वैश्विक समीकरण एक बार फिर उलट-पुलट रहा है, कई तरह के संकट प्रबल हो रहे हैं और पुरानी मान्यताएं खारिज हो रही हैं और नई कमज़ोरियां उभर रही हैं. इस बदले परिदृश्य में भारत को अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा नीति और प्रतिरक्षा संरचना को तुरंत ऐसा स्वरूप देना ही पड़ेगा, जो आज के विस्फोटक और बहुध्रुवीय संसार की मांगों को पूरा कर सकें.
यूक्रेन और गाज़ा में लड़ाई जारी है और उनके खत्म होने के आसार नज़र नहीं आ रहे हैं. दोनों लड़ाई गहरी भू-राजनीतिक प्रतिद्वंद्विताओं का अखाड़ा बन गई हैं. इस बीच, दुनिया का स्वघोषित पहरेदार बना अमेरिका आत्म-केंद्रित और उग्र बन गया है. उसने ऐसी ‘टैरिफ जंग’ छेड़ दी है जिसने विश्व व्यापार के मानदंडों को उलट दिया है उसके पूर्व सहयोगियों के साथ उसके रिश्ते में खटास पैदा कर दी है. इस उथल-पुथल की आंधी और वार-पलटवार में घिरा भारत खुद को संकट में फंसा हुआ पा रहा है. उसके प्रमुख प्रतिद्वंद्वी चीन ने पाकिस्तान के साथ अपने रणनीतिक सहयोग संबंध को और मजबूत किया है. डोनाल्ड ट्रंप के राज में अमेरिका ने खुला आक्रामक रुख अपना लिया है, जबकि पाकिस्तान के आर्मी चीफ आसिम मुनीर अमेरिकी धरती से परमाण्विक हमले की धमकियां दे रहे हैं.
शीतयुद्ध वाला समीकरण धीरे-धीरे मगर स्पष्ट रूप से टूट गया है. चार साल से जारी यूक्रेन युद्ध ने पश्चिमी देशों की प्रतिकार शक्ति, रूस की मजबूती और अपनी खोई हुई ज़मीन और साख को वापस हासिल करने की उसके संकल्प की सीमाओं को उजागर कर दिया है. निरंतर थोपे जा रहे आर्थिक प्रतिबंधों के बावजूद रूस चीन से ‘डुअल यूज़’ निर्यातों और उत्तरी कोरिया के हथियारों के बूते आक्रामक रुख अपनाए हुए है. उधर, गाज़ा युद्ध मानवीय त्रासदी बन गया, जिसके युद्धविराम की वार्ताएं आपसी अविश्वास और अनुचित अपेक्षाओं के कारण विफल होती रही हैं. ये लड़ाइयां अपने आप में सीमित नहीं हैं बल्कि ये उस व्यवस्था का संकेत देती हैं जिसमें सत्ता निरंतर अत्याचारी, लेन-देन वाली होती है और गठबंधनों की मजबूती संदिग्ध हो गई है.
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भारतीय रणनीतिक के खंभों पर दबाव
भारत के रणनीतिक गणित इन कुछ खंभों पर टिके रहे हैं — चीन और पाकिस्तान में खौफ पैदा करने की सख्त मुद्रा; अमेरिका के साथ संबंधों में निरंतर मजबूती; संयुक्त राष्ट्र, एससीओ और ब्रिक्स जैसे मंचों के जरिए बहुपक्षीयता के प्रति प्रतिबद्धता, लेकिन ये सारे खंभे अब दबाव में हैं.
एलएसी पर चीन के हमले, हिंद महासागर में चीनी नौसेना के दबदबे और पाकिस्तान के साथ चीन के गहराते रिश्ते (जो उनके संयुक्त सैन्य अभ्यासों, खुफिया सूचनाओं की उनकी साझीदारी, और चीन-पाकिस्तान आर्थिक कॉरीडोर के अंतर्गत इन्फ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं से ज़ाहिर है) बहुआयामी खतरे पैदा कर रहे हैं. चीन के समर्थन और राजनीतिक तंत्र पर फौजी वर्चस्व के कारण पाकिस्तान ने अपनी लफ्फाज़िां और अपनी क्षमताएं भी बढ़ा दी हैं. मुनीर ने अमेरिका की धरती से हाल में भारत की जामनगर रिफाइनरी जैसी आर्थिक संपत्तियों को निशाना बनाने और परमाणु हमले करने की जो धमकियां दी हैं वो पाकिस्तान की ओर से किए जाने वाले रणनीतिक संकेतों में खतरनाक बदलाव को उजागर करती हैं.
अमेरिका-भारत संबंध में आ रही गिरावट इन चुनौतियों को और गंभीर बना रही है. राष्ट्रपति ट्रंप ने भारतीय सामान पर 50 फीसदी तक की टैरिफ थोपने का जो फैसला किया है उसे इस आधार पर जायज़ बताया जा रहा है कि भारत रूस से निरंतर व्यापार कर रहा है, खासकर तेल और सैन्य साजो-सामान खरीद रहा है. विडंबना यह है कि जो अमेरिकी प्रशासन कभी भारत की इसलिए प्रशंसा करता था कि वह चीन का जवाब बन सकता है, वही अमेरिका अब भारत को उसकी रणनीतिक स्वायत्तता के लिए दंडित कर रहा है. व्हाइट हाउस में मुनीर की खातिरदारी और फ्लॉरिडा से उनका धमकियां जारी करना भारत के रणनीतिक जानकारों की नज़र से छूटा नहीं है. इन सभी चीज़ों ने साफ कर दिया है कि हम अमेरिका को भरोसेमंद रणनीतिक सहयोगी नहीं मान सकते.
राष्ट्रीय सुरक्षा सिद्धांत में परिवर्तन
इन घटनाओं के मद्देनज़र भारत को अपने राष्ट्रीय सुरक्षा सिद्धांत में विस्तृत परिवर्तन करना चाहिए.
पहला: भारत इस हकीकत को कबूल करे कि दुनिया अब बहुध्रुवीय हो गई है इसलिए उसे अपने रणनीतिक सहयोगियों में विविधता लानी चाहिए. ‘क्वाड’ का महत्व तो है ही, भारत को फ्रांस, जापान और ऑस्ट्रेलिया जैसी मझोली शक्तियों के साथ अपने रिश्ते को और गहराई देनी चाहिए और ‘आसियान’, अफ्रीका, और लातीन अमेरिका के देशों के साथ नए रिश्ते बनाने की भी पहल करनी चाहिए. जापान, ऑस्ट्रेलिया और भारत के अलावा ‘साउथ चाइना सी’ के फिलिपीन (जिसने अपने क्षेत्र में चीनी दबदबे को चुनौती देने का साहस दिखाया है) जैसे को मिलाकर एक नया ‘क्वाड’ बनाने की कोशिश जरूर की जानी चाहिए. अनिश्चितता के इस दौर में इस बात की संभावना कम ही है कि इस साल के अंत में प्रस्तावित क्वाड शिखर सम्मेलन भारत में हो पाए. ‘सार्क’ को ज़िंदा करने की कोशिश की जानी चाहिए, जो हमारे करीबी पड़ोसी देशों से संवाद का अच्छा मंच बन सकता है. लक्ष्य रिश्तों का ऐसा जाल बुनने का हो, जो किसी एक देश पर निर्भरता को कम करे और वैश्विक तथा क्षेत्रीय मंचों पर भारत का वजन बढ़ाए.
दूसरा: भारत अपनी सेना के आधुनिकीकरण में तेज़ी लाए. हाल में एयर डिफेंस सिस्टम S-400 ने ऑपरेशन सिंदूर में पाकिस्तानी विमानों को रोकने में जो कामयाबी हासिल की उसने टेक्नोलॉजी में श्रेष्ठता के महत्व को रेखांकित किया. MIRV से लैस Agni-V मिसाइलों की ताकत के साथ भारत का परमाण्विक त्रिशूल दुश्मनों में खासा खौफ पैदा करता है, लेकिन पारंपरिक क्षमताओं का भी आधुनिकीकरण किया जाना चाहिए. साइबर युद्ध, अंतरिक्ष से निगरानी और मानव रहित सिस्टम अब ऑपरेशनों के लिए वैकल्पिक साधन नहीं बल्कि अनिवार्यताएं बन गई हैं. ‘डीआरडीओ’ को नए आविष्कारों, उत्पादन से हट कर अनुसंधान एवं विकास पर ज़ोर देने के लिए पुनर्गठित किया जाना चाहिए. खरीद की समयसीमा में कमी लाना हमेशा एक प्राथमिकता बनी रहेगी.
तीसरा: भारत अपनी आंतरिक सुरक्षा व्यवस्था पर पुनर्विचार करे. सीमा पार से आतंकवादी खतरे बने हुए हैं, खासकर इसलिए कि आतंकवादी गुटों के साथ पाकिस्तानी सेना की साठगांठ बढ़ रही है. वामपंथी उग्रवाद से खतरे तो कम हुए हैं, लेकिन वह देश को आंतरिक रूप से अस्थिर करने की ताकत रखता है. केंद्रीय और राज्यों की खुफिया एजेंसियों के बीच तालमेल को बेहतर बनाने और आतंकवाद विरोधी क्षमताओं में वृद्धि करने की ज़रूरत है. सीमा की रखवाली और आंतरिक सुरक्षा में अहम भूमिका निभाने वाले अर्द्धसैनिक बलों (पारामिलिटरी फोर्सेस, पीएमएफ) को गहरी ट्रेनिंग, आधुनिक साजोसामान ज़रूर मिलनी चाहिए और उन्हें सेना के साथ बेहतर तरीके से जोड़ा जाना चाहिए. पीएमएफ के अफसरों को सेना की यूनिटों के साथ जोड़ने से ट्रेनिंग और एकीकरण का दोहरा मकसद अच्छी तरह पूरा हो सकता है, नहीं बल्कि के रक्षा संबंध पिछले एक दशक से मजबूत हो रहे हैं. मुक्त किए गए अग्निवीरों को पीएमएफ में शामिल करना भी एक सकारात्मक कदम हो सकता है.
चौथा: भारत परमाणु हथियारों को लेकर अपने रुख में परिवर्तन करे. पहले परमाणु हमला नहीं करेंगे, इस नीति का पालन करते हुए उसे यह संकेत देना चाहिए इसको लेकर किसी ब्लैकमेल का वह निर्णायक जवाब देने के लिए तैयार है. इसमें दूसरा हमला करने की क्षमता हासिल करना, कमांड एवं कंट्रोल सिस्टम हासिल करना, और समय-समय पर रणनीतिक समीक्षा करना शामिल है. पाकिस्तान के हुक्मरानों की “अपने साथ आधी दुनिया को ले डूबेंगे” जैसी लफ्फाजी का जवाब तनाव बढ़ाकर नहीं बल्कि सफाई और संकल्प के साथ दिया जाना चाहिए. अपनी परमाणु नीति को खासकर ‘चेतावनी मिलते ही लांच करने’ के मामले में स्पष्ट की जाए तो परमाणु हथियारों के साथ दुस्साहस करने की प्रवृत्ति पर लगाम लगेगी. रणनीतिक बुद्धिमानी सीमा रेखाएं खींचने और इनका उल्लंघन करने का खतरा उभरते ही जवाब देने के संकल्प का संकेत देने में है.
पांचवां: भारत को दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है. इसे वह अपने रणनीतिक हथियार के रूप में ज़रूर इस्तेमाल करे. भारत और पाकिस्तान के बीच सबसे जाहिर अंतर आर्थिक स्थिति के मामले में है. जीडीपी की आंकड़ों में हर एक प्रतिशत अंक की वृद्धि इस अंतर को और बढ़ा देती है और यह विश्व मंच पर पाकिस्तान को अप्रासंगिक बना देती है. भारत अपनी अर्थव्यवस्था में उदारीकरण को जारी रखे, विदेशी निवेश को आकर्षित करता रहे, और इन्फ्रास्ट्रक्चर के कॉरीडोर बनाता रहे जिससे दूरियों को जोड़ा जा सके और मजबूती लाई जा सके.
‘इंडिया-मिडल ईस्ट-यूरोप इकोनॉमिक कॉरीडोर’ (आइएमईसी) के निर्माण में तेजी लाई जाए. जो व्यापार समझौते, खासकर ‘आसियान’ के साथ, होने हैं उन्हें जल्दी से अंजाम तक पहुंचाया जाए और जो हो चुके हैं उन्हें बिना किसी अड़चन के लागू किया जाए. अमेरिकी टैरिफ के असर को नाकाम करने के लिए बहुध्रुवीय निर्यात रणनीति अपनाई जाए. अमेरिका हमारा सबसे बड़ा व्यापारिक साझीदार भले हो, लेकिन वही एक नहीं है. बाकी दुनिया के साथ हमारा व्यापार कुल विदेश व्यापार के 70 प्रतिशत के बराबर है.
‘नैरेटिव’ को अपने काबू में करें
अंत में, भारत रणनीतिक संवाद के क्षेत्र में निवेश करे.
सूचना केंद्रित युद्ध के इस युग में धारणाएं नीतियों को आकार देती हैं. भारत उग्र प्रचारों का जरूर प्रतिवाद करे, और विश्व मीडिया, थिंक टैंकों, और अपने प्रवासियों का इस्तेमाल एक मजबूत एवं समावेशी इंडो-पैसिफिक के लिए सुरक्षा उपलब्ध कराने की इसकी भूमिका को सामने लाए. लक्ष्य भारत को एक ऐसी जिम्मेदार ताकत के रूप में पेश करना हो, जो अपने संकल्प पर अडिग रहता है, समझदारी भरा आचरण करता है और विवादों को वार्ता के जरिए सुलझाने को प्रतिबद्ध है.
दुनिया अब पहले वाली दुनिया नहीं रही, और भारत असावधान रहने की छूट नहीं ले सकता. खतरे वास्तविक हैं और बढ़ते जा रहे हैं, गठबंधन अनिश्चितता भरे एवं गतिशील हैं, और जोखिम आज अपने चरम पर है, लेकिन इस मंथन, आधुनिक समुद्र मंथन में ही भारत के लिए अवसर उभर सकते हैं जब वह उठ खड़ा हो और एक मजबूत तथा लचीला सुरक्षा तंत्र तैयार करके विश्व मंच पर अपनी भूमिका को पुनःपरिभाषित करे. भारत को अपना रास्ता खुद बनाना चाहिए, जो किसी भय से नहीं बल्कि दूरदर्शिता से उभरा हो. इस परिवर्तन की शुरुआत अभी हो जानी चाहिए, बिना किसी नारेबाजी के और मजबूत संकल्प के प्रदर्शन के साथ.
(जनरल मनोज मुकुंद नरवणे, पीवीएसएम, एवीएसएम, एसएम, वीएसएम, भारतीय थल सेना के सेवानिवृत्त अध्यक्ष हैं. वे 28वें चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ थे. उनका एक्स हैंडल @ManojNaravane है. व्यक्त किए गए विचार निजी हैं.)
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