“व्हाइट कॉलर आतंकवाद” के असर, जो रेड फोर्ट आत्मघाती कार बम धमाके के रूप में सामने आए, का मीडिया और रक्षा विशेषज्ञों ने अच्छी तरह विश्लेषण किया. हालांकि, इसी मॉड्यूल की “टेक्नो आतंकवाद” की नाकाम कोशिश—जिसमें ड्रोन और देसी तौर पर बनाए गए रॉकेटों का इस्तेमाल किए जाने का प्लान था, जैसा कि 7 अक्टूबर 2023 को हमास ने किया था—कहीं ज्यादा गंभीर खतरा पैदा करती है.
भारत में आतंकवाद आमतौर पर ज़मीनी खतरे के रूप में देखा गया है. आतंकवादी छोटे हथियारों, हथगोलों से लैस होते हैं और स्थानीय रूप से तैयार विस्फोटकों का इस्तेमाल करते रहे हैं और कभी-कभी आत्मघाती बम के रूप में ही आते हैं, लेकिन अब तरीका बदल रहा है. विस्फोटकों से लैस, सस्ते, जुगाड़ से बनाए गए या व्यापारिक इस्तेमाल वाले ‘मानव रहित हवाई सिस्टम’ (यूएएस) की संख्या में वृद्धि के कारण इनका इस्तेमाल बढ़ सकता है और आतंकवाद कहीं ज्यादा बड़ा खतरा बन सकता है. प्रायोजकों की ओर से फौजी किस्म के ड्रोन भी सप्लाई किए जा सकते हैं.
नवीनता से छद्म हथियार तक
दुनियाभर में नागरिकता विहीन तत्व ड्रोन को हथियार के रूप में इस्तेमाल कर रहे हैं—पश्चिम एशिया में आईएसआईएस, यमन में हौथी, गाज़ा में हमास और लेबनान में हिज्बुल्ला, ईरान और रूस में इज़रायली तथा यूक्रेनी एजेंट या भाड़े के लड़ाके. भारत के मामले में पाकिस्तान से जुड़े आतंकवादी गिरोह और तस्कर पश्चिमी सीमा की ओर से नशीले पदार्थों को भेजने के लिए ड्रोनों का 2019 से ही व्यवस्थित तथा जमकर इस्तेमाल करते आ रहे हैं. उनका ज्यादा ज़ोर पंजाब और जम्मू-कश्मीर पर रहा है.
भारत में ड्रोन से सबसे पहला हमला 27-28 जून 2021 की रात जम्मू में वायुसेना के अड्डे पर किया गया था. इसने बिलकुल चौंका दिया था, भारतीय वायुसेना को इसका सुराग तक नहीं लगा था और वह उन ड्रोनों को नाकाम नहीं कर पाई थी. अफरातफरी इतनी थी कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस नए खतरे पर विचार करने के लिए गृह मंत्री अमित शाह, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल के साथ बैठक की. इसमें यह तथ्य उभरकर सामने आया कि इसने पूरी व्यवस्था की तैयारी की कमी को उजागर कर दिया. मैंने ड्रोन आतंकवाद के बारे में इससे दो साल पहले ही आगाह कर दिया था.
ऑपरेशन सिंदूर में ड्रोनों का जमकर इस्तेमाल किया गया. ज़ोर फौजी निशानों पर बना रहा, लेकिन भविष्य के टकरावों में दुश्मन फौजी और नागरिक ठिकानों पर ड्रोनों से हमले करने के लिए अपने भाड़े के आतंकवादियों/एजेंटों का भी इस्तेमाल कर सकता है. यह इज़रायल और यूक्रेन ने ‘ऑपरेशन राइजिंग लायन’ और ‘ऑपरेशन स्पाइडर्स वेब’ करके दिखा दिया है.
ड्रोन आतंकवादियों के लिए मुफीद क्यों है
ड्रोन भारी पड़ने वाला हथियार है क्योंकि यह सस्ता, व्यापक रूप से उपलब्ध, आसानी से परिवर्तनीय है और मुश्किल से पकड़ा जा सकता है. 250–500 डॉलर का एक ‘यूएवी’ भीड़ (जो भारत में आम बात है) में मौजूद लोगों की बड़ी संख्या में हत्या कर सकता है और करोड़ों की संपत्ति नष्ट कर सकता है. वास्तविक रूप से यह काफी पसंदीदा हथियार एके-47 राइफल से अब तक सस्ता पड़ रहा है और यह आतंकवादियों को दूर से हमला करने की सुविधा देता है और उन्हें पकड़े या मारे जाने के जोखिम से बचाता है.
ड्रोन को बिकाऊ कल-पुर्जों और थ्री-डी प्रिंटिंग का इस्तेमाल करके आसानी से बनाया जा सकता है. व्यावसायिक और आम ड्रोनों में आसानी से फेरबदल किया जा सकता है. आधुनिक टेक्नोलॉजी की मदद से ‘नैनो’ ड्रोनों को भी हथियार के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है और कोई व्यक्ति हत्याएं करने के लिए इनका अलग से या कम संख्या में भी इस्तेमाल कर सकता है. राजनीतिक सभाओं, धार्मिक जमावड़ों, या किसी घनी आबादी वाले स्थानों को बड़ी संख्या में ‘नैनो’ ड्रोनों से निशाना बनाकर सामूहिक जनसंहार किया जा सकता है या भगदड़ मचाकर बड़ी संख्या लोगों की जान ली जा सकती है.
सरकारी प्रायोजकों के लिए ड्रोन रणनीतिक दृष्टि से और भी ज्यादा उपयोगी हैं क्योंकि वे राजनीतिक तथा सैन्य जोखिम को कम करते हैं, अस्पष्ट लड़ाइयों में ज़िम्मेदारी से इनकार करने का बहाना उपलब्ध कराते हैं, स्पष्ट सीमाओं को लांघे बिना खुफियागीरी करने की सुविधा देते हैं और भविष्य की तीखी लड़ाई के लिए चालों के अभ्यास की छूट देते हैं. इसलिए, ड्रोन आतंकवाद को हिंसा की घटना को अंजाम देने के साधन के रूप में ही नहीं बल्कि व्यापक छद्म युद्ध के एक तत्व के रूप में भी देखा जाना चाहिए.
भारत के लिए उभरते खतरे
इस बात में कोई संदेह नहीं रह जाना चाहिए कि ड्रोन आतंकवाद भारत की आंतरिक सुरक्षा के लिए सबसे बड़ा खतरा बनने वाला है और यह ऑपरेशन सिंदूर जैसी पारंपरिक लड़ाइयों से मुकाबला करता रहेगा.
पाकिस्तान से ड्रग्स, हथियार, विस्फोटक, और दूसरी निषिद्ध चीज़ों की भारत में तस्करी करने के लिए पश्चिमी सीमा पर ड्रोन का इस्तेमाल किया जाता रहेगा. जम्मू-कश्मीर में घुसपैठ के दौरान पकड़े जाने के जोखिम से बचते हुए छद्म युद्ध को जारी रखने के लिए इनका बड़े पैमाने पर दोहन किया जा सकता है.
आंतरिक क्षेत्रों में ड्रोन आतंकवाद के लिए निशाने असंख्य हैं—राजनीतिक नेताओं, सेना या पुलिस वालों की हत्या, व्यापारिक या सैन्य विमानों पर जमीन पर या उड़ान भरने अथवा लैंडिंग करने के दौरान हमले, राजनीतिक सभाओं अथवा धार्मिक जमावड़ों या बाज़ारों या खेल के स्टेडियमों में भीड़ पर हमले, औद्योगिक और पेट्रोकेमिकल परिसरों पर हमले, जैविक और रासायनिक हमले, बिजली के ग्रिडों पर हमले, ट्रेन या बस हादसों को अंजाम देने के रूप में.
सीमाओं पर हवाई सुरक्षा के सघन इंतजाम के कारण ऑपरेशन सिंदूर के दौरान पाकिस्तानी मिसाइलों और ड्रोनों को सीमा पर ही मार गिराया गया था, लेकिन भविष्य में युद्ध के दौरान आतंकवादी, दुश्मन के एजेंट या स्पेशल फोर्स आंतरिक इलाकों में नागरिक और सैन्य ठिकानों को निशाना बना सकते हैं. याद कीजिए कि तीन रातों ताक पाकिस्तान के 600 ड्रोनों ने हालांकि, केवल सैन्य ठिकानों को निशाना बनाया था फिर भी उसका कितना मनोवैज्ञानिक असर पड़ा था. अब उस स्थिति की कल्पना कीजिए कि आंतरिक इलाके को, जहां हवाई सुरक्षा नगण्य है, अगर 100 ड्रोन भी निशाना बनाते हैं तब क्या होगा.
ड्रोन से निबटने की चुनौती
ड्रोन-आतंकवाद से निबटने की जो चुनौती भारत के सामने है वह मुख्यतः तकनीक से संबंधित नहीं है, यह अवधारणा से संबंध रखती है और संस्थागत भी है. इसके मूल में है ड्रोन आतंकवाद को पहचानने में विफलता कि यह हवाई सुरक्षा के लिए एक संपूर्ण चुनौती है.
हवाई सुरक्षा की पारंपरिक रणनीति का ज़ोर विमान, मिसाइल, और सैन्य ड्रोनों जैसे कम, मझोली और बड़ी ऊंचाई तथा तीव्र गति वाले हवाई खतरों पर ही केंद्रित रहा है. वीएलए’ स्तर यानी 300-400 फीट से नीचे की ऊंचाई कुल मिलाकर ‘ब्लाइंड स्पॉट’ रही है. आतंकवादियों के ड्रोन इसी ऊंचाई का सामरिक लाभ उठाते हैं ड्रोन मारक गतिशील वेपान सिस्टम अभी तैयारी के चरण में है. फिलहाल इलेक्ट्रोनिक और लेज़र आधारित जैमर ही सहारा हैं.
अवधारणा के मुताबिक हवाई सुरक्षा सेना की ज़िम्मेदारी है. वह विमानों, मिसाइलों और सैन्य इस्तेमाल वाले ड्रोनों को काइनेटिक तथा इलेक्ट्रोनिक साधनों के ज़रिए मार गिराने वाले अत्याधुनिक तथा महंगे उपकरणों पर निर्भर है. सीमित संसाधनों के कारण उसका ज़ोर केवल सैन्य ठिकानों और महत्वपूर्ण नागरिक इन्फ्रास्ट्रक्चर की सुरक्षा पर होता है वह कम ऊंचाई पर गुप्त रूप से उड़ाए जाने वाले आतंकवादी ड्रोनों को निशाने पर नहीं लेते, चाहे उन ड्रोनों को सीमा पार से भेजा गया हो या अंदरूनी इलाके में इस्तेमाल किया गया हो. हाल के वर्षों में बीएसएफ, राज्यों की पुलिस और दूसरे केंद्रीय पुलिस बलों ने ड्रोन मारक उपकरणों में भी निवेश किया है.
समेकित प्रयास
ड्रोन-आतंकवाद बाहरी सुरक्षा और आंतरिक सुरक्षा के बीच पैर पसारता है. इससे निबटने के लिए संस्थागत स्पष्टता कार्रवाई के मामले में रक्षा मंत्रालय तथा गृह मंत्रालय के बीच साझा व्यवस्था जरूरी है. मौके की मांग है कि सेना, बीएसएफ, केंद्रीय पुलिस बल (सीएपीएफ) हवाई सुरक्षा की संयुक्त कमांड व कंट्रोल सिस्टम (आइएसीसीएस) के जरिए ड्रोन मारक संसाधनों की साझेदारी करें.
सेना हवाई सुरक्षा के सिद्धांत में कम ऊंचाई (300-400 फीट से नीचे) वाले हवाई क्षेत्र को भी अपने ऑपरेशन के दायरे, सैन्य संरचना, और बजट नियोजन में शामिल करे. कम ऊंचाई वाले हवाई क्षेत्र की एक साझा तस्वीर हासिल करने के लिए सेना, सीएपीएफ, राज्य पुलिस के सभी ड्रोन मारक सेंसर और वेपन सिस्टम एक’आईएसीसीएस’ को सूचनाएं साझा करें.
आदर्श स्थिति तो यह होगी कि ‘सुदर्शन चक्र’ योजना में जो नजरिया प्रस्तावित किया गया था उसे लागू किया जाए, लेकिन खर्चों को भी देखना होगा और प्राथमिकताएं तय करनी पड़ेंगी. हवाई सुरक्षा के सीमित संसाधनों से सैन्य ठिकानों और काफी मूल्यवान निशानों की शायद ही रक्षा की जा सकती है. निकट भविष्य में ड्रोन-आतंकवाद का सामना करने की ज़िम्मेदारी राज्य पुलिस और ‘सीएपीएफ’ पर ही रहेगी.
पुलिस और ‘सीएपीएफ’ की भूमिका
अब गृह मंत्रालय के लिए ज़रूरी हो गया है कि वह ड्रोन-मारक सुरक्षा को आंतरिक सुरक्षा में प्राथमिकता दे. राज्य पुलिस और ‘सीएपीएफ’ के पास उनकी अपनी ड्रोन-मारक यूनिटें होनी चाहिए जो ड्रोनों का पता लगाकर उन्हें मर गिराने में सक्षम हों. केंद्र सरकार राज्यों की पुलिस की ड्रोन-मारक क्षमता को बढ़ावा देने के लिए उसे फंड दे. खतरे के मद्देनज़र कॉर्पोरेट या औद्योगिक संस्थानों को भी ऐसे ड्रोन-मारक सिस्टम रखने की इजाजत दी जाए जो निश्चित ऊंचाई और दूरी तक ही ऑपरेट करें.
जब तक राष्ट्रीय नेटवर्क तैयार नहीं हो जाता तब तक जरूरत के मुताबिक आंतरिक इलाके के लिए कम ऊंचाई वाले हवाई क्षेत्र की सुरक्षा के लिए नेटवर्क बनाया जाना चाहिए. इसमें नागरिक विमानन, आंतरिक सुरक्षा और सैन्य मामलों में भागीदारी रखने वालों की साझेदारी होनी चाहिए और इसके नियम भी तय किए जाएं. नागरिक क्षेत्र में ड्रोन मारक एक्शन के स्पष्ट दिशानिर्देश तथा कानूनी व्यवस्था ज़रूरी हैं ताकि कोई अस्पष्टता और हिचक न रहे.
सभी संवेदनशील स्थानों को ‘रेड ज़ोन’ घोषित किया जाए जहां असैनिक ड्रोन उड़ाने पर रोक हो. ऐसे स्थानों को ड्रोन मारक व्यवस्था की सुरक्षा हासिल हो. शहरों के भीड़ वाले इलाकों, पूजास्थलों और प्रमुख त्योहारों के स्थलों या लोगों के इकट्ठा होने की जगहों को नियमितः ‘रेड ज़ोन’ घोषित किया जाए और उन्हें राज्य पुलिस तथा ड्रोन मारक सिस्टम की सुरक्षा हासिल हो, जिसमें जरूरत पड़ने पर ‘सीएपीएफ’ की भी मदद ली जाए.
ड्रोन-आतंकवाद से सुरक्षा के तहत ‘डिफेंस इन डेफ़्थ’ के सारे पहलू शामिल हैं, जैसे—रोकथाम, खौफ पैदा करना, मौका न लेने देना, टोह लेना, अवरोध पैदा करना, और नष्ट करना. खुफिया एजेंसियां ड्रोन-आतंकवाद पर विशेष ध्यान दें.
रोकथाम के लिए ‘ड्रोन रूल्स 2021’ लागू हैं और इन्हें ‘सिविल ड्रोन (प्रोमोशन ऐंड रेगुलेशन) बिल, 2025’ के जरिए और बेहतर बनाया जा रहा है. इस बिल का मसौदा अभी तैयार किया जा रहा है. इस पर सरसरी नज़र डालने से पता लगता है कि इसमें ड्रोन-आतंकवाद पर पूरा ध्यान नहीं दिया गया है. फिलहाल अधिकतर ड्रोन अलग-अलग ऑपरेट करते हैं जिनकी उड़ान की योजना पहले दाखिल कर दी जाती है, लेकिन ‘मंजूरी नहीं तो उड़ना नहीं’ वाली व्यवस्था पर अमल किए जाने के संकेत नहीं दिखते. इसका अर्थ यह है कि दुश्मन के ड्रोन की पहचान करना बहुत मुश्किल है.
यहां यह बताना उपयुक्त होगा कि ड्रोन जैम करने की पारंपरिक व्यवस्था से अछूते होते जा रहे हैं. इसलिए ड्रोन मारक इलेक्ट्रोनिक और काइनेटिक उपायों वाली व्यवस्था जरूरी हो गई है.
रणनीतिक ज़रूरत
ड्रोन-आतंकवाद आक्रामक तथा नागरिकता विहीन तत्वों की हवाई ताकत के लोकतांत्रीकरण का प्रतीक है. यह आतंकवादियों और उनके आकाओं को हवाई क्षेत्र से नजर रखने और डराने तथा हमला करने की सुविधा देता है, जो क्षेत्र कभी वायुसेनाओं का अपना दायरा होता था.
भारत के सामने विकल्प बिलकुल साफ हैं: या तो ड्रोनों को आतंकवाद के साधन के रूप में गिनिए और उनसे संबंधित हर घटना का मुकाबला कीजिए, या उन्हें छद्म युद्ध का केंद्रीय तत्व मानिए जिसके कारण सैद्धांतिक सुधार, संस्थागत तालमेल और संयुक्त ऑपरेशन ज़रूरी हो गया है.
ड्रोन-आतंकवाद भारत के लिए अब एक काल्पनिक भविष्य नहीं रह गया है, यह एक वास्तविकता के रूप में बिलकुल सामने खड़ा है. आतंकवादियों की ओर से एक बड़ा ड्रोन हमला कभी भी हो सकता है इसलिए हमारे सुरक्षा बलों को इसे रोकने और नाकाम करने के लिए तैयार हो जाना चाहिए.
(लेफ्टिनेंट जनरल एच. एस. पनाग (सेवानिवृत्त), पीवीएसएम, एवीएसएम, ने 40 साल तक भारतीय सेना में सेवा की. वे उत्तरी कमान और केंद्रीय कमान के कमांडर रहे. रिटायरमेंट के बाद, उन्होंने सशस्त्र बल न्यायाधिकरण में सदस्य के रूप में काम किया. यहां व्यक्त विचार उनके निजी हैं.)
(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
यह भी पढ़ें: चुशूल हवाई अड्डे को फिर से चालू करने का असली असर मानसिक पहलू पर पड़ेगा
