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Saturday, 6 December, 2025
होममत-विमतइंडिगो का संकट खराब मैनेजमेंट का नतीजा है, पायलटों को इसके लिए दोष देना गलत है

इंडिगो का संकट खराब मैनेजमेंट का नतीजा है, पायलटों को इसके लिए दोष देना गलत है

इंडिगो, जिसे लंबे समय से भारतीय काबिलियत और बेहतरीन मैनेजमेंट की जीत माना जाता था, उससे इतनी बड़ी गलती कैसे हो गई? इस संकट के तीन हिस्से हैं.

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दिल्ली और दूसरे शहरों के हवाई अड्डों पर अफरा-तफरी मची हुई है और आसमान में भी हालात बिगड़े हुए हैं. इस अफरा-तफरी की सबसे बड़ी वजह इंडिगो है, जो भारत की सबसे बड़ी एयरलाइन है. इसने 500 से ज्यादा उड़ानें रद्द कर दी हैं. इनमें से कई कैंसिल आखिरी समय में की गई हैं. यात्री हवाई अड्डे तक जाते हैं, कई घंटों तक लगातार देरी झेलते हैं और फिर देर रात उन्हें बताया जाता है कि उनकी उड़ान रद्द हो गई है और उन्हें वापस घर जाना पड़ेगा.

हालात इससे भी बदतर हैं. कई बार स्थिति इतनी अव्यवस्थित होती है कि यात्रियों को उनका चेक-इन किया हुआ सामान भी वापस नहीं मिल पाता और हजारों सूटकेस हवाई अड्डों पर जमा हो रहे हैं.

देरी सिर्फ असुविधा ही नहीं दे रही, बल्कि यात्रियों को इसलिए और भी गुस्सा आ रहा है क्योंकि इंडिगो के पास जानकारी देने के लिए पर्याप्त ग्राउंड स्टाफ नहीं है. और जब कोई यात्री किसी स्टाफ से बात करने में सफल भी हो जाता है, तो पता चलता है कि वह कर्मचारी भी उतना ही अनजान है जितना यात्री.

जैसे-जैसे देरी और कैंसिलेशन बढ़े हैं, यात्रियों की परेशानी हद से आगे निकल गई है. लोग अपनी खुद की शादियां मिस कर रहे हैं. कई कार्यक्रम, जो महीनों पहले तय किए गए थे, रद्द करने पड़े हैं क्योंकि उड़ानें उपलब्ध नहीं हैं. इससे भी बुरा यह कि इंडिगो की अव्यवस्था ऐसी है कि कोई यह नहीं बता पा रहा कि अगले दिन उड़ानें चलेंगी या नहीं. या उसके बाद भी.

हवाई अड्डों पर अव्यवस्था ऐसी चीज है जिसका सामना यात्रियों को कभी न कभी करना पड़ता है. लेकिन आमतौर पर इसकी वजह वे घटनाएं होती हैं जिन पर किसी का नियंत्रण नहीं होता, जैसे चक्रवात, कोई बड़ा हादसा या तकनीकी खराबी. इस बार वजह बहुत साफ और चिंताजनक है: प्रबंधन की विफलता.

आप सोच सकते हैं कि इंडिगो, जिसे भारतीय कुशलता और बेहतरीन प्रबंधन का उदाहरण माना जाता था, इतनी बड़ी भूल कैसे कर सकता है? और लोग यह भी पूछ रहे हैं कि एयर इंडिया, जिसे हमेशा बुरा-भला कहा जाता था, वही हालात होने के बावजूद कैसे इतनी अच्छी तरह काम कर रहा है?

इस संकट के तीन हिस्से हैं, तो आइए उन्हें एक-एक करके समझते हैं.

पायलट, इंडिगो और सरकार

पहला हिस्सा पायलटों का है. लंबे समय तक पायलटों को इंडियन एविएशन का ‘बैड बॉयज़’ माना जाता था. शायद इसलिए कि उनकी तनख्वाह सबसे ज्यादा थी, और व्यवहार सबसे खराब. वे आखिरी समय में जानबूझकर बीमार होने की सूचना देते थे जिससे शेड्यूल बिगड़ जाते थे. वे हमेशा ज्यादा वेतन और आसान कामकाजी शर्तों की मांग करते थे, यात्रियों के बारे में सोचे बिना. मेरे लिए लास्ट पॉइंट 1990 के दशक में आया जब बाबरी मस्जिद गिराए जाने के बाद पूरा भारत जल रहा था. इसी समय पायलट्स ने हड़ताल पर जाने का फैसला किया.

लेकिन अब सब बदल गया है. भले ही पुरानी छवि आज भी बनी हुई है, लेकिन यह पीढ़ी अधिक जिम्मेदार है, और कई लोग कहते हैं कि आज वे पीड़ित भी हैं. उदाहरण के तौर पर, जब टाटा ने नई एयर इंडिया बनाने के लिए पुरानी कंपनियों (जिनमें इंडियन एयरलाइंस और एयर इंडिया के गुट थे) को विस्तारा और एयर इंडिया एक्सप्रेस के साथ मिलाया, तो उम्मीद थी कि पायलट जोरदार विरोध करेंगे. लेकिन वे सहयोगी और समझदार निकले.

इस हफ्ते की अफरा-तफरी का दोष पायलटों पर लगाया जा रहा है, जबकि वे दोषी नहीं हैं. DGCA ने एयरलाइंस से बातचीत करके पायलटों के फ्लाइट ड्यूटी घंटे बदले और उड़ानों के बीच ज्यादा आराम का समय देना अनिवार्य किया. अगर आप अपने पायलटों को लगातार काम में झोंकते हैं, जैसा कि इंडिगो करता है, तो यह लंबा आराम समय पायलटों की कमी पैदा कर देता है.

एयरलाइंस को इन नए नियमों के लिए महीनों पहले तैयारी करने का समय दिया गया था. कुछ कंपनियों ने, जैसे एयर इंडिया ने, समय रहते बदलाव किए, इसलिए उसकी उड़ानों पर ज्यादा असर नहीं पड़ा.

यह हमें संकट के दूसरे हिस्से की ओर ले जाता है: एयरलाइंस. इंडिगो ने माफी मांगते हुए कहा है कि वह पायलटों की नई स्थिति के लिए ठीक से तैयार नहीं हो पाया.

लेकिन क्या यह सच में ऐसा ही है? एयरलाइन उद्योग से जुड़े कई लोगों को संदेह है कि इंडिगो इस अफरा-तफरी से पूरी तरह दुखी नहीं है. पहले के जमाने में, पायलट त्योहारों के मौसम में हड़ताल की धमकी देते थे. एयरलाइन प्रबंधन और सरकार घबरा जाते थे और उनकी मांगें मान लेते थे.

कुछ वैसा ही यहां भी हुआ है. जैसे-जैसे अराजकता बढ़ी, सरकार ने घबराकर नए नियम वापस ले लिए (फिलहाल के लिए). और इस तरह इंडिगो को वह मिल गया जो वह चाहता था. अब सब कुछ पहले की तरह चल रहा है.

अब तीसरे हिस्से पर आते हैं: सरकार. क्या सरकार को खेल लिया गया है? क्या उसे पता नहीं था कि इंडिगो ने नए नियमों के हिसाब से पर्याप्त पायलट नहीं रखे हैं? क्या DGCA जैसी संस्थाएं इसकी निगरानी नहीं करतीं?

और वैसे भी, सिविल एविएशन मिनिस्ट्री का काम इंडियन पैसेंजर का ख्याल रखना है, न कि इंडियन एयरलाइन मालिक का. इस इंसान की बनाई हुई मुसीबत में लोगों को बहुत ज़्यादा परेशानी हुई है. क्या एयरलाइंस को उन्हें अच्छा-खासा मुआवज़ा नहीं देना चाहिए? क्या एयरलाइन पर खुद जुर्माना नहीं लगना चाहिए क्योंकि उसने उन यात्रियों को ले जाने के लिए ज़रूरी पायलटों की संख्या की परवाह नहीं की, जिनसे उसने पहले ही पैसे ले लिए थे?

अभी शुरुआती दिन हैं, और हालात सामान्य होने में थोड़ा समय लगेगा, लेकिन जब यह सब शांत हो जाएगा, तो नागरिक उड्डयन मंत्री राम मोहन नायडू को यह साबित करना होगा कि वह अपने काम के लिए सक्षम हैं और भारतीय लोगों के हितों की रक्षा कर सकते हैं.

वीर सांघवी एक प्रिंट और टेलीविजन पत्रकार हैं और टॉक शो होस्ट हैं. उनका एक्स हैंडल @virsanghvi है. व्यक्त किए गए विचार निजी हैं.

(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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