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Friday, 22 November, 2024
होममत-विमतक्या वो 18 की है? पाकिस्तानी क़ानून कैसे नाबालिग़ों के जबरन धर्मांतरण को क़ानूनी जामा पहना देता है

क्या वो 18 की है? पाकिस्तानी क़ानून कैसे नाबालिग़ों के जबरन धर्मांतरण को क़ानूनी जामा पहना देता है

अगर आपका अपहरणकर्ता–पति कहता है कि आप 18 की हैं, या आपका पहला पीरियड हो चुका है, तो पाकिस्तान में नौजवान लड़कियों के अपहरण-धर्मांतरण को लेकर, फिर और सवाल नहीं पूछे जाते.

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उनके नाम बदल जाते हैं, लेकिन उनकी भयानक कहानियां वही रहती हैं. इनका नाम कविता, मारिया, सिमरन या हुमा हो सकता है, लेकिन जो चीज़ इनकी बर्बाद क़िस्मत को जोड़ती है, वो है इनका मज़हब. अल्पसंख्यक समुदायों की नाबालिग़ लड़कियों का, इस्लाम में जबरन धर्म-परिवर्तन, एक ऐसी महामारी है जो अपने से ख़त्म नहीं होगी.

वज़ीरे आज़म इमरान ख़ान कह सकते हैं, कि पाकिस्तान अक़लियतों को निशाना बनाने वालों पर सख्त कार्रवाई करेगा, लेकिन ये रिवाज बरसों से ऐसे ही चला आ रहा है.

पाकिस्तानी ठेकेदार दुनिया भर को इस्लामोफोबिया का उपदेश देते हैं, जबकि पाकिस्तान अपने ही शिया और अहमदी लोगों पर ज़ुल्म करता है. हमें यूरोप और भारत में मुसलमानों के अधिकारों पर उकसाया जाता है, जबकि हमारी अपनी अक़लियतों पर, हुकूमत की सरपरस्ती में ज़ुल्म किया जाता है.

और अब, एक और लोकप्रिय तरीक़ा आ गया है, जिससे आप किसी को ज़बर्दस्ती मुसलमान बनाकर इस बात को छिपा सकते हैं- बस कह दीजिए कि लड़की 18 साल की थी, और कोई फर्ज़ी सर्टिफिकेट दिखा दीजिए, या फिर कह दीजिए कि उसका पहला पीरियड हो चुका है. तब वो बालिग़ मानी जाएगी, और सरकार फिर कोई और सवाल नहीं पूछेगी.


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‘अपनी मर्ज़ी का हलफ़नामा’

पिछले महीने सिंध के घोटकी की एक किशोर हिंदू लड़की, सिमरन कुमारी को अग़वा कर लिया गया, और फिर वो जादुई तरीक़े से भारचुंदी शरीफ में नज़र आ गई, जो हज़ारों हिंदू लड़कियों को मुसलमान बनाने के लिए बदनाम है. कुमारी के घर वालों को अब उससे मिलने की मनाही है, चूंकि वो ‘काफिर’ हैं, और उस लड़की शादी उसे अग़वा करने वाले, मुसलमान शख़्स से कर दी गई है.

इसी महीने एक और मामले में, ख़ैरपुर से 14 साल की पार्शा कुमारी को अग़वा कर लिया गया, और फिर ज़बर्दस्ती उसका मज़हब बदलकर, अब्दुल सबूर से ब्याह दिया गया. जैसा कि मज़हब बदलने के ज़्यादातर मामलों में होता है, उम्र की तसदीक़ करने के लिए, परिवार ने एक स्कूल सर्टिफिकेट पेश किया, लेकिन अपहरणकर्ता-पति ने ‘अपनी मर्ज़ी का हलफनामा’ दिखा दिया, जिसमें नाबालिग़ की उम्र 18 साल दी गई थी. उससे तय हो गया कि लड़की बालिग़ है, और अपने फैसले ख़ुद ले सकती है.

ज़बर्दस्ती मज़हब बदलने के किसी भी मामले में दुविधा ये होती है, कि अथॉरिटीज़ की तरफ से, लड़की की उम्र तय करने के लिए, अलग से कोई मेडिकल जांच नहीं कराई जाती.

और ज़्यादातर मामलों में, बड़ी मज़हबी और सामाजिक हस्तियों की धांधली से चल रहा सिस्टम, ख़ुद ब ख़ुद पीड़ित परिवारों की बजाय, क़ैदी बनाने वालों के साथ हो जाता है. सवाल ये खड़ा होता है कि सिर्फ ईसाई और हिंदू नाबालिग़ लड़कियां ही, अपने से तिगुनी उम्र के लोगों के ‘प्यार में पड़कर मज़हब क्यों बदल लेती हैं’? सिंधी हिंदू लड़के ऐसे प्यार में क्यों नहीं पड़ते?

अदालत की मंज़ूरी से

अगर कोई लड़की बचकर भाग भी जाए, तो सिस्टम किस तरह मदद करता है? ऐसे में तो इंसाफ के दिखावे की भी ज़रूरत नहीं है.

14 साल की एक ईसाई किशोरी मारिया शाहबाज़ ने, जो हाल ही में अपने अग़वा करने वालों से बचकर भागी, गवाही दी कि किस तरह उसका रेप हुआ, ज़बर्दस्ती मज़हब बदला गया, और फिर अग़वा करने वाले से ब्याह दिया गया. रेप के वक़्त उसका वीडियो बनाया गया, और उसे धमकी दी गई कि अगर उसने कहे पर अमल नहीं किया, तो वीडियो जारी कर दिया जाएगा. इसके बाद मारिया को जिस्म फरोशी के धंधे में धकेल दिया गया, जहां से वो भाग निकली. उसके साथ क्या हुआ, इसे दोहराने की मुश्किल घड़ी से गुज़रने के बाद, अब मारिया और उसके घरवालों को धमकाया जा रहा है, और उन्हें इंसाफ मिलने के दूर दूर तक आसार नहीं हैं.

इससे पहले परिवार के विरोध के बाद, लाहौर हाईकोर्ट ने उसे अपने अग़वा करने वाले के पास जाने का हुक्म दिया था. और जब उसके घरवालों ने इसकी मुख़ालफत करते हुए कहा, कि वो 18 की नहीं थी, और उसके साथ ज़बर्दस्ती हुई थी, तो अदालत ने कहा:“मारिया शाहबाज़ के बयान और उसके आम हुलिए से साफ ज़ाहिर है, कि वो एक बालिग़ औरत है, जो पूरी तरह जवान लगती है”.

एक और ईसाई लड़की हुमा यूनस को, 14 साल की उम्र में अग़वा कर लिया गया, जो अब्दुल जब्बार के हाथों रेप किए जाने के बाद अब गर्भ से है. उसके मामले में सिंध हाईकोर्ट ने हुक्म दिया, कि अपने पहले पीरियड से गुज़रने के बाद, लड़की की शादी की जा सकती है. इससे कोई फर्क़ नहीं पड़ा कि हुमा एक ग़ैर-मुस्लिम थी, या उसके स्कूल और बैप्टिज़म सर्टिफिकेट में लिखा था, कि वो 2005 में पैदा हुई थी, इस बात से भी फर्क़ नहीं पड़ा, कि उसे अग़वा किया गया, और उसके बाद ज़बर्दस्ती मज़हब बदलकर ब्याह दिया गया था. ज़बर्दस्ती की गई उसकी शादी को एक क़ानूनी जामा पहना दिया गया, इसके बावजूद कि सिंध में चाइल्ड मैरिज रेस्ट्रेंट एक्ट 2013 के तहत, 18 साल से कम उम्र में शादी पर पाबंदी है. पाकिस्तान तहरीके इंसाफ पार्टी (पीटीआई) की फेडरल सरकार ने, लड़कियों की शादी की उम्र 18 साल तय किए जाने के बिल का, ये कहते हुए भारी विरोध किया था, कि ये इस्लाम-विरोधी था.

एक कमज़ोर भगवान

पाकिस्तान में जबरन धर्मांतरण के खिलाफ कोई क़ानून न होने से, पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (पीपीपी), या तहरीके इंसाफ पार्टी (पीटीआई) किसी में भी, मौजूदा बाल विवाह क़ानूनों को, कारगर ढंग से लागू करने की कोई इच्छा नज़र नहीं आती. इस तरह के मामलों की कोई कमी नहीं है, लेकिन सरकार की संजीदगी इसी से ज़ाहिर हो जाती है, कि धर्मगुरुओं की मदद से वो अभी, ‘जबरन धर्मांतरण की परिभाषा’ तय करने में लगी है. सोचती हूं कि अभी और कितनी नाबालिग़ लड़कियों को, अग़वा होकर धर्मांतरण कराना पड़ेगा, जिसके बाद क़ानून बनाने वाले परिभाषित कर सकेंगे, कि जबरन धर्मांतरण क्या है, अपनी मर्ज़ी क्या है, संवैधानिक रेप क्या है, नाबालिग़ों की उम्र को कैसे अलग से सत्यापित किया जाए, और क़ानून को 16 साल कम उम्र वालों के साथ, यौन रिश्तों को कैसे देखना चाहिए.

अपहरण और धर्मांतरण के डर का असर, अमीर सिक्ख और हिंदू परिवारों पर भी पड़ा है, जिन्होंने पिछले कुछ सालों में प्राइमरी स्कूल के बाद, अपनी लड़कियों को पढ़ना बंद कर दिया है. उनका कहना है कि अपनी लड़कियों को आसान शिकार बनने से रोकने का, उनके पास यही एक रास्ता है.

धर्मांतरण के साथ भेदभाव भरे क़ानून व सामाजिक पूर्वाग्रह, ग़ैर-मुस्लिमों का जीना मुहाल कर देते हैं, जो इस मुल्क में बने रहना चाहते हैं. लेकिन जब भारचुंदी दरगाह के मियां मिठ्ठू जैसे बदनाम लोग, ताक़तवर लोगों के साथ मिल जाते हैं, तो हिंदू मांता-पिता के लिए ये एक खुला संदेश है- आपकी बेटियां एक कमज़ोर भगवान के बच्चे हैं.


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(लेखिका पाकिस्तान में एक स्वतंत्र पत्रकार हैं. उसका ट्विटर हैंडल @nailainayat है. विचार उनके निजी हैं.)

(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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