scorecardresearch
Thursday, 19 December, 2024
होममत-विमतभारतीय TV सीरियल्स अभी भी ‘पति छीनने वाली दुष्ट महिलाओं पर अटके हैं’, OTT इस दौड़ में सबसे आगे

भारतीय TV सीरियल्स अभी भी ‘पति छीनने वाली दुष्ट महिलाओं पर अटके हैं’, OTT इस दौड़ में सबसे आगे

डेली सोप (धारावाहिकों) में बच्चों द्वारा पुलिस और डाकू की भूमिका निभाने में होने वाली शारीरिक हिंसा की तुलना मिर्ज़ापुर जैसे ओटीटी विशेष कार्यक्रमों में देखी जाती है.

Text Size:

समाचार और खेल के अलावा मनोरंजन के लिए भारतीय क्या देखते हैं? क्या वे काजोल और नीना गुप्ता को लस्ट स्टोरीज़-2 में देखते हैं या क्या वे अनुपमा और मीत को पसंद करते हैं?

हां, आपके पास स्पष्ट विकल्प हैं: आप देख सकते हैं कि कैसे दादी नीना जी अपने परिवार को सेक्स के प्लेज़र की खोज करने और उसका आनंद लेने के लिए प्रेरित करके उन्हें मुक्त करती हैं (लस्ट स्टोरीज़ 2, नेटफ्लिक्स); और आप ‘प्यार’ (अनुपमा, स्टार प्लस, हॉटस्टार) मिलने के बाद भी अपने परिवार के लिए अनुपमा के शाश्वत बलिदानों को देखना जारी रखते हैं.

और इस सबकी खूबसूरती यह है कि आपको चुनना नहीं है. आप नेटफ्लिक्स, हॉटस्टार, अमेज़न प्राइम वीडियो, सोनी लिव, ज़ी 5 जैसे कईं ऑवर दि टॉप (ओटीटी) प्लेटफॉर्म को देख सकते हैं, मूल स्ट्रीमिंग फिल्मों और सीरीज़ के साथ-साथ स्टार प्लस, सोनी, ज़ी जैसे डीटीएच/केबल चैनलों पर कभी न खत्म होने वाले डेली सोप ओपेरा भी देख सकते हैं.

निश्चित रूप से ओटीटी मूल सीरीज़ और धारावाहिकों के बीच बड़ा अंतर है. अनुपमा, मीत, वाणी (थपकी प्यार की, कलर्स), राधा (प्यार का पहला नाम: राधा मोहन, ज़ी) जैसी महिलाओं के होठों पर आपने कभी ‘सेक्स’ शब्द नहीं सुना होगा, भले ही यह अक्सर उनके दिमाग में आता हो. जब वे अपने पतियों को देखती हैं — अक्सर उनके पति ही उनकी इच्छा का विषय होते हैं — मोहन, मीत (हां, मीत, मीत विवाह करती है), ध्रुव या अनुज से.

जहां तक ‘वासना’ का सवाल है, तौबा तौबा! अगर वो इसका अनुभव करते हैं — जो, उनके धारावाहिकों की ‘अच्छी’ नायिकाओं के रूप में उन्हें नहीं करना चाहिए — सेक्स, ज्यादातर, धारावाहिकों में केवल प्रजनन के लिए है; यह उन ‘बुरी’ महिलाओं के साथ भावुक टकराव के जैसा दिखता है जो हमेशा दूसरों के पतियों को चुराना चाहती हैं और अक्सर ऐसा करने में सफल हो जाती हैं. नैतिक स्त्रियां, दुष्ट और कामुक होती हैं और पुरुष बहुत भोले होते हैं.

दूसरी ओर, नेटफ्लिक्स की हालिया रिलीज़ लस्ट स्टोरीज़-2 में, जो अलग-अलग निर्देशकों (आर बाल्की, कोंकणा सेन शर्मा, सुजॉय घोष और अमित रविंदरनाथ शर्मा) की चार अलग-अलग कहानियों को एक साथ पिरोती है, आनंद के लिए सेक्स, ताक-झांक और शायद वासना को ग्राफिक रूप से चित्रित किया गया और इस बारे में चर्चा की गई है. अफसोस की बात है कि कोंकण सेन की दृश्यरतिक पेशकश को छोड़कर, अन्य लोग सेक्स और कहानियों का मज़ाक उड़ा रहे हैं.

आप कह सकते हैं कि यह अंतर इसलिए है क्योंकि दोनों के दर्शक — टीवी सीरियल्स और ओटीटी विशेष अलग-अलग हैं — ओटीटी वाले युवा वयस्क, शिक्षित, शहरी दर्शक हैं और टीवी वाले पुराने हैं; इसलिए टीवी मनोरंजन चैनलों पर सेक्स को लेकर शर्मिंदगी, जहां परिवार एक साथ देखते हैं और महानगरों में लोगों के लिए ओटीटी पर दुखद चित्रण हैं.

हालांकि, एंड्रॉइड फोन की उचित कीमत और इंटरनेट कनेक्टिविटी के पूरे देश में फैलने से यह अंतर कम हो रहा है. हर किसी के पास हर चीज़ तक पहुंच है—उन्हें यह चुनने का अधिकार है कि क्या देखना है.

सेक्स के चित्रण के अलावा, दोनों के बीच अन्य मुख्य विरोधाभास परिवार और महिलाएं हैं. परिवार सभी धारावाहिकों का केंद्रबिंदु है — और इसकी भलाई महिला नायक की जिम्मेदारी है.

मनोरंजन चैनल पर कोई भी धारावाहिक देखिए: उदाहरण के लिए ज़ी पर कुम कुम भाग्य और भाग्य लक्ष्मी, या स्टार प्लस पर ये रिश्ता क्या कहलाता है और पंड्या स्टोर. आप पाएंगे कि यह सब परिवार को बचाने या खत्म करने के बारे में है और इसके साथ क्या चलता है — संपत्ति, व्यवसाय, प्रतिष्ठा.

वैसे, यह सभी शो उच्च जाति के हिंदू अविभाजित परिवार के बारे में है — किसी दलित, ओबीसी, एससी या एसटी को आवेदन करने की आवश्यकता नहीं है और निश्चित रूप से कोई मुस्लिम और ईसाई तो एकदम नहीं.

महिलाएं, आमतौर पर दुष्ट और इन धारावाहिकों में विभाजन, गलतफहमियों और हिंसा के लिए ज़िम्मेदार होती हैं जबकि पुरुष कठपुतलियां होते हैं जिन्हें महिलाओं द्वारा इस तरफ या उस तरह खींचा जाता है.


यह भी पढ़ें: ‘नो इंटरनेट, हाई-प्रोपेगेंडा’- दिप्रिंट लेकर आया डिक्टेशन और SMS के जरिए मणिपुर की असली कहानियां


जहां हिंसा का राज है

धारावाहिक और टीवी सीरीज़ हाई वोल्टेज फैमिली ड्रामा में एक्सपर्ट हैं जबकि ओटीटी विशेष हाई वोल्टेज हिंसा को पसंद करते हैं.

हिंसा की बात करें तो: हॉटस्टार पर नाइट मैनेजर 2 अब रिलीज़ हो गई है और इसमें हममें से कुछ लोगों की सभी खून की प्यासी प्रवृत्तियों को संतुष्ट करने के लिए पर्याप्त हिंसा और खलनायकी है.

धारावाहिकों में बच्चों द्वारा पुलिस और लुटेरों की भूमिका निभाने वाली शारीरिक हिंसा की तुलना हम ओटीटी विशेष कार्यक्रमों में देखते हैं. मिर्ज़ापुर की परंपरा में ये क्राइम शो भयानक अपराधों को दर्शाते हैं — अमेज़न प्राइम पर दहाड़ में सीरियल किलर के बारे में सोचें. या गुमराह (नेटफ्लिक्स)…ब्ररररर….ये आपके रोंगटे खड़े कर देगा.

जहां तक मानसिक तनाव की बात है, तो यह एक मामला है. अपने अंतहीन और नासमझ उतार-चढ़ाव, जन्म और पुनर्जन्म, धोखे के साथ जो हज़ारों एपिसोड में जारी — अनुपमा अपने 970 एपिसोड के माध्यम से लंबे समय से पीड़ित है, ये रिश्ता क्या कहलाता है अब सीजन 67 में है, और 4,000 से अधिक एपिसोड पूरे कर चुका है — ये धारावाहिक आपके मानसिक और भावनात्मक लचीलेपन की परीक्षा लेते हैं. क्यों कुछ किरदार भी दमनकारी तनाव नहीं झेल पाते: एक से अधिक पात्रों को मनोवैज्ञानिक समस्याएं विकसित करते हुए दिखाया गया है – अनुपमा में माया को ही देख लीजिए.

यह एक और बात है: ओटीटी का मौसमी प्रदर्शन कम होता है, इसलिए आपको बहुत लंबे समय तक खून-खराबे का सामना नहीं करना पड़ता है.

एक ऐसा क्षेत्र जहां टीवी सीरीयल्स आसानी से जीत हासिल करते हैं, वह है पौराणिक और अलौकिक: अभी स्टार भारत पर नौवीं बार महाभारत देखी, और वर्तमान में शिव शक्ति तप त्याग तांडव हमें कलर्स पर भगवान शिव के दर्शन करवा रहा है और नागिन (कलर्स) को कौन भूल सकता है जहां महिलाएं वास्तव में बदला लेने के लिए फुफकारने वाली सांप हैं?

और यदि आप टैलेंट शो चाहते हैं, तो टीवी मनोरंजन चैनलों पर जाएं: इंडियन आइडल, कौन बनेगा करोड़पति, मास्टरशेफ इंडिया (सभी सोनी पर), सा रे गा मा पा (ज़ी), और खतरों के खिलाड़ी (कलर्स) उनमें से कुछ हैं लोकप्रिय नॉन-फिक्शन शो — और वे अलग-अलग पृष्ठभूमि और क्षेत्रों से संबंधित प्रतिभाशाली लोगों की एक अद्भुत सीरीज़ के साथ देखे जाने योग्य भी हैं.

अंत में, ओटीटी धारावाहिक अधिक महंगे, बेहतर निर्मित, लिखित और निर्देशित शो बनाते हैं — अधिकांश मनोरंजन धारावाहिकों की तरह साल-दर-साल सुस्त नहीं होते हैं. स्ट्रीमिंग चैनल स्टार फिल्म निर्देशकों और अभिनेताओं को भी आकर्षित करते हैं. डेली सोप में काफी नए कलाकारों को शामिल किया गया है, जिससे उन्हें स्टार बनाया जाता है, एक ही कथानक को अलग-अलग तरीकों से बताया जाता है.

लेकिन वे दिखावा नहीं कर रहे हैं या खून-खराबा नहीं कर रहे हैं — सिर्फ मेलोड्रामा.

आप तय करें कि आप क्या देखना चाहते हैं.

(शैलजा बाजपई दिप्रिंट की रीडर्स एडिटर हैं. कृपया अपनी राय, शिकायतें readers.editor@theprint.in पर भेंजे. विचार निजी हैं और उनका ट्विटर हैंडल @shailajabajpai है.)

(संपादन: फाल्गुनी शर्मा)

(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


यह भी पढ़ें: खान मार्केट, जॉर्ज सोरोस गैंग, बुलडोजर राजनीति- TV की दुनिया के ये हैं कुछ पसंदीदा शब्द


 

share & View comments