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Sunday, 28 April, 2024
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भारतीय सेना के अधिकारी सावधानी से बोलें, PoK वाले बयान को मीडिया तोड़-मरोड़ कर पेश कर रही

22 नवंबर को लेफ्टिनेंट जनरल उपेंद्र द्विवेदी के पीओके वाले बयान को भारतीय मीडिया ने इस तरह से तोड़-मरोड़ कर पेश किया कि सेना उसे वापस लेने को तैयार है.

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भारत पाकिस्तानी कब्जे वाले कश्मीर (पीओके) को वापस अपने कब्जे में ले लेगा, यह चर्चा देश की घरेलू तथा विदेश नीति संबंधी विमर्शों में अक्सर उठती रहती है. हाल में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने पीओके को भारत में शामिल करने को लेकर जो बयान दिया उस पर मीडिया ने जब उत्तरी क्षेत्र के आर्मी कमांडर ले.जनरल उपेंद्र द्विवेदी से 22 नवंबर को यह सवाल किया कि भारतीय सेना इस बारे में क्या मत रखती है, तो उन्होंने जवाब दिया, ‘जैसा कि आप सब जानते हैं, इस मसले पर संसद का एक प्रस्ताव आ चुका है और यह कोई नयी बात नहीं है. जहां तक भारतीय सेना की बात है, वह भारत सरकार के किसी भी आदेश का पालन करेगी. और जब भी इस तरह का आदेश दिया जाएगा, हम इसके लिए हमेशा तैयार रहेंगे.’

भारतीय मीडिया ने जल्दी ही इस बयान को तोड़-मरोड़कर इस तरह पेश किया कि ‘सेना तैयार है और वह पीओके को वापस लेने का इंतजार कर रही है.’ बयान के अर्थ को बड़ी सूक्ष्मता से बदल दिया गया लेकिन यह महत्वपूर्ण है. इसके बाद मीडिया में गरमा-गरम बहस छिड़ गई, जिसका पूरा फोकस पीओके के मसले पर ध्यान खींचना था, और इसे सत्ताधारी जमात ने पाकिस्तान से निबटने में सख्ती दर्शाने के लिए इस्तेमाल किया. रक्षा मंत्री पीओके के मसले पर अक्सर बयान देते रहे हैं कि ‘ईंट का जवाब पत्थर से देंगे’, जिसमें पाकिस्तान की घुसपैठों का सख्त जवाब देने का संकेत छिपा होता है.

इसी तरह का राजनीतिक बयान ले.जनरल द्विवेदी ने 22 नवंबर को मीडिया के साथ बातचीत में दोहराया. सेना के नेतृत्व पद पर आसीन किसी अधिकारी ने शायद पहली बार इस तरह की बयानबाजी की है. यह बयान 2021 के युद्ध विराम समझौते के पाकिस्तान द्वारा उल्लंघन के संदर्भ में भारतीय सेना की प्रतिक्रिया के रूप में था.

पाकिस्तानी सेना का सरकारी ट्विटर हैंडल भी इस पर प्रतिक्रिया देने में पीछे नहीं रहा. भारतीय सेना को निशाने पर लेते हुए दी गई इस प्रतिक्रिया का अंत इस कटाक्ष से किया गया— इस क्षेत्र में अमन की खातिर बेहतर यही होगा कि भारतीय सेना अपने सियासी आकाओं की प्रतिगामी विचारधारा के लिए चुनावी समर्थन जुटाने के वास्ते गैर-जिम्मेदाराना लफ़्फ़ाजी और तीखी बयानबाजी से परहेज करे.’ आरोप यह था कि भाजपा के चुनावी फायदे के लिए जिस पाकिस्तान विरोधी एजेंडा का इस्तेमाल किया जा रहा है उसमें भारत के फौजी हुक्मरान भी शामिल हो रहे हैं. एक ऐसी सेना जिसके बारे में अक्सर यह कहा जाता है कि उसका एक राष्ट्र है, न कि एक ऐसा राष्ट्र जिसकी एक सेना है, उसके लिए यह गंभीरता का दिखावा करती हंसी-हंसी में दी गई प्रतिक्रिया जैसी लगती है.


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भारत की राजनीति में PoK

भारत में चुनावों का दौर शुरू होने वाला है, जो 2024 के लोकसभा चुनाव के साथ खत्म होगा. ऐसे में ‘पीओके को वापस लेंगे’ जैसे प्रकरण और उसके विभिन्न रूप भारतीय घरेलू राजनीति को दिशा देंगे और पाकिस्तान के साथ रिश्ते को भी स्वरूप प्रदान करेंगे. कई तरह के विश्वासघातों के कारण इस सबमें नफरत का जहर काफी उगला जाएगा. ये भारत के साथ पाकिस्तान के कूटनीतिक एवं रणनीतिक व्यवहारों का अभिन्न हिस्सा रहे हैं. घरेलू माहौल में इस तरह की भावनाएं अक्सर हिंदू-मुस्लिम विद्वेष में बदल जाती हैं, जो चुनावों में कथित तौर पर फायदा उठाने के लिए हिंदू वोटों को एकजुट करने में मददगार होती हैं.

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पूरी संभावना यह है कि अमेरिका और चीन के बीच बड़े संघर्ष से बनी वैश्विक तथा क्षेत्रीय भू-राजनीतिक टकरावों के चलते भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए चुनौतियां जितनी बढ़ेंगी, इस तरह की चुनावी तिकड़में उतनी ज्यादा बढ़ेंगी. अमेरिका और चीन के बीच इस संघर्ष में भारत भी शामिल हो सकता है और यह चीन और पाकिस्तान के साथ इसके तनावों को और बढ़ा सकता है. यह तो साफ है कि भारत को चीन के साथ संबंध पर ज़ोर देने की जरूरत है और उसे राजनीतिक, सैन्य, आर्थिक, कूटनीतिक, खुफियागीरी, तकनीकी और सूचना शक्ति के संदर्भों में अपने शासन कौशल का इस्तेमाल करना होगा. भारत की घरेलू राजनीति के स्वरूप के मद्देनजर उसे पाकिस्तान के चलते अपना ध्यान भटकाने से बचना होगा. यह तभी संभव होगा जब संकीर्ण दलगत राजनीति को राष्ट्रहित पर हावी नहीं होने दिया जाएगा. लेकिन पिछले एक दशक में जिस तरह की घरेलू राजनीति और घटनाएं हुई हैं उनके मद्देनजर इसकी संभावना कम दिखती है.

उम्मीद तभी बन सकती है जब भाजपा यह कबूल कर ले कि अपनी लोकप्रियता और विपक्षी खेमे में बिखराव के कारण अब उसे चुनाव जीतने के लिए पाकिस्तान के प्रति नफरत भड़काने का सहारा लेने की जरूरत नहीं रह गई है.

सैन्य नेतृत्व विवादों से परे रहे

भारत के राजनीतिक दल चाहे जो मन में आए करें, सैन्य नेतृत्व के पास विकल्प है. चुनाव जीतने के लिए राजनीतिक नेतृत्व पाकिस्तान विरोधी भावनाओं को जिस तरह भड़काता है उससे वह बिलकुल अलग रह सकता है. इस विकल्प का इस्तेमाल दो भिन्न तरीके से किया जा सकता है.

पहला यह कि लिखे और बोले गए शब्दों के साथ की गईं और प्रचारित की गईं कार्रवाइयां सिद्धांततः सेना की छवि बनाती हैं और उसे सुरक्षित रखती हैं. सूचनाओं की बाढ़ के इस युग में यह एक जरूरत बन गई है. लेकिन जो चीज गैर-ज़रूरी है और जिसे कम किया जाना चाहिए वह है मीडिया के साथ सैन्य नेतृत्व का संपर्क. इसके बदले सेना के अधिकृत प्रवक्ता, जो हर स्तर पर उपलब्ध हैं, ही मुख्य संपर्क सूत्र बनें. सैन्य नेतृत्व इस तरह अपने बयानों को तोड़े-मरोड़े जाने और अनावश्यक विवादों में घसीटे जाने से बच सकेगा. घरेलू राजनीति की जो दिशा है उसके मद्देनजर नीति यह होनी चाहिए कि सेना को जो कहना है वह उसे अपने कामों से जाहिर करे. राजनीतिक मामलों पर सैन्य नेतृत्व द्वारा चुप्पी बरतना ही श्रेयस्कर उपाय है.

दूसरे, सैन्य नेतृत्व को संवेदनशील होना चाहिए और यह संकेत नहीं देना चाहिए कि वह घरेलू राजनीति के उन आख्यानों का समर्थन करता है जो राजनीतिक विपक्ष की छवि को धूमिल करते हों. ऐसा एक आख्यान जो स्थापित हो रहा है वह एक उदाहरण है. इसके तहत यह धारणा बनाने की कोशिश की जा रही है कि भारत की प्रगति मुख्यतः 2014 के बाद से ही शुरू हुई, जिस साल नरेंद्र मोदी सरकार का अवतरण हुआ. सैन्य नेतृत्व को खास तौर पर सावधानी बरतनी चाहिए कि अपने बयानों में वे ऐसे आख्यानों का समर्थन करते न दिखें. इससे सेना के अ-राजनीतिक स्वरूप को चोट पहुंचती है.

आगामी वर्षों में भारत के विकास की गति को कठिन चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है. भारत के लोकतांत्रिक ढांचे में आंतरिक राजनीतिक विमर्श और मतभेद ही उसे चुनौतियों से निपटने और अवसरों का लाभ उठाने की ताकत देते हैं. सेना अगर अपने स्पष्ट संवैधानिक मूल्यों से मेल न रखने वाले विचारधारात्मक आग्रहों को जाने-अनजाने शामिल करती है तो वह निष्पक्ष सलाह देने की अपनी क्षमता को दांव पर लगाती है.

[लेफ्टिनेंट जनरल (डॉ.) प्रकाश मेनन (रिटायर्ड) तक्षशिला संस्थान में सामरिक अध्ययन कार्यक्रम के निदेशक; राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद सचिवालय के पूर्व सैन्य सलाहकार हैं. उनका ट्विटर हैंडल @prakashmenon51 है. व्यक्त विचार निजी हैं]

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

(संपादनः शिव पाण्डेय)
(अनुवादः अशोक कुमार)


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