यदि आप न्यूज़ देखते हैं या राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में रहते हैं, तो आपको पता होगा कि हवा धुंध के साथ भूरी हो गई है. अफसोस की बात है कि यह दिल्ली-एनसीआर के जीवन का एक हिस्सा बन चुका है जो कि हर सर्दी की शुरुआत में होता है. लेकिन अब, यह सिर्फ दिल्ली की ही कहानी नहीं है बल्कि कई अन्य भारतीय शहरों, खासकर मुंबई महानगर क्षेत्र में भी वायु गुणवत्ता सूचकांक खतरनाक स्तर तक बढ़ रहा है.
हवा की गुणवत्ता खराब होने के कई कारण हैं, जिनमें तापमान में गिरावट से लेकर खेतों में आग लगना और निश्चित रूप से बड़े पैमाने पर निर्माण गतिविधियां शामिल हैं. वाहनों से होने वाला प्रदूषण भी इसमें काफी बड़ा योगदान देता है – और वह भी पूरे साल. इससे भी बुरी बात यह है कि भारत की सड़कों पर वाहनों की संख्या बढ़ती जा रही है और अगले कुछ वर्षों में इसमें तेजी से वृद्धि जारी रहेगी.
यह लगभग तय है कि ग्रेडेड रिस्पॉन्स एक्शन प्लान (जीआरएपी) के तहत एनसीआर की सड़कों पर ज्यादा से ज्यादा वाहनों के चलने पर रोक लगाई जाएगी. इसके लिए बहुचर्चित ‘ऑड-ईवन’ योजना भी लागू की जा सकती है. लेकिन ये छोटे, अल्पकालिक समाधान हैं, जिनसे वास्तव में कोई बड़ा प्रभाव पड़ने के बजाय मनोवैज्ञानिक प्रभाव ज़्यादा होगा. ऑड-ईवन योजना में ढेर सारी खामियां हैं.
ईवी भी इससे अछूता नहीं
तो, क्या सरकार इसे हमेशा के लिए ठीक करने के लिए कुछ कर सकती है? चूंकि उनमें टेलपाइप उत्सर्जन ज़ीरो होता है इसलिए इलेक्ट्रिक वाहनों (ईवी) के प्रयोग को बढ़ावा देने का सुझाव देना बहुत आसान है. मैं कई महीनों से एक EV, Hyundai IONIQ 5 चला रहा हूं.
हां, इससे मुझे इस बात की आत्मसंतुष्टि ज़रूर मिलती है कि मैं शहर में प्रदूषण न बढ़ाने में मददगार हो पा रहा हूं. लेकिन, यह जानना काफी महत्वपूर्ण है कि ईवी भी पर्यावरण पर प्रतिकूल प्रभाव डालते हैं, क्योंकि ईवी को चार्ज करने के लिए बिजली का प्रयोग किया जाता है और भारत में उत्पादित अधिकांश बिजली कोयले से उत्पन्न की जाती है. इस प्रक्रिया में टनों कार्बन डाइऑक्साइड बाहर निकलती है. वहीं, ईवी में प्रयोग होने वाली लिथियम-आयन बैटरियों के उत्पादन में भी पर्यावरण का अत्यधिक नुकसान होता है. लेकिन चूंकि इलेक्ट्रिक वाहन प्रदूषण को शहरी केंद्रों से दूर ले जा रहे हैं और नवीकरणीय ऊर्जा की खपत में तेजी से वृद्धि कर रहे हैं, इसलिए वे एक आसान समाधान प्रतीत होते हैं.
इसके अलावा, बैटरी इलेक्ट्रिक वाहन (बीईवी) महंगे हैं. ईवी पर सिर्फ 5 फीसदी जीएसटी और बड़े यात्री वाहनों पर 43 प्रतिशत जीएसटी (प्लस सेस) के बावजूद भी भारत में औसत कार खरीददार के लिए बीईवी अभी भी काफी महंगे हैं. हाल ही में बड़े बदलाव होने के बाद भी देश में सबसे ज्यादा बिकने वाली BEV, Tata Nexon EV के टॉप वेरिएंट की ऑन-रोड कीमत (दिल्ली में) 21 लाख रुपये है.
कम जीएसटी और दिल्ली में कोई रोड टैक्स या पंजीकरण लागत नहीं होने के बावजूद, यह अपने समकक्ष पेट्रोल मॉडल की कीमत से 4 लाख रुपये अधिक है. एक बहुत बड़ी D-सेगमेंट SUV, Hyundai IONIQ 5 की दिल्ली में ऑन-रोड कीमत इसी तरह के फीचर और साइज़ वाली Hyundai Tucson की तुलना में लगभग 10 लाख रुपये अधिक है.
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सभी सेगमेंट की ईवी है महंगी
यहां तक कि दोपहिया वीकल सेगमेंट में, जहां खरीददारों को सब्सिडी का लाभ मिलता है, एक सामान्य पेट्रोल स्कूटर और बैटरी से चलने वाले स्कूटर के बीच कीमत का अंतर लगभग 50,000 रुपये है. जबकि एथर एनर्जी जैसे निर्माता, जिनकी होसुर फैक्ट्री का मैंने हाल ही में दौरा किया था, अधिक किफायती इलेक्ट्रिक दोपहिया वाहन बना रहे हैं, लेकिन वहां पर कीमत का अंतर इतना ज्यादा है कि बीईवी को खरीदने के लिए दिए जाने वाले एक्स्ट्रा पैसे के गैप को चलाने के लिए प्रति किलोमीटर खर्च होने वाले कम कीमत से भरा नहीं जा सकता.
इतने सारे कॉमर्शियल वीकल के इलेक्ट्रिक होने का कारण आर्थिक है, पर्यावरणीय नहीं – औसत कॉमर्शियल वीकल हर दिन लंबी दूरी तय करता है और एक्सपोनेंट एनर्जी जैसी कंपनियों का इनोवेशन इस बदलाव को ड्राइव कर रहा है. लेकिन यह बात निजी वाहनों पर लागू नहीं होती क्योंकि कीमत के अंतर को उचित रूप से पाटा नहीं गया है.
जबकि जो लोग बीईवी खरीद सकते हैं वे उन्हें बिना किसी लाभ की भावना से खरीद सकते हैं. कारें आम तौर पर अधिक महंगी होती जा रही हैं, और रेंज व चार्जिंग के बुनियादी ढांचे जैसे मुद्दे बने हुए हैं. यही कारण है कि भारत में बीईवी की बिक्री कुल यात्री कारों की बिक्री का लगभग दो प्रतिशत ही रह गई है.
लोगों के लिए ईवी को अफोर्डेबल बनाने का सबसे अच्छा तरीका है सब्सिडी देना. लेकिन केंद्र सरकार की फास्टर एडॉप्शन एंड मैन्युफैक्चरिंग ऑफ हाइब्रिड एंड इलेक्ट्रिक व्हीकल्स (FAME) योजना को खराब तरीके से लागू किया गया है. इसने बड़े पैमाने पर विवाद को भी जन्म दिया. जहां सरकार ने निर्माताओं पर सिस्टम के साथ ‘खेलने’ का आरोप लगाया वहीं निर्माताओं ने सरकार पर घटिया नियम बनाने और पैसे को रोक के रखने का आरोप लगाया. वाहन ऋण देने वाले बैंकों द्वारा कार्यान्वित एक बेहतर योजनाबद्ध सब्सिडी-प्लान इसका एक समाधान हो सकता है. लेकिन इसमें समय लगेगा.
अब हाइब्रिड वाहनों की ओर देखने का समय आ गया है
यदि वाहनों को किफायती बनाए रखते हुए और कुल ईंधन खपत को कम करके हवा को प्रदूषण मुक्त बनाने का लक्ष्य है, तो सरकार को वास्तव में हाइब्रिड वाहनों पर थोड़ा अधिक गंभीरता से विचार करने की ज़रूरत है. नई इनोवा हाईक्रॉस हाइब्रिड की सफलता इस बात का संकेत है कि ईंधन के खर्च को कम करना उपभोक्ताओं की पहली पसंद है.
हालांकि, ऐसा प्रतीत होता है कि सरकार में सीनियर लीडरशिप हाइब्रिड वाहनों को ‘कल की तकनीक’ के रूप में देखती है. इस पर विचार करने की ज़रूरत है कि संयुक्त राज्य अमेरिका में ईवी की बिक्री कैसे घट रही है जबकि हाइब्रिड की बिक्री बढ़ रही है. ऐसा इसलिए है क्योंकि हाइब्रिड कारें कई समस्याओं का समाधान करती हैं, विशेष रूप से इसकी कीमत ईवी की तुलना में कम है और ये काफी रेंज में उपलब्ध हैं.
टेलपाइप उत्सर्जन की मात्रा पर वाहनों पर कर लगाने वाले एक ग्रेडेड टैक्सेशन सिस्टम को डिजाइन और कार्यान्वित करने की ज़रूरत है. यह न केवल बिना उत्सर्जन वाले ईवी को प्रोत्साहित करेगा, बल्कि हाइब्रिड कारों को भी प्रोत्साहित करेगा, जिनका उत्सर्जन पेट्रोल और डीजल कारों की तुलना में बहुत कम है. हमारे पास यूरोपीय देशों के समान समाधान नहीं हो सकते क्योंकि हम यूरोप नहीं हैं – लेकिन हमारी वीकल पॉलिसी उसी तरह से बनाई जाती है. भारत में एक बेहतर वाहन उत्सर्जन नीति की आवश्यकता है.
(कुशानमित्र नई दिल्ली में एक ऑटोमोटिव पत्रकार हैं. व्यक्त किए गए विचार निजी हैं.)
(संपादनः शिव पाण्डेय)
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