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Friday, 3 May, 2024
होममत-विमत‘तिहरे’ बोझ के कारण भारत के गरीब राज्य कोविड-19 के गहन प्रकोप को नहीं झेल पाएंगे

‘तिहरे’ बोझ के कारण भारत के गरीब राज्य कोविड-19 के गहन प्रकोप को नहीं झेल पाएंगे

निर्धनतम राज्यों पर समृद्ध राज्यों की तुलना में संचारी रोगों का अधिक बोझ है और यह कोविड-19 के श्वसन संबंधी संक्रमण के संदर्भ में चिंता की बात है.

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यदि सार्स-कोव2 या नोवेल कोरोनावायरस देश में और भी गहरी पैठ बनाता है तो, राज्यों के बीमारियों और मौत से जुड़े आंकड़ों के अनुसार, भारत के निर्धनतम राज्यों पर कोविड-19 की तिहरी मार पड़ सकती है. बिहार जैसे राज्यों में न केवल सबसे कमज़ोर स्वास्थ्य तंत्र तथा संचारी एवं श्वसन तंत्र के रोगों की भरमार है. बल्कि उनकी आबादी में उच्च रक्तचाप और मधुमेह जैसी कोविड-19 की ज्ञात सहरुग्नताओं के मामले भी तेज़ी से बढ़ रहे है.

जैसे-जैसे राज्य या देश समृद्ध होते हैं, रोगों का उनका बोझ संचारी से गैरसंचारी श्रेणी में स्थानांतरित होता जाता है. इस प्रक्रिया को महामारीय परिवर्तन कहा जाता है.

केरल, दिल्ली और गोवा जैसे भारत के समृद्धतम राज्य इस महामारीय परिवर्तन में बहुत आगे हैं और इसलिए वहां मधुमेह, उच्च रक्तचाप और गुर्दे से जुड़ी गड़बड़ियों जैसे गैरसंचारी रोगों का जोखिम अधिक है, जो कोविड-19 के संबंध में सहरुग्णता या गंभीरता बढ़ाने वाले कारकों के रूप में सामने आए हैं. दूसरी ओर, भारत के निर्धनतम राज्यों में संचारी रोगों का अधिक बोझ है, विशेष रूप से कोविड-19 के संदर्भ में श्वसन तंत्र के रोगों की मौजूदगी सर्वाधिक चिंताजनक है.

कोविड से जुड़ी सहरुग्णता

अमेरिका के रोग नियंत्रण केंद्र के अनुसार कोविड-19 के संदर्भ में ‘हृदय रोग, उच्च रक्तचाप, पूर्व के स्ट्रोक के मामले, मधुमेह तथा फेफड़ों और किडनी के दीर्घकालिक रोग बढ़ी गंभीरता और प्रतिकूल परिणामों से जुड़ी वजहों के रूप में सामने आए हैं.’

जहां भारत के राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण में रक्तचाप और रक्त में शर्करा के स्तर संबंधी परीक्षण किए जाते हैं, वहीं भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद, पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया और इंस्टीट्यूट फॉर हेल्थ मेट्रिक्स एंड इवेल्यूशन द्वारा प्रकाशित राज्यस्तरीय रोग बोझ पहल (एसडीबी) की रिपोर्ट से बीमारियों के बारे में अधिक मुकम्मल तस्वीर सामने आती है. इस रिपोर्ट में डिसेबिलिटी-एडजस्टेड लाइफ़ ईयर्स (डैली) नामक एक पैमाने का उपयोग किया जाता है जो बीमारियो के प्रभाव का आकलन उनके कारण खोए ज़िंदगी के स्वास्थप्रद वर्षों से करता है. जबकि मृत्यु दर प्रति एक लाख की आबादी पर रोग विशेष से हुई मौतों की गणना है.

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भारत के समृद्धतम राज्य सर्वाधिक डैली ऐसे गैरसंचारी रोगों के कारण गंवाते हैं जो नोवेल कोरोनावायरस महामारी में कोविड से जुड़ी सहरुग्णता के रूप में सामने आए हैं, साथ ही इन्हीं की वजह से सर्वाधिक मौतें भी होती हैं.

चित्रण : सोहम सेन/ दिप्रिंट
चित्रण : सोहम सेन/ दिप्रिंट

हालांकि, ये बात भी चिंताजनक है कि पिछले कुछ वर्षों के दौरान भारत के समृद्धतम राज्यों के मुकाबले निर्धनतम राज्यों में इन गैरसंचारी रोगों की अधिक तेज़ वृद्धि देखी गई है. इस कारण इन राज्यों में कोविड-19 के मरीजों के इलाज में जटिलताओं का खतरा बढ़ जाता है.

चित्रण : सोहम सेन/ दिप्रिंट

यह जोखिम निर्धनतम राज्यों में संचारी, विशेष कर श्वसन संबंधी, रोगों की पहले से ही मौजूद उच्च दर के अतिरिक्त है, जोकि कोविड-19 के संदर्भ में चिंताजनक है. एसडीबी के अनुसार बिहार जैसे राज्यों को ‘बीमारी की दोहरी मार’ का सामना करना पड़ सकता है. बिहार में संचारी रोगों के कारण गंवाए गए स्वास्थ्यप्रद वर्षों की तुलना में गैरसंचारी रोगों के कारण खोए डैली का अनुपात सबसे कम है. दूसरे शब्दों में, राज्य में महामारीय परिवर्तन की दर देश में न्यूनतम है.

चित्रण : सोहम सेन/ दिप्रिंट
चित्रण : सोहम सेन/ दिप्रिंट

कमज़ोर स्वास्थ्य तंत्र

इसके साथ ही, निर्धनतम राज्यों में स्वास्थ्य के बुनियादी ढांचे की सबसे जर्जर हालत है. बिहार में प्रति 10,000 लोगों पर अस्पताल का सिर्फ एक बेड और 4 डॉक्टर हैं. निर्धनतम राज्यों पर बीमारी के बोझ का यह तीसरा आयाम साबित हो सकता है.

चित्रण : सोहम सेन/ दिप्रिंट
चित्रण : सोहम सेन/ दिप्रिंट

हालांकि, ये असमानताएं दुनिया के अन्य कई हिस्सों में भी सामने आ रही हैं जहां के बारे में पर्याप्त जनसांख्यिकीय नैदानिक आंकड़े उपलब्ध हैं. अमेरिका में, अफ्रीकी मूल के लोगों पर कोविड-19 की अधिक मार पड़ती दिख रही है जिसकी वजहों में इस समुदाय में सहरुग्णता की उच्च दर, घर से नहीं किए जा सकने वाले कामों पर उनकी अधिक निर्भरता तथा उनके लिए सूचनाओं और स्वास्थ्य सेवाओं की अपर्याप्त उपलब्धता शामिल हैं. भारत के निर्धनतम राज्यों को इस घातक संयोग के खिलाफ अत्यधिक सतर्क रहना होगा.

(लेखिका चेन्नई स्थिति डेटा पत्रकार हैं. ये उनके निजी विचार हैं.)

(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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