भाजपा ऐसी बहती गंगा है जिसमें जो हाथ डालता है उसका मैला धुल जाता है. तभी शायद इसे पार्टी ‘विथ अ डिफरेंस’ कहा जाता है. सभी अन्य राजनीतिक दलों में भ्रष्टाचार अपनी जड़ें मज़बूत कर चुका है. भाजपा की मानें तो उनके कल्चर का ये हिस्सा है जबकि मोदी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार का मूल मंत्र है ‘न खाउंगा न खाने दूंगा.’ सच में.
पार्टी इस पर कायम भी है. अपने पहले कार्यकाल में उसका रिकॉर्ड किसी बड़े घोटाले से खराब नहीं हुआ. माना कि कांग्रेस ने पूरे चुनाव में ‘चौकीदार चोर है’ का नारा दिया. चुनाव के पहले से ही राहुल गांधी रफेल खरीद में हुए घोटाले पर बोलते रहे पर जनता ने उनकी सुनी नहीं. चौकीदार को फिर सत्ता की चाबी सौंप दी.
इस प्रचंड बहुमत वाली भाजपा का जादुई तिलिस्म तो और भी बढ़ गया है. अब देखिए तेलुगु देसम के चार राज्य सभा सदस्य भाजपा में ये कह कर शामिल हो गए कि उनको मोदी के नेतृत्व में पूरा भरोसा है और देश को वो ही आगे ले जा सकते हैं. उनका तर्क था कि मोदी के पहले कार्यकाल में साढ़े तीन साल उनकी पार्टी ने मोदी सरकार की कार्यशैली देखी थी और वे आश्वस्त है कि उनका कदम सही दिशा में उठाया गया कदम है.
पर क्या वाकई कार्यशैली से अभिभूत इन सांसदों ने भाजपा का दामन थामा है या फिर ये अपनी सर पर लटक रही तलवार से बचने की कोशिश है. वाई एस चौधरी तेलुगु देसम पार्टी नेता चंद्रबाबु नायडू के खासम-खास थे और आंध्र के सबसे मालदार सासंदों में गिने जाते हैं और उनपर सीबीआई की नज़र भी है . उनकी कंपनी पर बैंको के 5700 करोड़ रुपये की देनदारी है और उनपर छापे भी पड़ चुके हैं. वहीं सी एम रमेश की कंपनी पर हवाला भुगतान का आरोप है और उनके घर और दफ्तर पर भी सीबीआई ने छापेमारी की थी.
दिल्ली और मुम्बई जैसे एयरपोर्ट बनाने वाली कंपनी जीएमआर जिसपर अब भारी देनदारी है, के मालिक जी एम राव भी भाजपा में शामिल हो गए. जीएमआर पर बैंकों की 46,000 हज़ार करोड़ की देनदारी है. और उसके मालिक भाजपा की शरण में पहुंच चुके हैं.
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यानि टैक्स चोरी, धोखाधड़ी, लेनदारी में अगर आप फंसे हैं और सीबीआई, ईडी जैसी केंद्रीय एजेंसियों की नजर आप पर है तो आप को भाजपा की शरण में चले जाना चाहिए. ऐसा करने से इस बात का चांस बढ़ जाता है कि तहकीकात रुक जाये या इतनी धीमी हो जाए की आप के उपर लटक रही खतरे की घंटी न बजे.
हम ऐसा इसलिए कह रहे हैं कि पहले भी जब भाजपा रूपी नदी में किसी ने किसी पचड़े में फंसे नेता शामिल हुए है तो उनकी कमीज़ सफेद हो गई है. 2015 में कांग्रेस छोड़कर भाजपा में असम से आए हेमन्त बिस्व सरमा के उपर लुइस बर्गर नाम की कंपनी से घूस लेने के कथित आरोपों पर तत्कालीन असम के मुख्यमंत्री तरुण गोगोई ने सीआईडी जांच स्थापित की थी.
भाजपा भ्रष्टाचार का मामला विपक्षी दल के रूप में उठाती रही. फिर हेमन्त बिस्व सरमा भाजपा में शामिल हो गए. और उसके बाद इस मामले की चर्चा सुनाई नहीं दे रही है. हेमन्त बिस्व सरमा पर सारदा पोंजी योजना पर भी सवाल उठे थे. ममता बनर्जी ने हाल में राज्य पुलिस प्रमुख राजीव कुमार के समर्थन में धरने पर बैठते हुए कहा था ‘मेरे पास असम के उप मुख्यमंत्री (हेमन्त) के खिलाफ काफी सबूत हैं. मैं प्रधानमंत्री मोदी और अमित शाह को चुनौती देती हूं कि हो सके तो उनको गिरफ्तार कराए. सीबीआई उनसे पहले ही पूछताछ कर चुकी है.’
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तृणमूल कांग्रेस के बड़े कद्दावर नेता मुकुल रॉय पर भाजपा सारदा स्कैम में तब तक रहा जब तक वे टीएमसी में थे. इसके बाद न सारदा न नारदा स्टिंग का डंक उनको लगा. और अब तो वे पश्चिम बंगाल में ममता के खिलाफ भाजपा के मुख्य हथियार के रूप में उभर रहे हैं.
कबूतरबाज़ी के आरोप में दोषी करार किए गए दलेर मेहंदी भी अब भाजपा की गंगा में शुद्ध हो जायेंगे. यानि जो भी भाजपा में आता है उसके पुराने पाप धुल जाते हैं. या यू कहे कि राजनीति में दुश्मनी कब दोस्ती में बदल जाती है उसका कोई फार्मूला नहीं. बस एक ही फार्मुला आपके पाप धो सकता है वो है सत्ता में भागीदारी.