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Wednesday, 20 November, 2024
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भारत सड़कों, रेलवे, विमान सेवाओं पर खूब खर्च कर रहा है, उम्मीद करें कि उसका फल भी मिलेगा

कोई एयरलाइन कमाई नहीं कर रही है, रेलवे यात्रियों की संख्या स्थिर है, सड़कों के मामले में भी राजस्व असंतुलन है, ऐसे में यह तो देखना ही पड़ेगा कि ट्रैफिक में हो रही वृद्धि के लिहाज से निवेश जायज है या नहीं.   

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भारत का परिवहन क्षेत्र विचित्र तस्वीर पेश करता है—ट्रैफिक स्थिर है, लाभ कमजोर या ऋणात्मक है, फिर भी भविष्य के लिए अभूतपूर्व निवेश किया जा रहा है. तमाम तरह के परिवहन साधन में वर्षों से जो पैसा लगाया गया है उसके नतीजे अगले दो-तीन वर्षों में हवाई मार्ग, हाइवे, एक्सप्रेसवे और रेलवे में बदलाव के रूप में दिख सकते हैं. यह उम्मीद है.

लेकिन विरोधाभास खत्म नहीं होते. कोई भी भारतीय एयरलाइन पैसे नहीं कमा रही है और हवा में घट रही घटनाओं ने सुरक्षा को लेकर चिंताएं बढ़ा दी हैं जबकि यात्रियों की संख्या कोविड महामारी के पहले वाली स्तर पर पहुंच गई है.

फिर भी, नयी एयरलाइन में निवेश पहले कभी इतना आशावादी नहीं था. ‘आकाश’ ‘अति-कम लागत’ वाले केरियर के रूप में उड़ान शुरू करने वाला है. उसने 72 विमानों की खरीद के ऑर्डर दिए हैं. सेक्टर लीडर के रूप में इंडिगो के पास 275 विमान हैं और उसने 700 विमान के लिए ऑर्डर दे रखा है. लेकिन उसके कर्मचारी वेतन में कटौती से नाराज हैं.

एयर इंडिया (जिसने 2006 के बदनाम प्रकरण के बाद से नये विमान के ऑर्डर नहीं दिया था) के नये मालिक बेड़े को मजबूत बनाने पर विचार कर रहे हैं, उन्होंने 300 विमानों का ऑर्डर दिया है. उनके बेड़े में फिलहाल 120 विमान हैं.

नये जो ऑर्डर दिए गए हैं उनके कारण देश के मौजूदा कुल 665 विमानों के उड्डयन बेड़े में विमान हो जाएंगे. ऑर्डर वाले विमान कीस्टोन में आएंगे और कई तो मौजूदा विमान की जगह लेंगे. लेकिन क्षमता में यह वृद्धि मांग में वृद्धि के मुक़ाबले कहीं ज्यादा होगी. इसलिए यात्री भाड़े पर दबाव बढ़ेगा और यह ज्यादा घाटा कराएगा, खासकर तब जबकि तेल की कीमतें ऊंची रहेंगी और टैक्स का स्तर यथावत बना रहेगा. एक से ज्यादा एयरलाइन जेट, किंगफिशर और दूसरे एयरलाइनों की राह पकड़ सकती हैं.

इसी तरह, रेलवे इस तरह निवेश कर रहा है जैसा पहले कभी नहीं किया था. यह निवेश सालाना जीडीपी के करीब 1 प्रतिशत के बराबर होगा. वह ‘सेमी हाईस्पीड’ वाली यात्री रेलगाड़ियां ला रहा है, जो औसतन 100 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से चलेंगी (फिलहाल एक्सप्रेस रेलगाड़ियां 70 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से चलती हैं)इसके अलावा रमणीक मार्गों पर ‘विस्टाडोम’ डिब्बे लगाने और रेलवे स्टेशनों को आधुनिक बनाने के बड़े कार्यक्रम लागू किए जा रहे हैं.

ये बदलाव उम्मीद से पहले हो जाएंगे क्योंकि माल ढुलाई के ‘डेडीकेटेड फ्रेट कॉरीडोर’ (जिस पर मौजूदा फ्रेट ट्रैफिक चली आएगी) ने सुस्त प्रगति की है और उसकी लागत में भी अनुमानित लागत के मुक़ाबले भारी वृद्धि हो गई है. लेकिन तेज गति वाली इंटरसिटी ट्रेनें में आरामदायक यात्रा जल्दी ही वास्तविकता बनने वाली है और ये कम दूरी वाली विमान यात्रा से होड़ ले सकती हैं.


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विरोधाभास एक बार फिर यही है कि यात्रियों की संख्या स्थिर है, जिससे घाटा काफी बढ़ता है. इसके अलावा माल ढुलाई में वृद्धि भी दर्दनाक रूप से सुस्त है और कुल वित्तीय स्थिति ऐसी है कि खर्च के लिए जरूरी राजस्व नहीं जुट रहा है. यह सब बदल सकता है लेकिन रेलवे में वार्षिक निवेश उतना ही है जितना राजस्व है. कोई भी निवेश ऑपरेशन के सरप्लस से नहीं हो रहा है. और काफी कुछ बाहरी संसाधन से आ रहा है जो कर्ज में वृद्धि करा सकता है; निवेश का बड़ा हिस्सा बजटीय समर्थन के रूप में जारी रह सकता है.

सड़कों और हाइवे में वार्षिक निवेश रेलवे में निवेश (जीडीपी के 0.5 फीसदी के बराबर) के आधे के बराबर है, लेकिन राजस्व असंतुलन कहीं ज्यादा खराब है, जबकि निवेश कमाई के नौ गुना के बराबर है. निवेश का दौर शुरू होने से पहले निवेश और राजस्व लगभग समान थे. लेकिन देश जब हाइवे से एक्सप्रेसवे की ओर बढ़ा और इंटर मोडल ट्रैफिक नोड और बंदरगाहों से जोड़ने वाले मार्गों का विकास होने लगा तब देश के इन्फ्रास्ट्रक्चर में बनी आ रही कमजोरी को अंततः दूर किया जा रहा है. खबर है कि नये हाइवेज़ पर ट्रक ट्रैफिक तेज हुई है, जिसमें जीएसटी भी मदद कर रही है लेकिन एक ट्रक एक दिन में औसतन जितनी दूरी तय करता है उसका आंकड़ा दूसरे देशों में इस आंकड़े से काफी कम ही है.

किसी देश में ट्रांसपोर्ट के इंफ्रास्ट्रक्चर में निवेश के फैसले उससे होने वाले लाभ के मद्देनजर नहीं किए जाते. यही वजह है कि उसके लिए फंड बजट से बाहर से लाया जाता और व्यापारिक शर्तों पर नहीं. चूंकि ट्रांसपोर्ट के इंफ्रास्ट्रक्चर के लिए काफी निजी फंड की जरूरत होती है इसलिए यह प्रासंगिक ही है कि भारत में पिछले पांच वर्षों में विभिन्न सेक्टरों में ट्रैफिक में कम या शून्य वृद्धि हुई है. कभी-न-कभी, यह देखना पड़ेगा कि ट्रैफिक में वृद्धि के हिसाब से निवेश जायज है या नहीं. या संपत्ति बिक्री के सरकारी कार्यक्रम से अपेक्षित आंकड़े हासिल होते हैं या नहीं. यहां भी बस उम्मीद का ही सहारा है.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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