भारतीय सशस्त्र सेनाओं के कुछ अधिकारी जहां मिलिट्री कैंटीनों से बेची जाने वाली कारों पर कीमत संबंधी पाबंदी लगाए जाने को ‘दुर्व्यवहार’ बता रहे हैं, वहीं बहुत से लोग उन्हें मिलने वाली सुविधाओं पर सवाल उठा रहे हैं. इन लोगों को ब्रिटेन में हाल में हुए एक वाकये पर गौर करना चाहिए जब अपने सरकारी कार का ‘दुरुपयोग’ करने पर नौसेना के एक अधिकारी को ‘कमान से हटा दिया गया.’ दोनों मामलों की परस्पर तुलना नहीं की जा सकती, पर इनके ज़रिए सैनिकों से लोगों की अपेक्षाओं का सवाल सामने आता है.
निर्णय या नैतिकता संबंधी त्रुटि
दो सप्ताह पहले ब्रिटेन की रॉयल नेवी के युद्धपोत एचएमएस क्वीन एलिज़ाबेथ के कैप्टन कमोडोर निक कुक-प्रीस्ट को सरकारी कार के ‘दुरुपयोग’ के उनके ‘त्रुटिपूर्ण फैसले’ के कारण कमान से हटा दिया गया था.
ब्रिटेन के पूर्व सैनिकों, मीडिया और आम जनता में इस मुद्दे पर मतैक्य नहीं है. इनमें से कुछ का कहना है कि इतने भर ‘कदाचार’ के कारण तीन अरब पाउंड लागत वाले विमानवाही पोत के एक अत्यंत प्रतिष्ठित कमांडर को हटाए जाने की ज़रूरत नहीं थी. उल्लेखनीय है कि एचएमएस क्वीन एलिज़ाबेथ रॉयल नेवी के बेड़े में सबसे उन्नत पोत है जिस पर 1600 नौसैनिकों और 36 युद्धक विमानों की तैनाती की जा सकती है.
हालांकि कई अन्य लोगों का कहना है कि सैन्य नैतिकता के सिद्धांत सर्वोपरि होते हैं और किसी के लिए भी उससे समझौता नहीं किया जाना चाहिए, भले ही उसके पद, तैनाती या पेशेवर दक्षता का स्तर कुछ भी हो.
इस मुद्दे पर मैंने भी सशस्त्र बलों के नैतिक मानदंडों में गिरावट को लेकर ट्वीट किया था, जिस पर बडी जीवंत बहस हुई. ये देखकर सुखद आश्चर्य हुआ कि ट्विटर पर सक्रिय जनता और पूर्व सैनिक, दोनों की समान राय थी कि अन्य सरकारी संस्थानों और समाज की स्थिति चाहे जो भी हो, सशस्त्र सेनाओं में सर्वोच्च नैतिक मानकों को कायम रखा जाना चाहिए.
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सैनिक नेतृत्व और आदर्श आचरण
पांच हज़ार वर्षों के ज्ञात सैनिक इतिहास में सैनिक नेतृत्व की बुनियादी बातें – मानवीय मूल्यों की व्यवस्था, नेतृत्व के गुण, सिद्धांत और आचार संहिता – अपरिवर्तित रहे हैं. इनमें बदलाव इसलिए नहीं हुआ है क्योंकि सेना ने सक्रियता के साथ समाज के श्रेष्ठ आचरणों का चयन करते हुए, अपना नेतृत्व तैयार करने के लिए उनका इस्तेमाल किया है. सैन्य आदर्शों और आम मानवीय कमज़ोरियों के बीच के फासले को पाटने के लिए, इन नैतिक मानकों को बाध्यकारी नियम-कायदों और सैनिक कानूनों की सहायता से लागू किया गया.
नैतिकता – यानि नैतिक रूप से अच्छे या बुरे की समझ – सही फैसले लेने में सैन्य नेताओं का मार्गदर्शन करती है. सेना शासन का अंतिम साधन होती है और उसके हित में ‘ताकत’ का उपयोग कर सकती है. इसलिए यदि ये अपने नैतिक आचरण का सख्ती से पालन नहीं करेगी तो उसके परिणाम भयावह होंगे, खास कर जब आंतरिक सुरक्षा के उद्देश्य से भी सेना की तैनाती की जा रही हो.
सैन्य नैतिकता का उल्लंघन
युद्ध हो या शांतिकाल, हमारे सैनिक अधिकारियों की समाज में बड़ी प्रतिष्ठा है. लड़ाइयों में उन्होंने आगे रह कर नेतृत्व किया है. फिर भी, खास कर कर्नल या उससे ऊपर की रैंक के अधिकारियों से संबंधित विभिन्न चारित्रिक कमियों की बहुत सी बातें सामने आई हैं.
विगत वर्षों में, अधिकारियों द्वारा सैन्य नैतिकता के उल्लंघन की अनेक खबरें सुनने को मिली हैं. कथित फर्जी मुठभेड़ों की अनेक घटनाओं के साथ ही हमारे समक्ष ‘बूज़ ब्रिगेडियर’ और ‘केचप कर्नल’ के मामले भी हैं.
कई वरिष्ठ अधिकारियों का कोर्ट मार्शल भी हुआ, जिनमें उल्लेखनीय है सेना सेवा कोर का एक महानिदेशक, लेफ्टिनेंट जनरल रैंक के उस अधिकार को खराब दाल की खरीद के मामले में तीन साल के सश्रम कारावास की सजा सुनाया जाना (जिसे बाद में आर्म्ड फोर्सेज ट्रिब्यूनल ने कम कर नौकरी से बर्खास्तगी तक सीमित कर दिया). सेना में छोटे स्तर के भ्रष्टाचार के मामलों के कुछ अटपटे नाम हैं- ‘तंबू कांड’, ‘अंडा घोटाला’ और ‘गोल्फ कार्ट घोटाला’. वरिष्ठ अधिकारियों द्वारा सरकारी गाड़ी के इस्तेमाल, जवानों से घरेलू नौकरों का काम लेने और बिजली बिलों में हेरफेर जैसे विशेषाधिकारों के दुरुपयोग के मामले बेकाबू हो चुके हैं.
विभिन्न रैंकों वाले वरिष्ठ अधिकारियों के अलावा सैन्य नैतिकता के सर्वोच्च संरक्षक, यानि सशस्त्र सेनाओं के प्रमुख भी इसका अपवाद नहीं हैं. जनरल रैंक के एक अधिकारी को एक अधीनस्थ महिला अधिकारी से छेड़छाड़ का दोषी पाया जा चुका है. नियमों को ताक पर रखते हुए दो थलसेना प्रमुखों, एक नौसेना प्रमुख तथा सेना के कमान प्रमुख सहित कई अन्य जनरलों को कुख्यात आदर्श हाउसिंग सोसायटी में कथित रूप से फ्लैट आवंटित किए गए थे. इतना ही नहीं, बताया जाता है कि सेना प्रमुखों ने, रक्षा मंत्रालय की मिलीभगत से, सेवानिवृति के बाद भी निजी स्टाफ रखने की अनुमति हासिल कर ली है. एक संदेहास्पद सुविधा को ‘अधिकृत’ कराने वाला सशस्त्र सेना का कोई प्रमुख भला किस मुंह से अपने सेना का नैतिक संरक्षक बन सकता है?
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‘कैस्केडिंग’ प्रभाव
सार्वजनिक जीवन में सत्यनिष्ठा के गिरते मानदंडों का प्रभाव सेना पर भी पड़ने के बहाने को सही नहीं ठहराया जा सकता है. सेना से एक विस्तृत नेतृत्व विकास कार्यक्रम के ज़रिए इससे बचने की अपेक्षा की जाती है, और साथ ही इसके खिलाफ नियमों, प्रावधानों और कानूनों की भी व्यवस्था है.
नैतिक मानदंडों में वर्तमान में आई गिरावट के कारण हैं- एक त्रुटिपूर्ण नेतृत्व विकास कार्यकम और समझौता कर चुका नेतृत्व जो कानूनों के कार्यान्वयन में नाकाम है.
सैन्य नेता और आम सैनिकों के बीच परस्पर विश्वास युद्ध में सर्वाधिक महत्वपूर्ण कारक साबित होता है. यह विश्वास प्रशिक्षण के दौरान दीर्घावधि में निर्मित होता है. नियम-कायदों और उनके कार्यान्यवन के लिए सख्त कानूनों वाले किसी संगठन में अधीनस्थ कर्मियों की अपने नेताओं पर निरंतर निगाह रहती है. उनकी इस बात में बहुत दिलचस्पी होती है कि क्या उनके शीर्ष अधिकारी भी कड़े नियम-कानूनों का पालन करते हैं और थोपी जाने वाली सजाओं का सामना करते हैं. यही कारण है कि खुद का उदाहरण पेश कर नेतृत्व करने वाले ‘रोल मॉडल’ सेना में कभी नाकाम साबित नहीं होते हैं. एक विकासमान समाज में नेतृत्व की ईमानदारी को हमेशा मापा जाता है. सेना इसकी अपवाद नहीं है. सेना में ‘सत्यनिष्ठा’ का मतलब बिना दोहरेपन वाले ‘समन्वित व्यक्तित्व’ से भी है.
सैनिक अधिकारियों का, खास कर ‘सत्यनिष्ठा’ के संबंध में, दोहरा आचरण अधीनस्थों की मनोदशा पर कैस्केडिंग प्रभाव डालता है, जिसके कारण निष्ठा और विश्वास में कमी आती है – जो कि युद्ध के संदर्भ में सर्वाधिक खतरनाक दशा है. इसीलिए एचएमएस क्वीन एलिज़ाबेथ के अच्छे ‘कप्तान’ को ‘कमान से हटाना’ पड़ा. वक्त आ गया है कि भारतीय सशस्त्र सेनाएं आदर्शों और नैतिकताओं के गिरते मानदंडों को लेकर आवश्यक कदम उठाएं.
(ले.जन. एच.एस. पनाग पीवीएसएम, एवीएसएम (से.नि.) ने भारतीय सेना को 40 साल तक अपनी सेवाएं दी हैं. वे उत्तरी तथा सेंट्रल कमान के प्रमुख रह चुके हैं. सेवानिवृत्ति के बाद वे आर्म्ड फोर्सेज ट्रिब्यूनल के सदस्य भी रहे. लेख में व्यक्त विचार उनके निजी विचार हैं.)
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