चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) यदि पहाड़ी इलाके में भारतीय सेना पर प्रौद्योगिकी संचालित हमला करती है तो भारत के पास क्या विकल्प होंगे? पीएलए का अधिक ज़ोर साइबर एवं इलेक्ट्रॉनिक युद्ध, और पीजीएम या निर्देशित हथियारों पर होगा, नकि प्रतिकूल अवस्था में की गई पैदल सेना केंद्रित आमने-सामने की लड़ाई पर.
निकट भविष्य में युद्ध जल, थल और वायु की परंपरागत पृष्ठभूमियों के अतिरिक्त साइबर, इलेक्ट्रॉनिक, अंतरिक्ष और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के आयामों में भी लड़े जाएंगे. परमाणु संपन्न राष्ट्रों के बीच पूर्ण युद्ध बीते जमाने की बात हो जाने के साथ ही, राष्ट्रों के बीच प्रतिस्पर्धी संघर्ष में ये नए आयाम प्रधान माध्यम साबित होंगे.
एक अमेरिकी थिंक टैंक ने अपने एक लेख में भविष्य के युद्ध की अच्छी तरह से परिकल्पना की है. इस साल फरवरी में प्रकाशित लेख में 2035 के एक ‘आधुनिक’ युद्धक्षेत्र का खाका खींचा गया है, जिसमें जम्मू कश्मीर में एक ओर भारत है तो दूसरी और चीन-पाकिस्तान की जोड़ी. हालांकि इसमें चित्रित ड्रोनों के झुंड के काइनेटिक और इलेक्ट्रॉनिक हमले की बात कोई कोरी कल्पना नहीं रह गई है. पड़ोस की ही बात करें तो गत सप्ताह पाकिस्तानी मीडिया में खबर आई थी कि सेना और सरकार के अधिकारियों को लक्षित कर साइबर हमले किए गए हैं. इस बात की भी अटकलें लगाई जाती रही हैं कि अरुणाचल प्रदेश में मई 2017 में हुई सुखोई 30 विमान की दुर्घटना में चीनी साइबर हमले की भूमिका थी.
य़ह भी पढें: सीधी लड़ाई बीती सदी की बात, भारत के खिलाफ चीन ड्रोन, पीजीएम और हाई टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल करेगा
भारत को बराबरी करनी होगी
हमारे सशस्त्र बल इस विषय में गत दो दशकों से विचार कर रहे हैं, लेकिन इस दिशा में कोई खास प्रगति नहीं हुई है. पूर्व सेनाध्यक्ष जनरल एस. पद्मनाभन ने 2004 में अपने रिटायरमेंट के तुरंत बाद ‘द राइटिंग ऑन द वॉल: इंडिया चेकमेट्स अमेरिका 2017’ शीर्षक एक काल्पनिक वृतांत लिखा था जिसमें भारत-पाकिस्तान युद्ध का परिदृश्य बनाया गया था जिसमें अमेरिका की पाकिस्तान के साथ सांठगांठ है, लेकिन भारतीय साइबर हमला उसे बेअसर बना देता है. यह आशावाद तब का है जब सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में अग्रणी देश के रूप में भारत की स्वीकार्यता उत्तरोत्तर बढ़ रही थी. हालांकि बहुत पहले शुरुआत करने के बावजूद इस दिशा में अभी तक वास्तविक प्रगति नाममात्र की ही हुई है.
वैसे तो हमारे पास सिग्नल इंटेलिजेंस और इलेक्ट्रॉनिक युद्ध की इकाइयां लंबे समय से हैं, लेकिन ये पुरातन उपकरणों के बोझ से दबी हुई हैं. इस संबंध में स्वदेशीकरण का कोई ठोस परिणाम नहीं निकला है और विदेशी सरकारों की अनिच्छा के कारण संबंधित उपकरणों आयात बहुत ही दुष्कर है. हमने अमेरिकी सेना की तर्ज पर इन्फॉर्मेशन वारफेयर ब्रिगेड तो बना लिया, लेकिन हम इलेक्ट्रॉनिक युद्ध, साइबर युद्ध, मनोवैज्ञानिक अभियान और सैन्य चालबाज़ी को उसके अधीन नहीं ला सके.
अभी तक हमने सूचना युद्ध की औपचारिक नीति तक नहीं निर्धारित की है. हालांकि भारतीय वायुसेना और भारतीय नौसेना हमारी थल सेना के मुकाबले कहीं अच्छी स्थिति में हैं लेकिन वे भी अपेक्षित क्षमता हासिल करने से बहुत दूर हैं. बालाकोट हमले के अगले दिन हुए विमानों की डॉगफाइट के बाद सवाल उठे थे कि हमारे विमानों की इलेक्ट्रॉनिक युद्ध क्षमता एफ-16 विमानों के मुकाबले कहां ठहरती है. हमने 2018 में डिफेंस साइबर एजेंसी और डिफेंस स्पेस एजेंसी स्थापित करने की अच्छी पहलकदमी की, लेकिन ये महज शुरुआती कदम हैं और हमें अभी लंबा रास्ता तय करना है. हाल ही में, सेना ने उन्नत ‘विशिष्ट और अवरोधक युद्ध प्रौद्योगिकियों’ के बारे में एक सीनियर लेफ्टिनेंट जनरल की अध्यक्षता में अध्ययन शुरू कराया है जिसमें ड्रोन झुंडों, रोबोटिक्स, लेज़र और मौका ढूंढकर स्वत: हमला करने वाले हथियारों से लेकर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, बिग डेटा विश्लेषण और एलगॉरिद्मिक वारफेयर तक विभिन्न विषयों को शामिल किया गया है.
इस संबंध में पीएलए हमसे तीन दशक आगे है और 1990 के पहले खाड़ी युद्ध के बाद 1993 से ही वह सूचना युद्ध पर काम कर रहा है. पीएलए की सामरिक परिकल्पना, जिसे सेंट्रल मिलिट्री कमीशन के 1993 के रक्षा श्वेत पत्र में औपचारिक रूप से शामिल किया गया था, में ‘आधुनिक परिस्थितियों में स्थानीय युद्धों’ की बात की गई थी. आगे चलकर 2004 में इसे संशोधित कर ‘सूचनाकृत परिस्थितियों में स्थानीय युद्ध जीतना’ कर दिया गया. एक बार फिर 2015 में सामरिक संकल्प में संशोधन किया गया और इसे ‘सूचनाकृत स्थानीय युद्ध जीतने’ का लक्ष्य बना दिया गया. इस रणनीति से स्पष्ट है कि सूचना युद्ध – जिसमें इलेक्ट्रॉनिक युद्ध, साइबर युद्ध, मनोवैज्ञानिक युद्ध, रणनीतिक चालबाज़ी और अंतरिक्ष युद्ध के संचार/इलेक्ट्रॉनिक्स से संबंधित पहलू शामिल हैं – की चीन की लड़ाइयों में प्रमुख भूमिका होगी. इस दिशा में आगे बढ़ते हुए 2015 के सुधारों के तहत पीएलए ने स्ट्रेटेजिक सपोर्ट फोर्स का गठन किया जिसके तहत सूचना युद्ध के सारे आयामों को शामिल किया गया है.
पूर्वी लद्दाख में आगे बढ़कर की गई कार्रवाई के तहत नियंत्रण में लिए गए इलाके में पीएलए तेज़ी से फाइबर-ऑप्टिक केबल बिछा रही है, ताकि उसकी सूचना युद्ध क्षमताओं में इजाफा हो सके.
य़ह भी पढ़ें: पीएलए के भारत विशेषज्ञ अधिकारी ने 1962 में क्या कहा था जो चीन के सोचने के तरीके के बारे में संकेत देता है
पीएलए के हाइटेक हमले को कैसे नाकाम किया जा सकता है?
सूचना युद्ध और पीजीएम क्षमताओं में भारी अंतर को देखते हुए हमारे सशस्त्र बलों को पीएलए को परास्त करने के लिए इनोवेशन यानि नवाचार पर भरोसा करना होगा.
• हमारे मौजूदा रक्षात्मक उपाय छोटे हथियारों और गैर-निर्देशित हथियारों की गोलाबारी से निपटने के लिए तैयार किए गए हैं, जोकि आधुनिक काल के लिए असंगत हैं. वे सौ साल पहले के हथियारों से अलग नहीं हैं, और सतह या हवा से की गई पीजीएम की बौछार में वे बिल्कुल नहीं टिक पाएंगे. हमें कंक्रीट की सुरंगों वाली रक्षा पंक्ति तैयार करने की ज़रूरत है. इसका एक बेहतरीन उदाहरण है 38वीं समानांतर रेखा पर दक्षिण कोरिया की रक्षात्मक पंक्ति.
• पहाड़ी की चोटियों पर अपनी रक्षा तैनातियों को केंद्रित करने के बजाय हमें उसे ढलानों पर फैला देना चाहिए ताकि वे बड़ा निशाना नहीं रह जाएं. सटीक सूचना उजागर नहीं हो इसके लिए छलावरण और गुप्त तैनातियों का जमकर उपयोग होना चाहिए और भ्रामक निशाने पेश करने के लिए मॉकअप नमूनों का इस्तेमाल किया जाना चहिए.
• दुश्मन नज़दीकी लड़ाई से बचना चाहता है. इसलिए, उसे निकट युद्ध में शामिल होने के लिए मजबूर करना समझदारी होगी. गहरी रक्षा पंक्ति तैयार करके पीएलए को क्रमिक लड़ाई लड़ने के लिए मजबूर किया जा सकता है. आरंभ में एक बार आमना-सामना हो जाने के बाद, शत्रु अपनी सुरक्षा के मद्देनज़र पीजीएम या एरिया वेपन अस्त्रों का उपयोग नहीं कर सकता है. ‘स्पॉइलिंग अटैक’ भी करने होंगे यानि दुश्मन पर उस समय हमले करना जब वे एकत्रित होने के इलाकों से निकलकर हमलावर दलों का रूप धारण करने के लिए आगे बढ़ रहे हों. साथ ही दुश्मन जब हमले के बाद मॉपिंग-अप कार्य में जुटा हो तो तत्काल उन पर जवाबी हमला करना होगा.
• दुश्मन के कमान, कंट्रोल और हथियार तंत्रों पर हमले के लिए अपने सूचना युद्ध संसाधनों का एकजुट उपयोग करना होगा.
• हमें जवाबी पीजीएम हमले करते हुए दुश्मन के सूचना युद्ध संसाधनों और पीजीएम अस्त्र प्लेटफॉर्म को निशाना बनाना होगा.
• शत्रु के हाइटेक हमले का निष्क्रियता से इंतजार करने के बजाय आक्रामक कदम उठाने की ज़रूरत होगी. यह ऑपरेशनल लेवल रिजर्व के साथ उच्च स्तर पर और संपूर्ण एलएसी पर रणनीतिक स्तर पर, दोनों ही तरह से किया जा सकता है.
• अमेरिका, इज़रायल और फ्रांस के साथ समन्वय करते हुए हमें तत्काल सूचना युद्ध के लिए अत्याधुनिक उपकरणों की खरीद करनी होगी.
हम सैन्य क्षमता में और खासकर सूचना युद्ध क्षमता में चीन से कम-से-कम दो दशक पीछे हैं. जहां तक सूचना युद्ध की बात है तो सरकार को दुश्मन से बराबरी के उपायों के तहत सूचना प्रौदयोगिकी कंपनियों और आईआईटी संस्थानों की भागीदारी वाले टास्क फोर्स का गठन करना चाहिए. पूर्वी लद्दाख की घटना हमारे लिए खतरे की घंटी है. हमें इस असंतुलन को पाटना होगा वरना हम परिणाम को लेकर आशंकाओं और अनिश्चितताओं से घिरे एक संकट से दूसरे संकट में फंसते रहेंगे.
य़ह भी पढ़ें: भारत अगर एलएसी पर चीन को थकाना चाहता है तो दबाव वाले बिंदुओं पर उसे रक्षात्मक तैयारी मज़बूत करनी होगी
(ले. जनरल एच.एस. पनाग पीवीएसएम, एवीएसएम (रि.) ने भारतीय सेना की 40 साल तक सेवा की है. वे उत्तरी कमान और सेंट्रल कमान के जीओसी-इन-सी रहे. सेवानिवृत्ति के बाद वे आर्म्ड फोर्सेज ट्रिब्यूनल के सदस्य रहे. व्यक्त विचार निजी हैं)
(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)