयामी परस्पर क्रिया से आकार लेती है, लेकिन नई दिल्ली के लिए सबसे महत्वपूर्ण विचार राष्ट्रीय सुरक्षा है — और कुछ कट्टरपंथी रोहिंग्या समूहों से जुड़ी हिंसा के इतिहास को देखते हुए यह सही भी है.


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रोहिंग्याओं के अपने आतंकवादी हैं

रोहिंग्या संकट के संदर्भ में राष्ट्रीय सुरक्षा के बारे में सरकार की चिंताएं गलत नहीं हैं. वर्ष 1974 में रोहिंग्या पैट्रियटिक फ्रंट (आरपीएफ) का उदय हुआ — एक चरमपंथी सशस्त्र समूह जो स्पष्ट रूप से विश्व भर में इस्लामवादी आंदोलनों और कट्टरपंथी विचारधारा से प्रेरित था. इसके कुछ साल बाद समूह विभाजित हो गया और 1982 में रोहिंग्या सॉलिडेरिटी ऑर्गनाइजेशन (आरएसओ) के नाम से जाना जाने वाला अधिक कट्टरपंथी गुट का गठन हुआ. आगे विभाजन के कारण अराकान रोहिंग्या इस्लामिक फ्रंट (एआरआईएफ) का गठन हुआ. आरएसओ को कई मुस्लिम समूहों से समर्थन प्राप्त हुआ, जैसे बांग्लादेश और पाकिस्तान में जमात-ए-इस्लामी (जेईआई), अफगानिस्तान में हिज्ब-ए-इस्लामी (एचईआई), भारतीय राज्य जम्मू और कश्मीर (जेएंडके) में हिजबुल मुजाहिदीन, साथ ही मलेशिया में अंगकाटन बेलिया इस्लाम सा-मलेशिया (एबीआईएम) के रूप में.

1980 और 1990 के दशक में आरएसओ ने म्यांमार सीमा के पास बांग्लादेश के दूरदराज के हिस्सों में छोटे अड्डे बनाए थे, लेकिन मुख्य भूमि म्यांमार के भीतर इसकी उपस्थिति नहीं मानी जाती थी. हालांकि, अप्रैल 1994 में रोहिंग्या आतंकवादियों, जिनमें एक समूह भी शामिल था, जो दक्षिणी माउंगडॉ में म्यिन ह्लुट गांव में नाव से पहुंचे, ने बम लगाकर शहर पर हमला किया और कई नागरिकों को घायल कर दिया. रोहिंग्या मुजाहिदीन ने शहर के बाहरी इलाके को भी निशाना बनाया. आरएसओ के कथित तौर पर अल-कायदा के साथ संबंध थे — सीएनएन ने अगस्त 2022 में अल-कायदा के अभिलेखागार से जो 60 वीडियोटेप प्राप्त किए थे, उनमें से एक का शीर्षक ‘बर्मा’ था और इसमें बांग्लादेश में कॉक्स बाज़ार के पास आरएसओ शिविरों में हथियार चलाने की ट्रेनिंग ले रहे मुसलमानों को दिखाया गया था.


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भारतीय मुसलमानों के लिए खतरा

मानवीय दायित्व की वकालत करने वालों और सुरक्षा संबंधी चिंताएं व्यक्त करने वालों के बीच चल रही बहस के बीच, एक वैकल्पिक परिप्रेक्ष्य उभर कर सामने आता है. इस दृष्टिकोण के समर्थकों का तर्क है कि रोहिंग्या को अवैध प्रवासी मानने से वास्तव में भारत की सुरक्षा बढ़ने के बजाय कमजोर हो सकती है. उन्हें डर है कि समूह को निशाना बनाने से दमित रोहिंग्या समुदाय के भीतर कट्टरपंथ बढ़ सकता है, जिसके परिणामस्वरूप भारत पर महत्वपूर्ण “स्पिलओवर” प्रभाव पड़ सकता है. सीमा के पास एक कट्टरपंथी समुदाय की मौजूदगी न केवल भारत के लिए बल्कि पड़ोसी देशों में रहने वाले उसके प्रवासी भारतीयों के लिए भी एक गंभीर खतरा है. नतीजतन, वे रोहिंग्या संकट से निपटने में सुरक्षा निहितार्थों पर सावधानीपूर्वक विचार करने का आग्रह करते हैं.

यद्यपि यह तर्क आकर्षक लग सकता है, यह पहचानना महत्वपूर्ण है कि सीमा के बाहर रोहिंग्या संकट जैसे खतरों को संबोधित करना शरणार्थी समूहों को मातृभूमि के भीतर पनपने की अनुमति देने से अधिक व्यवहार्य हो सकता है. भारत पहले भी रोहिंग्या चरमपंथियों के हमले देख चुका है. उदाहरण के लिए, 7 जुलाई 2013 को बोधगया विस्फोट को म्यांमार में रोहिंग्या नरसंहार के प्रतिशोध के रूप में देखा गया था. बताया जाता है कि इंडियन मुजाहिदीन के संदिग्ध मोहम्मद उमैर सिद्दीकी ने खुद ऐसा कहा है. अक्टूबर 2014 में राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) ने बर्दवान विस्फोट के सिलसिले में खालिद मोहम्मद को गिरफ्तार किया — हैदराबाद का एक रोहिंग्या मुस्लिम जिसने म्यांमार में आतंकवादियों और लश्कर-ए-तैयबा (एलईटी) के सदस्यों को ट्रेनिंग दी थी.

राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा पैदा करने के अलावा इन कट्टरपंथी तत्वों में भारत में अन्य मुस्लिम समूहों को शिक्षित करने और उनके साथ संबंध बनाने की भी क्षमता है. यह स्थिति भारतीय मुस्लिम समुदाय के लिए विनाशकारी परिणाम पैदा कर सकती है और आम नागरिकों की सुरक्षा के लिए बड़ा खतरा पैदा कर सकती है. हमने देखा कि 2012 में आज़ाद मैदान में दंगे कैसे हुए. रखाइन हिंसा के विरोध में एकत्र हुए भारतीय मुसलमानों ने भड़काऊ भाषण दिए और स्थिति नियंत्रण से बाहर हो गई. इसके बाद हिंसा का दौर शुरू हो गया; महिला पुलिसकर्मियों के साथ छेड़छाड़ की गई और अमर जवान स्मारक का अपमान किया गया.

भारतीय मुसलमानों के लिए एक महत्वपूर्ण सबक सीखने का समय आ गया है. जब गंभीर मुद्दों को धर्म के चश्मे से देखा जा रहा है, तो वे समाज के भीतर मतभेदों को बढ़ाने का जोखिम उठाते हैं. राष्ट्र के हितों को दरकिनार करना और केवल साझा विश्वास के आधार पर अवैध आप्रवासियों का आंख बंद करके समर्थन करना विभाजनकारी परिणामों को जन्म दे सकता है. यदि मुस्लिम बुद्धिजीवी या नेता यह तर्क देते हैं कि अवैध मुस्लिम प्रवासियों को शरणार्थी का दर्ज़ा न देना उनके खिलाफ अन्याय है, तो उन्हें आत्मनिरीक्षण करने और अन्याय की परिभाषा से खुद को परिचित करने की ज़रूरत है.

(आमना बेगम अंसारी एक स्तंभकार और टीवी समाचार पैनलिस्ट हैं. वे ‘इंडिया दिस वीक बाय आमना एंड खालिद’ नाम से एक वीकली यूट्यूब शो चलाती हैं. उनका ट्विटर हैंडल @Amana_Ansari है. व्यक्त किए गए विचार निजी हैं.)

(संपादन: फाल्गुनी शर्मा)

इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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