भारतीय विदेश मंत्री एस. जयशंकर और उनसे लगभग आधी उम्र के पाकिस्तानी विदेश मंत्री बिलावल भुट्टो के बीच पिछले हफ्ते संयुक्त राष्ट्र महासभा की बैठक से इतर जो ‘तू-तू-मैं-मैं’ या शर्मनाक बयानबाजी हुई, वो आखिर क्या दर्शाती है?
मुख्यत: अपने-अपने राजनेताओं के समर्थन में इन दोनों सज्जनों के बीच बयानबाजी जिस निचले स्तर तक पहुंच गई, उस पर काफी कुछ लिखा जा चुका है. और सब चीजों को दरकिनार कर दें, तब भी एक बात तो साफ है कि भारत जी-20 के अध्यक्ष के तौर पर दुनिया की सबसे सशक्त अर्थव्यवस्थाओं के नेतृत्व की तैयारी तो कर रहा है लेकिन पड़ोसी देश पाकिस्तान की बचकानी हरकतों को नजरअंदाज करना अभी तक नहीं सीख पाया है.
बेशक, पाकिस्तान का बहुत कुछ दांव पर नहीं लगा है. सालों से चाहे इमरान खान, बिलावल भुट्टो हों या फिर इसके तमाम सेना प्रमुख ये कहने में कतई देर नहीं लगाते कि भारत एक ऐसा दुश्मन है जिससे पाक को बचाना होगा. हम सभी जानते हैं कि देश की भारत नीति को पाकिस्तानी सेना निर्धारित करती है और तीन युद्धों और एक संघर्ष (कारगिल) में मुंह की खाने के बावजूद इस बात पर जोर देकर ही अपनी प्रासंगिकता को बनाए रखती है कि वह भारत से मातृभूमि की रक्षा करेगी.
यह सब पाकिस्तान का पुराना राग है. पिछले हफ्ते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ भुट्टो जूनियर की टिप्पणी को लेकर पाकिस्तानी राजनीतिक पर्यवेक्षकों के विश्लेषण में नया क्या है, जिसमें उन्होंने अपने सर्वश्रेष्ठ, एकदम सधे हुए ऑक्सफोर्ड लहजे में और पाकिस्तानी आवाम को ध्यान में रखकर ही मोदी को ‘गुजरात का कसाई’ बताया था. विदेश मंत्रालय तब से इसे घटियापन का ‘नया निम्नस्तर’ बता रहा है.
पाकिस्तान आज अपनी लड़खड़ाती अर्थव्यवस्था, पश्चिमी मोर्चे पर तालिबान से झटके, चीन के संरक्षण के बावजूद अमेरिका और अन्य पश्चिमी देशों के साथ बिगड़े संबंधों के कारण घरेलू स्तर पर इस कदर घिर चुका है कि उसे भारत की आलोचना करके अपनी आवाम का ध्यान भटकाने के अलावा कोई रास्ता नहीं सूझ रहा. भुट्टो जूनियर कुछ उस तरह की कोशिश कर रहे हैं जैसी उनके नाना पूर्व राष्ट्रपति जुल्फिकार अली भुट्टो ने 50 साल पहले तब की थी जब पाकिस्तान भारत से 1971 का युद्ध हार रहा था.
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वैसे तो सब ठीक है. लेकिन, सवाल उठता है कि भारत पाकिस्तान जैसे नाकाम देश की इस तरह की हरकतों का जवाब देने की जहमत ही क्यों उठा रहा है. यदि पाकिस्तान की जूनियर विदेश मंत्री हिना रब्बानी खार भारत की तरफ से आतंकवाद को बढ़ावा देने के बारे में कुछ कहती भी हैं, तो जयशंकर को क्या जरूरत पड़ी है कि वो यह दोहराते हुए कि पाकिस्तान ‘आतंकवाद का केंद्र’ है और ‘ओसामा बिन लादेन को एक शहीद की तरह महिमामंडित करता है’ खुद इस वाद-विवाद में कूदें?
भारत को पाकिस्तान की हरकतों को नजरअंदाज करना सीखना चाहिए
कोई भी तर्क दे सकता है कि जयशंकर भी भारतीय नागरिकों को ध्यान में रखकर टिप्पणी कर रहे थे. और चूंकि मोदी सरकार पाकिस्तान को दुश्मन घोषित कर चुकी है, खासकर 2019 के बालाकोट हवाई हमले के बाद से, इसलिए जयशंकर केवल पार्टी लाइन पर चल रहे थे.
यह कहना गलत नहीं होगा कि नैतिक आधार पाकिस्तान पर भारी पड़ने के बजाय भारत पड़ोसी देश के बनाए चक्रव्यूह में उलझता जा रहा है. जैसा, मैंने पहले भी तर्क दिया है, पाकिस्तान को तो इससे कोई खास नुकसान नहीं होने वाला है. लेकिन वह भारत को भंवर में फंसाने में जुटा है क्योंकि कुछ न कुछ कीचड़ तो उसके ऊपर भी उछलेगा. इससे भारत की तरफ से कड़ी मेहनत से बनाई गई एक उदार, लोकतांत्रिक और धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र की छवि जरूर धूमिल हो सकती है.
भारत, खासकर मोदी और उनकी भाजपा की छवि को नुकसान पहुंचाने के लिए पाकिस्तान की तरफ से किए जाने वाले ओछे प्रयासों की, कम से कम अभी तो बाकी दुनिया की तरफ से अनदेखी की ही जाएगी. उदाहरण स्वरूप, भारत को जी-20 अध्यक्ष सिर्फ इसलिए नहीं बनाया गया है कि उसने इसकी काबिलियत दिखाई है, बल्कि कहीं न कहीं चीन फैक्टर भी काम कर रहा है. दुनिया मानती है कि भारत चाहे कितना भी गरीबी और घरेलू चुनौतियों से क्यों न जूझ रहा हो, उसे एक एंटी-चाइना कंटेनमेंट (चीन-विरोधी क्षेत्र) बनाने की कोशिश की जानी चाहिए.
भारत को जी-20 की अध्यक्षता मिलना एक नेशनल प्रोजेक्ट है—और मोदी सरकार को यह बात स्वीकारना चाहिए कि इसमें पूर्व पीएम मनमोहन सिंह और कांग्रेस पार्टी के प्रयासों की भी अहम भूमिका रही है. इसका सीधा-सा मतलब यह है कि जी-20 का नेतृत्व भारत को मिला, न कि सिर्फ भाजपा को. ऐसे में चीन, पाकिस्तान से लेकर बाकी सारी विदेश नीति तक के लिहाज से गैर-पक्षपातपूर्ण रुख अपनाना सत्तारूढ़ पार्टी की साख को बढ़ाने वाला होगा.
यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि यह सब जल्द होने की कोई संभावना नहीं है. इसके लिहाज से घरेलू राजनीति काफी बिखरी हुई है. तथ्य यह है कि कांग्रेस ने जयशंकर के बेटे को इस सबके बीच घसीट लिया है और उन पर चीन की तरफ से फंड लेने का आरोप भी लगाया है. जबकि राजनेताओं के परिवार के सदस्य हमेशा ‘लक्ष्मण रेखा’ से परे रहे हैं.
जी-20 नेतृत्व से सबक
भारत को जी-20 का नेतृत्व संभालने की जिम्मेदारी मिलने से कुछ गंभीर सबक सीखने चाहिए. सबसे पहले, तो उसे पाक की इस तरह नुकसान पहुंचाने वाली क्षमता से निपटना सीखना होगा, अन्यथा वह तमाम अंतरराष्ट्रीय मंचों पर इस तरह की बेतुकी बयानबाजी में उलझने में ही अधिक ऊर्जा खर्च करता रहेगा.
दूसरा, क्षेत्रीय नेतृत्व चाहने वाले बड़े राष्ट्र इस तरह नाराज होने या चिढ़ने का जोखिम नहीं उठा सकते. भारत पाकिस्तान को अपने से दूर नहीं कर सकता और न ही दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (सार्क) को पाकिस्तान को इसमें शामिल रखने के लिए दंडित कर सकता है, और इसके बजाय भारत के पूर्वी समुद्री तट पर बंगाल की खाड़ी पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए.
भारत अब जब संविधान के 75 वर्षों का जश्न मनाने की ओर बढ़ रहा है, और पूरी तरह धर्मनिरपेक्ष गणराज्य का दर्जा रखने के नाते भी, इसे अपनी प्रतिष्ठा को लेकर ज्यादा सतर्क होना चाहिए. बिलावल भुट्टो या कोई और भी चाहे जो कुछ कहे इससे यह तथ्य बदलने वाला नहीं है कि भारत अंतरराष्ट्रीय मोर्चे पर कहीं अधिक गंभीर खिलाड़ी है.
यदि प्रधानमंत्री मोदी और उनकी सरकार पाकिस्तान के इस तरह खुद की तरफ ध्यान खींचने वाले व्यवहार के कारणों पर थोड़ी गंभीरता के साथ विचार करे और इस बात को समझे कि इस दोहरी समस्या के नए समाधान खोजना संभव है—तो भारत एक अधिक परिपक्व लीडर बन जाएगा, जिसे अगले 11 महीनों में जी-20 को आगे बढ़ाना है.
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(अनुवाद : रावी द्विवेदी | संपादन : इन्द्रजीत)
(लेखिका दिप्रिंट में कंसल्टिंग एडिटर हैं. वह @jomalhotra हैंडल से ट्वीट करती हैं. व्यक्त विचार निजी हैं.)
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